30-05-2013, 05:48 PM | #101 |
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30-05-2013, 05:50 PM | #102 |
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भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है????
1. सड़क का उद्दघाटन नारियल फोड़ कर ही क्यों होता है, नमाज़ पढ़ कर या दुसरे धर्मों की विधि के अनुसार क्यों नहीं?? 2. थाने में मंदिर ही क्यों है, मस्जिद या दुसरे धर्मों के पूजा स्थल क्यों नहीं?? 3. सरकारी भवन निर्माण से पहले भूमि पूजन ही क्यों होता है, दुसरे धर्मों के अनुसार प्रार्थना क्यों नहीं ?? 4. सरकरी कार्यालयों में गणेश की मूर्ति क्यों लगी रहती है, दुसरे धर्मों के प्रतीक क्यों नहीं ?? 5. सरकारी स्कूलों में सरस्वती पूजा ही क्यों होती है, दुसरे धर्म के पर्व क्यों नहीं ?? 6. सेना में राजपूत बटालियन है, शिख बटालियन है, मुस्लिम/इसाई बटालियन क्यों नहीं ??? 7. न्यायलय में इंसाफ की देवी होती दुसरे धर्मों के इंसाफ के प्रतीक क्यों नहीं?? ये मेरे निजी सवाल है प्लीज इसे धर्म से जोड़कर न देखा जाए ॥
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30-05-2013, 05:53 PM | #103 |
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30-05-2013, 05:54 PM | #104 |
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30-05-2013, 06:35 PM | #105 |
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30-05-2013, 06:37 PM | #106 |
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Of Two Sons-In-Law ...
Interesting Study of Two Sons-In-Law - Robert Vadra, son-in-law of Sonia Gandhi & Gurunath Meiyappan, the hitherto unknown son-in-law of N Srinivasan - And Their Contrasting Treatment. * The contrasting tale of two sons-in-law - S Gurumurthy, 30 May 2013 1 - Sons-in-law of wealthy, powerful families make news ... 2 - Robert Vadra, son-in-law of Sonia Gandhi, was in the news for building, in just four years, real estate empire worth couple of billion Dollars [Rs 11,000 crore] ... She certified Vadra as honest, directed her party to defend her son-in-law ... 3 - Gurunath Meiyappan, the hitherto unknown son-in-law of N Srinivasan, President of Board of Control for Cricket of India [BCCI] ... Obviously a small time punter, Gurunath is in the news for betting on IPL cricket match results ... - http://newindianexpress.com/opinion/...cle1611654.ece
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30-05-2013, 10:20 PM | #107 |
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30-05-2013, 10:21 PM | #108 |
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30-05-2013, 10:22 PM | #109 |
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30-05-2013, 10:34 PM | #110 |
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रविवार को कोलकाता के ईडन गार्डन में खेले गए आईपीएल के फाइनल के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों ने जब बीसीसीआई चीफ एन. श्रीनिवासन से उनके इस्तीफे के बारे में सवाल किया तो उन्होंने उसी ढिठाई के साथ इस्तीफा देने से इंकार कर दिया, जिस ढिठाई के साथ वह पिछले कई सालों से बीसीसीआई और भारतीय क्रिकेट में मनमानी करते आए हैं।
आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे के बाद भारतीय क्रिकेट जगत में भूचाल आया हुआ है। लाखों-करोड़ों क्रिकेट फैंस इन खुलासों से निराश हैं। लेकिन बीसीसीआई के कर्ता-धर्ताओं को इस बात की कतई परवाह नहीं है कि इससे भारतीय क्रिकेट की इमेज या भारतीय क्रिकेट को कितना नुकसान पहुंच रहा है। भारतीय क्रिकेट की विडंबना यही है कि इसे वो लोग चलाते आए है जिनमें से ज्यादातर ने कभी हाथ में क्रिकेट का बैट तक नहीं थामा। अगर आप आज के बीसीसीआई की टीम पर नजर डालें तो उनमें आपको क्रिकेटर कम और श्रीनिवासन जैसे घाघ बिजनसमैन और राजीव शुक्ल, अरुण जेटली से लेकर नरेन्द्र मोदी, उमर अब्दुला और ज्योतिरादित्य सिधिंया जैसे धुरंधर पॉलिटिशन नजर आएंगे। दरअसल भारतीय क्रिकेट की समस्या श्रीनिवासन, ललित मोदी या राजीव शुक्ल जैसे लोग नहीं है, बल्कि इसके मूल में है बीसीसीआई। जी हां, कारण पहली बात तो यह एक ऐसी संस्था है जो भारतीय क्रिकेट टीम को चलाती है लेकिन सरकार के या देश के प्रति उसकी कोई जवाबदेही नहीं है। आईसीएल के साथ एक विवाद के दौरान सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफीडेविट में बीसीसाई ने कहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम भारत की नहीं बल्कि बीसीसीआई की टीम है जो भारत के लिए नहीं बल्कि बीसीसीआई के लिए खेलती है। जरा सोचिए जिस क्रिकेट टीम को करोडों लोग इतना प्यार करते हैं, वह देश की नहीं बल्कि एक प्राइवेट संस्था की टीम है। दूसरी बात, बीसीसीआई सरकार से सारी सुविधाएं तो लेती है लेकिन देश और सरकार के प्रति किसी भी जवाबदेही से साफ इनकार करती है। उसे आरटीआई के दायरे में आने से भी गुरेज है। वह खुद पर किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं चाहती। ज्यादा समय पहले की बात नहीं है। साल 1996 के बाद बीसीसीआई की कमाई का जरिया बढ़ना शुरू हुआ। इसका श्रेय जाता है जगमोहन डालमिया को, जिन्होंने बीसीसीआई को पैसा कमाना सिखाया। लेकिन असली वजह थी भारतीय क्रिकेट टीम का प्रदर्शन जो दिन-ब-दिन सुधरता जा रहा था। इसमें सचिन, सौरभ, द्रविड़, लक्ष्मण, कुंबले जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों के आगमन ने उसे दुनिया की टॉप टीमों की कतार में ला खड़ा किया था। टीम इंडिया की सफलता ने बीसीसीआई का कद और रुतबा तेजी से बढ़ाया। डालमिया गए तो शरद पवार ने बीसीसीआई पर राज किया। फिर आया श्रीनिवासन का दौर। इस दौरान बीसीसीआई दुनिया की सबसे धनी खेल संस्थाओं में से एक बन गई। लेकिन इतने से ही बीसीसीआई का मन नहीं भरा और उसने आईपीएल को लॉन्च किया। बस इसके बाद बीसीसीआई ने भारतीय क्रिकेट को बाजार में तब्दील कर दिया। उसकी धाक इतनी है कि आईसीसी की भी उसके सामने एक नहीं चलती। आजकल तो दुनिया भर की क्रिकेट को बीसीसीआई ही नियंत्रित करती है न कि आईसीसी। दुनिया के बाकी बोर्ड भी उसकी पैसे की चमक के आगे बेबस नजर आते हैं और चुपचाप उसकी मनमानी सहते रहते हैं। इतना पैसा होने के बावजूद बीसीसीआई कभी भारतीय क्रिकेट टीम को एक चैम्पियन टीम नहीं बना पाई। टीम के पास ढंग का एक तेज गेंदबाज तक नहीं है। टीम का प्रदर्शन विदेशों में बद से बदतर होता जा रहा है। लेकिन बीसीसीआई को पैसा कमाने और बोर्ड में जारी कुर्सी के खेल से फुर्सत ही कहां है! फिलहाल श्रीनिवासन पर चौतरफा दबाव है कि वह बोर्ड प्रेजिडेंट के पद से इस्तीफा दे दें। उनके गले की फांस बने हैं उनके दामाद और चेन्नै सुपरकिंग्स के मालिक मयप्पन, जो स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों में हिरासत में हैं। सारा आरोप सिर्फ एक शख्स पर डालने की रणनीति चल रही है। लगभग 20 दिनों तक खामोश रहने के बाद राजीव शुक्ल अब नैतिकता की दुहाई देते हुए श्रीनिवासन से पद छोड़ने की अपील कर रहे हैं। राजीव शुक्ला से पूछा जाना चाहिए कि आईपीएल की गवर्निंग कॉउंसिल का चीफ होने के नाते सबसे पहले तो उन्हें ही इस्तीफा देना चाहिए था। आखिर आईपीएल को ठीक ढंग से संचालित करने की जिम्मेदारी उनकी ही थी। लेकिन इस बंदरबांट के खेल में हर कोई साझेदार है। हैरत की बात तो यह है कि हर मुद्दे पर सर्वसम्मति से सरकार के खिलाफ खड़ी नजर आने वाली बीजेपी फिक्सिंग के मुद्दे पर कांग्रेस की ही तरह न सिर्फ चुप्पी साधे हुए बल्कि उसके साथ भी खड़ी नजर आती है। राजीव शुक्ल और अरुण जेटली मीटिंग करके इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि श्रीनिवासन को इस्तीफा दे देना चाहिए। दरअसल उन दोनों की चिंता क्रिकेट नहीं बल्कि बीसीसीआई के चीफ का पद है। शह-मात का खेल शुरू हो चुका है। श्रीनिवासन की विदाई भी लगभग तय है। लेकिन क्रिकेट का कोई भला होने वाला नहीं है। अगला बोर्ड प्रेजिडेंट श्रीनिवासन जैसी मनमानी नहीं करेगा इस बात की क्या गारंटी है? जहां तक रही फिक्सिंग की सचाई सामने आने की बात तो सिर्फ 3 क्रिकेटरों, विंदू दारा सिंह, और मयप्पन की गिरफ्तारी से कुछ होने वाला नहीं है। असली मास्टरमाइंड दुबई में बैठा है लेकिन दिल्ली-मुंबई की पुलिस उसका कुछ बिगाड़ना तो दूर वहां तक पहुंच भी नहीं पाएगी। तो इस सारी कवायद का मतलब क्या है? क्या इससे कुछ होगा? होगा गिरफ्तार लोगों में से कुछ को सजा होगी, श्रीनिवासन इस्तीफा देंगे। बीसीसीआई की जांच कमिटी अपनी रिपोर्ट में लीपापोती करेगी। कुछ खिलाड़ियों को प्रतिबंधित करने की नौटंकी होगी। बस फिर जैसे इस देश ने बहुत बड़े हादसों और घोटालों को भुला दिया वैसे इसे भी एक बुरी याद की तरह भूल जाएंगे। आईपीएल अगले साल फिर जोश भरेगा, शोर मचाएगा। बीसीसीआई कमाई के नए रेकॉर्ड बनाएगी। पॉलिटिशन और बिजनसमैन का दबदबा उसमें बढ़ता जाएगा। लेकिन जो नहीं बदलेगा वह है भारतीय क्रिकेट की नियति। काश कि कोई बीसीसीआई को ही अरेस्ट करता या उस पर ही प्रतिबंध लग जाता! क्योंकि बीसीसीआई सरकार तो है नहीं कि जो पांच साल बाद चुनावों का सामना करने के लिए जनता के सामने होगी और आपने गलत कामों के लिए चुनाव हार जाएगी। अगर इस संस्था पर रोक नहीं लगाई गई तो एक के बाद दूसरे श्रीनिवासन ऐसे ही क्रिकेट का कलंक बनकर नियमों की धज्जियां उड़ाते रहेंगे। भारतीय क्रिकेट को बुराइयों से बचाने के लिए बीसीसीआई पर नकेल कसना जरूरी है। उसमें सुधार किए बिना फिक्सिंग और क्रिकेट में जारी बुराइयों को दूर करना मुश्किल है। हर बार कुछ खिलाड़ियों को सजा देकर अपनी पीठ थपथपा लेने वाले बोर्ड की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने वाला कोई नहीं है। source
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