15-11-2014, 10:50 PM | #1031 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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har talkhi-e-dauran ko kiya hamne gawara ham shauq me manzil se bhi aage nikal aaye maloom nahin rooh ko ye kisne pukara (jagnnath azad) ऐ दोस्त! तेरी याद ने बख्शा वो सहारा हर तल्खी-ए-दारां को किया हमने गवारा हम शौक़ में मंजिल से भी आगे निकल आये मालूम नहीं रूह को ये किसने पुकारा (जगन्नाथ आज़ाद)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 18-11-2014 at 06:23 PM. |
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16-11-2014, 06:26 PM | #1032 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रोएंगी आँखेँ मुसकुराने के बाद, आएगी रात दिन ढल जाने के बाद, ए जाने वाले जरा मुड़ के देख, शायद जिँदगी ना रहे तेरे जाने के बाद....
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16-11-2014, 07:20 PM | #1033 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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17-11-2014, 11:54 AM | #1034 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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एक तुझको भूल जाने की मोहलत नहीं मिली करने को बहुत काम थे......अपने लिए मगर हमको तेरे ख़याल से.......फ़ुरसत नहीं मिली (इक़बाल)
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17-11-2014, 05:42 PM | #1035 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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लहरों पर कूदो उतर कर समंदरों में, कोई कश्ती ख़ुद कभी किसी का साहिल नहीं होती, हर सफ़र में ये दुनियादारी शामिल नहीं होती, हर राह पर खड़ी कोई मंज़िल नहीं होती ॥
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17-11-2014, 11:26 PM | #1036 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हम में कोई भी जहांनूर-ओ-जहांगीर नहीं तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है तेरे हाथों में मिरे हाथ हैं..........जंजीर नहीं (साहिर लुधियानवी)
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18-11-2014, 05:42 PM | #1037 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हजार नाकामियाँ हों 'नश्तर' हजार गुमराहियाँ हों लेकिन, तलाशे-मंजिल है अगर दिल से, तो एक दिन लाजिमी मिलेगी......... (हरगोविंद दयाल 'नश्तर')
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18-11-2014, 06:08 PM | #1038 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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वे किसी गीत के हाथों से संवर जायेंगे प्यार में डूबे हुए रोज़ न रह पाए अगर ये मुसीबत से भरे दिन भी गुज़र जाएंगे (बाल स्वरुप राही)
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18-11-2014, 06:51 PM | #1039 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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गर ये आरज़ू ही रही कोई आरज़ू करते, ख़ुद अपनी आग में जलते जिगर लहू करते....... (हिमायत अली)
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18-11-2014, 11:25 PM | #1040 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तुझे खबर भी है तुझको बुला रहा है कोई रहीने ख्वाब-ए-फ़ना को जगा रहा है कोई कदम कदम पे ये एहसास है के तन्हा हूँ कदम कदम पे मुझे याद आ रहा है कोई (जगन्नाथ आज़ाद)
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