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Old 24-12-2010, 03:43 AM   #91
amit_tiwari
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Default Re: ताज महल या शिव मंदिर (100 से भी अधिक प्रमाण)

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Originally Posted by pankaj bedrdi View Post
40. शुभ्र ताज के पूर्व तथा पश्चिम में बने दोनों भवनों के ढांचे, माप और आकृति में एक समान हैं और आज तक इस्लाम की परंपरानुसार पूर्वी भवन को सामुदायिक कक्ष (community hall) बताया जाता है जबकि पश्चिमी भवन पर मस्ज़िद होने का दावा किया जाता है। दो अलग-अलग उद्देश्य वाले भवन एक समान कैसे हो सकते हैं? इससे सिद्ध होता है कि ताज पर शाहज़हां के आधिपत्य हो जाने के बाद पश्चिमी भवन को मस्ज़िद के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्ज़िद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे।
किसी भी कला में संतुलन एक बेहद जरुरी तत्व होता है | एक ईमारत के एक तरफ यदि एक कोई संरचना है तो दूसरी तरफ उसे संतुलन देने के लिए क्या होगा ? ओक की प्रतिमा ?

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Originally Posted by pankaj bedrdi View Post
41. उसी किनारे में कुछ गज की दूरी पर नक्कारख़ाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है (क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारख़ाने के पास मस्ज़िद नहीं बनाया जाता)। इससे इंगित होता है कि पश्चिमी भवन मूलतः मस्ज़िद नहीं था। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में विजयघंट, घंटियों, नगाड़ों आदि का मधुर नाद अनिवार्य होने के कारण इन वस्तुओं के रखने का स्थान होना आवश्यक है।

42. ताजमहल में मुमताज़ महल के नकली कब्र वाले कमरे की दीवालों पर बनी पच्चीकारी में फूल-पत्ती, शंख, घोंघा तथा हिंदू अक्षर ॐ चित्रित है। कमरे में बनी संगमरमर की अष्टकोणीय जाली के ऊपरी कठघरे में गुलाबी रंग के कमल फूलों की खुदाई की गई है। कमल, शंख और ॐ के हिंदू देवी-देवताओं के साथ संयुक्त होने के कारण उनको हिंदू मंदिरों में मूलभाव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
फूल, पत्ती, घोंघा तो ठीक ॐ किसने देखा भाई ??? कोई प्रमाण ???


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52. शाहज़हां और मुमताज़ के प्रेम की कहानियाँ मूर्खतापूर्ण तथा कपटजाल हैं। न तो इन कहानियों का कोई ऐतिहासिक आधार है न ही उनके कल्पित प्रेम प्रसंग पर कोई पुस्तक ही लिखी गई है। ताज के शाहज़हां के द्वारा अधिग्रहण के बाद उसके आधिपत्य दर्शाने के लिये ही इन कहानियों को गढ़ लिया गया।

कीमत

53. शाहज़हां के शाही और दरबारी दस्तावेज़ों में ताज की कीमत का कहीं उल्लेख नहीं है क्योंकि शाहज़हां ने कभी ताजमहल को बनवाया ही नहीं। इसी कारण से नादान लेखकों के द्वारा ताज की कीमत 40 लाख से 9 करोड़ 17 लाख तक होने का काल्पनिक अनुमान लगाया जाता है।
यार ये तो ओक ने नयी बात बताई | किताब तो ओक के माता पिता के प्रेम पर भी नहीं लिखी गयी तो क्या वो भी सब ऐसे ही कपट जाल था ?

और फिर कीमत, एक एक पाई का हिसाब है |

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54. इसी प्रकार से ताज का निर्माणकाल 10 से 22 वर्ष तक के होने का अनुमान लगाया जाता है। यदि शाहज़हां ने ताजमहल को बनवाया होता तो उसके निर्माणकाल के विषय में अनुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि उसकी प्रविष्टि शाही दस्तावेज़ों में अवश्य ही की गई होती।

भवननिर्माणशास्त्री

55. ताज भवन के भवननिर्माणशास्त्री (designer, architect) के विषय में भी अनेक नाम लिये जाते हैं जैसे कि ईसा इफेंडी जो कि एक तुर्क था, अहमद़ मेंहदी या एक फ्रांसीसी, आस्टीन डी बोरडीक्स या गेरोनिमो वेरेनियो जो कि एक इटालियन था, या शाहज़हां स्वयं।
गप्प |

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56. ऐसा समझा जाता है कि शाहज़हां के काल में ताजमहल को बनाने के लिये 20 हजार लोगों ने 22 साल तक काम किया। यदि यह सच है तो ताजमहल का नक्शा (design drawings), मजदूरों की हाजिरी रजिस्टर (labour muster rolls), दैनिक खर्च (daily expenditure sheets), भवन निर्माण सामग्रियों के खरीदी के बिल और रसीद (bills and receipts of material ordered) आदि दस्तावेज़ शाही अभिलेखागार में उपलब्ध होते। वहाँ पर इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी नहीं है।



57. अतः ताजमहल को शाहज़हाँ ने बनवाया और उस पर उसका व्यक्तिगत तथा सांप्रदायिक अधिकार था जैसे ढोंग को समूचे संसार को मानने के लिये मजबूर करने की जिम्मेदारी चापलूस दरबारी, भयंकर भूल करने वाले इतिहासकार, अंधे भवननिर्माणशस्त्री, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख कवि, लापरवाह पर्यटन अधिकारी और भटके हुये पथप्रदर्शकों (guides) पर है।
@56 :सब कुछ उपलब्ध है |

@57 : हम्म बाकी सब उल्लू और एक ओक बिचारा सरस्वती माँ का पाइरेटेड एडिसन ??


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58. शाहज़हां के समय में ताज के वाटिकाओं के विषय में किये गये वर्णनों में केतकी, जै, जूही, चम्पा, मौलश्री, हारश्रिंगार और बेल का जिक्र आता है। ये वे ही पौधे हैं जिनके फूलों या पत्तियों का उपयोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में होता है। भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। किसी कब्रगाह में केवल छायादार वृक्ष लगाये जाते हैं क्योंकि श्मशान के पेड़ पौधों के फूल और फल का प्रयोग को वीभत्स मानते हुये मानव अंतरात्मा स्वीकार नहीं करती। ताज के वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहज़हां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था।


इससे अच्चा प्रतिउत्तर इस लाइन का मेरे पास नहीं है |

Last edited by amit_tiwari; 24-12-2010 at 04:57 AM.
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Old 24-12-2010, 03:44 AM   #92
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Default Re: ताज महल या शिव मंदिर (100 से भी अधिक प्रमाण)

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59. हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है।

60. मोहम्मद पैगम्बर ने निर्देश दिये हैं कि कब्रगाह में केवल एक कब्र होना चाहिये और उसे कम से कम एक पत्थर से चिन्हित करना चाहिये। ताजमहल में एक कब्र तहखाने में और एक कब्र उसके ऊपर के मंज़िल के कक्ष में है तथा दोनों ही कब्रों को मुमताज़ का बताया जाता है, यह मोहम्मद पैगम्बर के निर्देश के निन्दनीय अवहेलना है। वास्तव में शाहज़हां को इन दोनों स्थानों के शिवलिंगों को दबाने के लिये दो कब्र बनवाने पड़े थे। शिव मंदिर में, एक मंजिल के ऊपर एक और मंजिल में, दो शिव लिंग स्थापित करने का हिंदुओं में रिवाज था जैसा कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और सोमनाथ मंदिर, जो कि अहिल्याबाई के द्वारा बनवाये गये हैं, में देखा जा सकता है।
@59 : क्या सारे के सारे मंदिर नदी किनारे ही हैं ? यदि नहीं तो मकबरा क्यूँ नहीं हो सकता नदी किनारे? कौन सी किताब में लिखा है की मकबरा नदी किनारे नहीं हो सकता ?

@60 : शायद ओक ने इतिहास हाईस्कूल में भी नहीं पढ़ी | मुग़ल कई मायनों में मुस्लिम सिद्धांतों को अपने अनुसार मोड़ लेते थे | जैसे ?
जैसे अकबर ने खुद के नाम का कलमा पढ़ा |
मुगलों नी पादशाह(बादशाह) की पदवी ग्रहण की
मुगलों ने आखिरी खलीफा के हत्यारे के साथ सम्बन्ध बना के रखे
मुग़ल महल में मंदिर होते थे |

अब ऐसे लोग अगर एक भवन शास्त्र का नियम तोड़ दें तो कुछ अचरज ?

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61. ताजमहल में चारों ओर चार एक समान प्रवेशद्वार हैं जो कि हिंदू भवन निर्माण का एक विलक्षण तरीका है जिसे कि चतुर्मुखी भवन कहा जाता है।

हिंदू गुम्बज

62. ताजमहल में ध्वनि को गुंजाने वाला गुम्बद है। ऐसा गुम्बज किसी कब्र के लिये होना एक विसंगति है क्योंकि कब्रगाह एक शांतिपूर्ण स्थान होता है। इसके विरुद्ध हिंदू मंदिरों के लिये गूंज उत्पन्न करने वाले गुम्बजों का होना अनिवार्य है क्योंकि वे देवी-देवता आरती के समय बजने वाले घंटियों, नगाड़ों आदि के ध्वनि के उल्लास और मधुरता को कई गुणा अधिक कर देते हैं।
पर्सिवल स्पीयर ने हिन्दू और मुस्लिम गुम्बज(गुम्बद) के फर्क को पुरे विस्तार से बताया है | ताजमहल में जिस प्रकार का गुम्बद है वो उलटे लोटे के आकार का है | असल में ऐसा आकार अपने मुख पर संकरा होता है और फिर बाद में फ़ैल कर छोटी पर मिलता है | इसे कहते हैं उलटे लोटे के आकर का गुम्बज और ऐसा गुम्बद आवाज को गुंजाने के लिए नहीं होता | हिन्दू गुम्बद सीधे होते हैं, बहुत कुछ ढलवां पिरामिड की तरह, इसका उदाहरण? कोई भी मंदिर देख लीजिये | मुझे एक सिर्फ एक उदाहरण दीजिये प्राचीन मंदिर का जहां उलटे लोटे के आकर का गुम्बद है | सिर्फ एक |


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65. महल को कब्र का रूप देने की गलती के परिणामस्वरूप एक व्यापक भ्रामक स्थिति उत्पन्न हुई है। इस्लाम के आक्रमण स्वरूप, जिस किसी देश में वे गये वहाँ के, विजित भवनों में लाश दफन करके उन्हें कब्र का रूप दे दिया गया। अतः दिमाग से इस भ्रम को निकाल देना चाहिये कि वे विजित भवन कब्र के ऊपर बनाये गये हैं जैसे कि लाश दफ़न करने के बाद मिट्टी का टीला बना दिया जाता है। ताजमहल का प्रकरण भी इसी सच्चाई का उदाहरण है। (भले ही केवल तर्क करने के लिये) इस बात को स्वीकारना ही होगा कि ताजमहल के पहले से बने ताज के भीतर मुमताज़ की लाश दफ़नाई गई न कि लाश दफ़नाने के बाद उसके ऊपर ताज का निर्माण किया गया।
संभवतः ओक के दिमाग से तिथि ज्ञान निकल गया है | मुग़ल देश में आये हुए लुटेरे नहीं थे |
मुग़ल यहाँ स्थापित शासक थे जिन्होंने आने के बाद सामंतवाद को हटाया, उन्होंने राजपूतों के आपसी झगड़ों को अपने डर से बंद कराया, लुटेरे अफगानों को भगाया और आर्थिक क्षेत्र में कई नयी व्यवस्थाओं को इजाद कराया |


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67. नदी तट से भाग में संगमरमर के नींव के ठीक नीचे लाल पत्थरों वाले 22 कमरे हैं जिनके झरोखों को शाहज़हां ने चुनवा दिया है। इन कमरों को जिन्हें कि शाहज़हां ने अतिगोपनीय बना दिया है भारत के पुरातत्व विभाग के द्वारा तालों में बंद रखा जाता है। सामान्य दर्शनार्थियों को इनके विषय में अंधेरे में रखा जाता है। इन 22 कमरों के दीवारों तथा भीतरी छतों पर अभी भी प्राचीन हिंदू चित्रकारी अंकित हैं। इन कमरों से लगा हुआ लगभग 33 फुट लंबा गलियारा है। गलियारे के दोनों सिरों में एक एक दरवाजे बने हुये हैं। इन दोनों दरवाजों को इस प्रकार से आकर्षक रूप से ईंटों और गारा से चुनवा दिया गया है कि वे दीवाल जैसे प्रतीत हों।
asi के बारे में मैं ऊपर लिख चुका हूँ |
क्या ओक ये कहना चाहता है की भारत में आने वाले हर दल की सरकार का एक ही मिशन है की ताजमहल की सच्चाई को छुपाया जाये?
सारी पार्टियां एक हैं? भाज्पता भी दस साल में ये खुलवा के क्यूँ नहीं सामने ला पाई ?

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68. स्पष्तः मूल रूप से शाहज़हां के द्वारा चुनवाये गये इन दरवाजों को कई बार खुलवाया और फिर से चुनवाया गया है। सन् 1934 में दिल्ली के एक निवासी ने चुनवाये हुये दरवाजे के ऊपर पड़ी एक दरार से झाँक कर देखा था। उसके भीतर एक वृहत कक्ष (huge hall) और वहाँ के दृश्य को************************************************ ************************************************** ************************************************** ** देख कर वह हक्का-बक्का रह गया तथा भयभीत सा हो गया। वहाँ बीचोबीच भगवान शिव का चित्र था जिसका सिर कटा हुआ था और उसके चारों ओर बहुत सारे मूर्तियों का जमावड़ा था। ऐसा भी हो सकता है कि वहाँ पर संस्कृत के शिलालेख भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिये कि ताजमहल हिंदू चित्र, संस्कृत शिलालेख, धार्मिक लेख, सिक्के तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं जैसे कौन कौन से साक्ष्य छुपे हुये हैं उसके के सातों मंजिलों को खोल कर उसकी साफ सफाई करने की नितांत आवश्यकता है।

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69. अध्ययन से पता चलता है कि इन बंद कमरों के साथ ही साथ ताज के चौड़ी दीवारों के बीच में भी हिंदू चित्रों, मूर्तियों आदि छिपे हुये हैं। सन् 1959 से 1962 के अंतराल में श्री एस.आर. राव, जब वे आगरा पुरातत्व विभाग के सुपरिन्टेन्डेंट हुआ करते थे, का ध्यान ताजमहल के मध्यवर्तीय अष्टकोणीय कक्ष के दीवार में एक चौड़ी दरार पर गया। उस दरार का पूरी तरह से अध्ययन करने के लिये जब दीवार की एक परत उखाड़ी गई तो संगमरमर की दो या तीन प्रतिमाएँ वहाँ से निकल कर गिर पड़ीं। इस बात को खामोशी के साथ छुपा दिया गया और प्रतिमाओं को फिर से वहीं दफ़न कर दिया गया जहाँ शाहज़हां के आदेश से पहले दफ़न की गई थीं। इस बात की पुष्टि अनेक अन्य स्रोतों से हो चुकी है। जिन दिनों मैंने ताज के पूर्ववर्ती काल के विषय में खोजकार्य आरंभ किया उन्हीं दिनों मुझे इस बात की जानकारी मिली थी जो कि अब तक एक भूला बिसरा रहस्य बन कर रह गया है। ताज के मंदिर होने के प्रमाण में इससे अच्छा साक्ष्य और क्या हो सकता है? उन देव प्रतिमाओं को जो शाहज़हां के द्वारा ताज को हथियाये जाने से पहले उसमें प्रतिष्ठित थे ताज की दीवारें और चुनवाये हुये कमरे आज भी छुपाये हुये हैं।

ये ओक साला दंगा करवाएगा |

Last edited by amit_tiwari; 24-12-2010 at 04:56 AM.
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Old 24-12-2010, 03:44 AM   #93
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70. स्पष्टतः के केन्द्रीय भवन का इतिहास अत्यंत पेचीदा प्रतीत होता है। शायद महमूद गज़नी और उसके बाद के मुस्लिम प्रत्येक आक्रमणकारी ने लूट कर अपवित्र किया है परंतु हिंदुओं का इस पर पुनर्विजय के बाद पुनः भगवान शिव की प्रतिष्ठा करके इसकी पवित्रता को फिर से बरकरार कर दिया जाता था। शाहज़हां अंतिम मुसलमान था जिसने तेजोमहालय उर्फ ताजमहल के पवित्रता को भ्रष्ट किया।


एक और गप्प |
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72. बाबर की पुत्री गुलबदन 'हुमायूँनामा' नामक अपने ऐतिहासिक वृतांत में ताज का संदर्भ 'रहस्य महल' (mystic house) के नाम से देती है।

73. बाबर स्वयं अपने संस्मरण में इब्राहिम लोधी के कब्जे में एक मध्यवर्ती अष्टकोणीय चारों कोणों में चार खम्भों वाली इमारत का जिक्र करता है जो कि ताज ही था। ये सारे संदर्भ ताज के शाहज़हां से कम से कम सौ साल पहले का होने का संकेत देते हैं।

74. ताजमहल की सीमाएँ चारों ओर कई सौ गज की दूरी में फैली हुई है। नदी के पार ताज से जुड़ी अन्य भवनों, स्नान के घाटों और नौका घाटों के अवशेष हैं। विक्टोरिया गार्डन के बाहरी हिस्से में एक लंबी, सर्पीली, लताच्छादित प्राचीन दीवार है जो कि एक लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय स्तंभ तक जाती है। इतने वस्तृत भूभाग को कब्रिस्तान का रूप दे दिया गया।
एक और ओक की बकवास | भाई लोदी काल की इमारतों और मुग़ल काल की इमारतों का अंतर भी इसे नहीं पता? बलुआ पत्थर और संगमरमर का अंतर बताना पड़ेगा इसे ?


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75. यदि ताज को विशेषतः मुमताज़ के दफ़नाने के लिये बनवाया गया होता तो वहाँ पर अन्य और भी कब्रों का जमघट नहीं होता। परंतु ताज प्रांगण में अनेक कब्रें विद्यमान हैं कम से कम उसके पूर्वी एवं दक्षिणी भागों के गुम्बजदार भवनों में।

76. दक्षिणी की ओर ताजगंज गेट के दूसरे किनारे के दो गुम्बजदार भवनों में रानी सरहंडी ब़ेगम, फतेहपुरी ब़ेगम और कु. सातुन्निसा को दफ़नाया गया है। इस प्रकार से एक साथ दफ़नाना तभी न्यायसंगत हो सकता है जबकि या तो रानी का दर्जा कम किया गया हो या कु. का दर्जा बढ़ाया गया हो। शाहज़हां ने अपने वंशानुगत स्वभाव के अनुसार ताज को एक साधारण मुस्लिम कब्रिस्तान के रूप में परिवर्तित कर के रख दिया क्योंकि उसने उसे अधिग्रहित किया था (ध्यान रहे बनवाया नहीं था)।
चचा वो कब्रें नहीं सैनिकों की बैरकें थी जो सुरक्षा के लिए बनायीं गयीं, वो भी बहुत बाद के काल में |

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77. शाहज़हां ने मुमताज़ से निक़ाह के पहले और बाद में भी कई और औरतों से निक़ाह किया था, अतः मुमताज़ को कोई ह़क नहीँ था कि उसके लिये आश्चर्यजनक कब्र बनवाया जावे।

78. मुमताज़ का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उसमें ऐसा कोई विशेष योग्यता भी नहीं थी कि उसके लिये ताम-झाम वाला कब्र बनवाया जावे।

79. शाहज़हां तो केवल एक मौका ढूंढ रहा था कि कैसे अपने क्रूर सेना के साथ मंदिर पर हमला करके वहाँ की सारी दौलत हथिया ले, मुमताज़ को दफ़नाना तो एक बहाना मात्र था। इस बात की पुष्टि बादशाहनामा में की गई इस प्रविष्टि से होती है कि मुमताज़ की लाश को बुरहानपुर के कब्र से निकाल कर आगरा लाया गया और 'अगले साल' दफ़नाया गया। बादशाहनामा जैसे अधिकारिक दस्तावेज़ में सही तारीख के स्थान पर 'अगले साल' लिखने से ही जाहिर होता है कि शाहज़हां दफ़न से सम्बंधित विवरण को छुपाना चाहता था।
शायद ओक को नहीं पता की उस समय विवाह करना शासक के लिए एक राजनीतिक पैतरा होता था |
क्या साधारण परिवार के लोगों में कोई योग्यता नहीं होती? तत्कालीन समय में अकबर स्वयं अनपढ़ था, उसका सबसे प्रिय दरबारी बीरबल एक गरीब ब्राम्हण था |
ये ओक जैसे को समझाना पड़ेगा की योग्यता और प्रेम परिवार की हैसियत से नहीं होता |

Last edited by amit_tiwari; 24-12-2010 at 05:00 AM.
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Old 24-12-2010, 03:45 AM   #94
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80. विचार करने योग्य बात है कि जिस शाहज़हां ने मुमताज़ के जीवनकाल में उसके लिये एक भी भवन नहीं बनवाया, मर जाने के बाद एक लाश के लिये आश्चर्यमय कब्र कभी नहीं बनवा सकता।


81. एक विचारणीय बात यह भी है कि शाहज़हां के बादशाह बनने के तो या तीन साल बाद ही मुमताज़ की मौत हो गई। तो क्या शाहज़हां ने इन दो तीन साल के छोटे समय में ही इतना अधिक धन संचय कर लिया कि एक कब्र बनवाने में उसे उड़ा सके?
@80 एक विचार करने वाली बात ये भी है की तब दो बेडरूम के फ़्लैट नहीं होते थे जो कोई भी बर्थडे में गिफ्ट करता घुमे | आगरे के किले को शाहजहाँ ने काफी भव्य कराया था और इसमें सबकी जरूरतों के अनुसार परिवर्तन भी हुए थे, ताजमहल की तरफ मुख किये हुए राजपूती तरह के छत्ते भी शाहजहाँ ने ही बनवाये थे |

@81 क्या इससे बड़ी बकवास भी हो सकती है ? क्या मुग़ल बादशाह का कोष जिसका साम्राज्य पुरे भारत में था उसमें एक ईमारत के लिए धन नहीं था ? क्या किसी समझदार व्यक्ति को इसका उत्तर देने की आवश्यकता भी है ?


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82. जहाँ इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता वहीं शाहज़हां के अनेक औरतों के साथ, जिनमें दासी, औरत के आकार के पुतले, यहाँ तक कि उसकी स्वयं की बेटी जहांआरा भी शामिल है, के साथ यौन सम्बंधों ने उसके काल में अधिक महत्व पाया। क्या शाहज़हां मुमताज़ की लाश पर अपनी गाढ़ी कमाई लुटाता?

83. शाहज़हां एक कृपण सूदखोर बादशाह था। अपने सारे प्रतिद्वंदियों का कत्ल करके उसने राज सिंहासन प्राप्त किया था। जितना खर्चीला उसे बताया जाता है उतना वो हो ही नहीं सकता था।

84. मुमताज़ की मौत से खिन्न शाहज़हां ने एकाएक ताज बनवाने का निश्चय कर लिया। ये बात एक मनोवैज्ञानिक असंगति है। दुख एक ऐसी संवेदना है जो इंसान को अयोग्य और अकर्मण्य बनाती है।
@ 82 छी है ऐसे सड़े दिमाग पर जो पिता पुत्री के रिश्ते पर भी उंगली उठाते हैं ,
@83 शायद इसका उत्तर देने की ही आवश्यकता नहीं है | इतिहास की दसवीं की पुस्तक उठाइए उत्तर पहले पृष्ठ पर होगा |
@84 अच्छा दुःख योग्य बनती है? तो तुलसीदास ने बीवी के फटकारने पर दुःख अनुभव किया था या पार्टी की थी ?अकर्मण्य होकर रामचरितमानस लिखा डाली हाँ ? और भी कुछ उदाहरण दूँ ?


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85. शाहज़हां यदि मूर्ख या बावला होता तो समझा जा सकता है कि वो मृत मुमताज़ के लिये ताज बनवा सकता है परंतु सांसारिक और यौन सुख में लिप्त शाहज़हां तो कभी भी ताज नहीं बनवा सकता क्योंकि यौन भी इंसान को अयोग्य बनाने वाली संवेदना है।

86. सन् 1973 के आरंभ में जब ताज के सामने वाली वाटिका की खुदाई हुई तो वर्तमान फौवारों के लगभग छः फुट नीचे और भी फौवारे पाये गये। इससे दो बातें सिद्ध होती हैं। पहली तो यह कि जमीन के नीचे वाले फौवारे शाहज़हां के काल से पहले ही मौजूद थे। दूसरी यह कि पहले से मौजूद फौवारे चूँकि ताज से जाकर मिले थे अतः ताज भी शाहज़हां के काल से पहले ही से मौजूद था। स्पष्ट है कि इस्लाम शासन के दौरान रख रखाव न होने के कारण ताज के सामने की वाटिका और फौवारे बरसात के पानी की बाढ़ में डूब गये थे।
@85 : उत्तर ठीक ऊपर है
@86 : फिर से एक कहानी | अब अभी जो फव्वारों में पानी आता है उसका इन्तेजाम भारत सरकार करती है तो कल को ये सरकारी दफ्तर हो गया ना ?


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87. ताजमहल के ऊपरी मंजिल के गौरवमय कक्षों से कई जगह से संगमरमर के पत्थर उखाड़ लिये गये थे जिनका उपयोग मुमताज़ के नकली कब्रों को बनाने के लिये किया गया। इसी कारण से ताज के भूतल के फर्श और दीवारों में लगे मूल्यवान संगमरमर के पत्थरों की तुलना में ऊपरी तल के कक्ष भद्दे, कुरूप और लूट का शिकार बने नजर आते हैं। चूँकि ताज के ऊपरी तलों के कक्षों में दर्शकों का प्रवेश वर्जित है, शाहज़हां के द्वारा की गई ये बरबादी एक सुरक्षित रहस्य बन कर रह गई है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि मुगलों के शासन काल की समाप्ति के 200 वर्षों से भी अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद भी शाहज़हां के द्वारा ताज के ऊपरी कक्षों से संगमरमर की इस लूट को आज भी छुपाये रखा जावे।

88. फ्रांसीसी यात्री बेर्नियर ने लिखा है कि ताज के निचले रहस्यमय कक्षों में गैर मुस्लिमों को जाने की इजाजत नहीं थी क्योंकि वहाँ चौंधिया देने वाली वस्तुएँ थीं। यदि वे वस्तुएँ शाहज़हां ने खुद ही रखवाये होते तो वह जनता के सामने उनका प्रदर्शन गौरव के साथ करता। परंतु वे तो लूटी हुई वस्तुएँ थीं और शाहज़हां उन्हें अपने खजाने में ले जाना चाहता था इसीलिये वह नहीं चाहता था कि कोई उन्हें देखे।
उपरी कक्षों में प्रवेश निषेध का कारण आजकल के उन्मादी दर्शकों का पागलपन है जो नुक्सान पहुचाते हैं, सभी को पता है की कई लोगों ने मीनारों से कूद कूद कर आत्म हत्याएं की जिस वजह से बंद करना पड़ा | ताजमहल के स्थानीय बुजुर्गों से बात करिए वे स्पष्ट बताते हैं की अस्सी के दशक में कोई सुरक्षा नहीं इतनी रहती थी और सब लोग आराम से जाते थे, कहीं कोई ऐसी चीजों के साक्ष्य नहीं मिले है |
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92. यह कथन कि शाहज़हाँ नदी के दूसरी तरफ एक काले पत्थर का ताज बनवाना चाहता था भी एक प्रायोजित कपोल कल्पना है। नदी के उस पार के गड्ढे मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा हिंदू भवनों के लूटमार और तोड़फोड़ के कारण बने हैं न कि दूसरे ताज के नींव खुदवाने के कारण। शाहज़हां, जिसने कि सफेद ताजमहल को ही नहीं बनवाया था, काले ताजमहल बनवाने के विषय में कभी सोच भी नहीं सकता था। वह तो इतना कंजूस था कि हिंदू भवनों को मुस्लिम रूप देने के लिये भी मजदूरों से उसने सेंत मेंत में और जोर जबर्दस्ती से काम लिया था।

93. जिन संगमरमर के पत्थरों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं उनके रंग में पीलापन है जबकि शेष पत्थर ऊँची गुणवत्ता वाले शुभ्र रंग के हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कुरान की आयतों वाले पत्थर बाद में लगाये गये हैं।
फिर से मैं उन लोगों से इसकी तस्दीक करने को कहूँगा जो ताजमहल जा चुके हैं, क्या उन्हें कहीं पीलापन दिखा ?
पीलापन पूरी ईमारत में नब्बे के अंतिम के दशक में आ गया था वो भी प्रदुषण के कारण जिस के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आगरा की सारी औद्योगिक इकाइयों को बंद करने का निर्णय ले लिया था |
मेरे पास खुद के लिए काफी सारे चित्र हैं जो डिजिटल फोरमैट में तो नहीं हैं किन्तु मैं स्कैन करके अवश्य लगाऊंगा जहां देख के सभी बता सकते हैं की की पीलापन है या नहीं किन्तु इस ओक, कोलगेट की ट्यूब को क्या पता |


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94. कुछ कल्पनाशील इतिहासकारों तो ने ताज के भवननिर्माणशास्त्री के रूप में कुछ काल्पनिक नाम सुझाये हैं पर और ही अधिक कल्पनाशील इतिहासकारों ने तो स्वयं शाहज़हां को ताज के भवननिर्माणशास्त्री होने का श्रेय दे दिया है जैसे कि वह सर्वगुणसम्पन्न विद्वान एवं कला का ज्ञाता था। ऐसे ही इतिहासकारों ने अपने इतिहास के अल्पज्ञान की वजह से इतिहास के साथ ही विश्वासघात किया है वरना शाहज़हां तो एक क्रूर, निरंकुश, औरतखोर और नशेड़ी व्यक्ति था।
हाँ शाहजहाँ क्रूर था, नशेडी था, कई विवाह थे, दासियाँ थी | तो ? अब क्या अट्ठारहवीं शताब्दी में एमबीए बादशाह चाहिए? तब ओक की यूनिवर्सिटी एमसीए कराती थी ?
तब युग ही तलवार के बल का था तो क्या बादशाह कव्वाली गाता?


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95. और भी कई भ्रमित करने वाली लुभावनी बातें बना दी गई हैं। कुछ लोग विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि शाहज़हां ने पूरे संसार के सर्वश्रेष्ठ भवननिर्माणशास्त्रियों से संपर्क करने के बाद उनमें से एक को चुना था। तो कुछ लोगों का यग विश्वास है कि उसने अपने ही एक भवननिर्माणशास्त्री को चुना था। यदि यह बातें सच होती तो शाहज़हां के शाही दस्तावेजों में इमारत के नक्शों का पुलिंदा मिला होता। परंतु वहाँ तो नक्शे का एक टुकड़ा भी नहीं है। नक्शों का न मिलना भी इस बात का पक्का सबूत है कि ताज को शाहज़हां ने नहीं बनवाया।

96. ताजमहल बड़े बड़े खंडहरों से घिरा हुआ है जो कि इस बात की ओर इशारा करती है कि वहाँ पर अनेक बार युद्ध हुये थे।
@95 ये बात झूठी अवश्य है की शाहजहाँ ने ताज को डिजाइन किया, और ऐसी समय में जब हर चीज़ का श्रेय बादशाह को देने के चलन था, मूल डिजाइनर का नाम भी अस्पष्ट है किन्तु इसमें कोई संदेह नहीं की शाहजहाँ को स्थापत्य कला की समझ भी थी और शौक भी |
अकबर से शाहजहाँ तक तीनों शासकों में अपने गुण थे उदाहरण के लिए जहांगीर के बारे में प्रचलित था की उसे चित्रकला की इतनी बारीके पता थी की यदि एक ही चित्र को कई चित्रकार मिल कर बनाते तो वह देख कर बता सकता था की किस चित्रकार ने किस हिस्से को बनाया है |
मुग़ल काल में ऐसे कारीगरों, कलाकारों का एक पूरा विभाग था जो सीधे उसके नियंत्रण में ही रहता था |

@96 कौन सा खँडहर? आगरा में खँडहर और हमें ही नहीं पता | कहाँ है भाई ? किस जगह पे ?

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97. ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है।

98. ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं जो कि एक कब्र के लिया अनावश्यक है।

99. संपूर्ण ताज में 400 से 500 कमरे हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रहाइशी कमरों का होना समझ के बाहर की बात है।
@97 : वो पशुशाला नहीं संतुलन के लिए बनी ईमारत है| खैर ओक ने कभी गधे का चित्र भी बनाया हो तो उसे कला की बारीकी पता होती |

@98 उपभवन नहीं, बाहरी हिस्से में बैरकें बनी हैं जो काफी बाद के समय में सुरक्षा की दृष्टि से बनी हैं, ये तत्कालीन हैं भी नहीं |

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100. ताज के पड़ोस के ताजगंज नामक नगरीय क्षेत्र का स्थूल सुरक्षा दीवार ताजमहल से लगा हुआ है। ये इस बात का स्पष्ट निशानी है कि तेजोमहालय नगरीय क्षेत्र का ही एक हिस्सा था। ताजगंज से एक सड़क सीधे ताजमहल तक आता है। ताजगंज द्वार ताजमहल के द्वार तथा उसके लाल पत्थरों से बनी अष्टकोणीय वाटिका के ठीक सीध में है।
ताजगंज कारीगरों के निवास करने से बना स्थान है और पुराने समय में बस्ती, गाँव, नगर सभी को बाहरी दीवार से सुरक्षित करने का चलन था |

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101. ताजमहल के सभी गुम्बजदार भवन आनंददायक हैं जो कि एक मकब़रे के लिय उपयुक्त नहीं है।

102. आगरे के लाल किले के एक बरामदे में एक छोटा सा शीशा लगा हुआ है जिससे पूरा ताजमहल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा कहा जाता है कि शाहज़हां ने अपने जीवन के अंतिम आठ साल एक कैदी के रूप में इसी शीशे से ताजमहल को देखते हुये और मुमताज़ के नाम से आहें भरते हुये बिताया था। इस कथन में अनेक झूठ का संमिश्रण है। सबसे पहले तो यह कि वृद्ध शाहज़हां को उसके बेटे औरंगज़ेब ने लाल किले के तहखाने के भीतर कैद किया था न कि सजे-धजे और चारों ओर से खुले ऊपर के मंजिल के बरामदे में। दूसरा यह कि उस छोटे से शीशे को सन् 1930 में इंशा अल्लाह ख़ान नामक पुरातत्व विभाग के एक चपरासी ने लगाया था केवल दर्शकों को यह दिखाने के लिये कि पुराने समय में लोग कैसे पूरे तेजोमहालय को एक छोटे से शीशे के टुकड़े में देख लिया करते थे। तीसरे, वृद्ध शाहज़हाँ, जिसके जोड़ों में दर्द और आँखों में मोतियाबिंद था घंटो गर्दन उठाये हुये कमजोर नजरों से उस शीशे में झाँकते रहने के काबिल ही नहीं था जब लाल किले से ताजमहल सीधे ही पूरा का पूरा दिखाई देता है तो छोटे से शीशे से केवल उसकी परछाईं को देखने की आवश्कता भी नहीं है। पर हमारी भोली-भाली जनता इतनी नादान है कि धूर्त पथप्रदर्शकों (guides) की इन अविश्वासपूर्ण और विवेकहीन बातों को आसानी के साथ पचा लेती है।
@101 : गुम्बद हो गया | नेक्स्ट ?
@102 : ये शीशे, टुकुर टुकुर ताकने वाली बातें कहानियाँ हैं जो सच में बाद में गाइडों ने बनायीं थी किन्तु यहाँ एक बात याद रहे की बादशाह को कैद में रखा इसका अर्थ ये नहीं की उसे कोई एक 4x6 की कोठारी में रखा था | उस महल को जेल में बदल दिया गया था |
कमाल है ओक ने इतनी बेवकूफी की बातें लिखी हैं की हंसी भी नहीं आ सकती, मुग़ल अपनी शान के लिए प्रसिद्द थे, शाहजहाँ ने औरंगजेब की घडी नहीं चुराई थी जो उसे बंद किया था, ये राजनीतिक दांवपेंच थे और शाहजहाँ को सार्वजनिक जीवन जीने से रोका गया था |

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103. ताजमहल के गुम्बज में सैकड़ों लोहे के छल्ले लगे हुये हैं जिस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान जा पाता है। इन छल्लों पर मिट्टी के आलोकित दिये रखे जाते थे जिससे कि संपूर्ण मंदिर आलोकमय हो जाता था।

104. ताजमहल पर शाहज़हां के स्वामित्व तथा शाहज़हां और मुमताज़ के अलौकिक प्रेम की कहानी पर विश्वास कर लेने वाले लोगों को लगता है कि शाहज़हाँ एक सहृदय व्यक्ति था और शाहज़हां तथा मुमताज़ रोम्यो और जूलियट जैसे प्रेमी युगल थे। परंतु तथ्य बताते हैं कि शाहज़हां एक हृदयहीन, अत्याचारी और क्रूर व्यक्ति था जिसने मुमताज़ के साथ जीवन भर अत्याचार किये थे।
@103 कौन से छल्ले? और अस्सी फीट ऊपर गुम्बद में छल्ले थे भी तो वहाँ दिया जलने करें ले के ओक जाते थे?
@104 एक और नयी गप्प, भाई उस अत्याचार की कोई किताब? कोई पुर्जा? कोई चिट्ठी है या मुमताज का एम्एम्एस मिला ओक को ?


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105. विद्यालयों और महाविद्यालयों में इतिहास की कक्षा में बताया जाता है कि शाहज़हां का काल अमन और शांति का काल था तथा शाहज़हां ने अनेकों भवनों का निर्माण किया और अनेक सत्कार्य किये जो कि पूर्णतः मनगढ़ंत और कपोल कल्पित हैं। जैसा कि इस ताजमहल प्रकरण में बताया जा चुका है, शाहज़हां ने कभी भी कोई भवन नहीं बनाया उल्टे बने बनाये भवनों का नाश ही किया और अपनी सेना की 48 टुकड़ियों की सहायता से लगातार 30 वर्षों तक अत्याचार करता रहा जो कि सिद्ध करता है कि उसके काल में कभी भी अमन और शांति नहीं रही।
इस पर मुझे दस पेज का आर्टिकल लिखना पड़ेगा क्यूंकि ना तो मुग़ल काल का आर्थिक इतिहास एक बार में कोई लिख सकता है ना ही कोई एक बार में पढ़कर समझ सकता है |

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106. जहाँ मुमताज़ का कब्र बना है उस गुम्बज के भीतरी छत में सुनहरे रंग में सूर्य और नाग के चित्र हैं। हिंदू योद्धा अपने आपको सूर्यवंशी कहते हैं अतः सूर्य का उनके लिये बहुत अधिक महत्व है जबकि मुसलमानों के लिये सूर्य का महत्व केवल एक शब्द से अधिक कुछ भी नहीं है। और नाग का सम्बंध भगवान शंकर के साथ हमेशा से ही रहा है।
गलत | मुगलों में अकबर ने सूर्य पूजा प्रारंभ करायी थी, किन्तु यह हिन्दू धर्म से प्रभावित पूजा नहीं थी अपितु पारसी धर्म से प्रभावित होती थी यहाँ तक की मुग़ल दरबार में पारसी नववर्ष नौरोज को भी मनाया जाता था और ये सबको पता है | जहांगीर ने कुछ समय के लिए नौरोज बंद कराया था किन्तु फिर से प्रारंभ कर दिया था और शाहजहाँ के समय में भी चलता रहा | और नाग सिर्फ पूजा का सामान नहीं एक जीव भी है जिसका मेरे विचार से किसी मंदिर ने पेटेंट नहीं कराया |

Last edited by amit_tiwari; 24-12-2010 at 05:00 AM.
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Old 24-12-2010, 03:55 AM   #96
amit_tiwari
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पहले मेरा विचार पॉइंट्स का उत्तर एक एक करके देने का था किन्तु उससे कुतर्क के अवसर अधिक बढ़ जाते अतः मैंने एक साथ कुछ दस ग्यारह प्रविष्टियों में उत्तर दे दिए एकसाथ ही |

ओक, असल में प्रसिद्धि के भूके ऐसे लोग हैं जो बदनामी से नाम कमाना चाहते हैं, भावनाए भड़का कर फायदा उठाना चाहते हैं |
मैं भी हिन्दू हूँ, ब्राम्हण हूँ मुझे इस बात का गर्व भी है किन्तु यदि ताजमहल जैसी ईमारत को एक मुस्लिम शासक ने बनवाया है तो मैं क्यूँ जबरन उसे मंदिर बताऊँ ? ईमारत किसी ने भी बनवाई, है तो वो मेरे देश में, आज दुनिया ताज को भारत से जोडती है, वो हमारा है | उसे शाहजहाँ ने बनवाया या साहिब सिंह ने क्या फर्क पड़ता है ?
क्या किसी चीज के भारतीय होने के लिए उसे हिन्दू होना जरुरी है ? कतई नहीं |
मुस्लिम धर्म बाहर से अवश्य आया किन्तु लोग हमारे हैं | क्यूँ उन्हें सिद्ध करना पड़े की वो भी भारतीय हैं, जिसका जन्म यहाँ हुआ वो यहाँ का है |

और भावनाओं से अलग ताज या मुगलकाल की किसी भी इमारत की वल्दियत सिद्ध करने के एक सौ क्या एक हज़ार प्रमाण मैं स्वयं दे सकता हूँ | मुग़ल काल इतिहास के किसी भी विद्यार्थी के लिए एक बेहद खुबसूरत विषय है और मुग़ल स्थापत्य का आकर्षण जीवन भर पढने और लिखने का सामान देता है | पढ़िए उसे, उसका आनंद लीजिये, ना कि मीनमेख निकालना चाहिए |

पुनः बेदर्दी जी को धन्यवाद कि उन्होंने सरे पॉइंट एक साथ एक जगह रखे जिससे मुझे अलग अलग उत्तर नहीं देना पड़ेगा | यदि कोई और पॉइंट हो तो मुझे उन्हें भी धुल धूसरित करने में आनद आएगा |

अमित
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Old 24-12-2010, 06:30 AM   #97
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वाह अमित भाइ क्या आपने ने पुरा नेचोर नीकल दिया लेकिन कुछ जबाब आछा नही लगा लेकिन बाहुत अछा आगे और पोस्ट कारु
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ईश्वर का दिया कभी 'अल्प' नहीं होता,जो टूट जाये वो 'संकल्प' नहीं होता,हार को लक्ष्य से दूर ही रखना,क्यूंकि जीत का कोई 'विकल्प' नहीं होता.
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Old 24-12-2010, 01:49 PM   #98
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वाह अमित भाइ क्या आपने ने पुरा नेचोर नीकल दिया लेकिन कुछ जबाब आछा नही लगा लेकिन बाहुत अछा आगे और पोस्ट कारु
कौन सा पॉइंट स्पष्ट नहीं लगा बंधू, बताएं, मैं और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास करूँगा |
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Old 31-12-2010, 12:37 PM   #99
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ओक, असल में प्रसिद्धि के भूके ऐसे लोग हैं जो बदनामी से नाम कमाना चाहते हैं, भावनाए भड़का कर फायदा उठाना चाहते हैं |
एक कहावत है बंधू
"बदनाम होंगें तो क्या नाम ना होगा"
वही कहावत इस "ओक जी" पर ऐन फिट बैठती है, आखिर नाम तो हुआ तभी तो उस पर चर्चा हो रही है
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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Old 05-01-2011, 03:39 PM   #100
Kalyan Das
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पंकज भाई, अमित जी, निशांत भाई,
कोई मुझे बताने का कस्ट करेंगे,
की ये "ओक जी" हैं कौन ???
__________________
"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!"
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