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Old 10-05-2014, 01:01 PM   #101
rajnish manga
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Default Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)



ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
परेशां रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ
सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारों तुम तो सो जाओ


हंसों और हंसते-हंसते डूबते जाओ ख़लाओं में
हमें ये रात भारी है सितारों तुम तो सो जाओ


तुम्हें क्या आज भी कोई अगर मिलने नहीं आया
ये बाज़ी हम ने हारी है सितारों तुम तो सो जाओ


कहे जाते हो रो-रोके हमारा हाल दुनिया से
ये कैसी राज़दारी है सितारों तुम तो सो जाओ


हमें तो आज की शब पौ फटे तक जागना होगा
यही क़िस्मत हमारी है सितारों तुम तो सो जाओ


हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएंगे
अभी कुछ बेक़रारी है सितारों तुम तो सो जाओ


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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 10-05-2014, 01:14 PM   #102
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Default Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)



ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू डाल के बाहें बाहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहो में

क्या क्या ना जफ़ायें दिल पे सही पर तुम से कोई शिकवा न किया
इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में

जहाँ चांदनी रातों में तुम ने खुद हमसे किया इकरार ए वफ़ा
फिर आजहै क्यों हमसे बेगाने तेरी बेरहम निगाहों में

हम भी है वोही, तुम भी वोही ये अपनी अपनी किस्मत है
तुम खेल रहे हो खुशियों से हम डूब गये हैं आहों में

दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े है राहों में


सुप्रसिद्ध गायिका इक़बाल बानों के स्वर में यहाँ ग़ज़ल सुनने के लिये नीचे दिए link पर क्लिक करें:
http://www.dailymotion.com/video/x12...ko-chala_music
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Old 10-05-2014, 01:23 PM   #103
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Default Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)



ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूं तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको


मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सादा दिली मार न डाले मुझको


मैं समंदर भी हूं मोती भी हूं गोतज़ान भी
कोई भी नाम मेरा ले के बुलाले मुझको


तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू न गवां ले मुझको


कल की बात और है मैं अब सा रहूं या न रहूं
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको

ख़ुद को मैं बांट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको


मैं जो कांटा हूं तो चल मुझसे बचाकर दामन
मैं हूं अगर फूल तो जूड़े में सजाले मुझको


मैं खुले दर के किसी घर का हूं समां प्यार
तू दबे पांव कभी आके चुराले मुझको


तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलाने वालो मुझको


वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊं
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको



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Old 14-06-2014, 01:11 AM   #104
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Default Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)

अदम गौंडवी (ADAM GONDAVI)
(मूल नाम: रामनाथ सिंह)

जन्म: 22 अक्तूबर 1947
मृत्यु: 18 दिसम्बर 2011


^
देहाती संस्कारों के देशभक्त कवि-शायर अदम गौंडवी

22 अक्तूबर 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में स्व. श्रीमती मांडवी सिंह एवं श्री देवी कलि सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ जो बाद में "अदम गोंडवी" के नाम से सुविख्यात हुए। अदम जी कबीर परंपरा के कवि हैं, अंतर यही कि अदम ने कागज़ कलम छुआ पर उतना ही जितना किसान ठाकुर के लिए जरूरी था।

अदम गौंडवी कीकलम आम अवामकीभाषा है, वही उसका कथ्य है और वही उसका कलेवर.कविता कीसजी संवरी बनावटी भाषा के लिए आक्रामक विरोध के तेवर में "जल रहा है देश यह बहला रही है कौम को, किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये."

दुष्यंत जी ने अपनी ग़ज़लों से शायरी की जिस नयी राजनीति की शुरुआत की थी, अदम ने उसे उस मुकाम तक पहुँचाने की कोशिश की है जहाँ से एक एक चीज़ बगैर किसी धुंधलके के पहचानी जा सके.
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Last edited by rajnish manga; 16-06-2014 at 12:59 AM.
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Old 14-06-2014, 01:13 AM   #105
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Default Re: लौह-ओ-कलम (स्याही और कलम)

अदम गौंडवी
मुशायरों में, घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफ़ेद गमछा डाले एक ठेठ देहाती इंसान जिसकी और आपका शायद ध्यान ही न गया हो यदि अचानक माइक पे आ जाए और फिर ऐसी रचनाएँ पढे के आपका ध्यान और कहीं जाए ही न तो समझिए वो इंसान और कोई नहीं अदम गोंडवी हैं. उनकी निपट गंवई अंदाज़ में महानगरीय चकाचौंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदा सबसे जुदा और विलक्षण है.

अदम शहरी शायर के शालीन और सुसंस्कृत लहजे में बोलने के बजाय वे ठेठ गंवई दो टूकपन और बेतकल्लुफी से काम लेते हैं। उनके कथन में प्रत्यक्षा और आक्रामकता और तड़प से भरी हुई व्यंग्मयता है.

वस्तुतः ये गज़लें अपने ज़माने के लोगों से 'ठोस धरती की सतह पर लौट' आने का आग्रह करती प्रतीत होती हैं. 'धरती की सतह पर' एवं 'समय से मुठभेड़' आदि उनके ग़ज़लसंग्रह की कई रचनाएँ जनता कीजुबान पर हैं।

अदम जी की शायरी में आज जनता की झल्लाहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद है, ऐसा धार लगा व्यंग है के पाठक का कलेजा चीर कर रख देता है. आप इस किताब का कोई सफा पलटिए और कहीं से भी पढ़ना शुरू कर दीजिए, आपको मेरी बात पर यकीन आ जायेगा.

अदम साहब की शायरी में अवाम बसता है उसके सुख दुःख बसते हैं शोषित और शोषण करने वाले बसते हैं. उनकी शायरी न तो हमें वाह करने के अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है. सीधे सच्चे दिल से कही उनकी शायरी सीधे सादे लोगों के दिलों में बस जाती है.

'धरती की सतह पर' एवं 'समय से मुठभेड़' आदि उनके ग़ज़लसंग्रह हैं। उन्हें अपने जीवन काल में कई सम्मान प्राप्त हुये. वर्ष ।998 में मध्य प्रदेश सरकार ने भी उन्हें 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार प्रदान' किया था।
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Old 14-06-2014, 01:17 AM   #106
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अदम गौंडवी


ग़ज़ल
काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में।


पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में।


आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।


पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में।


जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में।


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अदम गौंडवी


ग़ज़ल
न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़ में रोटी है
,
मुहब्बत हाशिये पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से

अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से

अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें
धूमिलकी विरासत को क़रीने से

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अदम गौंडवी


ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुरसत है पढ़े दिल की क़िताब

इस सदी की तिश्नगी का ज़ख़्म होंठों पर लिए
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब

डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब

चार दिन फुटपाथ के साए में रहकर देखिए
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब

ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुरसत है पढ़े दिल की क़िताब

इस सदी की तिश्नगी का ज़ख़्म होंठों पर लिए
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब

डाल पर मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल
सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब

चार दिन फुटपाथ के साए में रहकर देखिए
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब


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Old 16-06-2014, 12:44 AM   #109
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अदम गोंडवी


एक नज़्म
(जो कलम की ताकत से पाठक को झकझोरने की क्षमता रखती है)
अदम गोंडवी
आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर
मर गई फुलिया बिचारी कि कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी
आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा
मैं इसे कहता हूं सरजूपार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई
लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है
जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्ना बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी
>>>

__________________
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Old 16-06-2014, 12:46 AM   #110
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अदम गोंडवी


>>>एक नज़्म
चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में
होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें जोर था सैलाब था
जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा काका तू कैसे मौन है
पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं
कच्चा खा जाएँगे ज़िन्दा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें
और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें

बोला कृष्ना से बहन सो जा मेरे अनुरोध से
बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में
वे इकट्ठे हो गए थे सरचंप के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लम्बी नोक पर
देखिए सुखराज सिंग बोले हैं खैनी ठोंक कर
>>>

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