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Old 08-12-2010, 03:03 PM   #101
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स्टोरी रामलाल की

| रामलाल एक शराबी और बेईमान ब्यक्ति था | उसके पास दो बकरिया और एक बंदर भी पाल रक्खा था|
बंदर डेली बकरियो को खेत में घास चराने के लिए ले जाता था | और रामलाला घर पर आराम करता था | बंदर डेली अपनी बकरियो को दुसरे के अनाज को खिलाता और उसके अनाज को बर्बाद भी करता था | जब कोए सिकायत ले कर आता तो रामलाल कहता की बर्बाद मैने किया है या उस बंदर ने किया है | जाओ और उस बंदर से कहो | और वह गलिया भी दिया करता था | एक दिन एक गरीब ब्यक्ति के फसल में उसके बंदर ने आग लगा दिया | और उसके सरे फसल नस्त हो गये | वह गरीब ब्यक्ति आ कर जब रामलाल से कहा तो रामलाल ने फिर वही जबाब दिया | गरीब ब्यक्ति दुखी हो कर वहा से चला गया | इसी तरह उस रामलाल और उसके बंदर का मन बढ़ता गया | वह अपने आदत से मजबूर था | एक दिन वह टहलते हुए रामलाल के गोदाम में जा पहुचा | वहा पर बहुत अँधेरा था | उसके बंदर ने उजाला करने के लिए दिया ले आया | किसी तरह अचानक दिया हाथ से गिरा और गोदाम में आग लग गयी | आग फैल गयी | बंदर वहा से भाग गया | और सारा अनाज नस्ट हो गया | रामलाल साला बहोत दुखी और गुस्से में था | रामलाल गुस्से में बंदर की खूब पिटाई की | बंदर रामलाल की पिटाई की वजह से गुस्से में था | वह दुशरे दिन दोनों बकरियों को दूर जंगल में ले जा कर छोड़ दिया | और खुद भी चला गया | गाँव के लोग बहोत खुस हुए और रामलाल से कहने लगे | की दुसरो के साथ जो जैसा करता है | उसके साथ खुद वैसा ही होता है |
रामलाल बहोत गुस्साता और लोगो को गलिया भी देता था | किसी सायर ने एक सेर कहा है |

( जैसी करनी वैसी भरनी )
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Old 08-12-2010, 03:04 PM   #102
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Default Re: लघु कथाएँ..........

अरे लकड़िया चिर गईं कि नहीं। …..फोकट में।

कार्यालय में सीबीआई अधिकारी को गुमनाम फोन आया कि सुनील टालवाले ने लकड़ियों में स्मैक छुपा रखी है। अधिकारी ने कर्मचारियों के साथ छापा मारा और पूरी टाल छान मारी। सुनील निरंतर सफाई देता रहा। अधिकारी का शक बढ़ गया तो उसने कर्मचारियों को आदेश दिया। जितने मोटे बॉस हैं सबको चीर कर देखो। कर्मचारियों ने कुल्हाड़ियां उठाईं और सारे बॉस फाड़ डाले। कुछ नहीं मिला।

शाम को सुनील टालवाले को फोनआया – कहो गुरू, काम हुआ।

कैसा काम?सुनील चकरा गया।

अरे लकड़िया चिर गईं कि नहीं। …..फोकट में।

हां ……. अच्छा । तो तुम्हारा किया धरा था यह सब!

हां, ध्यान रखना गुरू, अब मेरा बगीचा जुतवाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है …..
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Old 08-12-2010, 03:05 PM   #103
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लालची साधु और धूर्त नाई


एक नाई था.उसके पास एक भैस थी.वह उसे रोज पोखरे पर ले जाकर स्नान करवाता था.एक दिन जब वह उसे नहला रहा तो उसने देख किनारे पर एक बाबा तिस असर्फिया गिनकर बटूये में रखी और उसे अपने जटा में छिपकार बाँध लिया.
जल्दी से नाई घर आया और अपनी भैस बाँध कर बाबा के पास पंहुचा.बाबा को दंडवत करके नाई ने कहा-”बाबाजी,आपके चरण कमल मुझ गरीब के घर पड जाये तो में निहाल हो जाऊ.अब तक तो न मुझे कोई गुरु मिल है,और ना ही मेरी घर वाली को.सो मुझे अपना शिष्य बनाकर मेरा यह चोला सफल कर दीजिये.हम दोनों आपकी चरणरज पाकर धन्य हो जायेगे.”
बाबा जी बोला-”बच्चा,अगर तू मुझे दक्षिणा में दो असर्फियाँ देने को तैयार हो तो मैं तुझे अपना शिष्य बना सकता हूँ .”
नाई ने बहुत नरमाई से कहा,बाबा मुझे मंजूर है , मेरे ऐसे भाग्य कहा की आप जैसे महात्मा की कृपा मुझे मिले .
साधू तो लालची था ही वह दो अशर्फियों के लालच में नाई के घर चलने को तैयार हो गया.नाई ने बाबाजी का झोला कंधे डाला और चल दिया.बाबाजी भी खडाऊ की खट-खट करते हुए उसके पीछे चले.
घर पहुचने पर नाई और उसकी पत्नी ने बहुत भक्तिभाव से बाबा के चरण थाली में रखकर धोये.भोजन में नाना प्रकार की चीजे परोसीं.
भोजन के पश्चात बाबा चारपाई पर लेट गया.नाई उनका पैर दबाने लगा.शिष्य की भक्ति देखकर बाबा बहुत खुश हुए रात भर गहरी नींद में सोये.
सुबह निपटकर जब बाबा चलने लगे तो उन्होने अपनी दक्षिणा मांगी.नाई ने पत्नी को संदूक की चाबी देते हुए कहा-”संदूक में तीस अशर्फियाँ रखी है,उनमे से दो अशर्फियाँ लाकर गुरु महाराज को देदो,फिर चरण छूकर आशीर्वाद ले.अगर गुरु महाराज की कृपा हुई तो तेरी गोंद सूनी नही रहेगी.”
वह चाबी लेकर गयी और संदूक खोला.पर बहुत ढूँढने पर भी अशर्फियाँ नही मिली.उसने आकर यही बात नाई को बताई.
नाई अपनी पत्नी पर बिगड़ते हुए बोला-”क्या कहती है तू.अशर्फियाँ नही है तो कहा गयी?उड़ गयी?मैंने अपने हाथ से एक-एक करके गिनकर रखी है.”
नाई खुद गया और थोडी देर बाद संदूक में ढूंढ कर झल्लाता हुआ आया.

और अपनी पत्नी पर बरस पड़ा-”अशर्फियाँ संदूक में थी.मैंने अपने हाथ से रखी थी.यह सब तेरी करतूत है.तूने ही उसे कही छिपाकर रखा है.मौका मिलने पर अपने पिता और भाइयो को दे दोगी.तेरी तलाशी ली जायेगी.
पत्नी की तलाशी लेकर नाई ने कहा-”तेरे मन में अगर यह संदेह हो कि मैंने उन्हें कही रख लिया है तो तू मेरी तलाशी लेले.”पत्नी ने नाई की तलाशी ली पर अशर्फियाँ नही निकली.तब नाई ने बाबाजी से कहा-”महाराज,मेरी पत्नी बहुत शक्की मिजाज की है इसलिए आप भी अपनी तलाशी दे दीजिए ताकि इसका शक मिट जाये.”
बाबाजी तुरंत खडे हो गए और बोले-”अरे इसमे कौन सी बड़ी बात है.मेरी तलाशी भी लेलो.कहते हुए बाबाजी ने अपने वस्त्र हिला कर दिखा दिए.”
नाई ने कहा बाबाजी अब आपकी जटा रह गयी.उसे भी खोल कर दिखा दीजिये.मेरी पत्नी बडे खोटे दिल की है.”
बाबाजी पहले तो हिचकिचाए,पर क्या कर सकते थे.
लाचार हो कर जटा खोलनी पड़ी.जटा खुलते ही बटुए सहित अशर्फियाँ निकल आई.
नाई ने कहा-”देखो,महराज की तपस्या में कितना बल है.खोई हुयी अशर्फियाँ उन्होने वापस बुला ली.वाह महाराज वाह!”फिर अपनी पत्नी से बोला-”ले गिन ले,पूरी तीस ना निकले तो मुझसे कहना.इनमे से दो अशर्फियाँ महाराज के चरणों में चढा दे और आशीर्वाद मांग ले ताकि तेरी सुनी गोद भर जाये.”
नाई की पत्नी ने एक-एक करके अशर्फियाँ गिनी तो सचमुच तीस निकली.उसने दो अशर्फियाँ महाराज के चरणों में चढ़ा दी.
नाई ने हाथ जोड़कर कहा-”आपने,मुझ पर बहुत उपकार किया है .जब कभी इधर पधारे,इस सेवक को न भूलियेगा .”
अपना हारा और स्त्री का मारा आदमी कुछ नही बोलता.साधू बाबा चुप रहे.अतः हमे लालच नही करनी चाहिए.लालच का घर खली होता है.
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Old 08-12-2010, 03:06 PM   #104
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सीधापन


एक जंगल में एक विषैला सांप रहता था.सब सांप से डरते थे.एक दिन उस जंगल से महात्मा गुजरे तो सांप ने हाथ जोड़ कर विनती की,कि मैं किसी को न काटूं.महात्मा बोले-’यथास्तु’!फिर क्या था उसने काटना बंद कर दिया.अब तो बच्चे भी उसे छेड़ने लगे,लोग चलते फिरते उसे पत्थर मारने लगे,उसकी बहुत बुरी दशा हो गयी.कुछ दिन पश्चात् पुनः वह महात्मा फिर उस जंगल से गुजरे तो यह हालत देखकर वह उस सांप से बोले,”तुमने काटना छोडा था,फूँकार तो नही.”उस दिन से जो भी सांप को छेड़ता वह उसे अपनी फूँकार से डरा देता.इसीलिए कहा गया है,ज्यादा सीधापन भी कष्ट दायक होता है.
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Old 08-12-2010, 03:06 PM   #105
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मिथ्या आवाज

प्राचीन काल की बात है एक रजा के महल में अंधकार हो गया.रजा को एक रोशनी दिखाई दी.तभी रजा को एक आवाज आई की राजन तुम्हारा राजपाट सब चौपट हो जायेगा.राजा ने सोचा,वैसे ही यह सब मिथ्या है,कहा अलविदा.फिर आवाज आई,आपके संगे-सम्बन्धी नष्ट हो जायेगे.फिर मिथ्या जानकर राजा ने अलविदा कहा.तीसरी बार फिर आवाज आई राजन् तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जायेगा.राजन उसी समय तलवार निकल ली,राजा ने कहा में उसी के आधार पर तो जीता हूँ.उससे अच्छा तो मौत मिल जाये.वह अपने आप को मरने लगा,
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Old 08-12-2010, 03:07 PM   #106
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अंधा और कुबड़ा
किसी गाँव मे दो मित्र रहते थे. एक अँधा था दूसरा कुबड़ा . एक साल उस गाँव मे अकाल पड गया . खाने पीने की तकलीफ होने लगी. आखिर दोनों मित्रो ने काम करने के लिए परदेश जाने का निश्चय किया. कुबड़ा अंधे के कंधे पर बैठ गया और रास्ता बताने लगा. चलते – चलते रस्ते मे कुबडे ने खेत की मेड पर चरते हुए गधो का झुंड देखा. उसने कहा भैया गधे चर रहे है, पर उनका चरवाहा कही दिखाई नही देता. अंधे ने कहा “तुम एक गधा पकड़ लाओ .” इसके बाद दोनों गधे पर बैठ गए. कुछ देर बाद रस्ते मे एक झोपडी दिखाई दी तो कुबडे ने कहा की दोस्त यहा झोपडी के बाहर एक बुधिया उंग्घ रही है और पास मे एक सूप पड़ा है. अंधे ने कहा की देखते क्या हो उठा लो वह सूप. कुबडे ने सूप कब्जे मे कर लिया . चलते- चलते रस्ते मे एक खेत आया.कुबडे ने बताया की यहा खेत मे हल और बैल दोनों है पर किशन कही दिखाई नही देता. अँधा बोला ठीक है हल का लोहे का फल लेते आओ . कुबडे ने वैसा ही किया. थोडी दूर चले ही थे की एक कुआ दिखाई दीया. उसने कहा की मित्र यहा कुए पर एक बाल्टी और रस्सी पड़ी है. पर पानी खीचने वाला गायब है. अंधे ने कहा की तुम रस्सी और बाल्टी खोलकर ले आओ. कुबडे ने अंधे से कहा की रात घिर आई है,अब क्या करे? अंधे ने कहा की जरा देखो आसपास कोई घर नजर आ रहा है? कुबडे चारो तरफ देखा तो थोती दूर पर एक भव्य महल दिखाई दीया.दोनों मित्र उस महल के पास गए. महल खली था. अंधे ने कहा की चलो आज की रात यही ठहरेंगे. महल का दरवाजा बंद करके दोनों सो गए.

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Old 08-12-2010, 03:08 PM   #107
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आधी रात गए बाहर बडा कोलाहल सुनाई दिया.चीख पुकार मचाने वाला एक राक्षस का परिवार था जो उस महल में रहता था और आधी रात को शिकार करके लौटा था.आवाजे सुनकर अंधे और कुबडें की नींद खुल गयी.खिड़कियों-दरवाजों को बंद देखकर राक्षस परिवार को बड़ा आश्चर्य हुआ.जरूर कोई महल में छिपकर बैठा है.यह सोचकर एक राक्षस ने बडे जोर से आवाज दी कि हमारे महल में कौन है?कुबड़ा जबाब देने ही वाला था कि अंधे ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और स्वयं अकड़कर बोला कि तुम कौन हो?राक्षस ने उत्तर दिया कि हम राक्षस है.इस पर अंधे ने कहा हम राक्षस के दादाजी है.राक्षस विचार में पड गया.ये भला कौन हो सकता है?राक्षस का भी दादाजी.राक्षसों के सरदार ने कहा कि ठीक है यदि आप हमारे दादाजी है तो हमसे भी अधिक शक्तिशाली होगे.जरा अपने बाल तो दिखाओ.अंधे ने रस्शी बाहर फेंकी.राक्षसों ने इतने लम्बे और मोटे बाल कभी नही देखे थे.वेसब घबरा गए.अपनी शंका कि समाधान करने कि दृष्टि से राक्षस ने फिर पूछा तुम्हारे कान कैसे है?अंधे ने तुरंत सूप बाहर फेका.राक्षस तो इतना बड़ा कान देखकर आश्चर्य में पड गया.सरदार राक्षस ने फिर पूछा कि दादाजी आपके दांत तो लोहे के चने चबाने लायक होगे.अंधे ने उसी समय लोहे का फाल बाहर फेंका.उसे देखकर तो राक्षस के हाथ के तोते उड़ गए.हाय!हाय!जिनके दांत इतने मजबूत और बडे है तो वो दादाजी कैसे होगे?जरूर बडे खतरनाक होगे.अन्तिम बार परीक्षा कि दृष्टि से राक्षस ने कहा यदि आप हमारे दादाजी है तो आपकी आवाज इतनी पतली क्यो है?अंधे ने महल के अन्दर से कहा तुम्हारे कानो के परदे न फट जाये,इसलिए हम धीरे-धीरे बोल रहे है.



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Old 08-12-2010, 03:08 PM   #108
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यदि तुम्हे हमारी सच्ची आवाज ही सुननी है तो लो सुनो ….ऐसा कह कर अंधे ने गधे के कानो को जोर से मरोडा,बस फिर क्या था.गधा लगा अपना राग अल्पाने …ढेंचू….ढेंचू ….!बाहर खडे राक्षसों की तो शिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी.वे सब दुम दबाकर लगे भागने.किसी ने पीछे मुड़ कर नही देखा.अंधे और कुबडे ने संतोष की सांस ली.
दिन चढा तो वे लोग भोजन की तैयारी करने लगे.राक्षस की आपार धन दौलत को देखकर कुबडे के मन में पाप का कीड़ा कुलबुलाने लगा.वह अंधे को मारकर सारी सम्पत्ति हड़पना चाहता था.इसी उद्देश्य से उसने अंधे के लिए जहरीला सांप पकाया.बीच में पानी की जरूरत होने पर वह अंधे को चूल्हे के पास बिठाकर खुद पानी लेने चला गया.उसे क्या पता था कि हाड़ी में एक जहरीला सांप पकाया जा रहा है,किन्तु तीब्र जहरीले धुएं के कारण ही थोडी देर में उसे आंखो से दिखायी देने लगा.उसने देखा कि हाड़ी में एक जहरीला सांप पक रहा है.अब वह समझ गया कि यह सब कुबड़े कि चाल होगी जो मुझे मारने के लिए जहरीला सांप पका रहा है. जैसे ही कुबड़ा पानी लेकर आया,अंधे ने उसे लकडी से मारना शुरू कर दिया.पर यह क्या पिटाई करने पर कुबडे का शरीर सीधा हो गया.उसका कुबड़ा बैठ गया.पल भर में दोनों मित्र सारा हाल समझ गए कि एक दूसरे के मारने के चक्कर में दोनों के शरीर ठीक हो गए है.अब तो उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा.उसी दिन से वे एक दूसरे के सच्चे मित्र बन गए तथा सुखपूर्वक उस भव्य महल में आराम से जिन्दगी गुजारने लगे.

The end
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छेड़ -छाड़


आज मैं छेड़ छाड़ का ज़िक्र करूँगा. बहुत पहले व्यंग के जादूगर यशवंत कोठारी जी ने छेड़ छाड़ पर एक व्यंग लिखा था जो काफी मशहूर हुआ.छेड़-छाड़ पर लिखने की प्रेरणा कल एक छेडू भाई को पिटते हुए देख कर आयी.

छेड़-छाड़ उस विधा का नाम है जिसे बेटा बिना बाप के सिखाये सीख जाता है.मूछों की रेखा आयी नही की बच्चा छेड़-छाड़ शास्त्र में उलझ जाता है.छेड़ने की पर्यायवाची: क्या माल है ,क्या कमर है,क्या चलती है, आती क्या खंडाला आदि .फसलों की किस्मों की तरह छेड़ छाड़ की की भी काफी किस्म होतीं हैं.जैसे बजारू छेड़ छाड़ ,घरेलू छेड़ छाड़ ,दफ्तरी छेड़ छाड़,जीजा साली छेड़ छाड़ ,फिल्मी छेड़ छाड़ ,साहित्यीक छेड़ छाड़ ,ब्लोगिंग छेड़छाड़ वगैरह, वगैरह.
वैसे मुझ खाकशार को छेड़छाड़ पर कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है.छेड़छाड़ की परम्परा आदिकाल से ही चली आ रही है.आदम ने हब्बा को छेडा परिणाम आज की सृष्टि .सपुर्न्खा ने राम लक्ष्मण को छेडा परिणाम सपुर्न्खा की नाक कटी.रावण ने सीता को छेडा परिणाम ,रावण का नाश हुआ.और आगे बढें तो द्वापर के सबसे बडे छेडैया कृष्ण जी हुए.पनघट पे गोपियों को छेडा और अनंत काल तक छेड़ते रहे परिणाम ये हुआ की गोपियों ने उनकी गैईया को चराने से मना कर दिया.
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भैस

रोज शाम मैं बड़े चाव से घास-खडी खरीदने जाता था,प्रति रविवार बडे चाव से भैस को नहलाता और अपने यहाँ आने वाले लोगो को बड़े चाव से भैस दिखाता एक आदमी था जो आँगन साफ कर जाता,भैस को दूह जाता,इसके बावजूद मैं भी बडे चाव से आँगन को और धोता और कभी-कभी भैस को भी दूहता.
लाभ इतना हो रहा था कि मैं अधिक-से-अधिक भैस मैं डूबता जा रहा था. इसके पीछे कई बार मेरा अखबार पढ़ना
रह जाता,बल्कि अब मैं अखबार ऊपर-ऊपर ही पढता,गहरे या विस्तार में ना जाता.भैस के पीछे वेतन का कार्य गौण हो गया.यह लाभ का प्रधान कार्य बन गया.लाभ इतना हो रहा था की देखते-देखते कर्ज से मुक्ति मिल गयी
और पैसे की काफी बचत भी हुई.इस बचत में से मैंने एक भैस और खरीद ली.
दों भैसों के साथ मेरा व्यक्तित्व जैसे ऊपर उठा,में वेतन के कार्य को गौण मानने लगा .पत्नी ने कहा,”नौकरी छोड़ दो,किसी बेरोजगार को काम मिलेगा.मैंने कहा “प्राइवेट होती तो छोडनी पड़ती, सरकारी है,जो बिना काम किए चलती है सो क्यों छोडूं.”
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