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#101 |
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![]() एक बार नसरुद्दीन अपनी बहन से मिलने उसके गाँव जा रहे थे। रास्ते में उसे डकैतों ने घेर लिया। डकैतों को नसरुद्दीन के बुद्धिमान और सुल्तान के प्रिय होने के बारे में पता था। डकैतों के सरदार ने उसे एक कद्दू देते हुए कहा - "तुम्हें इस कद्दू का सही वजन बताना है। यदि तुमने इसका गलत वज़न बताया तो तुम्हारे पास मौजूद सारा धन लूट लिया जाएगा और यदि तुमने इसका सही वजन बता दिया तो तुम्हें जाने दिया जाएगा। " चूंकि नसरुद्दीन अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति थे, इसलिए एक पल भी गंवाए बिना उन्होंने कहा कि कद्दू का वज़न सरदार के सिर के वज़न के बराबर है। नसरुद्दीन के उत्तर की सत्यता को जांचने के लिए सरदार को अपना सिर कलम करना पड़ता। नसरुद्दीन के बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर पर वह जोर से हंसा और नसरुद्दीन को जाने की अनुमति प्रदान की। |
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#102 |
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अनूठा तर्क
किसी ने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा - "तुम्हारी उम्र क्या है?" मुल्ला ने उत्तर दिया - "अपने भाई से तीन वर्ष बड़ा हूं।" "तुम यह कैसे जानते हो?" - उसने फिर पूछा। "पिछले वर्ष मैंने अपने भाई को यह कहते हुए सुना था कि मैं उससे दो वर्ष बड़ा हूं। इस बात को सुने एक वर्ष हो गया है। इसलिए अब मैं उससे तीन वर्ष बड़ा हो गया हूं। और जल्दी ही मैं उसका दादा कहलाने लायक बड़ा हो जाऊंगा।" |
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#103 |
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कटोरा धोना
एक भिक्षु ने जोसु से कहा -"मैने अभी -अभी मठ में प्रवेश किया है। कृपया मुझे शिक्षा दीजिए।' जोसू ने पूछा - "क्या तुमने चावल खा लिया?' भिक्षु ने उत्तर दिया - "हाँ' तब जोसू ने कहा - "तो तुम्हारे लिए अच्छा यह होगा कि तुम सबसे पहले अपना कटोरा धो।' तब जाकर भिक्षु की आँखें खुलीं। "जो बहुत स्पष्ट है,उसे देखना कठिन है।' एक बेवकूफ हाथ में लालटेन लिए आग को ढूंढ रहा था। यदि उसे आग के बारे में पता होता, तो वह काफी पहले ही चावल पका चुका होता। |
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#104 |
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उत्कंठा
एक घमंडी शिष्य अन्य लोगों को सत्य की शिक्षा प्रदान करना चाहता था। उसने अपने गुरू से मंशा जाहिर की। गुरू ने कहा - प्रतीक्षा करो। उसके बाद हर वर्ष वह शिष्य अपने गुरू से आज्ञा लेने पहुँच जाता और उसके गुरू एक ही उत्तर देते - "थोड़ी प्रतीक्षा करो।' एक दिन उसने अपने गुरू से कहा - "आखिर मैं कब शिक्षा प्रदान योग्य हो पाऊँगा?' गुरू ने उत्तर दिया -"जब तुम्हारे मन से दूसरों को उपदेश देने की उत्कंठा समाप्त हो जाए। ' |
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#105 |
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महानता का प्रतीक - दयालुता
एक बार समर्थ गुरू रामदास अपने शिष्यों के साथ भ्रमण पर थे। जब वे एक गन्ने के खेत के पास के गुजरे तो उनके कुछ शिष्य गन्ना तोड़कर खाने लगे और मीठे गन्नों का आनंद लेने लगे। अपनी फसल का नुक्सान होते देख खेत का मालिक डंडा लेकर उन पर टूट पड़ा। गुरू को यह देख बहुत कष्ट हुआ कि उनके शिष्यों ने स्वाद के लालच में आपत्तिजनक रूप से अनुशासन को तोड़ा। अगले दिन वे सभी छत्रपति शिवाजी के महल में पहुँचे जहाँ उनका जोरदार स्वागत हुआ। परंपरागत स्नान के अवसर पर शिवाजी स्वयं उपस्थित हुये। जब गुरू रामदास ने अपने वस्त्र उतारे तो शिवाजी यह देखकर दंग रह गए कि उनकी पीठ पर डंडे की पिटाई के लाल निशान बने हुए थे। यह समर्थ गुरू रामदास की संवेदनशीलता ही थी कि उन्होंने अपने शिष्यों पर होने वाले वार को अपनी पीठ पर झेला। शिवाजी ने गन्ने के खेत के मालिक को बुलाया। जब वह भय से कांपता हुआ शिवाजी और समर्थ गुरू रामदास के समक्ष प्रस्तुत हुआ, तब शिवाजी ने गुरू से मनचाहा दंड देने को कहा। लेकिन रामदास ने अपने शिष्यों की गलती स्वीकार की और किसान को माफ करते हुए हमेशा के लिये कर मुक्त खेती का आशीर्वाद प्रदान किया। |
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#106 |
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एक मीटिंग यमराज के साथ
एक शहर में अलादीन नाम का बेहद धनी व्यवसायी रहता था. उसके ढेरों नौकर चाकर थे और वह उन सबसे सलीके से पेश आता था और सभी अलादीन की इज्जत करते थे. एक दिन सुबह सुबह अलादीन ने अपने सर्वाधिक प्रिय नौकर मुस्तफा को कुछ कीमती चीजें लाने के लिए बाजार भेजा. थोड़ी ही देर में मुस्तफ़ा बदहवास, हाँफता-दौड़ता आया. उसका चेहरा भयभीत था जैसे किसी भूत को देख लिया हो. अलादीन ने पूछा कि आखिर हुआ क्या. मुस्तफा ने कहा कि वो बाद में बताएगा कि माजरा क्या है. अभी तो उसे तत्काल शहर से बीस मील दूर इस्तांबूल दो घंटे के भीतर पहुँचना है, इसीलिए उसे सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा दिया जाए. अलादीन ने मुस्तफ़ा को घोड़ा देकर विदा किया. परंतु उससे रहा नहीं गया और वह खुद बाजार गया कि आखिर वहाँ हुआ क्या था और पता तो चले कि माजरा क्या है. अलादीन ने वहाँ यमराज को बैठे पाया. अलादीन का माथा ठनका. उसने यमराज से पूछा कि क्या आपको देखकर ही मुस्तफ़ा भयभीत होकर इस्तांबूल की ओर भागा है? यमराज ने जवाब दिया – भयभीत होकर गया है यह तो नहीं कह सकता, मगर हाँ, उसे यहाँ देखकर मुझे भी बड़ा ताज्जुब हुआ था कि वो यहाँ क्या कर रहा है क्योंकि दो घंटे में तो इस्तांबूल में मेरी उसके साथ मीटिंग है. |
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#107 |
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स्वधर्म
एक साधु गंगा में स्नान कर रहे थे. गंगा की धारा में बहता हुआ एक बिच्छू चला जा रहा था. वह पानी की तेज धारा से बच निकलने की जद्दोजहद में था. साधु ने उसे पकड़ कर बाहर करने की कोशिश की, मगर बिच्छू ने साधु की उँगली पर डंक मार दिया. ऐसा कई बार हुआ. पास ही एक व्यक्ति यह सब देख रहा था. उससे रहा नहीं गया तो उसने साधु से कहा – महाराज, हर बार आप इसे बचाने के लिए पकड़ते हैं और हर बार यह आपको डंक मारता है. फिर भी आप इसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे बह जाने क्यों नहीं देते. साधु ने जवाब दिया – डंक मारना बिच्छू की प्रकृति और उसका स्वधर्म है. यदि यह अपनी प्रकृति नहीं बदल सकता तो मैं अपनी प्रकृति क्यों बदलूं? दरअसल इसने आज मुझे अपने स्वधर्म को और अधिक दृढ़ निश्चय से निभाने को सिखाया है. "आपके आसपास के लोग आप पर डंक मारें, तब भी आप अपनी सहृदयता न छोड़ें " |
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#108 |
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जैसा पद वैसी भाषा
एक बार एक राजा अपने मंत्री व अंगरक्षक के साथ शिकार पर गया. और जैसा कि कहानियों में होता है, तीनों घने जंगल में अलग हो गए और रास्ता भटक गए. रास्ते की तलाश में राजा को एक जन्मांध साधु मिला जो साधना में रत था. राजा ने साधु को प्रणाम किया और बड़े ही आदर से पूछा – ऋषिराज, यदि आपकी साधना में विघ्न न हो तो कृपया मुझे यहाँ से बाहर निकलने का रास्ता बता सकेंगे? साधु ने रास्ता बता दिया. कुछ देर के बाद मंत्री भी भटकता हुआ वहाँ आ पहुँचा. उसने साधु से रास्ता पूछा – साधु महाराज, इधर से बाहर निकलने का रास्ता किधर से है? साधु ने रास्ता बताया और यह भी कहा कि राजा अभी थोड़ी देर पहले ही रास्ता पूछकर गए हैं. अंत में भटकता हुआ अंगरक्षक भी वहाँ साधु के पास पहुँचा और भाला ठकठकाते हुए साधु से रास्ता पूछा – ओए साधु, इधर घटिया जंगल से निकलने का रास्ता तो जरा बता! साधु ने कहा – सिपाही, तुम्हारे राजा और मंत्री भी रास्ता भटक कर इधर आए थे और अभी ही बाईं ओर के रास्ते गए हैं. साधु का शिष्य अंदर कुटिया में यह सब सुन रहा था. उससे रहा न गया. वह बाहर आया और पूछा – बाबा, आप तो जन्मांध हैं, फिर आपने इन तीनों को ठीक ठीक कैसे पहचान लिया? साधु ने कहा – व्यक्ति की भाषा उसका दर्पण होता है – वे अपनी वाणी से अपने व्यक्तित्व का बखान खुद ही कर रहे थे! |
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#109 |
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तलवार बाजीका रहस्य
ताजीमा नो कामी राजा सोगन के तलबारबाजी उस्ताद थे। एक दिन शोगन का एक अंगरक्षक ताजीमा के पास तलबार बाजी सीखने आया। ताजीमा ने उससे कहा -"मैंने तुम्हें बारीकी से देखा है और तुम अपने आप में उस्ताद हो। अपना शिष्य बनाने के पूर्व मैं तुमसे यह जानना चाहूँगा कि तुमने किससे तलवारबाजी सीखी है।' अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैंने कभी भी किसी से भी प्रशिक्षण नहीं लिया।' गुरू ताजीमा बोले - "तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते। मैं उड़ती चिड़िया पहचानता हूँ।' अंगरक्षक ने विनम्रतापूर्वक कहा - "मैं आपकी बात नहीं काटना चाहता गुरूदेव। पर मैंने वास्तव में तलवारबाजी का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है।' उसके बाद गुरू ताजीमा ने अंगरक्षक के साथ कुछ देर तक तलवारबाजी का अभ्यास किया। फिर उसे रोकते हुए वे बोले - "चुंकि तुम यह कह रहे हो कि तुमने किसी से तलवारबाजी नहीं सीखी, इसलिए मैं मान लेता हूँ। लेकिन तुम अपने आप में निपुण हो। मुझे अपने बारे में कुछ और बताओ।' अंगरक्षक ने उत्तर दिया - "मैं सिर्फ यह बताना चाहता हूँ कि जब मैं बच्चा था तब मुझसे एक तलवारबाजी गुरू ने यह कहा था कि आदमी को कभी मृत्यु का भय नहीं होना चाहिये। मैं तब तक मृत्यु के प्रश्न से जूझता रहा जब तक कि मेरे मन में जरा सी भी चिंता रही।' ताजीमा बोले - "यही तो मुख्य बात है। तलवारबाजी का सर्वोपरि रहस्य यही है कि तलवारबाज मृत्यु के भय से मुक्त हो। तुम्हें किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। तुम अपने आप में उस्ताद हो।' |
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#110 |
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ
एक गांव में एक राक्षस रहता था जो गांव के बच्चों को परेशान करता रहता था. एक दिन बाहर गांव से एक बालक अपने भाइयों से मिलने आया. जब उसने राक्षस के बारे में जाना तो अपने भाइयों से कहा – “तुम सब मिलकर उसका मुकाबला कर उसे भगा क्यों नहीं देते?” “क्या तुम पागल हो? वो तो कितना विशाल और दानवाकार है, और हम उसके सामने पिद्दी!” “पर, इसी में तो तुम्हारी जीत छुपी है. उसे कहीं भी निशाना लगा कर मारोगे तो तुम्हारा निशाना चूकेगा नहीं. उसका निशाना जरूर चूक सकता है!” |
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