08-12-2010, 04:09 PM | #101 |
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Re: व्याकरण
निर्माण=बनाना 51. निर्जर=देवता निर्झर=झरना 52. मत=राय मति=बुद्धि 53. नेक=अच्छा नेकु=तनिक 54. पथ=राह पथ्य=रोगी का आहार 55. मद=मस्ती मद्य=मदिरा 56. परिणाम=फल परिमाण=वजन 57. मणि=रत्न फणी=सर्प 58. मलिन=मैला म्लान=मुरझाया हुआ 59. मातृ=माता मात्र=केवल 60. रीति=तरीका रीता=खाली 61. राज=शासन राज=रहस्य 62. ललित=सुंदर ललिता=गोपी 63. लक्ष्य=उद्देश्य लक्ष=लाख 64. वक्ष=छाती वृक्ष=पेड़ 65. वसन=वस्त्र व्यसन=नशा, आदत 66. वासना=कुत्सित विचार बास=गंध 67. वस्तु=चीज वास्तु=मकान 68. विजन=सुनसान व्यजन=पंखा 69. शंकर=शिव संकर=मिश्रित 70. हिय=हृदय हय=घोड़ा 71. शर=बाण सर=तालाब 72. शम=संयम सम=बराबर 73. चक्रवाक=चकवा चक्रवात=बवंडर |
08-12-2010, 04:10 PM | #102 |
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Re: व्याकरण
74. शूर=वीर
सूर=अंधा 75. सुधि=स्मरण सुधी=बुद्धिमान 76. अभेद=अंतर नहीं अभेद्य=न टूटने योग्य 77. संघ=समुदाय संग=साथ 78. सर्ग=अध्याय स्वर्ग=एक लोक 79. प्रणय=प्रेम परिणय=विवाह 80. समर्थ=सक्षम सामर्थ्य=शक्ति 81. कटिबंध=कमरबंध कटिबद्ध=तैयार 82. क्रांति=विद्रोह क्लांति=थकावट 83. इंदिरा=लक्ष्मी इंद्रा=इंद्राणी |
08-12-2010, 04:11 PM | #103 |
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Re: व्याकरण
6. अनेकार्थक शब्द
1. अक्षर= नष्ट न होने वाला, वर्ण, ईश्वर, शिव। 2. अर्थ= धन, ऐश्वर्य, प्रयोजन, हेतु। 3. आराम= बाग, विश्राम, रोग का दूर होना। 4. कर= हाथ, किरण, टैक्स, हाथी की सूँड़। 5. काल= समय, मृत्यु, यमराज। 6. काम= कार्य, पेशा, धंधा, वासना, कामदेव। 7. गुण= कौशल, शील, रस्सी, स्वभाव, धनुष की डोरी। 8. घन= बादल, भारी, हथौड़ा, घना। 9. जलज= कमल, मोती, मछली, चंद्रमा, शंख। 10. तात= पिता, भाई, बड़ा, पूज्य, प्यारा, मित्र। 11. दल= समूह, सेना, पत्ता, हिस्सा, पक्ष, भाग, चिड़ी। 12. नग= पर्वत, वृक्ष, नगीना। 13. पयोधर= बादल, स्तन, पर्वत, गन्ना। 14. फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले की नोक। 15. बाल= बालक, केश, बाला, दानेयुक्त डंठल। 16. मधु= शहद, मदिरा, चैत मास, एक दैत्य, वसंत। 17. राग= प्रेम, लाल रंग, संगीत की ध्वनि। 18. राशि= समूह, मेष, कर्क, वृश्चिक आदि राशियाँ। 19. लक्ष्य= निशान, उद्देश्य। 20. वर्ण= अक्षर, रंग, ब्राह्मण आदि जातियाँ। 21. सारंग= मोर, सर्प, मेघ, हिरन, पपीहा, राजहंस, हाथी, कोयल, कामदेव, सिंह, धनुष भौंरा, मधुमक्खी, कमल। 22. सर= अमृत, दूध, पानी, गंगा, मधु, पृथ्वी, तालाब। 23. क्षेत्र= देह, खेत, तीर्थ, सदाव्रत बाँटने का स्थान। 24. शिव= भाग्यशाली, महादेव, श्रृगाल, देव, मंगल। 25. हरि= हाथी, विष्णु, इंद्र, पहाड़, सिंह, घोड़ा, सर्प, वानर, मेढक, यमराज, ब्रह्मा, शिव, कोयल, किरण, हंस। |
08-12-2010, 04:34 PM | #106 |
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Re: व्याकरण
अध्याय 23
विराम-चिह्न विराम-चिह्न- ‘विराम’ शब्द का अर्थ है ‘रुकना’। जब हम अपने भावों को भाषा के द्वारा व्यक्त करते हैं तब एक भाव की अभिव्यक्ति के बाद कुछ देर रुकते हैं, यह रुकना ही विराम कहलाता है। इस विराम को प्रकट करने हेतु जिन कुछ चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, विराम-चिह्न कहलाते हैं। वे इस प्रकार हैं- 1. अल्प विराम (,)- पढ़ते अथवा बोलते समय बहुत थोड़ा रुकने के लिए अल्प विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सीता, गीता और लक्ष्मी। यह सुंदर स्थल, जो आप देख रहे हैं, बापू की समाधि है। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ। 2. अर्ध विराम (- जहाँ अल्प विराम की अपेक्षा कुछ ज्यादा देर तक रुकना हो वहाँ इस अर्ध-विराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सूर्योदय हो गया; अंधकार न जाने कहाँ लुप्त हो गया। 3. पूर्ण विराम (।)- जहाँ वाक्य पूर्ण होता है वहाँ पूर्ण विराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। वह फूल तोड़ता है। 4. विस्मयादिबोधक चिह्न (!)- विस्मय, हर्ष, शोक, घृणा आदि भावों को दर्शाने वाले शब्द के बाद अथवा कभी-कभी ऐसे वाक्यांश या वाक्य के अंत में भी विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे- हाय ! वह बेचारा मारा गया। वह तो अत्यंत सुशील था ! बड़ा अफ़सोस है ! 5. प्रश्नवाचक चिह्न (?)- प्रश्नवाचक वाक्यों के अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-किधर चले ? तुम कहाँ रहते हो ? 6. कोष्ठक ()- इसका प्रयोग पद (शब्द) का अर्थ प्रकट करने हेतु, क्रम-बोध और नाटक या एकांकी में अभिनय के भावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। जैसे-निरंतर (लगातार) व्यायाम करते रहने से देह (शरीर) स्वस्थ रहता है। विश्व के महान राष्ट्रों में (1) अमेरिका, (2) रूस, (3) चीन, (4) ब्रिटेन आदि हैं। नल-(खिन्न होकर) ओर मेरे दुर्भाग्य ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाँधकर उसे भी जीवन-भर कष्ट दिया। 7. निर्देशक चिह्न (-)- इसका प्रयोग विषय-विभाग संबंधी प्रत्येक शीर्षक के आगे, वाक्यों, वाक्यांशों अथवा पदों के मध्य विचार अथवा भाव को विशिष्ट रूप से व्यक्त करने हेतु, उदाहरण अथवा जैसे के बाद, उद्धरण के अंत में, लेखक के नाम के पूर्व और कथोपकथन में नाम के आगे किया जाता है। जैसे-समस्त जीव-जंतु-घोड़ा, ऊँट, बैल, कोयल, चिड़िया सभी व्याकुल थे। तुम सो रहे हो- अच्छा, सोओ। द्वारपाल-भगवन ! एक दुबला-पतला ब्राह्मण द्वार पर खड़ा है। 8. उद्धरण चिह्न (‘‘ ’’)- जब किसी अन्य की उक्ति को बिना किसी परिवर्तन के ज्यों-का-त्यों रखा जाता है, तब वहाँ इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसके पूर्व अल्प विराम-चिह्न लगता है। जैसे-नेताजी ने कहा था, ‘‘तुम हमें खून दो, हम तुम्हें आजादी देंगे।’’, ‘‘ ‘रामचरित मानस’ तुलसी का अमर काव्य ग्रंथ है।’’ 9. आदेश चिह्न (:- )- किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे-सर्वनाम के प्रमुख पाँच भेद हैं :- (1) पुरुषवाचक, (2) निश्चयवाचक, (3) अनिश्चयवाचक, (4) संबंधवाचक, (5) प्रश्नवाचक। 10. योजक चिह्न (-)- समस्त किए हुए शब्दों में जिस चिह्न का प्रयोग किया जाता है, वह योजक चिह्न कहलाता है। जैसे-माता-पिता, दाल-भात, सुख-दुख, पाप-पुण्य। 11. लाघव चिह्न (.)- किसी बड़े शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य लगा देते हैं। जैसे-पंडित=पं., डॉक्टर=डॉ., प्रोफेसर=प्रो.। |
08-12-2010, 04:36 PM | #107 |
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Re: व्याकरण
अध्याय 24
वाक्य-प्रकरण वाक्य- एक विचार को पूर्णता से प्रकट करने वाला शब्द-समूह वाक्य कहलाता है। जैसे- 1. श्याम दूध पी रहा है। 2. मैं भागते-भागते थक गया। 3. यह कितना सुंदर उपवन है। 4. ओह ! आज तो गरमी के कारण प्राण निकले जा रहे हैं। 5. वह मेहनत करता तो पास हो जाता। ये सभी मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनियों के समूह हैं। अतः ये वाक्य हैं। वाक्य भाषा का चरम अवयव है। वाक्य-खंड वाक्य के प्रमुख दो खंड हैं- 1. उद्देश्य। 2. विधेय। 1. उद्देश्य- जिसके विषय में कुछ कहा जाता है उसे सूचकि करने वाले शब्द को उद्देश्य कहते हैं। जैसे- 1. अर्जुन ने जयद्रथ को मारा। 2. कुत्ता भौंक रहा है। 3. तोता डाल पर बैठा है। इनमें अर्जुन ने, कुत्ता, तोता उद्देश्य हैं; इनके विषय में कुछ कहा गया है। अथवा यों कह सकते हैं कि वाक्य में जो कर्ता हो उसे उद्देश्य कह सकते हैं क्योंकि किसी क्रिया को करने के कारण वही मुख्य होता है। 2. विधेय- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, अथवा उद्देश्य (कर्ता) जो कुछ कार्य करता है वह सब विधेय कहलाता है। जैसे- 1. अर्जुन ने जयद्रथ को मारा। 2. कुत्ता भौंक रहा है। 3. तोता डाल पर बैठा है। इनमें ‘जयद्रथ को मारा’, ‘भौंक रहा है’, ‘डाल पर बैठा है’ विधेय हैं क्योंकि अर्जुन ने, कुत्ता, तोता,-इन उद्देश्यों (कर्ताओं) के कार्यों के विषय में क्रमशः मारा, भौंक रहा है, बैठा है, ये विधान किए गए हैं, अतः इन्हें विधेय कहते हैं। उद्देश्य का विस्तार- कई बार वाक्य में उसका परिचय देने वाले अन्य शब्द भी साथ आए होते हैं। ये अन्य शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं। जैसे- 1. सुंदर पक्षी डाल पर बैठा है। 2. काला साँप पेड़ के नीचे बैठा है। इनमें सुंदर और काला शब्द उद्देश्य का विस्तार हैं। उद्देश्य में निम्नलिखित शब्द-भेदों का प्रयोग होता है- (1) संज्ञा- घोड़ा भागता है। (2) सर्वनाम- वह जाता है। (3) विशेषण- विद्वान की सर्वत्र पूजा होती है। (4) क्रिया-विशेषण- (जिसका) भीतर-बाहर एक-सा हो। (5) वाक्यांश- झूठ बोलना पाप है। वाक्य के साधारण उद्देश्य में विशेषणादि जोड़कर उसका विस्तार करते हैं। उद्देश्य का विस्तार नीचे लिखे शब्दों के द्वारा प्रकट होता है- (1) विशेषण से- अच्छा बालक आज्ञा का पालन करता है। (2) संबंध कारक से- दर्शकों की भीड़ ने उसे घेर लिया। (3) वाक्यांश से- काम सीखा हुआ कारीगर कठिनाई से मिलता है। विधेय का विस्तार- मूल विधेय को पूर्ण करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है वे विधेय का विस्तार कहलाते हैं। जैसे-वह अपने पैन से लिखता है। इसमें अपने विधेय का विस्तार है। कर्म का विस्तार- इसी तरह कर्म का विस्तार हो सकता है। जैसे-मित्र, अच्छी पुस्तकें पढ़ो। इसमें अच्छी कर्म का विस्तार है। क्रिया का विस्तार- इसी तरह क्रिया का भी विस्तार हो सकता है। जैसे-श्रेय मन लगाकर पढ़ता है। मन लगाकर क्रिया का विस्तार है। |
08-12-2010, 04:38 PM | #108 |
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Re: व्याकरण
वाक्य-भेद
रचना के अनुसार वाक्य के निम्नलिखित भेद हैं- 1. साधारण वाक्य। 2. संयुक्त वाक्य। 3. मिश्रित वाक्य। 1. साधारण वाक्य जिस वाक्य में केवल एक ही उद्देश्य (कर्ता) और एक ही समापिका क्रिया हो, वह साधारण वाक्य कहलाता है। जैसे- 1. बच्चा दूध पीता है। 2. कमल गेंद से खेलता है। 3. मृदुला पुस्तक पढ़ रही हैं। विशेष-इसमें कर्ता के साथ उसके विस्तारक विशेषण और क्रिया के साथ विस्तारक सहित कर्म एवं क्रिया-विशेषण आ सकते हैं। जैसे-अच्छा बच्चा मीठा दूध अच्छी तरह पीता है। यह भी साधारण वाक्य है। 2. संयुक्त वाक्य दो अथवा दो से अधिक साधारण वाक्य जब सामानाधिकरण समुच्चयबोधकों जैसे- (पर, किन्तु, और, या आदि) से जुड़े होते हैं, तो वे संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं। (1) संयोजक- जब एक साधारण वाक्य दूसरे साधारण या मिश्रित वाक्य से संयोजक अव्यय द्वारा जुड़ा होता है। जैसे-गीता गई और सीता आई। (2) विभाजक- जब साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का परस्पर भेद या विरोध का संबंध रहता है। जैसे-वह मेहनत तो बहुत करता है पर फल नहीं मिलता। (3) विकल्पसूचक- जब दो बातों में से किसी एक को स्वीकार करना होता है। जैसे- या तो उसे मैं अखाड़े में पछाड़ूँगा या अखाड़े में उतरना ही छोड़ दूँगा। (4) परिणामबोधक- जब एक साधारण वाक्य दसूरे साधारण या मिश्रित वाक्य का परिणाम होता है। जैसे- आज मुझे बहुत काम है इसलिए मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकूँगा। |
08-12-2010, 04:39 PM | #109 |
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Re: व्याकरण
3. मिश्रित वाक्य
जब किसी विषय पर पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए कई साधारण वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य की रचना करनी पड़ती है तब ऐसे रचित वाक्य ही मिश्रित वाक्य कहलाते हैं। विशेष- (1) इन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान उपवाक्य और एक अथवा अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं जो समुच्चयबोधक अव्यय से जुड़े होते हैं। (2) मुख्य उपवाक्य की पुष्टि, समर्थन, स्पष्टता अथवा विस्तार हेतु ही आश्रित वाक्य आते है। आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं- (1) संज्ञा उपवाक्य। (2) विशेषण उपवाक्य। (3) क्रिया-विशेषण उपवाक्य। 1. संज्ञा उपवाक्य- जब आश्रित उपवाक्य किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम के स्थान पर आता है तब वह संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे- वह चाहता है कि मैं यहाँ कभी न आऊँ। यहाँ कि मैं कभी न आऊँ, यह संज्ञा उपवाक्य है। 2. विशेषण उपवाक्य- जो आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की संज्ञा शब्द अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाता है वह विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जो घड़ी मेज पर रखी है वह मुझे पुरस्कारस्वरूप मिली है। यहाँ जो घड़ी मेज पर रखी है यह विशेषण उपवाक्य है। 3. क्रिया-विशेषण उपवाक्य- जब आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बतलाता है तब वह क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जब वह मेरे पास आया तब मैं सो रहा था। यहाँ पर जब वह मेरे पास आया यह क्रिया-विशेषण उपवाक्य है। |
08-12-2010, 04:40 PM | #110 |
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Re: व्याकरण
वाक्य-परिवर्तन
वाक्य के अर्थ में किसी तरह का परिवर्तन किए बिना उसे एक प्रकार के वाक्य से दूसरे प्रकार के वाक्य में परिवर्तन करना वाक्य-परिवर्तन कहलाता है। (1) साधारण वाक्यों का संयुक्त वाक्यों में परिवर्तन- साधारण वाक्य संयुक्त वाक्य 1. मैं दूध पीकर सो गया। मैंने दूध पिया और सो गया। 2. वह पढ़ने के अलावा अखबार भी बेचता है। वह पढ़ता भी है और अखबार भी बेचता है 3. मैंने घर पहुँचकर सब बच्चों को खेलते हुए देखा। मैंने घर पहुँचकर देखा कि सब बच्चे खेल रहे थे। 4. स्वास्थ्य ठीक न होने से मैं काशी नहीं जा सका। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं था इसलिए मैं काशी नहीं जा सका। 5. सवेरे तेज वर्षा होने के कारण मैं दफ्तर देर से पहुँचा। सवेरे तेज वर्षा हो रही थी इसलिए मैं दफ्तर देर से पहुँचा। (2) संयुक्त वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिवर्तन- संयुक्त वाक्य साधारण वाक्य 1. पिताजी अस्वस्थ हैं इसलिए मुझे जाना ही पड़ेगा। पिताजी के अस्वस्थ होने के कारण मुझे जाना ही पड़ेगा। 2. उसने कहा और मैं मान गया। उसके कहने से मैं मान गया। 3. वह केवल उपन्यासकार ही नहीं अपितु अच्छा वक्ता भी है। वह उपन्यासकार के अतिरिक्त अच्छा वक्ता भी है। 4. लू चल रही थी इसलिए मैं घर से बाहर नहीं निकल सका। लू चलने के कारण मैं घर से बाहर नहीं निकल सका। 5. गार्ड ने सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी। गार्ड के सीटी देने पर ट्रेन चल पड़ी। (3) साधारण वाक्यों का मिश्रित वाक्यों में परिवर्तन- साधारण वाक्य मिश्रित वाक्य 1. हरसिंगार को देखते ही मुझे गीता की याद आ जाती है। जब मैं हरसिंगार की ओर देखता हूँ तब मुझे गीता की याद आ जाती है। 2. राष्ट्र के लिए मर मिटने वाला व्यक्ति सच्चा राष्ट्रभक्त है। वह व्यक्ति सच्चा राष्ट्रभक्त है जो राष्ट्र के लिए मर मिटे। 3. पैसे के बिना इंसान कुछ नहीं कर सकता। यदि इंसान के पास पैसा नहीं है तो वह कुछ नहीं कर सकता। 4. आधी रात होते-होते मैंने काम करना बंद कर दिया। ज्योंही आधी रात हुई त्योंही मैंने काम करना बंद कर दिया। (4) मिश्रित वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिवर्तन- मिश्रित वाक्य साधारण वाक्य 1. जो संतोषी होते हैं वे सदैव सुखी रहते हैं संतोषी सदैव सुखी रहते हैं। 2. यदि तुम नहीं पढ़ोगे तो परीक्षा में सफल नहीं होगे। न पढ़ने की दशा में तुम परीक्षा में सफल नहीं होगे। 3. तुम नहीं जानते कि वह कौन है ? तुम उसे नहीं जानते। 4. जब जेबकतरे ने मुझे देखा तो वह भाग गया। मुझे देखकर जेबकतरा भाग गया। 5. जो विद्वान है, उसका सर्वत्र आदर होता है। विद्वानों का सर्वत्र आदर होता है। |
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