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Old 25-11-2012, 08:19 AM   #91
Sameerchand
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मुफ़्त के गधे

नसरूद्दीन गधे बेचने का कारोबार करता था. वो साप्ताहिक बाजार में गधे लेकर आता और अपने गधे बेहद कम कीमत में बेचता जिससे उसके सारे गधे बिक जाते और वो ठीकठाक मुनाफा कमाता.

एक दिन गधे बेचने वाला एक दूसरा व्यापारी नसरूद्दीन के पास आया और बोला “मुल्ला, मैं अपने गधों के लिए चारा इधर-उधर से जुगाड़ कर लेता हूं. मेरे चरवाहे बंधुआ मजदूर हैं जिन्हें मैं कोई फूटी कौड़ी भी नहीं देता. इस तरह से मैं गधों पर ज्यादा कुछ खर्चा नहीं करता. फिर भी जो कीमत मैं लगाता हूँ, उसमें कम लाभ मिलता है. तुम तो मुझसे भी कम कीमत में गधे बेचते हो. ऐसे कैसे कर लेते हो?”

मुल्ला ने फिलासफी झाड़ी – “तुम चारा चुराते हो, मैं गधे चुराता हूं”
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Old 25-11-2012, 08:19 AM   #92
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जिंग और चुआन


जिंग और चुआन ने स्नातक परीक्षा पास करने के तुरंत बाद एक थोक भंडार कंपनी में नौकरी करना शुरू कर दिया। दोनों ने बहुत मेहनत की। कुछ वर्ष बाद, उनके बॉस ने जिंग का प्रमोशन सेल्स एक्जीक्यूटिव पद पर कर दिया, जबकि चुआन को सेल्स रिप्रिजेन्टेटिव ही बने रहने दिया। चुआन को जब यह बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने अपने बॉस को इस्तीफा सौंप दिया एवं यह उनसे यह शिकायत की कि वे कठोर परिश्रम करने वालों को महत्व न देकर चापलूसों का प्रमोशन करते हैं।

बॉस यह जानते थे कि चुआन ने भी इतने वर्ष परिश्रम से कार्य किया है लेकिन चुआन को उसमें और जिंग में अंतर समझाने के लिए उन्होंने चुआन को एक कार्य करने को कहा। उन्होंने चुआन से कहा कि वह बाजार जाकर ऐसे विक्रेता का पता लगाये जो तरबूज बेच रहा हो। चुआन ने बाजार से लौटकर बताया कि तरबूज बेचने वाला मिल गया है।

बॉस ने पूछा - "कितने रू. किलो ?'

चुआन फिर बाजार गया और लौटकर बोला - "12 रू. प्रति किलो।'

तब बॉस ने चुआन से कहा - "अब मैं यही कार्य जिंग को सौंपूंगा।'

फिर जिंग बाजार गया और लौटकर बोला - "बॉस केवल एक व्यक्ति तरबूज बेचता है। 12 रु. प्रति किलो, 100रु. के 10 किलो। उसके पास 340 तरबूज हैं। उसकी दुकान पर 58 तरबूज थे जिसमें से प्रत्येक लगभग 15 किग्रा. का है। ये तरबूज अभी दो दिन पहले ही दक्षिण प्रांत से लाये गये हैं। ये ताजे, लाल और अच्छी गुणवत्ता के हैं।'

चुआन बहुत प्रभावित हुआ और वह अपने और जिंग में फर्क को समझ गया। अंत में उसने इस्तीफा वापस लेने और जिंग से सीखने का निर्णय लिया।

"एक सफल व्यक्ति हमेशा तल्लीन प्रेक्षक, अधिक चिंतनशील एवं गहराई से सोचने वाला होता है।सफल व्यक्ति कई वर्ष आगे तक का अनुमान कर लेता है जबकि हम महज कल तक के बारे में ही सोच पाते हैं।'

"एक वर्ष और एक
दिन में 365 गुना का अंतर होता है।'
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Old 25-11-2012, 08:19 AM   #93
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राजा की खुशामद

प्रसिद्ध दार्शनिक डायोजिनीस दाल-रोटी खा रहे थे। उन्हें दाल-रोटी खाते हुए एक अन्य दार्शनिक अरिस्टीप्पस ने देखा, जो राजा की खुशामद करके आराम से गुजर-बसर कर रहे थे।

अरिस्टीप्पस तपाक से बोले - "यदि तुम भी राजा की जी-हुजुरी करना सीख लो तो इस तरह तुम्हें दाल-रोटी पर गुजारा नहीं करना पड़ेगा। "

डायोजिनीस ने सरलतापूर्वक उत्तर दिया - "यदि तुम दाल-रोटी पर गुजारा करना सीख लो तो तुम्हें राजा की खुशामद करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"
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Old 25-11-2012, 08:20 AM   #94
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जब गुरु का ज्ञान मिलता है

सूफ़ी मान्यता है कि किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान तब तक नहीं होता जब तक कि उसके गुरु की कृपा दृष्टि का एक अंश उस पर न पड़े.

एक बार एक सूफ़ी संत मृत्युशैय्या पर थे. उन्हें अपने प्रिय तीन नए-नए शिष्यों के भविष्य की चिंता थी कि इन्हें ज्ञान की ओर ले जाने वाला सही गुरु कहाँ कैसे मिलेगा. संत चाहते तो वे किसी सक्षम विद्वान का नाम ले सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और चाहा कि शिष्य स्वयं अपने लिए गुरु तलाशें.

इसके लिए संत ने मन ही मन एक विचित्र उपाय तलाशा. उन्होंने अपने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा – कि हमारे आश्रम में जो 17 ऊँट हैं उन्हें तुम तीनों मिलकर इस तरह से बांट लो – सबसे बड़ा इनमें से आधा रखेगा, मंझला एक तिहाई और सबसे छोटे के पास नौंवा हिस्सा हो.

यह तो बड़ा विचित्र वितरण था, जिसका कोई हल ही नहीं निकल सकता था. तीनों शिष्यों ने बहुत दिमाग खपाया मगर उत्तर नहीं निकला, तो उनमें से एक ने कहा – गुरु की मंशा अलग करने की नहीं होगी, इसीलिए हम तीनों मिलकर ही इनके मालिक बने रहते हैं, कोई बंटवारा नहीं होगा.

दूसरे ने कहा – गुरु ने निकटतम संभावित बंटवारे के लिए कहा होगा.

परंतु बात किसी के गले से नहीं उतरी. उनकी समस्या की बात चहुँओर फैली तो एक विद्वान ने तीनों शिष्यों को बुलाया और कहा – तुम मेरे एक ऊँट ले लो. इससे तुम्हारे पास पूरे अठारह ऊँट हो जाएंगे. अब सबसे बड़ा इनमें से आधा यानी नौ ऊंट ले ले. मंझला एक तिहाई यानी कि छः ऊँट ले ले. सबसे छोटा नौंवा हिस्सा यानी दो ऊँट ले ले. अब बाकी एक ऊँट बच रहा है, जो मेरा है तो उसे मैं वापस ले लेता हूँ. शिष्यों को उनका नया गुरु मिल गया था. गुरु शिष्यों की समस्या में स्वयं भी शामिल जो हो गया था.
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Old 25-11-2012, 08:20 AM   #95
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जैसा चाहोगे वैसा ही मिलेगा

एक धार्मिक कक्षा में शिक्षक ने अपने शिष्यों को घरू-कार्य दिया कि अगले दिन वे अपने धर्म ग्रंथ से एक एक अनमोल वचन लिख लाएँ, और पूरी कक्षा के सामने उसे पढ़ें और उसका अर्थ बताएं.

दूसरे दिन एक विद्यार्थी ने पूरी कक्षा के सामने पढ़ा – “लेने से ज्यादा अच्छा देना होता है.” पूरी कक्षा ने ताली बजाई.

दूसरे विद्यार्थी ने कहा – “ईश्वर उन्हें पसंद करता है जो हँसी-खुशी अपना सर्वस्व दान करते हैं.” कक्षा में एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई दी.

तीसरे ने कहा – “मूर्ख सदैव कंगाल बना रहता है.”

उन तीनों ने एक ही धार्मिक किताब से अंश उठाए थे. मगर तीनों की अपनी दृष्टि ने अलग अलग अनमोल वचन पकड़े.

"जब आप सोचते हैं, जब आप किसी चीज की विवेचना करते हैं तो यह आपके चेतन-अवचेतन मस्तिष्क और आपकी सोच को ही प्रतिबिंबित करता है. अपनी सोच को धनात्मक बनाए रखें तो काले अक्षरों में भी स्वर्णिम आभा दिखाई देगी. "
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Old 25-11-2012, 08:20 AM   #96
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घोड़े की चोरी

नसरुद्दीन के पास एक बेहतरीन घोड़ा था। सभी उससे ईर्ष्या करते थे। उसके कस्बे का एक व्यापारी, जिसका नाम अहमद था, वह घोड़ा खरीदना चाहता था। उसने नसरुद्दीन को उस घोड़े के बदले 100 ऊँट देने का प्रस्ताव दिया पर नसरुद्दीन उस घोड़े को बेचना नहीं चाहता था।

अहमद ने गुस्से में आकर कहा - "मैंने तुम्हें बेहतरीन प्रस्ताव दिया है। यदि तुम शराफत से नहीं मानोगे तो मुझे दूसरे तरीके भी आजमाने पड़ सकते हैं जो तुम्हें पसंद नहीं आऐंगे।"

एक दिन वह रेगिस्तान में भिखारी का रूपधारण करके बैठ गया। उसे पता था कि नसरुद्दीन वहां से गुजरेगा। उसे कराहता हुआ देख नसरुद्दीन को उस पर दया आ गयी और उसने उसका हाल पूछा।

अहमद ने कराहते हुए कहा कि उसने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है और वह इतना कमजोर हो चुका है कि अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो सकता। नसरुद्दीन को उस पर दया आ गई और वह बोला - "मैं तुम्हें अपने घोड़े पर बैठाकर ले चलूंगा और मैं पीछे - पीछे पैदल चल लूंगा।" जैसे ही नसरुद्दीन ने उसे उठाकर अपने घोड़े पर बैठाया, अहमद ने घोड़े को सरपट
दौड़ाना शुरू कर दिया। नसरुद्दीन ने उससे रुकने को कहा। अहमद पीछे मुड़कर जोर से चिल्लाते हुए बोला - "मैंने तुमसे पहले ही कहा था नसरुद्दीन! यदि तुम अपना घोड़ा मुझे नहीं बेचोगे तो मैं उसे चुरा लूंगा।"

नसरुद्दीन बोला - "ठहरो मित्र, एक बात सुनते जाओ! मुझे तुमसे सिर्फ यह कहना है कि घोड़ा चुराने की अपनी यह तरकीब किसी को नहीं बताना।"

अहमद - "क्यों?"

नसरुद्दीन - "यदि किसी दिन सड़क के किनारे पड़े बीमार व्यक्ति को वास्तव में मदद की आवश्यकता होगी तो लोग इस तरकीब को याद कर कभी उसकी मदद नहीं करेंगे।"

नसरुद्दीन के इन शब्दों को सुनकर अहमद का मन ग्लानि से भर गया। वह वापस लौटा और नसरुद्दीन से क्षमा मांगते हुए उसका घोड़ा लौटा दिया।
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Old 25-11-2012, 08:57 AM   #97
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अमरता का वरदान

एक दिन वेदव्यास से उनके मामाश्री ने कहा – भांजे मुझे अमरता का वरदान चाहिए. मुझे भगवान ब्रह्मा के पास ले चलो.

भगवान ब्रह्मा ने असमर्थता जाहिर की पर कहा कि वे उन्हें विष्णु के पास ले चलते हैं जो कोई हल अवश्य निकालेंगे.

वे सभी भगवान विष्णु के पास पहुँचे. विष्णु ने भी वही बात कही, और उन्हें लेकर भगवान शंकर के पास गए.

भगवान शंकर ने बताया कि जीवन-मृत्यु का लेखा जोखा तो यमराज के पास रहता है. शायद वे कोई हल निकालें. और वे सभी यमराज के पास गए.

यमराज ने कहा कि पहले देखें तो सही कि मामाश्री की मृत्यु की तिथि क्या दर्ज है. चित्रगुप्त को तलब किया गया जिनकी पोथी में ब्रह्माण्ड के सभी जीवों की मृत्यु की तिथि दर्ज रहती है. चित्रगुप्त से यमराज ने पूछा कि वेदव्यास के मामा की मृत्यु की तिथि कौन सी है. चित्रगुप्त ने अपनी पोथी खोली, और उस प्रविष्टि पर गए जिस पर मामाश्री की मृत्यु की तिथि अंकित थी. प्रविष्टि पर नजर पड़ते ही चित्रगुप्त का मुँह खुला का खुला रह गया. उन्होंने मामाश्री की ओर अपनी नजरें घुमाई. मामाश्री स्वर्ग सिधार चुके थे. प्रविष्टि में दर्ज था – जिस घड़ी त्रिदेव, यमराज, चित्रगुप्त और वेदव्यास एक साथ मिलेंगे, वह घड़ी मामाश्री की मृत्यु की घड़ी होगी!
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Old 25-11-2012, 08:57 AM   #98
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सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़

बीरबल की ही तरह नसरुद्दीन भी अपने सुल्तान को अत्यंत प्रिय था। एक दिन कदी (मुस्लिम देशों, विशेषकर तुर्की में जज को कदी कहते थे) और वजीर (सुल्तान का विशेष सिपहसालार) ने ईर्ष्यावश कुछ ऐसा करने का निर्णय लिया जिससे नसरुद्दीन सुल्तान की नजरों से गिर जाये। एक दिन उन्हें ऐसा करने का मौका उस समय मिला जब सुल्तान ने कहा - "मैं अपने तीरंदाज़ों का अभ्यास देखने जा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि आप सभी लोग भी आयें।"

जल्द ही वे उस जगह पहुंच गए जहां तीरंदाज़ अभ्यास कर रहे थे। अपने तीरंदाज़ों को सटीक निशाना लगाते हुए देखकर सुल्तान ने प्रसन्नतापूर्वक कहा - "बेहतरीन ! शाबास ! निस्संदेह मेरे तीरंदाज़ सल्तनत के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ हैं।"

"माफ कीजिए सुल्तान ! पर हम लोगों में एक ऐसा भी शख्स मौजूद है जो स्वयं ही आपकी सल्तनत का सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज़ होने का दावा करता है।" - कदी ने ईर्ष्यावश कहा।
सुल्तान ने कहा - "वो कौन है?" कदी ने उत्तर दिया - "अपने नसरुद्दीन ही वो शख्स हैं"

सुल्तान ने नसरुद्दीन को धनुष और तीर देते हुए कहा - "ठीक है नसरुद्दीन। तुम अपनी काबिलियत साबित करो।"

नसरुद्दीन को तो तीरंदाज़ी आती ही नहीं थी। भय से कांपते हुए उसने सुल्तान से धनुष और तीर लिया। इसी बीच, कदी और वजीर आपस में बात करने लगे कि - "जहां तक हम जानते हैं, नसरुद्दीन अनाड़ी तीरंदाज़ है। आज वह निश्चय ही सुल्तान की नज़रों से गिर जाएगा।"

नसरुद्दीन भी सोचने गया कि - "हो न हो, यह कदी और वजीर की ही साजिश है। पर मैं उन्हें सबक सिखा कर ही दम लूंगा।"

नसरुद्दीन ने जैसे ही पहला तीर चलाया, अनाड़ी तीरंदाज़ होने के कारण उसका निशाना चूक गया। पर वह अपने को संभालते हुए बोला - "इस तरह कदी तीर चलाते हैं।" उसने दूसरा तीर चलाया तो वह भी निशाना चूक गया। वह बोला - "और इस वजीर निशाना लगाते हैं।" जैसे ही उसने तीसरा तीर चलाया, भाग्यवश वह सटीक निशाने पर लगा। खुश होते हुए वह बोला - "और इस तरह मैं निशाना लगाता हूं।"

वहां मौजूद लोगों ने नसरुद्दीन की जमकर तारीफ की और सुल्तान से खुश होकर उसे बहुमूल्य उपहार प्रदान किये।
अपनी शिकस्त देखकर कदी और वजीर उससे और अधिक ईर्ष्या करने लग गए।
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Old 25-11-2012, 08:57 AM   #99
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लोमड़ी एवं सेही

एक बार एक लोमड़ी नदी पार करते समय तेज धार में बहकर एक सकरी घाटी में फंस गई और काफी प्रयास करने के बावजूद वहां से निकल न पाने के कारण थककर वही लेट गई। तभी
दुर्भाग्यवश रक्त चूसने वाली मक्खियों का एक झुंड उस पर टूट पड़ा और वे उसे काटने और डंक मारने लगीं। तभी एक सेही वहां से गुजरी। लोमड़ी को बुरी हालत में देखकर दयावश
उसने उसे वहां से निकालकर मक्खियों से दूर ले जाने का प्रस्ताव दिया। हालाकि, लोमड़ी ने उसे ऐसा कुछ भी करने को साफ मना कर दिया।

सेही ने उससे पूछा - "ऐसा क्यों?"

लोमड़ी बोली - "ऐसा इसलिए कह रही हूं कि जो मक्खियां अब तक मेरा खून पी रहीं थीं, अब उनका पेट भर चुका है। यदि तुम उनसे मुझे बचाकर नदी के उस पार ले भी जाओगे तो
भूखे भेड़ियों का झुंड मुझ पर टूट पड़ेगा और मुझे चट कर जाएगा।"


"भूखे भेड़ियों की बजाए रक्त चूसने वाली मक्खियों से जूझना बेहतर है। "
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Old 25-11-2012, 08:57 AM   #100
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तो, लिखते क्यों नहीं!

मुल्ला को एक बार कॉलेज में विद्यार्थियों को लेखन कला विषय पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया.

मुल्ला ने अपना आख्यान इस प्रश्न से प्रारंभ किया – “यहाँ विद्यार्थियों में जो सचमुच लेखक बनना चाहते हैं वे अपना हाथ ऊँचा करें?”

सबने अपने हाथ ऊँचे कर दिए. जाहिर सी बात थी क्योंकि व्याख्यान लेखन कला पर था और इसमें दिलचस्पी लेने वालों का ही जमावड़ा था.

“तो आप सभी को मेरी सलाह है कि” मुल्ला ने अपना व्याख्यान समाप्त किया - “यहाँ झख मारने के बजाए आप सभी अपने अपने घर जाएँ और तुरंत लिखना शुरू करें.”
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