22-09-2012, 12:18 AM | #1021 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
मेलबर्न। जर्मनी की एक आटोमोबाइल कंपनी ने एक ऐसी कार बनाई है जिसे सिनेमाघर में बदला जा सकता है। यह कांसेप्ट कार एक सेल फोन को कार का अभिन्न हिस्सा बना देती है, जिससे कार एक चलते-फिरते सिनेमाघर में बदल सकती है। आमतौर पर कार में इंजन को ठंडा रखने के लिए एक बोनेट लगा होता है लेकिन स्मार्ट फोरस्टार की स्कूप कार में एक ऐसा प्रोजक्टर लगा है जो इसकी एक दीवार को पर्दे में बदल देता है। प्रोजेक्टर के मीडिया प्लेयर को सीधे स्मार्टफोन से जोड़ा जा सकता है या फिर वीडियो को ब्लूटूथ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। साथ ही सेल फोन को कार के रियर-व्यू मिरर में भी बदला जा सकता है। इस कांसेप्ट कार को इस सप्ताह पेरिस मोटर शो में प्रदर्शित किया गया।
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22-09-2012, 12:19 AM | #1022 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पुरुष अधिक हों तो कम बोलती हैं महिलाएं
वाशिंगटन। अगर महिलाएं संख्या में पुरुषों से कम हों, विशेष तौर पर किसी समस्या को सुलझाने के लिए हो रही समूह वार्ता के दौरान, तो वे ज्यादातर चुप रहती हैं। ब्रिघमयंग यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन के अनुसंधानकर्ताओं ने यह अध्ययन किया कि जब किसी समस्या को सुलझाने के लिए पुरुषों और महिलाओं को एकत्र किया जाता है तो क्या वे (महिलाएं) कम बोलती हैं। उन्होंने पाया कि अपने प्रतिनिधित्व के मुकाबले महिलाएं काफी कम बोलीं। उनके बोलने का समय पुरुषों के मुकाबले 75 प्रतिशत से भी कम था। विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञानी क्रिस कार्पोविज ने कहा कि महिलाओं के पास समूह में जोड़ने के लिए कुछ विशेष और महत्वपूर्ण होता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में वह खोता जा रहा है। अध्ययन के परिणाम अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस रिव्यू में प्रकाशित हुए हैं।
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22-09-2012, 12:19 AM | #1023 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बिंदास और हंसोड़ महिलाएं भाती हैं पुरुषों को
मेलबर्न। अधिकतर पुरुषों को अपने साथी के तौर पर किसी सुपरमाडल के बजाय औसत सी दिखने वाली, बिंदास और हंसोड़ महिलाएं अधिक भाती हैं। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया है कि पुरुष अपने साथी के तौर पर हंसोड़पन को शीर्ष प्राथमिकता देते हैं, जबकि मौज-मस्ती की प्रकृति वाली महिलाएं तीसरे नंबर पर आती हैं। इसमें बिंदासपन पांचवें और अब तक शीर्ष पर समझी जाने वाली खासियत यानी शारीरिक सुदंरता नौंवे स्थान पर है। महिलाएं भी अपने साथी में ऐसा कुछ तलाशती हैं जो मनमौजी प्रकृति का और हंसोड़ तबीयत का हो। लेकिन वह किसी पुरुष साथी में उदारता और आपसी समझदारी को अधिक महत्व देती हैं। दी न्यूज डॉट काम की रिपोर्ट में रिलेशनशिप एंड एजुकेशन कंसलटेंसी की प्रिंसिपल रोसलिंद बेकर ने कहा कि अधिकतर अकेले लोग किसी भी सम्बन्ध को शुरू करने के लिए सबसे पहले मौज-मस्ती को अधिक तरजीह देते हैं। बेकर ने कहा कि जब आप पहली बार किसी से मिलते हैं तो यह काफी स्वाभाविक है कि आप मस्ती चाहते हैं और दीर्घकालिक सम्बंध में जाने से पूर्व इसी मस्ती से पहली चिंगारी भड़कती है। उन्होंने कहा कि जब ऐसे लोग रिश्ते को स्थायी रूप देने के बारे में सोचते हैं तो मौज-मस्ती पीछे रह जाती है और बाकी गंभीर बातें सामने आ जाती हैं। बेकर ने कहा कि ईमानदारी, विश्वास, समझ, खुलापन, सम्मान, उदारता, देखभाल, गर्मजोशी, प्यार और लगाव ऐसी चीजें हैं, जिन्हें पुरुष और महिलाएं मौज-मस्ती की सीमा पार हो जाने के बाद सर्वाधिक तरजीह देते हैं।
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22-09-2012, 12:19 AM | #1024 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
ज्यादा टीवी देखने से खराब हो सकते हैं रिश्ते
वाशिंगटन। अगर आप टेलीविजन देखने के जबरदस्त आदी हैं तो सावधान हो जाएं, कहीं आपके और टेलीविजन के साथ की वजह से आपके जीवनसाथी और आपका साथ न छूट जाए। एक नए अध्ययन के अनुसार ज्यादा टेलीविजन देखने से आपके जीवनसाथी के साथ आपके सम्बंध प्रभावित हो सकते हैं। अध्ययन के अनुसार अगर आप और आपका जीवनसाथी लगातार टेलीविजन देखते हैं तो इससे आपके रिश्ते पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अल्बीयन कॉलेज के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसी संभावना है कि जो लोग टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रेम में बहुत अधिक विश्वास करते हैं वह अपने जीवनसाथी के साथ अपने सम्बन्ध में उतने ही कम प्रतिबद्ध होते हैं। अध्ययनकर्ता डॉक्टर जेरेमी आॅस्बर्न ने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि जो लोग टीवी पर दिखाए जाने वाले काल्पनिक सम्बन्धों में विश्वास करते हैं वह अपने जीवनसाथी के प्रति वास्तव में उतने ही कम प्रतिबद्ध होते हैं और सोचते हैं कि टीवी पर दिखाए जाने वाले पति या पत्नी उनके पति या पत्नी की तुलना में ज्यादा आकर्षक हैं।
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26-09-2012, 11:28 AM | #1025 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बंडे की प्रजाति का पौधा कैंसर में फायदेमंद
लंदन। वैज्ञानिकों ने बंडे की प्रजाति के एक सदाबहार परजीवी पौधे पर परीक्षण करने के बाद दावा किया है कि इससे कैंसर के मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। एबरडीन यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए शुरुआती अध्ययन में यह दावा किया गया है। अध्ययन का नेतृत्व कैंसर विशेषज्ञ प्रोफेसर स्टीवन हेज ने किया। अब इस अध्ययन को कैंपहिल मेडिकल प्रैक्टिस के साथ मिलकर किया जाएगा, जो इस पौधे की मदद से कैंसर के मरीजों को नियमित थेरेपी देता है। अध्ययन में कहा गया है कि इस पौधे की मदद से होने वाली थेरेपी से मरीज का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है और उसके जीवन में सुधार आता है।
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29-09-2012, 10:19 PM | #1026 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अंधविश्वास टोटके में उलझे तीन गांवों में नहीं बरते चौबारें
हिसार। विज्ञान और आईटी के इस युग है में हरियाणा के तीन गांवों में आज तक कोई चौबारा दिखाई नहीं दे सकता। लोग पूरी तरह से अंधविश्वास में डूबे हुए हैं। इन गांवों की लगभग 15 हजार की आबादी है। यहां के लोगों में अंधविश्वास एक समान है लेकिन इनकी एक दूसरे से दूरी 20 से 50 किलोमीटर तक है। यहां अनपढ़ किसान और पढ़ेलिखे नौकरीपेशा लोग भी इससे अछूते नहीं है। लोग अपने मकान पर चौबारा यानि दूसरी मंजिल बनाना अशुभ मानते हैं। हरियाणा के ये तीन गांव हैं जिला फतेहाबाद का गांव कवलगढ़ व कलोठा तथा सिरसा जिले का गांव बहिया। इन गांवों में दो हजार से अधिक मकान है और कोई भी दो मंजिला नहीं हैं। इनके अनुसार चौबारा बनाना अनर्थ एवं अनहोनी को बुलावा देना है। जब भी किसी ने ऐसा करने की कोशिश की तो उस परिवार संकट में पड़ जाता है कोई न कोई अनहोनी हो जाती है। इसके अलावा यहां के लोग एक साथ दो चूल्हे बनाने तथा मटके के ऊपर मटका रखने को भी अशुभ मानते है। गांव कलोठा के लोगों का कहना है यहां पीर बाबा की एक मजार है। किसी ने भी इस मजार से अधिक ऊंचा मकान बनाने की कोशिश की उसे अनहोनी का सामना करना पड़ा है। ग्रामीण कहते है कि बहिया गांव को साधुओं ने श्राप दे रखा है पर क्यों दिया गया यह कोई नहीं जानता। गांव कवंलगढ़ में शहरों जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं मिल जाती हैं मिलता नही है तो बस एक चौबारा। कुछ ग्रामीण बताते हैं कि अग्रवाल बिरदारी के एक व्यक्ति ने अपने मकान पर चौबारा बनाना शुरू किया था लेकिन वह चौबारा तो नहीं बना पाया उसका परिवार जरूर संकट में फंस गया। सिरसा जिले की रानिया तहसील के गांव बहिया में भी कामोबेश ऐसा ही अंधविश्वास कई दशकों से चला आ रहा है। इस गांव में एक हजार से अधिक मकान हैं और किसी पर भी आज तक चौबारा नहीं बन पाया है। लोगों का कहना है कि जब भी किसी ने चौबारा बनाने की कोशिश की उसे भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। कुछ को अपनी जान गंवानी पड़ी तो कुछ के परिवार में एक के बाद एक करके कई मौतें हो गई जिससे भयभीत होकर इन्होंने चौबारा बनाने की बात ही अपने मन से निकाल दी।
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29-09-2012, 10:49 PM | #1027 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
डार्विन के इकट्ठे किए 180 साल पुराने फफूंद और शैवाल मिले
लंदन। चार्ल्स डार्विन द्वारा 180 साल पहले इकट्ठे किए गए फफूंद और समुद्र्री शैवाल का पता चल गया है। यह कैंब्रिज विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में एक समाचार पत्र में लिपटे हुए मिले। यह आश्चर्यजनक चीज उस समय मिली, जब सैन्सबरी प्रयोगशाला के निरीक्षक ने यहां के संग्रह में एक बिना नाम वाले बॉक्स को खोला। मुख्य तकनीकी अधिकारी क्रिस्टिन बर्टराम ने कहा कि इस बॉक्स पर वर्ष 1828 का एक समाचार पत्र लिपटा हुआ था। इस बॉक्स में वर्ष 1832 और 1833 में दक्षिण अमेरिका की यात्रा के दौरान इस फफंूद और समुद्र्री शैवाल को इकट्ठा किया था।
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30-09-2012, 12:46 AM | #1028 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
किशोरों के लिए मुश्किल है डर से उबर पाना
न्यूयार्क। ऐसा माना जाता है कि किसी डर से उबर पाने में बच्चों को बहुत परेशानी होती है, लेकिन एक अध्ययन के मुताबिक किसी डर से उबरना बच्चों के मुकाबले किशोरों के लिए ज्यादा मुश्किल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई बार खतरा टल जाने के बाद भी किशोरों में उसके प्रति प्रतिक्रियाएं बरकरार रहती हैं। वील कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक बार किसी किशोर के दिमाग में अगर किसी खतरे का डर बैठ गया तो उसके प्रति भावनात्मक प्रतिक्रिया को रोकने की क्षमता कम हो जाती है। इसी वजह से इस दौरान घबराहट में वृद्धि और तनाव से जुड़ी विसंगतियां देखी जा सकती हैं। अध्ययन बताता है कि एक ही जैसे खतरे का सामना कर रहे बच्चों और किशोरों में मुसीबत टल जाने के बाद अलग-अलग अनुभव होते हैं। वील कॉर्नेल के सैक्रल इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट साइकोबायोलॉजी के अध्येता डॉक्टर सायोभान एस पैटवेल कहते हैं कि किशोरों में डर को खत्म करना सीखने में आई कमी को दिखाने के लिए प्रयोग के माध्यम से किया गया यह पहला अध्ययन था। इस प्रयोग में बच्चों, किशोरों और व्यस्कों को शामिल किया गया था। उनके कानों पर हैडफोन और पसीना मापने के यंत्र लगाकर उनसे कंप्यूटर की स्क्रीन पर देखने के लिए कहा गया। स्क्रीन पर नीले या पीले रंग की वर्गाकार तस्वीरें आ रही थीं। उनमें से एक वर्ग के साथ बेहद भयानक आवाज जुड़ी थी। उदाहरण के तौर पर एक नीले वर्ग को देखने के आधे समय में उस आवाज का शोर ही प्रभावी होता था। अगर प्रयोग में शामिल लोगों में इस आवाज का डर पैदा हो जाता तो उस आवाज से जुड़े वर्ग को देखते ही उसके पसीने ज्यादा बहने लगते। इसी समूह को अगले दिन भी बुलाया गया और वही तस्वीरें दिखाई गर्इं। लेकिन इस बार उनके साथ कोई भयानक आवाज नहीं जुड़ी थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि लेकिन किशोरों में उस डर के लिए प्रतिक्रिया कम नहीं हुई थी और उनका डर तब भी प्रयोग के दौरान बना रहा जबकि कोई आवाज बजाई नहीं जा रही थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि 12 से 17 वर्ष की आयु वाले किशोरों के मुकाबले बच्चे और व्यस्क जल्दी इस बात को समझ गए थे कि किसी भी वर्ग से कोई भयानक आवाज नहीं जुड़ी है। इससे डर के प्रति उनकी प्रतिक्रिया कम हो गई थी। ऐसा ही शोध चूहों पर भी किया गया था तो ऐसे ही नतीजे सामने आए थे। यह शोध नेशनल अकेडमी आॅफ साइंसेज के जर्नल ‘प्रोसीडिंग्स’ में प्रकाशित हुआ है।
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30-09-2012, 12:47 AM | #1029 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
भारत में हृदय के मरीजों में से 25 प्रतिशत मरीज 40 की उम्र से कम
नई दिल्ली। जीवनशैली में तेजी से बदलाव ने पूरे विश्व में उम्रदराज लोगों में हृदयरोग की वृद्धि देखी गई है, लेकिन भारत में मामला कुछ अलग है। भारत में हृदय की बीमारी से पीड़ित मरीजों में लगभग 25 प्रतिशत लोगों की उम्र 40 से कम है। विश्व हृदय दिवस पर हृदय रोग विशेषज्ञों ने हृदय सम्बंधी बीमारियों पर चिंता जताते हुए वृहद स्तर पर जागरुकता फैलाने पर जोर दिया। इसके धुम्रपान छोड़ने, चिकित्सकों से नियमित सलाह लेने और चिंतामुक्त रहने जैसी आसन सलाह दी। हृदय सम्बंधी बीमारियों से हजारों लोगों की जानें जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में हर वर्ष 60,000 से 90,000 बच्चे हृदय रोग के शिकार हो सकते हैं। अपोलो अस्पताल के अध्यक्ष प्रताप सी. रेड्डी ने बताया कि चिकित्सकों का मानना है कि हृदय सम्बंधी बीमारियों को लेकर भारतीयों में पश्चिमी देशों के लोगों की अपेक्षा इससे ग्रसित होने की संभावना चार गुना ज्यादा है। महिलाओं में भी 50 साल से अधिक की उम्र में इसकी संभावना ज्यादा हो सकती है। प्रताप सी रेड्डी स्वयं हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। मैक्स अस्पताल के एक अन्य हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. के. एस. डागर ने जन्मजात हृदय रोग को रोकने पर जोर देते हुए कहा कि देश में करीब 60,000 से 90,000 बच्चों में हृदय रोग की संभावना देखी गई है, जिनमें से केवल 15,000 से 20,000 बच्चों को ही उपचार मिल रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि 16 से 20वें सप्ताह की गर्भवती महिलाओं की एक विशेष तरह की जांच की जानी चाहिए, जिसके दौरान चिकित्सक यह जान सकेंगे कि बच्चे को हृदय सम्बंधी बीमारी है अथवा नहीं।
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30-09-2012, 12:51 AM | #1030 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
कीटों को अपनी ओर आकर्षित कर हजम कर जाते हैं परभक्षी पौधे
वाशिंगटन । एक नये अध्ययन के मुताबिक पोषक तत्वों की कमी वाले आश्रय स्थलों में जीवित रहने के लिए परभक्षी पौधों के पास कीट पतंगों को पकड़ने वाली प्रणालियां होती हैं, जिसकी मदद से वे उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और फिर उन्हें हजम कर जाते हैं। इन कीट पतंगों में मौजूद पोषक तत्व इन पौधे को जीवित रखते हैं। प्रोफेसर थॉमस स्पेक के नेतृत्व में बोटनिक गार्डेन फे्रलबर्ग के प्लांट बायोमेकेनिक्स ग्रुप में पौधों की इन सक्रिय प्रणालियों के बारे में अध्ययन किया जा रहा है। साइमन पोप्पींगा परियोजना में अध्ययनकर्ताओं ने पहली बार सनड्यू ड्रोसेरा ग्लैंडुलीगेरा नाम के पौधे की कीटों को फंसाने वाली गतिविधि का खुलासा किया। गौरतलब है कि सनड्यू पौधे आमतौर पर शिकारी पत्तियों के लिए जाने जाते हैं, जिस पर कीट चिपक जाते हैं और इसके बाद पत्तियां कुछ ही मिनटों में उसे लपेट लेती है। गोल पत्तियों वाले संड्यू ड्रोसेरा रोटुनडीफोलिया इसी तरह से कीटों का शिकार किया करते हैं। अध्ययन का नतीजा जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित किया गया है।
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