24-09-2011, 05:25 PM | #101 |
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Re: "अमृतवाणी"
-सत्यार्थप्रकाश
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। -------------------------------------------------------------------------- जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे -------------------------------------------- Gaurav Soni
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24-09-2011, 05:25 PM | #102 |
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Re: "अमृतवाणी"
जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है
- कहावत
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24-09-2011, 05:25 PM | #103 |
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Re: "अमृतवाणी"
सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है।
- कथा सरित्सागर
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24-09-2011, 05:26 PM | #104 |
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Re: "अमृतवाणी"
जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।
- वेदव्यास
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29-10-2011, 11:37 PM | #105 |
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Re: "अमृतवाणी"
उपयोगी बनो, समय का सदुपयोग करो
''चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमजोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है ।'' ''जो समय को नष्ट करता है, समय भी उसे नष्ट कर देता है''''समय का हनन करने वाले व्यक्ति का चित्त सदा उद्विग्न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है''
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30-10-2011, 10:20 AM | #106 |
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Re: "अमृतवाणी"
आज का कर्म कल का फल होगा ! आज का कर्म भविष्य का फल होगा ! हमारे हाथ में जो समय है, हम उसका कुछ भी कर सकते है ! परन्तु जब ये समय हमारे हाथ से निकल गया, तो हम कुछ भी नही कर सकते ! Today's action will be the result for tomorrow!
Today's action will be the fruit of future! We can do anything for the time we have in our hands! Once it has gone from our hands, we cannot do anything!
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08-04-2012, 07:45 PM | #107 |
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Re: "अमृतवाणी"
पाप = `प` माने परमात्मा और `अप` माने उससे अलग करना,
जो परमात्मा से अलग करे वो पाप है ! Pap = (Sin) 'P' = Parmatma ( God ) AP = (to separate from) The thing that separates us from god is sin
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08-04-2012, 10:36 PM | #108 |
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Re: "अमृतवाणी"
ठाकुर जी किसी के रूप पर मोहित ना होकर,
किसी के भी भाव पर मोहित हो जाते है ! God is attracted by feelings, not by face !
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23-04-2012, 09:00 AM | #109 |
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Re: "अमृतवाणी"
अमृत साधना
........ 0 ........ मंदिर शब्द का वास्तविक अर्थ है जहाँ पर मन को दूर रखा जाता है अथवा मन जहाँ दर पर रहता है , अंदर प्रवेश नहीँ कर पाता है , वह मंदिर है । लेकिन होता यह है कि मन की सारी इच्छाएं , आकांक्षाएं लेकर लोग मंदिर पहुँच जाते हैँ । बंद आँखोँ और जुड़े हाथोँ के पीछे इतनी माँगेँ और वासनाएं बिलबिलाती हैँ कि कोई उनकी आवाज सुन सके , तो प्रचण्ड शोरगुल सुनायी देगा । मंदिर कोई स्थान नहीँ अपितु एक भाव दशा है । जब तक माँग है तब भला मंदिर कैसा ! ईश्वर कोई सुपर मार्केट नहीँ जो हमेँ क्षुद्र वस्तुएँ आपूर्त करेगा । मोल मेँ मिलने वाली वस्तुएँ ईश्वर नहीँ देता , वह तो अनमोल चीजेँ देता है जो बाजार मेँ नहीँ मिलतीँ । वास्तव मेँ मंदिर मेँ वही पँहुच पाता है जो ईश्वर को धन्यवाद देने जाता है कुछ माँगने नहीँ । जिस दिन हमारे भीतर से अहर्निश धन्यवाद उठने लगेँ , फूल खिलेँ या आकाश से मेघ बरसेँ या हमारे भीतर का बच्चा किलकारी मारे , हर बात हमेँ आनंदित करने लगे तो हम जहाँ भी हैँ , मंदिर मेँ ही हैँ ।
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