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Old 26-11-2012, 08:55 PM   #101
Dark Saint Alaick
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Default Re: कुतुबनुमा

मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़ों से फैला भ्रम

मध्य प्रदेश सरकार अपने काम को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने के लिए पहले ही काफी चर्चा में रह चुकी है लेकिन वह लोगों में भ्रम बनाए रखने के कोई मौका चूकना ही नहीं चाहती ऐेसा लगता है। हाल ही में नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) ने आरोप लगाया कि सरकार ने एक निजी कम्पनी एस.कुमार्स की सहायक कंपनी महेश्वर हाइडल पावर कंपनी लिमिटेड (एसएमएचपीसीएल) को फायदा पहुंचाने के लिए झूठे आंकड़े पेश किए हैं। प्रदेश में ऊर्जा सचिव मोहम्मद सुलेमान ने एक मार्च 2011 को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव को लिखे पत्र में कहा था कि महेश्वर पनबिजली परियोजना के पुनर्वास का 70 प्रतिशत से ज्यादा काम पूरा हो चुका है जबकि हाल ही में सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश किए गए शपथ-पत्र में कहा है कि निजी कंपनी पुनर्वास के लिए धनराशि उपलब्ध कराने में विफल रही है। शपथ-पत्र में कहा गया है कि पुनर्वास के काम के लिए 740 करोड़ में से कंपनी ने केवल 203 करोड़ मुहैया कराए। यह राशि कुल राशि की सत्ताईस प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में सत्ताईस राशि से सत्तर प्रतिशत से ज्यादा लोगों का पुनर्वास किस तरह से संभव हुआ इस पर सवालिया निशान है। पुनर्वास के लिए कंपनी जिम्मेदार है जिसमें वह विफल हुई है। इससे एक बार फिर साबित हो गया कि राज्य सरकार अपने फायदे के लिए किसी भी तरह की गलत बयानी कर सकती है अथवा गलत आंकड़े पेश कर सकती है। जो जानकारी सामने आ रही है उससे पता चलता है कि महेश्वर परियोजना से 60 हजार लोग प्रभावित हो रहे हैं। इसमें से 15 प्रतिशत का पुनर्वास और व्यवस्थापन नहीं हो पाया है। जिन लोगों के पुनर्वास की बात हो रही है, शर्तों के अनुसार उनमें से एक भी प्रभावित को न्यूनतम दो हेक्टेयर जमीन भी आवंटित नहीं की गई है। आखिर क्यों सरकार एक निजी कम्पनी के गलत कदमो को छिपा रही है, यह समझ से परे है।
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Old 26-11-2012, 08:55 PM   #102
Dark Saint Alaick
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Default Re: कुतुबनुमा

सनसनीखेज खबरों से बचना ही होगा

सनसनीखेज खबरों की प्रस्तुति को लेकर मीडिया पर काफी कुछ कहा और लिखा जा रहा है। इससे लगने लगा है कि मीडिया कहीं ना कहीं अपने मूल उत्तरदायित्व से चूकता जा रहा है। देश में इलेक्ट्रोनिक चैनल व समाचार पत्रों की संख्या को हम देखें तो कहा जा सकता है कि लोगों के जीवन में मीडिया काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हमारे देश में कई धर्म, भाषाएं और विचारधाराएं है। ऐसे समाज और राज्य व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक स्वतंत्र और जिम्मेदार मीडिया होना ही चाहिए। हमें गर्व होना चाहिए कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी है। हमारे देश में मीडिया सिर्फ जनता की राय का एक विश्वसनीय पैमाना ही नहीं है बल्कि यह हमारे राष्ट्र की अंतरात्मा का प्रतीक भी है। देश में सामाजिक शांति और सौहार्द बना रहे इसके लिए मीडिया को निरंतर सतर्क रहते हुए इस दिशा में लगातार काम करना चाहिए। मीडिया की रिपोर्टिंग और राय निष्पक्ष,उद्देश्यपूर्ण और संतुलित होनी चाहिए। सनसनीखेज खबरें बनाने की इच्छा से बचा जाना चाहिए भले ही यह कभी-कभी बहुत आकर्षक होती है। हमारे समाज और देश को बांटने से सम्बंधित कुछ भी लिखने में संयम बरतते हुए और इसके प्रसारण से बचने का प्रयास किया जाना चाहिए। समुदायों और क्षेत्रों के अंतर को दूर करते हुए संपर्क बनाने के लिए भी जागरूक प्रयास किए जाने चाहिए। मीडिया लोगों की आकांक्षाओं और जनता की राय दोनों को प्रतिबिंबित करता है। ऐसे में मीडिया को चाहिए कि वह सनसनीखेज समाचारों से पूरी तरह बचे। कुछ समय पहले प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने केरल और हाल ही में दिल्ली में एक समारोह में मीडिया को गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता से बचने की सलाह दी थी। केरल में जहां डॉ. सिंह ने कहा कि मीडिया को सनसनीखेज खबरों से बचना चाहिए वहीं दिल्ली में उनका कहना था कि मीडिया को आत्म-नियमन करना चाहिए कि वह जो प्रकाशित -प्रसारित कर रहा है वह सच के दायरे में हो। हालांकि उन्होंने कहा कि यह सही है कि कभी-कभी गैर जिम्मेदार पत्रकारिता से सामाजिक सौहार्द और व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है लेकिन मीडिया को खुद अपने आप पर नियंत्रण चाहिए। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मीडिया को लोकतंत्र का स्तम्भ करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दिनों से ही मीडिया सामाजिक बदलाव, लोगोंं को उनके अधिकारों के बारे में बताने और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए जागरूकता फैलाने का काम करता रहा है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि देश-समाज को मीडिया से हर क्षेत्र में सकारात्मक रुख की उम्मीद रहती है। खास कर संवेदनशील मुद्दों पर तो मीडिया को खास सतर्कता बरतनी ही चाहिए। हाल ही में एक सर्वे में भी यह सामने आया है कि 44 फीसदी लोग संवेदनशील मामलों में मीडिया के रोल को खराब मानते है। मीडिया को यह छवि मिटानी ही होगी।
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Old 26-11-2012, 11:32 PM   #103
Dark Saint Alaick
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Default Re: कुतुबनुमा

आंकड़ों का खेल

इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने लोकसभा में एम. आनंदन और सुरेश अंगाड़ी के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि विश्व इस्पात संघ के आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। विश्व इस्पात संघ द्वारा जारी वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत 2010, 2011 और 2012 में सितंबर तक दुनिया का चौथा बड़ा इस्पात निर्माता देश है। जनवरी से सितंबर, 2012 के बीच चीन सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश रहा है। इस मामले में उसके बाद जापान और अमेरिका का स्थान है।
अभी तक की सूचना पढ़ कर आप खुशी से झूम सकते हैं, लेकिन आंकड़ों का यह खेल देख कर आप हैरान रह जाएंगे कि अपनी नाकामियां छुपाने के लिए कोई इनका किस तरह अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकता है। इस मुद्दे पर आगे बढूं, इससे पहले सोवियत संघ के समय का एक प्रचलित मज़ाक आपसे शेयर करना चाहूंगा। मॉस्को निवासी मेरे एक मित्र हर बार नए साल के आसपास स्वदेश आते हैं। पति-पत्नी दोनों वहीं कार्यरत हैं। उनका पैतृक मकान मेरे अपार्टमेन्ट से कुछ ब्लॉक ही दूर है, लेकिन संबंधों की नजदीकियों की वज़ह यह नहीं है, बल्कि यह है कि कभी जयपुर में मार्क्सवादी साहित्य का केंद्र रहे 'किताबघर' (यह अब बंद हो चुका है) में हमारी लम्बी बैठकें होती थीं और अक्सर मैं बहस में उन्हें हरा देता था। किन्तु अब स्थिति उलट है, इसलिए कि अब जब भी वे आते हैं, तो मेरे लिए दो बोतलें लाते हैं - एक तो स्कॉच और दूसरी रूस की शुद्ध वोदका। ज़ाहिर है, अब मैं कभी-कभी उनसे जान-बूझ कर हार जाता हूं। खैर, यह तो मैं भटक गया। मुद्दे पर आते हैं। बात चल रही थी आंकड़ों के खेल और मज़ाक की। उन्होंने मजाक जो बताया, वह यह था कि सोवियत सत्ता उस समय अपने श्रेष्ठ कार्य का बखान करने में इस कदर आत्म मुग्ध थी कि एक गांव में साक्षरता की लक्ष्य प्राप्ति शत-प्रतिशत बता दी गई, बाद में पोल खुली, तो पता चला कि उस गांव में पहले सिर्फ एक व्यक्ति साक्षर था और स्थानीय कोम्सोमोल ने एक और व्यक्ति को साक्षर बना कर उपलब्धि को दोगुना यानी शत-प्रतिशत मान कर केन्द्रीय कमेटी को भेज दिया।
अब आते हैं अपनी सरकार पर। अगर मैं आपको बताऊं कि 2009-10 में भारत का इस्पात निर्यात 6029.82 मिलियन अमेरिकन डॉलर था, 2010-11 में 4714.53, 2011-12 में 4399.28 और 2012-13 में अब तक (यानी सितम्बर तक) सिर्फ 1103.84 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है अर्थात इसके बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है और अब निर्यात में जो एक नंबर के शीर्ष पर विराजमान है, उसका निर्यात अब तक 5167.89 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है यानी आपके 2009-10 के आंकड़े से वह अभी पीछे है, किन्तु नंबर वन है। ... और आप चौथे स्थान पर खिसकने का जश्न मना रहे हैं। केंद्र सरकार यह अपनी उपलब्धि गिना रही है या नाकामी को छुपा रही है? आपको कैसा लगा आंकड़ों का यह खेल? क्या ख्याल है आपका ?
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Old 26-11-2012, 11:56 PM   #104
sombirnaamdev
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अलैक जी, सृजन जारी रखे, यहाँ आपके काफी पाठक है और नए बनते जा रहे हैं। लेकिन कमेंट करना सबके बस की बात नहीं होती।

hum bhi aap ke sath hai lage rhiye
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Old 27-11-2012, 12:09 AM   #105
jai_bhardwaj
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आंकड़ों का खेल

इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने लोकसभा में एम. आनंदन और सुरेश अंगाड़ी के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि विश्व इस्पात संघ के आंकड़ों के मुताबिक भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। विश्व इस्पात संघ द्वारा जारी वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत 2010, 2011 और 2012 में सितंबर तक दुनिया का चौथा बड़ा इस्पात निर्माता देश है। जनवरी से सितंबर, 2012 के बीच चीन सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश रहा है। इस मामले में उसके बाद जापान और अमेरिका का स्थान है।
अभी तक की सूचना पढ़ कर आप खुशी से झूम सकते हैं, लेकिन आंकड़ों का यह खेल देख कर आप हैरान रह जाएंगे कि अपनी नाकामियां छुपाने के लिए कोई इनका किस तरह अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकता है। इस मुद्दे पर आगे बढूं, इससे पहले सोवियत संघ के समय का एक प्रचलित मज़ाक आपसे शेयर करना चाहूंगा। मॉस्को निवासी मेरे एक मित्र हर बार नए साल के आसपास स्वदेश आते हैं। पति-पत्नी दोनों वहीं कार्यरत हैं। उनका पैतृक मकान मेरे अपार्टमेन्ट से कुछ ब्लॉक ही दूर है, लेकिन संबंधों की नजदीकियों की वज़ह यह नहीं है, बल्कि यह है कि कभी जयपुर में मार्क्सवादी साहित्य का केंद्र रहे 'किताबघर' (यह अब बंद हो चुका है) में हमारी लम्बी बैठकें होती थीं और अक्सर मैं बहस में उन्हें हरा देता था। किन्तु अब स्थिति उलट है, इसलिए कि अब जब भी वे आते हैं, तो मेरे लिए दो बोतलें लाते हैं - एक तो स्कॉच और दूसरी रूस की शुद्ध वोदका। ज़ाहिर है, अब मैं कभी-कभी उनसे जान-बूझ कर हार जाता हूं। खैर, यह तो मैं भटक गया। मुद्दे पर आते हैं। बात चल रही थी आंकड़ों के खेल और मज़ाक की। उन्होंने मजाक जो बताया, वह यह था कि सोवियत सत्ता उस समय अपने श्रेष्ठ कार्य का बखान करने में इस कदर आत्म मुग्ध थी कि एक गांव में साक्षरता की लक्ष्य प्राप्ति शत-प्रतिशत बता दी गई, बाद में पोल खुली, तो पता चला कि उस गांव में पहले सिर्फ एक व्यक्ति साक्षर था और स्थानीय कोम्सोमोल ने एक और व्यक्ति को साक्षर बना कर उपलब्धि को दोगुना यानी शत-प्रतिशत मान कर केन्द्रीय कमेटी को भेज दिया।
अब आते हैं अपनी सरकार पर। अगर मैं आपको बताऊं कि 2009-10 में भारत का इस्पात निर्यात 6029.82 मिलियन अमेरिकन डॉलर था, 2010-11 में 4714.53, 2011-12 में 4399.28 और 2012-13 में अब तक (यानी सितम्बर तक) सिर्फ 1103.84 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है अर्थात इसके बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है और अब निर्यात में जो एक नंबर के शीर्ष पर विराजमान है, उसका निर्यात अब तक 5167.89 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है यानी आपके 2009-10 के आंकड़े से वह अभी पीछे है, किन्तु नंबर वन है। ... और आप चौथे स्थान पर खिसकने का जश्न मना रहे हैं। केंद्र सरकार यह अपनी उपलब्धि गिना रही है या नाकामी को छुपा रही है? आपको कैसा लगा आंकड़ों का यह खेल? क्या ख्याल है आपका ?

अलैक जी नमस्कार।
मित्र, क्या ये आंकड़े रूपये के निरंतर अवमूल्यन के कारण इतने अस्थिर हुए हैं?
विश्व में किसी धातु के उत्पादन में हम चौथे स्थान पर हैं। हाँ, यह सांख्यिकीय खेल हो सकता है किन्तु मौलिक स्थिति इससे बहुत अधिक दूर भी नहीं होनी चाहिए। घटती निर्यात-राशि का संपर्क तो मुद्रा के अवमूल्यन से जुड़ा हुआ भी हो सकता है और निर्यात की मात्रा में कमी आने से भी। निर्यात में कम मात्रा का कारण घरेलू खपत का बढना भी हो सकता और मूल उत्पादन में कमी होना भी संभव है। घरेलू खपत बढ़ने का तात्पर्य घरेलू विकास से हो सकता है। यह हमारी सुदृढ़ता का प्रतीक है।
वैश्विक मंदी के दौर को भी नहीं भुलाना चाहिए। यह वही दौर था जब विश्व के बहुत से देशों के आर्थिक प्रबंधन का ढांचा ही चरमरा गया था किन्तु उस दौर में भी भारत कहीं न कहीं अटल और स्थिर रहते हुए अपने मौद्रिक प्रबंधन का लोहा मनवाया था। मुझे लगता है कि यह आंकड़े बाजी भी कई बार आवश्यक होती है। इति ।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
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Old 27-11-2012, 08:01 AM   #106
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अब आते हैं अपनी सरकार पर। अगर मैं आपको बताऊं कि 2009-10 में भारत का इस्पात निर्यात 6029.82 मिलियन अमेरिकन डॉलर था, 2010-11 में 4714.53, 2011-12 में 4399.28 और 2012-13 में अब तक (यानी सितम्बर तक) सिर्फ 1103.84 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है अर्थात इसके बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है और अब निर्यात में जो एक नंबर के शीर्ष पर विराजमान है, उसका निर्यात अब तक 5167.89 मिलियन अमेरिकन डॉलर हुआ है यानी आपके 2009-10 के आंकड़े से वह अभी पीछे है, किन्तु नंबर वन है। ... और आप चौथे स्थान पर खिसकने का जश्न मना रहे हैं। केंद्र सरकार यह अपनी उपलब्धि गिना रही है या नाकामी को छुपा रही है? आपको कैसा लगा आंकड़ों का यह खेल? क्या ख्याल है आपका ?

पहली बात तो मैं यह कहना चाहूँगा की क्या बड़ा निर्माता देश इसको कितने मिलियन डॉलर के निर्यात हुआ उससे मापा जाना चाहिए या कितने टन स्टील का निर्यात हुआ। मान लिए दो मिठाई की दुकाने हैं एक में हर दिन 10,000 की मिठाई बिकती है तो दुसरे में हर दिन 8000 की मिठाई बिकती है। लेकिन इससे हम यह तो पता नहीं कर सकते है किसने कितने किलो बेचे। इस डाटा के हिसाब से लोग बोलेंगे की पहली वाली दूकान मिठाई की बड़ी एक्सपोर्टर लेकिन हो सकता है की पहली दूकान में मिठाई महंगी बिकती हो और दूसरी दूकान ने ज्यादा किलो मिठाई बेचीं हो लेकिन कम दाम में।

तो इस इस्पात वाले डाटा में भी यही लग रहा है मुझे। कौन सबसे बड़ा निर्यातक है इसका फैसला इससे होने चाहिए की किसने कितने टन इस्पात निर्यात किया।

जहाँ तक रूपये के निरंतर अवमूल्यन का सवाल है इससे हमेशा एक्सपोर्ट में फायदा होता है और इम्पोर्ट यानी आयात में नूक्सान। चूँकि सरकार सारा डाटा डॉलर में दे रही है इसलिए रूपये के अवमूल्यन को उसमे consider नहीं किया गया है।

फिर भी सरकार का यह सब डाटा डॉलर के हिसाब से देना यह जाहिर करता है दाल में कुछ काला है। वैसे जाते जाते अपने बेनी प्रसाद वर्मा तो इतने योग्य नहीं है की यह सब हेरफेर कर सके जाहिर यह सब कारगुजारी मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टील के अधिकारियों की होगी।
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Default Re: कुतुबनुमा

आर्थिक अपराध रोकने की तरफ बड़ा कदम

लोकसभा में गुरूवार को सरकार की तरफ से पेश धन शोधन निवारण संशोधन विधेयक का पारित होना निश्चित रूप से आर्थिक अपराध रोकने की दिशा में कारगर हथियार साबित होगा। सरकार ने पूरी तैयारी के साथ इसे पेश किया और इस कानून को अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बनाया गया है जो इस मामलों से जुड़ी एजेंसियों के समक्ष आ रही दिक्कतों को दूर करने में सहायक होगा। विधेयक पेश करते हुए वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा भी है कि वित्त मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थाई समिति की सभी 18 सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सम्बंधित कानून में संशोधन के जरिए आर्थिक अपराध पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की गई है। दरअसल यह कानून इसलिए भी प्रभावी रहेगा क्योंकि इस विधेयक में भारतीय कानून और विदेशी कानून के प्रावधानों का समावेश करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप तैयार किया गया है। इसके तहत गलत तरीके से धन अर्जित करने और उसे छिपाने को आपराधिक कृत्य तो घोषित किया ही गया है साथ ही इस कानून के तहत जुर्माने की राशि को पांच लाख रुपए किया गया है और सम्पत्ति कुर्क करने का विधान भी किया गया है। भारत के वित्तीय कार्यवाही कार्य बल और धन शोधन पर एशिया प्रशांत निकाय का सदस्य होने के नाते यह विधेयक महत्वपूर्ण है। वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण विधेयक है और इसको लेकर भले ही विपक्ष यह आरोप लगाए कि इस विधेयक में आतंकवादियों को वित्त पोषण पर लगाम लगाने व मानव तस्करी को रोकने के लिए कानून के प्रावधान का अभाव है लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह विधेयक आर्थिक अपराधों पर नियंत्रण में बड़ा सहायक साबित होगा। इस विधेयक के पारित होने के साथ ही यह भी साबित हो गया कि सरकार सभी महत्वपूर्ण मसलों पर काफी गंभीर है और चाहती है कि विपक्ष भी उसे धन शोधन निवारण संशोधन विधेयक समेत अन्य जरूरी विधेयकों को पारित करवाने में सहयोग करे।
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आर्थिक अपराध रोकने की तरफ बड़ा कदम

लोकसभा में गुरूवार को सरकार की तरफ से पेश धन शोधन निवारण संशोधन विधेयक का पारित होना निश्चित रूप से आर्थिक अपराध रोकने की दिशा में कारगर हथियार साबित होगा। सरकार ने पूरी तैयारी के साथ इसे पेश किया और इस कानून को अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बनाया गया है जो इस मामलों से जुड़ी एजेंसियों के समक्ष आ रही दिक्कतों को दूर करने में सहायक होगा। विधेयक पेश करते हुए वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने कहा भी है कि वित्त मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थाई समिति की सभी 18 सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सम्बंधित कानून में संशोधन के जरिए आर्थिक अपराध पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की गई है। दरअसल यह कानून इसलिए भी प्रभावी रहेगा क्योंकि इस विधेयक में भारतीय कानून और विदेशी कानून के प्रावधानों का समावेश करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप तैयार किया गया है। इसके तहत गलत तरीके से धन अर्जित करने और उसे छिपाने को आपराधिक कृत्य तो घोषित किया ही गया है साथ ही इस कानून के तहत जुर्माने की राशि को पांच लाख रुपए किया गया है और सम्पत्ति कुर्क करने का विधान भी किया गया है। भारत के वित्तीय कार्यवाही कार्य बल और धन शोधन पर एशिया प्रशांत निकाय का सदस्य होने के नाते यह विधेयक महत्वपूर्ण है। वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण विधेयक है और इसको लेकर भले ही विपक्ष यह आरोप लगाए कि इस विधेयक में आतंकवादियों को वित्त पोषण पर लगाम लगाने व मानव तस्करी को रोकने के लिए कानून के प्रावधान का अभाव है लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह विधेयक आर्थिक अपराधों पर नियंत्रण में बड़ा सहायक साबित होगा। इस विधेयक के पारित होने के साथ ही यह भी साबित हो गया कि सरकार सभी महत्वपूर्ण मसलों पर काफी गंभीर है और चाहती है कि विपक्ष भी उसे धन शोधन निवारण संशोधन विधेयक समेत अन्य जरूरी विधेयकों को पारित करवाने में सहयोग करे।
हाँ, सच में पढने पर अच्छा लगा कि आर्थिक भृष्टाचार रोकने के लिए ठोस कदम उठाये गए हैं। किन्तु यही सरकार अपनों को लाभ अर्जित कराने के उद्देश्य से किसी भी कठोर कानून में ताबड़तोड़ संशोधनों से क़ानून की मौलिकता को समाप्तप्राय कर देती है। धन्यवाद बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 02-12-2012, 11:04 PM   #109
rajnish manga
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Originally Posted by Dark Saint Alaick View Post
आंकड़ों का खेल

विश्व इस्पात संघ द्वारा जारी वैश्विक आंकड़ों के अनुसार भारत 2010, 2011 और 2012 में सितंबर तक दुनिया का चौथा बड़ा इस्पात निर्माता देश है। जनवरी से सितंबर, 2012 के बीच चीन सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश रहा है। इस मामले में उसके बाद जापान और अमेरिका का स्थान है .......
मॉस्को निवासी मेरे एक मित्र हर बार नए साल के आसपास स्वदेश आते हैं। पति-पत्नी दोनों वहीं कार्यरत हैं। उनका पैतृक मकान मेरे अपार्टमेन्ट से कुछ ब्लॉक ही दूर है, लेकिन संबंधों की नजदीकियों की वज़ह यह नहीं है, बल्कि यह है कि कभी जयपुर में मार्क्सवादी साहित्य का केंद्र रहे 'किताबघर' (यह अब बंद हो चुका है) में हमारी लम्बी बैठकें होती थीं और अक्सर मैं बहस में उन्हें हरा देता था। किन्तु अब स्थिति उलट है, इसलिए कि अब जब भी वे आते हैं, तो मेरे लिए दो बोतलें लाते हैं - एक तो स्कॉच और दूसरी रूस की शुद्ध वोदका। ज़ाहिर है, अब मैं कभी-कभी उनसे जान-बूझ कर हार जाता हूं। खैर, यह तो मैं भटक गया। मुद्दे पर आते हैं ... और आप चौथे स्थान पर खिसकने का जश्न मना रहे हैं। केंद्र सरकार यह अपनी उपलब्धि गिना रही है या नाकामी को छुपा रही है? आपको कैसा लगा आंकड़ों का यह खेल? क्या ख्याल है आपका ?


सेंट अलैक जी, इतने गंभीर मुद्दे को आपने इतनी सरलता से हमें समझा दिया, इस के लिये आपका धन्यवाद. इस्पात मंत्रालय के आंकड़ों पर आपका विवेचन सारगर्भित है. लेकिन इसके इतर भी आपने अपने मित्र के माध्यम से एक कमाल का प्रसंग इतनी सहजता से बताया कि मज़ा आ गया. ऐसे हलके फुल्के प्रसंग आपके लेखन को और भी अधिक पठनीय बना देते है.
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Old 05-12-2012, 03:58 AM   #110
Dark Saint Alaick
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Default Re: कुतुबनुमा

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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
अलैक जी नमस्कार।
मित्र, क्या ये आंकड़े रूपये के निरंतर अवमूल्यन के कारण इतने अस्थिर हुए हैं?
विश्व में किसी धातु के उत्पादन में हम चौथे स्थान पर हैं। हाँ, यह सांख्यिकीय खेल हो सकता है किन्तु मौलिक स्थिति इससे बहुत अधिक दूर भी नहीं होनी चाहिए। घटती निर्यात-राशि का संपर्क तो मुद्रा के अवमूल्यन से जुड़ा हुआ भी हो सकता है और निर्यात की मात्रा में कमी आने से भी। निर्यात में कम मात्रा का कारण घरेलू खपत का बढना भी हो सकता और मूल उत्पादन में कमी होना भी संभव है। घरेलू खपत बढ़ने का तात्पर्य घरेलू विकास से हो सकता है। यह हमारी सुदृढ़ता का प्रतीक है।
वैश्विक मंदी के दौर को भी नहीं भुलाना चाहिए। यह वही दौर था जब विश्व के बहुत से देशों के आर्थिक प्रबंधन का ढांचा ही चरमरा गया था किन्तु उस दौर में भी भारत कहीं न कहीं अटल और स्थिर रहते हुए अपने मौद्रिक प्रबंधन का लोहा मनवाया था। मुझे लगता है कि यह आंकड़े बाजी भी कई बार आवश्यक होती है। इति ।
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद, जय भाई। महज मुद्रा का अवमूल्यन इतने बड़े अंतर का कारण नहीं हो सकता। 6029.82 मिलियन अमेरिकन डॉलर और 1103.84 में बहुत बड़ा अंतर है और वह भी महज चार वर्ष में। मुद्रा का इतना भी अवमूल्यन नहीं हुआ कि आंकड़े हमें इस तरह मुंह चिढ़ाएं। जहां तक उत्पादन का प्रश्न है यह 2007 में 53.5, 2008 में 57.8, 2009 में 62.8, 2010 में 68.3 और 2011 में 72.2 मिलियन टन रहा है यानी लगातार बढ़ा है। जहां तक घरेलू खपत का सवाल है, वह गत पांच वर्ष के दौरान सिर्फ 25 फीसदी बढ़ी है, और हमारा निर्यात तकरीबन 75 प्रतिशत नीचे आ गया है। ज़ाहिर है, भारत के इस बाज़ार पर चीन कब्जा कर चुका है और हम चौथे स्थान पर खिसक कर भी चैन की बंशी ही नहीं बजा रहे हैं, उस पर उल्लास की धुनें भी निकाल रहे हैं। जहां तक मौद्रिक प्रबंधन की बात है, मेरा मानना है कि इसमें सरकार की कोई बड़ी बाजीगरी नहीं थी, बल्कि यह इस देश के नागरिकों की संतोषी प्रवृत्ति का कमाल था। धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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