08-03-2015, 11:46 PM | #1071 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ख़ुशी तो होगी अगर दश्त के हवाले हुए कोई भी वस्ल की उम्मीद से बहलता नहीं सयाने हो गए सब रोग दिल के पाले हुए दश्त = बियाबान / वस्ल = मिलन (मुज़फ्फर हनफ़ी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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09-03-2015, 03:46 PM | #1072 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये !मंजर भोपाली !
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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13-03-2015, 12:28 PM | #1073 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ये धूप जो धोके से चली आई है इसको दोबारा मिरे घर में दिखाई नहीं देना तै है कि सजा हमको भुगतनी है बहरहाल अबके भी हमें कोई सफ़ाई नहीं देना (मुज़फ्फ़र हनफ़ी)
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13-03-2015, 08:10 PM | #1074 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते फिरते हैं तितलियों कि तरह लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं कब से बैठा हूँ मैं जानम सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा बस तेरा नाम ही मुकम्मल है इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी ----- गुलज़ार
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14-03-2015, 12:02 AM | #1075 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ग़म का सलीका पैदा कर आँसू आँसू दरिया कर आँखें पथरा जायेंगी इतने ख़्वाब न देखा कर (तारिक़ क़मर 'तारिक़')
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14-03-2015, 05:06 PM | #1076 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों !!
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14-03-2015, 08:45 PM | #1077 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मेले की सैर ख्वाहिश-ए-बाग़-ए-चमन न हो भूके ग़रीब दिल की खुदा से लगन न हो सच ही कहा किसी ने भूके भजन न हो (नज़ीर अकबराबादी)
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15-03-2015, 10:43 PM | #1078 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हम उसे आंखों की देहरी नहीं चढ़ने देते नींद आती न अगर ख्वाब तुम्हारे लेकर
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15-03-2015, 11:35 PM | #1079 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
रात के पेड़ पे कल ही देखा था चाँद
बस पक के गिरने ही वाला था सूरज आया था, ज़रा उसकी तलाशी लेना (गुलज़ार जी की त्रिवेणी)
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15-03-2015, 11:41 PM | #1080 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मगर हमें तो तेरा.........इंतज़ार करना था (फ़िराक गोरखपुरी)
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