29-09-2014, 10:36 PM | #91 |
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Re: मुहावरों की कहानी
एक मछली ... और ... अकेला चना (आलेख आभार: डॉ. महेश परिमल) मेरे सामने दो मुहावरे हैं- एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है और अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। इन दोनों में विरोधाभास है। कोई जब एक उदाहरण देता है तो दूसरा दहला मारते हुए दूसरा उदाहरण दे देता है और लोग हँस कर रह जाते हैं। आइए, इसका विश्लेषण करते हुए इसकी गंभीरता पर विचार करें। दोनों में मुख्य अंतर है अच्छाई और बुराई का। मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि उसे बुराई ज्यादा आकर्षित करती है। केवल आकर्षित ही नहीं करती बल्कि प्रभावित भी करती है। दूसरी ओर अच्छाई में चकाचौंध कर देने वाली कोई चीज नहीं होती। वह सदैव निर्लिप्त रहती है। जब तक एक कमरे में दीपक प्रकाशवान है, तो हमें उसकी उपस्थिति का भान नहीं होता, किंतु कमरे में जैसे ही अंधेरा पसरता है, हमें दीपक के महत्व का पता चलता है। विदेशों से हमने कई नकलें की हैं। फैशन के मामले में, शिक्षा के मामले में, यहाँ तक कि राजनीति के मामले में, लेकिन इसके साथ हम उनके अनुशासन, समय की पाबंदी और निष्ठा जैसे गुणों को नहीं अपनाया। एक व्यक्ति वह भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति ने फैशन के बतौर विदेशी परंपरा को अपनाया। उसकी नकल कई लोगों ने की, किंतु उसी व्यक्ति ने विदेश से ही चुपचाप एक अच्छी परंपरा को आत्मसात किया। परिणाम यह कि लोगों ने उसकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया। इस तरह से बुरी बातें लोगों को आकर्षित करती रही और अच्छाई एक कोने में रहकर यह सब देखती रही।
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29-09-2014, 10:40 PM | #92 |
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Re: मुहावरों की कहानी
सड़ी हुई मछली में संक्रामक कीटाणु होते हैं, जो तेजी से फैलते हैं। उनकी संख्या प्रतिक्षण बढ़ती है। इसलिए सारे तालाब को गंदा करने में वह मछली सक्षम होती है। दूसरी ओर बहुत से चने का का इकट्ठा होना, भाड़ में पहुँचना, यहाँ तक उन सभी चनों का रूप सख्त है, किंतु गर्मी पाते ही उसका रूप बदल जाता है। वे सभी नरम पड़ जाते हैं। उनमें कोमलता आ जाती है, सख्ती गायब हो जाती है। भाड़ फोड़ने की बात एक क्रांति है और क्रांति बगावती विचारों के साथ आती है। अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना क्रांति का आगाज है। फिर भाड़ ने चनों पर कोई अन्याय नहीं किया, बल्कि अपनी तपिश से उन्हें कोमल और स्वादिष्ट बनाया। तो फिर कहाँ क्रांति, कैसी क्रांति ?
इसी प्रकार हम देखते हैं कि मछली तालाब को सदैव गंदा नहीं रख सकती। बुराई कुछ देर के लिए तालाब पर हावी हो जाती है, पर कालांतर में उसी तालाब की अच्छाई सक्रिय होती है और बुराई का नाश करते जाती है। कुछ समय बाद तालाब फिर साफ हो जाता है। बुराई के ऐसे ही रंग हमें अपने जीवन में भी देखने को मिलते हैं। जैसे ही हमारे जीवन में बुराई रूपी अंधेरे का आगमन होता है, विवेक रूपी दीपक प्रस्थान कर जाता है। बुराई अपना खेल खेलती है। मानव को दानव तक बना देती है और उसी दानव को महात्मा भी बना देती है। अच्छाई को यदि कोई दानव भी सच्चे हृदय से स्वीकार करे, तो उसे महात्मा बनने में देर नहीं लगेगी। **** *
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29-09-2014, 11:00 PM | #93 |
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Re: मुहावरों की कहानी
लामबंद होना / लाम पर जाना
अजीत वडनेकर लिखत-पढ़त और बोलचाल की हिन्दी में प्रयोग होने वाला एक शब्द लामबन्द भी है। क्रिया रूप में लामबन्द होना या लामबन्दी का इस्तेमाल होता है जिसमें किसी उद्धेश्य या मुहिम के लिए तैयार होने, एकजुट होने, इकट्ठा होने, गोलबन्द होने का भाव है। लामबन्द शब्दलाम + बन्द से मिल कर बना है। हिन्दी में लाम शब्द उर्दू-फ़ारसी की फौजी शब्दावली से आया है। मोटे तौर पर इसका आशय फ़ौज या सेना से है। इसका एक दूसरा अर्थ है फौजी मोर्चा या युद्ध स्थल। फौजी जमावड़े को भी लाम कहा जाता है क्योंकि जमावड़ा वहीं होता है जहाँ मोर्चा लगाया जाता है। लाम पर जाना जैसे मुहावरे का अर्थ युद्ध पर जाना ही होता है। लाम बांधना मुहावरे में लड़ाई के लिए एकत्रित होने, तैयार होने या मोर्चाबंदी का भाव है। आज़ादी से पहले तक लाम शब्द इन्हीं अर्थों में हिन्दी में खूब प्रचलित था, बाद में इसका चलन कम होता गया। मगर इससे ही बना लामबन्दी शब्द वामपंथियों, समाजवादियों की शब्दावली में स्थान पा गया और राजनीतिक अर्थों में ही इसका प्रयोग अब तक होता चला आ रहा है।
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29-09-2014, 11:07 PM | #94 |
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Re: मुहावरों की कहानी
आधुनिक मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ
वैसे इस टॉपिक पर अधिक प्रकाश डालने से पहले ये ज़रूरी है की मैं आपलोगों को मुहावरों और लोकोक्तियों (कहावतों) में अंतर बता दूं. (मुझे पूर्णविश्वास है की जब इस प्रश्न के उत्तर में नंबर मिलने का समय रहा होगा तोआपने भी नहीं पढ़ा होगा). मुहावरों का स्वयं में कोई अर्थ नहीं होता, अर्थात वे अपूर्ण वाक्य होतेहैं, बहुधा उनमे क्रिया नहीं होती और जब तक वे वाक्य में प्रयुक्त न होंउनका कोई अर्थ नहीं होता. जैसे - अंधे की लाठी, आँख का तारा इत्यादि-इत्यादि. (अब जा के हमे समझ आया, ये मैडम की चाल थी हमसे वाक्य प्रयोग करवाने की, अगर नहीं करते तो पड़े रहते बेकार उनके मुहावरे) वहीँ दूसरी ओर कहावतें या लोकोक्तियाँ अपने आप में पूर्ण वाक्य होते हैं औरउनका पूर्ण अर्थ भी होता है. जैसे - न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी.
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29-09-2014, 11:08 PM | #95 |
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Re: मुहावरों की कहानी
देखो सब तो कह दिया यहाँ. कुछ नहीं छोड़ा, नौ मन तेल लाओ राधा नचाओ, मुन्नी नचाओ, शीला नचाओ... बट प्लीज़ मैम, ये तो बता दीजिये कौन सा आयल लानाहै लाइक क्रूड-ऑयल, केरोसीन etc. like राधा को करना क्या था? खाना बनानाथा? स्कूटी में डालना था? इन्फोर्मशन पूरी नहीं है. question rejected...
चलिए अब मुख्य मुद्दे पर आते हैं...आधुनिक मुहावरे और लोकोक्तियाँ.ये वो मुहावरे और लोकोक्तियाँ हैं जिनका या तो पाठ्य पुस्तकों में उल्लेखनहीं मिलता, या वे हिंदी भाषा के अन्य भाषाओँ से 'in a relationship' status नतीजा हैं.लेकिन कालांतर में अब ये जन सामान्य के दैनिक भाष्य का अटूट अंग बन चुके हैं (गज़ब हिंदी लिख दिए हो भैया जी, समझ आ रही है..?) 1. वाट लगाना 2. लग लेना 3. झंड हो जाना 4. रायता फैलना 5. सेट्टिंग हो जाना आदि आदि. अब आप का होमवर्क ये है की आप इनका अर्थ लिख कर वाक्य प्रयोग करें और हम नंबर देंगे.
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02-10-2014, 11:10 PM | #96 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी के मुहावरे > बड़े ही बावरे
(मदन मोहन बाहेती 'घोटू') हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है खाने पीने की चीजों से भरे है कहीं पर फल है तो कहीं आटादालेंहै कहींपर मिठाई है, कहीं पर मसाले है फलों की ही बात लेलो, आम के आम, गुठलियों के भी दाम मिलते है कभी अंगूर खट्टे हैं, कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते है कहीं दाल में काला है, कोई डेढ़ चावल की खिचड़ीपकाता है कहीं किसी की दाल नहीं गलती, तो कोई लोहे के चने चबाता है कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है, कोई दाल भात में मूसलचंद बन जाता है मुफलिसी में जब आटागीला होता है, तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है. >>>
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02-10-2014, 11:11 PM | #97 |
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Re: मुहावरों की कहानी
सफलता के लिएबेलने पड़तेहैं कई पापड़
आटेमें नमक तो चल जाता है नमक में आटा नहीं चलता पर समस्या ये है कि गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है अपना हाल तो बेहाल है ये मुंह और मसूर की दाल है गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते है और गुड़ का गोबर कर बैठते है कभी तिल का ताड़, कभी राई का पर्वत बनता है कभी ऊँट के मुंह में जीरा है, कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है किसी के दांत दूध के है, किसी को छटीका दूध याद आ जाता है दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है, और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है >>>
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02-10-2014, 11:15 PM | #98 |
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Re: मुहावरों की कहानी
शादी बूरेके लड्डू है, जिसने खाए वो भी पछताये,
और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताये पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है, और शादी के बाद, दोनों हाथोंमें लड्डू आते है कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है कभी कोई चाय पानी करवाता है, कोई मक्खन लगाता है और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है, तो सभी के मुंह में पानी आता है भाई साहब अब कुछ भी हो, घी तो खिचड़ी में ही जाता है जितने मुंह है, उतनी बातें है सब अपनी अपनी बीन बजाते है पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है? सभी बहरे है, बावरें है ये सब हिंदी के मुहावरें है. **
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02-10-2014, 11:28 PM | #99 |
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Re: मुहावरों की कहानी
बंदर के हाथ लगी हल्दी की गाँठ
मूर्ख और अज्ञानी लोग ज्ञान का एक लघु अंश भी मिल जाए तो समझते हैं के वह महाज्ञानी हो गए और एक रंगेसियार की भांति अपने आप से कई गुणा बड़ा बनने का प्रयास करते हैं और फिर ऐसे गिरते हैं - के... अंजर पंजर भी हिल जाता है. अब ऐसे हजारो उदाहरण आपको इस देश की सार्वजानिक जीवनधारा में मिलेंगे, विशेषतर मीडिया और राजनीति मे. अब आप केंद्र में सत्ता से बाहर कर दी गई कांग्रेस पार्टी, दिल्ली की सत्ता से विमुख हुयी आम आदमी पार्टी या कुछ और “नाम बड़े और दर्शन छोटे” को चरितार्थ करते दलों के कुछ प्रवक्ताओं और नेताओं को ही देख लें, बन्दर या बंदरियाकी तरह रातो रात, हल्दी की गाँठ हाथ लग जाए तो अपनी पंसारी की दूकान खोलकर भोले लोगो को उल्लू बनाना आरम्भ कर देते हैं. ये वोलोग हैं जो करेंगे कुछ भी नहीं, न जो भला करना चाह रहे हैं उन्हें ही करने देंगे, बस भोले भाले लोगो को आपस में लड़ा-भिड़ा कर स्वयं तमाशा देखेंगे.
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02-10-2014, 11:39 PM | #100 |
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Re: मुहावरों की कहानी
मजेदार जर्मन मुहावरे
भारत की ही तरह जर्मनी में भी प्रचलित कई ऐसे मुहावरे हैं जिन्हें सुनने पर अलग ही मतलब निकलता है, लेकिन उनका असल अर्थ कुछ और ही होता है. जिंदगी कोई अस्तबल नहीं जब जिंदगी की कठिनाइयों को आप हल्के में उड़ाते हैं तो जर्मनी में याद दिलाने वाला आपसे यह मुहावरा कह सकता है कि जिंदगी कोई अस्तबल भी नहीं यानी जिंदगी सिर्फ खूबसूरत नहीं है.
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