10-05-2014, 01:01 PM | #101 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल क़तील शिफ़ाई परेशां रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
10-05-2014, 01:14 PM | #102 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल क़तील शिफ़ाई उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू डाल के बाहें बाहों में
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10-05-2014, 01:23 PM | #103 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
ग़ज़ल क़तील शिफ़ाई अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
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14-06-2014, 01:11 AM | #104 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गौंडवी (ADAM GONDAVI)
(मूल नाम: रामनाथ सिंह) जन्म: 22 अक्तूबर 1947 मृत्यु: 18 दिसम्बर 2011 ^ देहाती संस्कारों के देशभक्त कवि-शायर अदम गौंडवी 22 अक्तूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह एवं श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में "अदम गोंडवी" के नाम से सुविख्यात हुए। अदम जी कबीर परंपरा के कवि हैं, अंतर यही कि अदम ने कागज़ कलम छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुर के लिए जरूरी था। अदम गौंडवी कीकलम आम अवामकीभाषा है, वही उसका कथ्य है और वही उसका कलेवर.कविता कीसजी संवरी बनावटी भाषा के लिए आक्रामक विरोध के तेवर में "जल रहा है देश यह बहला रही है कौम को, किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये." दुष्यंत जी ने अपनी ग़ज़लों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है जहाँ से एक एक चीज़ बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके.
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14-06-2014, 01:13 AM | #105 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गौंडवी
मुशायरों में, घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले एक ठेठ देहाती इंसान जिसकी और आपका शायद ध्यान ही न गया हो यदि अचानक माइक पे आ जाए और फिर ऐसी रचनाएँ पढे के आपका ध्यान और कहीं जाए ही न तो समझिए वो इंसान और कोई नहीं अदम गोंडवी हैं. उनकी निपट गंवई अंदाज़ में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है. अदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहजे में बोलने के बजाय वे ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफी से काम लेते हैं। उनके कथन में प्रत्यक्षा और आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता है. वस्तुतः ये गज़लें अपने ज़माने के लोगों से 'ठोस धरती की सतह पर लौट' आने का आग्रह करती प्रतीत होती हैं. 'धरती की सतह पर' एवं 'समय से मुठभेड़' आदि उनके ग़ज़लसंग्रह की कई रचनाएँ जनता कीजुबान पर हैं। अदम जी की शायरी में आज जनता की झल्लाहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद है, ऐसा धार लगा व्यंग है के पाठक का कलेजा चीर कर रख देता है. आप इस किताब का कोई सफा पलटिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए, आपको मेरी बात पर यकीन आ जायेगा. अदम साहब की शायरी में अवाम बसता है उसके सुख दुःख बसते हैं शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं. उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है. सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है. 'धरती की सतह पर' एवं 'समय से मुठभेड़' आदि उनके ग़ज़लसंग्रह हैं। उन्हें अपने जीवन काल में कई सम्मान प्राप्त हुये. वर्ष ।998 में मध्य प्रदेश सरकार ने भी उन्हें 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार प्रदान' किया था।
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14-06-2014, 01:17 AM | #106 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गौंडवी
ग़ज़ल काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
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14-06-2014, 01:19 AM | #107 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गौंडवी
ग़ज़ल न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
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14-06-2014, 01:23 AM | #108 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गौंडवी
ग़ज़ल ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
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16-06-2014, 12:44 AM | #109 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गोंडवी
एक नज़्म (जो कलम की ताकत से पाठक को झकझोरने की क्षमता रखती है) अदम गोंडवी आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
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16-06-2014, 12:46 AM | #110 |
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Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)
अदम गोंडवी
>>>एक नज़्म चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
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