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![]() नई दिल्ली। अगर आपको हमेशा इस बात का मलाल रहा है कि ‘स्क्रैबल’ जैसा कोई शब्द खेल हिंदी में उपलब्ध नहीं है तो अब आपके लिए ऐसा ही हिंदी शब्द खेल इंटरनेट पर आ गया है। इंटरनेट पर आप इस खेल में भाग लेकर अपने शब्दज्ञान की परीक्षा ले सकते हैं। शब्दकोशिश डॉट कॉम वेबसाइट पर विभिन्न तरह के आॅनलाइन खेल शुरू किए गए हैं। यह खेल हिंदी शब्दों से जुडे ज्ञान पर आधारित हैं। इसे खेलने वालों को पहले एक नि:शुल्क पंजीकरण कराना होगा जिसके बाद वह इन खेलों को खेल पाएंगे। इंटरनेट पर हिंदी के शब्दखेलों को इस तरह से विकसित किया गया है कि इन खेलों को बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक खेल सकते हैं और अपने हिंदी शब्दों के ज्ञान की परीक्षा ले सकते हैं। दिल्ली के मल्टीमीडिया कलाकार आशीम घोष द्वारा तैयार किया गया यह खेल बहुत ही सरल है। स्क्रैबल की तर्ज पर अपने इस खेल में खिलाड़ी को अधिक से अधिक शब्द तैयार करने होते हैं। इन्ही तैयार किए गए शब्दों के आधार पर उसे अंक मिलते हैं। आशीम ने बताया कि उन्होंने 2001 में इस खेल को विकसित करने का प्रोग्राम तैयार कर लिया था। इसके बाद कुछ तकनीकी और वित्तीय समस्याओं के कारण वह इसे इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे। घोष ने बताया कि इसके बाद अपने ब्लॉग से ही उन्होंने इस खेल को संचालित किया जो बाद में वेबसाइट में तब्दील हो गया। शब्दकोशिश डॉट कॉम पर हिंदी शब्द खेल के अलावा हिंदी की प्रमुख वेबसाइटों को भी संकलित किया गया है। प्रमुख हिंदी अखबारों की वेबसाइटों के लिक्ंस इस पर दिए गए हैं जिन पर क्लिक कर आप ईअखबार पढ़ सकते हैं। साथ ही साथ हिंदी की सांस्कृतिक एंव साहित्यिक वेबसाइट जैसे अनुभूति, मोहल्ला लाइव, यू ट्यूब हिंदी आदि के लिंक्स को भी इस वेबसाइट से जोड़ा गया है। केंद्रीय हिंदी संस्थान, राजभाषा विभाग और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के वेबपेजों पर भी शब्दकोशिश डॉट कॉम वेबसाइट पर सिर्फ एक क्लिक कर पहुंचा जा सकता है। घोष ने बताया कि वह बहुत जल्द इस वेबसाइट पर दक्षिण भारतीय भाषाओं के खेल ला रहे हैं। उनका मानना है कि शब्द खेलों न सिर्फ भूले बिसरे शब्दों को दोबारा जेहन में लाया जा सकता है बल्कि नए शब्द भी गढे जा सकते हैं।
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वैज्ञानिकों को लापतेव समुद्र में मीथेन गैस विस्फोट वाले 200 स्थान मिले
व्लादिवोस्तोक। रूसी विज्ञान अकादमी के सुदूर पूर्वी शाखा के वैज्ञानिकों को लापतेव समुद्र के उत्तरी हिस्से में ऐसे 200 स्थान मिले हैं जहां से मीथेन गैस के विस्फोट हुए। अनुसंधान पोत विक्तोर बुइनितस्की पर तैनात वैज्ञानिकों के दल के प्रमुख इगोर सेमिलेतोव ने बताया कि इन स्थानों में से दो स्थान का क्षेत्र काफी बड़ा है जिसमें से एक का व्यास तो एक किलोमीटर में फैला हुआ है। उनका मानना है कि इस खोज से वैज्ञानिकों को आर्कटिक क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन प्रणाली को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
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महा-चुंबकीय विशाल तारे की खोज
न्यूयॉर्क। वैज्ञानिकों ने एक नये विशाल तारे की खोज की है जो द्रव्यमान में सूरज से 35 गुना ज्यादा और उसका चुंबकीय क्षेत्र 20,000 गुना ज्यादा शक्तिशाली है । स्पेस डॉट कॉम के मुताबिक, इस नये तारे का नाम एनजीजी 1624 - 2 है । यह धरती से 20,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है । इसका द्रव्यमान सूरज से 35 गुना ज्यादा है । सूरज की तुलना में इस विशाल तारे का चुंबकीय क्षेत्र 20,000 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। अब तक खोज किए गए अन्य किसी भी विशाल तारे के मुकाबले यह क्षेत्र 10 गुना ज्यादा शक्तिशाली है । खबर में बताया गया कि द्रव्यमान के अत्यधिक होने के कारण तारे में प्रचुर मात्रा में ईंधन है जिससे इसे चमक और गर्मी मिलती है । इसी वजह से इसके जल्द खाक हो जाने की भी संभावना है। 50 लाख साल की जीवन अवधि के बाद यह तारा खत्म हो जाएगा जोकि मध्यआयु में सूरज के मौजूदा उम्र के एक प्रतिशत का दसवां हिस्सा है।
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मलेरिया का सबसे अधिक खतरा उत्पन्न करने वाली मच्छरों की नयी प्रजाति का पता चला
लंदन। वैज्ञानिकों ने मच्छरों की ऐसी प्रजाति का पता लगाने का दावा किया है जो संभावित रूप से मलेरिया से सैकड़ों और अधिक मौतों का कारण बन सकती हैं। ‘द इंडेपेंडेंट’ के अनुसार वैज्ञानिकों का दावा है कि पूर्व में अफ्रीका में पाये जाने वाला यह अज्ञात परजीवी इस बीमारी के खिलाफ अभियान को गहरा झटका लगा सकता हंै। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यह खोज चिंताजनक है क्योंकि यह परजीवी सामान्य मच्छरों जैसा व्यवहार नहीं करते। मलेरिया के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार मादा एनोफिलीज के उलट यह मच्छर रात का भी इंतजार नहीं करते और लोगों को शाम के समय ही काट लेते हैं जब वे घर से बाहर होते हैं। वैज्ञानिकों को अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि मच्छर का डीएनए वर्तमान किसी भी मच्छर से मेल नहीं खा रहा है । लंदन स्कूल आफ हाइजीन एंड ट्रापिकल मेडिसीन के जेनिफर स्टीवंसन ने कहा, ‘हमने पाया कि हमने मलेरिया से प्रभावित मच्छरों सहित जो कई मच्छर पकड़े हैं वे शारीरिक रूप से ज्ञात मलेरिया वाले मच्छरों से मेल नहीं खाते।’
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दांतों के क्षरण को रोकने के लिए जल्द ही कैविटी रोधक वैक्सीन
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक दांतों की बीमारियों को रोकने के लिए एक ऐसा टीका खोज निकाला है जो आने वाले समय में दंत चिकित्सकों को बेरोजगार कर देगा। अमेरिका में फोरसिथ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता एक ऐसी वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं जो बैक्टीरिया ‘म्यूटेंस स्ट्रेपटोकोसी’ को निशाना बनाएगा । इसी के चलते दांतों में कैविटी होती है। जब बैक्टीरिया भोजन को तोड़ते हैं तो उससे लेक्टिक एसिड पैदा होता है जो दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचा कर कैविटी पैदा करता है। कैविटी का मुकाबला करने वाली नयी वैक्सीन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को ऐसे एंटीबाडीज बनाना सिखाती है जो उन एंजाइम को मार देंगे जिनके चलते बैक्टीरिया दांतों से चिपक जाते हैं। डेली मेल में यह खबर प्रकाशित हुई है। इस प्रकार दांतों से चिपकने में विफल रहने पर बैक्टीरिया लार के साथ बह जाते हैं और दांत सुरक्षित रहते हैं। परीक्षण के तौर पर चूहों को यह वैक्सीन दी गयी और उनमें किसी प्रकार की कैविटी विकसित नहीं हुई । इंसानों पर किए गए परीक्षण में भी इसी प्रकार का प्रभाव देखा गया। इंस्टीट्यूट के डा डेनियल स्मिथ ने बताया कि इस वैक्सीन को नाक के जरिए दिया जाएगा जिससे इंजेक्शन का दर्द भी नहीं झेलना पडेगा । ब्रिटिश डेंटल ऐसोसिएशन के डा जेचिंता यूओ का मानना है कि यह वैक्सीन कुछ ही सालों में बाजार में उपलब्ध होगी और इससे दांतों की चिकित्सा में क्रांति आ जाएगी।
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हर चार में तीन माता पिता होते हैं ‘बेबीलेग’ का शिकार
लंदन। नए नए मां बाप बनने वाले प्रत्येक चार में से तीन माता पिता कुछ ऐसी हरकतें करते हैं जो उनकी याददाश्त पर सवाल उठाती हैं मसलन दूध की बोतल को वाशिंग मशीन में रखना और जुराबों को फ्रीज में । एक नए अध्ययन में इस बीमारी को ‘बेबीलेग’ का नाम दिया गया है । ब्रिटेन में एक हजार माता पिता पर किए गए अध्ययन में इसे ‘जेट लेग’ की तर्ज पर ‘बेबीलेग’ नाम दिया गया क्योंकि दोनों में ही पीड़ित को नींद की कमी से परेशान होना पड़ता है । डेली मेल में प्रकाशित खबर में कहा गया है कि ट्रांस अटलांटिक विमान यात्रा से उत्पन्न दुष्प्रभावों से कुछ ही समय में निपटा जा सकता है लेकिन नवजात शिशु के माता पिता को अपनी नींद की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से निजात पाने में काफी समय लगता है । नींद के विशेषज्ञ और बर्मिंघम हार्टलैंड अस्पताल के डा देव बनर्जी ने बताया कि बच्चा होने के बाद नींद की कमी से पीड़ित रहना कोई असामान्य बात नहीं है लेकिन इसके गंभीर परिणाम होते हैं । मसलन माएं शावर के नीचे नहाते नहाते सो जाती हैं या पिता अवकाश के दिन भी कार्यालय पहुंच जाते हैं। जानसन बेबी कंपनी के लिए करवाए गए सर्वे में शामिल नवजात शिशुओं के कुल मांओं और पिताओं में से आधे ने कहा कि उन्हें रात में केवल चार घंटे की ही नींद मिल पाती है । प्रत्येक तीन में से एक माता पिता को शुरूआत के कुछ सप्ताह में बच्चे के रोने के कारण रात में तीन तीन बार जागना पड़ता है । इसी के चलते माता पिता का व्यवहार बेहद उलझनभरा हो जाता है और वे टूथपेस्ट की जगह शेंपू का इस्तेमाल करने लगते हैं। डा बनर्जी ने बताया कि जब माता पिता रोज रात को कई कई बार बच्चे के रोने के कारण नींद से जागते हैं तो वे ‘गहरी नींद’ के अंतिम चरण में नहीं पहुंच पाते हैं । इससे शरीर को पुन: उर्जा हासिल करने का मौका नहीं मिलता और दिन निकलने पर उनका हाल बेहाल रहता है । उन्होंने कहा, ‘यदि ऐसा हर रात होता रहे तो माता पिता का प्रतिक्रिया का समय घटने लगता है , ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है और समस्याओं को सुलझाने की क्षमता पर असर पड़ता है ।’ वह बताते हैं कि ‘बेबीलेग ’ का शिकार होने पर माता पिता बच्चे को कार में भूल जाने , पायजामे में कार्यालय पहुंचने , डियो की जगह हेयर स्प्रे का इस्तेमाल करने और रस्सी पर गंदे कपड़ों को सुखाने के लिए डालने जैसी अजीबोगरीब हरकतें करते हैं ।
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दमे के हमलों में 20 फीसदी से ज्यादा की कमी लाने वाली दवा विकसित
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक नयी दवा विकसित की है जिसके बारे में उनका कहना है कि वह ऐसे मरीजों पर दमे के हमलों में भी 20 फीसदी से ज्यादा की कमी लाने में मददगार साबित हो सकती है जो गंभीर रूप से दमे की चपेट में होते हैं । नयी दवा के विकसित होने की यह खबर दमे से जूझ रहे लाखों मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण है । ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेकाबू दमे से जूझ रहे 1,000 लोगों पर ‘टियोट्रॉपियम’ नाम की दवा का प्रयोग किया गया । इस दवा के इस्तेमाल से मरीजों के फेफड़े की कार्यप्रणाली में आश्चर्यजनक सुधार हुआ । दवा के सेवन के बाद मरीजों में दमे के हमले में 21 फीसदी से ज्यादा की कमी आयी जबकि हमलों के बीच का अंतराल भी काफी बढ गया । यह दवा अगले कुछ सालों में ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में उपलब्ध हो सकती है।
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खुद को क्षमतावान समझने से स्वास्य भी रहता है अच्छा
सिडनी। खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह बात सत्य साबित हुयी है। जिन लोगों को अपने भाग्य पर अधिक भरोसा रहता है और जो अपना हर काम भगवान भरोसे छोडने के आदी होते हैं उनकी अपेक्षा वे लोग ज्यादा तंदरूस्त रहते हैं जिन्हें खुद पर भरोसा रहता है । मेलबर्न इंस्टीट्यूट आफ एप्लायड इकोनोमिक्स एंड सोशल रिसर्च के शोधकर्ताओं ने सात हजार से अधिक लोगों के खानपान, कसरत और व्यक्तित्व का अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान पता चला कि जो लोग खुद पर भरोसा करते हैं और अपनी जिंदगी की इबारत खुद लिखने के काबिल होते हैं वे ज्यादा स्वास्य बर्धक खाना खाते हैं, ज्यादा कसरत करते हैं, कम धूम्रपान करते हैं और शराब के नशे में होश नहीं खोते। खुद की क्षमता पर भरोसा करने वाले लोगों का रहन सहन और खानपान का तरीका बहुत ही स्वाय बर्धक होता है। अध्ययन के मुताबिक जो लोग अपने भाग्य पर निर्भर रहते हैं और हर बात में उसी का रोना रोते हैं, ऐसे लोग स्वस्थ जीवन नहीं व्यतीत करते। शोध से व्यक्ति क ी सोच एवं व्यक्तित्व का उसके रहन सहन से सीधा संबंध होने का पता चला है। कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुसार ही खान पान का चयन करता है और उसी के अनुसार जीता है। भाग्य पर भरोसा करने वाले लोग अक्सर परेशान रहते हैं और खाने का ध्यान नहीं रखते जबकि क्षमतावान लोग अपनी हर बात पर गौर क रते हैं। अध्ययन से स्वस्थ जीवन के बारे में महिलाओं और पुरूषों के अलग अलग ख्यालात का भी पता चला है। पुरूष स्वस्थ जीवनशैली से प्रत्यक्ष फायदा देखना चाहते हैं जबकि महिलायें स्वस्स जीवनशैली जीने में ही आनंद अनुभव करती हैं। बीबी रसेल ने रैंप पर पेश की बंगाल की बाउल परंपरा कोलकाता, 17 सितंबर :भाषा: बांग्लादेश की मॉडल से फैशन डिजाइनर बनी बीबी रसेल ने बंगाल की बाउल परंपरा को यहां सिग्नेचर प्रीमियर फैशन वीक में रैंप पर पेश किया है । रैंप पर पेश किये जाते समय पृष्ठभूमि में ‘धन्यो धन्यो बोली तारे’ गीत बज रहा था । रैंप पर चल रही मॉडलों ने पीली और हरी पोशाक पहनी थी । इनमें से कुछ मॉडलों ने हाथों में ‘इकतारा’ लिया हुआ था । उन्होंने कहा, ‘मैं बांग्लादेश में कुस्तिआ से हूं जहां की हवाओं में अब भी बाउल संगीत और बाउल संस्कृति गूंजती रहती है । मेरा यह प्रयास है कि बांग्लादेश और बंगाल में समान सांस्कृतिक खजाने को सामने लाया जाए।’
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इंफ्लूएंजा वायरस को बेअसर करने वाली मानव प्रतिरक्षा का पता चला
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने ऐसी मानव कोक्रिस्टल प्रतिरक्षा ढांचे का पता लगाया है जो इंफ्लूएंजा वायरस को अनोखे तरह से बेअसर कर सकती है। द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट और सी लेन बायोटेक्नोलाजीस ने एक ऐसी प्रतिरक्षा का पता लगाया है जो उस महत्वपूर्ण ढांचे की पहचान करती है जिसका इस्तेमाल फ्लू वायरस पोषक कोशिकाओं से जुड़ने के लिए करता है। पूर्व में इसे इतना छोटा समझा जाता था जो किसी प्रतिरक्षा को प्रभावी ढंग से पकड़ नहीं बना सकता। प्रतिरक्षा प्रोटीन निशाना बनाने वाले तंत्र के एक छोटे हिस्से का इस्तेमाल करके इस सटीक स्थान पर हमला बोलता है। ऐसा करते हुए वह व्यापक श्रेणी के फ्लू वायरस को बेअसर कर देता है।
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हाथ हिलाएं, पासवर्ड बनाएं
लंदन। एक बार फिर अपना पासवर्ड याद नहीं आ रहा? कोई बात नहीं, बस अपना हाथ ऊपर उठा कर हिला दें और पासवर्ड याद रखने की जहमत से बरी हो जाएं। लग रहा न अजीबोगरीब? जी हां, वैज्ञानिक आजकल एक ऐसी तकनीक ईजाद करने में जुटे हैं जिससे किसी शख्स की पहचान उसके हाथ हिलाने के अंदाज से हो सकती है। ‘टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट के मुताबिक, लैपटॉप का बायोमेट्रिक सेंसर या टैबलेट कंप्यूटर किसी शख्स की हथेली के खास अंदाज को स्कैन कर लेता है ताकि उस व्यक्ति की पहचान का पता लगाया सके। ‘इंटेल’ की ओर से विकसित की गई इस प्रौद्योगिकी से पासवर्ड याद रखने के झंझट से छुटकारा मिल सकता है। ‘इंटेल लैब्स’ के शोध निदेशक श्रीधर अयंगर ने इस प्रौद्योगिकी के बारे में बताया, पासवर्ड्स के साथ समस्या यह है कि हम उनमें से कई का इस्तेमाल करते हैं। पासवर्ड के नियम जटिल होते हैं। अलग-अलग वेबसाइट के लिए अलग पासवर्ड बनाने होते हैं। इस समस्या का हल बायोमेट्रिक्स है।
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