08-11-2014, 10:39 PM | #1021 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मगर कहीं पर ज़मीं है बंजर कहीं पे सोना उगल रही है (सरवत परवेज़ सहसवानी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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09-11-2014, 10:12 PM | #1022 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हमेशा पोंछती रहती है आंसू अपने बच्चों के सुना तुमने, किसी माँ का कभी आँचल भीगा क्या 'अनमोल शुक्ल अनमोल'.
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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10-11-2014, 10:29 AM | #1023 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ये दुनिया तो झूठ पे जीती है इसमें हम ऐसों का आबो-दाना थोड़ी है टूटते रिश्ते पर रोना-धोना बंद कर उसको अबकी बार मनाना थोड़ी है (तुफैल चतुर्वेदी)
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12-11-2014, 04:52 PM | #1024 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हर कदम पर मुझसे टकराते हैं पत्थर के सनम, क्या भरी दुनिया में इंसान, ऐ खुदा! कोई नहीं.......... (अज्ञात)
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12-11-2014, 05:08 PM | #1025 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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जो बीत गए फिर वो दीवाने नहीं आते; दोस्त ही होते हैं दोस्तों के हमदर्द; कोई फ़रिश्ते यहाँ साथ निभाने नहीं आते।
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12-11-2014, 06:03 PM | #1026 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तेरी दोस्ती के इन बढ़ते हाथों का, अब समझे हम मतलब ऐ दोस्त, सुलाकर हमें,आगोश में मौत के, बढ़ाकर कफ़न मुंह तक, ये खींचे......... (अज्ञात)
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13-11-2014, 09:59 AM | #1027 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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दूसरे बेलिबास लगते हैं कुछ दिनों तक नज़र न आयें तो आम चेहरे भी खास लगते हैं (अक़ील नोमानी)
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13-11-2014, 10:26 PM | #1028 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हम तो अभी मोहब्बत में जी भी ना पाए थे कि आप ने नफरतों में जीना सिखा दिया !........... (अज्ञात)
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14-11-2014, 02:06 PM | #1029 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यहीं से हमने मुहब्बत की इब्तदा की थी धड़कते दिल से, लरज़ती हुई निगाहों से हुजूरे - ग़ैब में नन्हीं सी इल्तिजा की थी कि आरज़ू के कंवल खिल के फूल हो जाएं दिलो - नज़र की दुआएं क़बूल हो जाएं (साहिर लुधियानवी)
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14-11-2014, 02:42 PM | #1030 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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एक इसी उम्मीद पे हैं सब दुश्मन दोस्त क़ुबूल, क्या जाने इस सादा-रवीं में कौन कहाँ मिल जाएँ......... सादा-रवीं = धीमी चाल (अज्ञात)
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