31-08-2013, 10:16 PM | #91 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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31-08-2013, 10:30 PM | #92 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता- (विसाल=मिलन) तेरे वादे पे जिये हम, तो ये जान झूठ जाना कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता- तेरी नाज़ुकी से जाना, कि बंधा था एहदे-बोदा कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तवार होता- (एहद=प्रतिज्ञा, बोदा= कमज़ोर,उस्तवार=मज़बूत) कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीरे-नीमकश को ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता- (नीमकश= कम खींच कर चलाया गया तीर,खलिश=चुभन) ये कहाँ कि दोस्ती है, कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता, कोई ग़मगुसार होता- (नासेह= उपदेशक,चारासाज़=वैद्य,ग़मगुसार=हमदर्द) रगे-संग से टपकता है, वो लहू कि फिर न थमता जिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरार होता- (शरार= चिंगारियां) ग़म अगर ये जांगुसिल है, पर कहाँ बचें, कि दिल है ग़मे-इश्क गर न होता, ग़मे-रोज़गार होता- (जांगुसिल=प्राणघातक) कहूं किस से मैं के क्या है ? शबे-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता- (शबे-ग़म= दुःख की रातें ) हुए मर के हम जो रुस्वा, हुए क्यों न गर्क़े-दरिया? न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता- (गर्क़े-दरिया= नदी में डूबना) उसे कौन देख सकता, कि यगाना है वो यक्ता जो दुई कि बू भी होती, तो कहीं दो-चार होता- (यगाना=एकाकी,यक्ता=बेमिसाल, दुई=विविधता,बू=महक) ये मसाइले-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान ग़ालिब तुझे हम वली समझते, जो न बादाख्वार होता- (मसाइले-तसव्वुफ़= रहस्यवाद की समस्याएँ, वली=संत, बादाख्वार=पियक्कड़) |
31-08-2013, 10:57 PM | #93 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
जगजीत सिंह जी की आवाज़ में ग़ालिब की यह ग़ज़ल 'ये न थी हमारी क़िस्मत ...' मैंने सर्वप्रथम टीवी सीरिअल 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में सुनी थी. आज इसे पुनः प्रस्तुत कर के आपने उस सीरिअल की याद ताज़ा कर दी. बेहद मशकूर हूँ आपका, पुंडीर जी.
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31-08-2013, 11:03 PM | #94 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
जगजीत जी की आवाज़ में यह ग़ज़ल सुनवाने के लिए आपका बेहद मशकूर हूँ, पुंडीर जी. ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता-(विसाल=मिलन) तितलियाँ हैं ये मुलाक़ात की नाज़ुक घडियाँ रंग उड़ जाएगा, पर इनके मसलता क्यों है? |
31-08-2013, 11:40 PM | #95 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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है प्रीत जहाँ की रीत सदा मैं गीत वहाँ के गाता हूँ भारत का रहने वाला हूँ भारत की बात सुनाता हूँ
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01-09-2013, 11:30 AM | #96 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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01-09-2013, 12:36 PM | #97 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मगर क्या करें, अपनी राहें जुदा हैं जहाँ ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही है किसी की मोहब्बत वहां जल रही है ज़मीं आसमां हमसे दोनों खफा हैं --- अभी कल तलक तो मोहब्बत जवां थी मिलन ही मिलन था, जुदाई कहाँ थी मगर आज दोनों ही बे-आसरा हैं --- ज़माना कहे मेरी राहों में आ जा मोहब्बत कहे मेरी बाहों में आ जा वो समझे ना मजबूरियाँ अपनी क्या हैं. |
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01-09-2013, 01:47 PM | #98 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हर करम अपना करेंगे ऐ वतन तेरे लिए दिल दिया है जां भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए तू मेरा कर्मा, तू मेरा धर्मा, तू मेरा अभिमान है ऐ वतन, महबूब मेरे, तुझपे दिल क़ुर्बान है..............
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01-09-2013, 05:54 PM | #99 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
हम तुम से जुदा हो कर, मर जाएंगे रो रो कर
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01-09-2013, 07:54 PM | #100 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
रात कली एक ख्वाब में आई, और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे, आँख तुम्ही से चार हुई रात कली एक ख्वाब में आई, और गले का हार हुई चाहे कहो इसे, मेरी मोहब्बत, चाहे हँसीं में उड़ा दो ये क्या हुआ मुझे, मुझको खबर नहीं, हो सके, तुम ही बता दो तुमने कदम जो, रखा ज़मीं पर, सीने में क्यों झंकार हुई रात कली ... आँखोंमें काजल, और लटोंमें, काली घटा का बसेरा साँवली सूरत, मोहनी मूरत, सावन रुत का सवेरा जबसे ये मुखड़ा, दिल मे खिला है, दुनिया मेरी गुलज़ार हुई रात कली ... यूँ तो हसीनों के, महजबीनों के, होते हैं रोज़ नज़ारे पर उन्हें देख के, देखा है जब तुम्हें, तुम लगे और भी प्यारे बाहों में ले लूँ, ऐसी तमन्ना, एक नहीं, कई बार हुई |
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