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Old 20-10-2012, 03:16 AM   #1111
Dark Saint Alaick
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

भारत को पसंद करने वाले चीनियों की संख्या 25 फीसदी से भी कम

वाशिंगटन। भारत की आर्थिक वृद्धि से सतर्क चीनियों की बड़ी आबादी भारत के बारे में नकारात्मक राय रखती है। वॉशिंगटन स्थित पेव रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में कहा गया है कि करीब एक चौथाई (लगभग 23 फीसदी) चीनी भारत के लिए अनुकूल राय रखते हैं, जबकि 62 फीसदी की राय नकारात्मक है। सेंटर ने कहा कि वर्तमान में केवल 44 फीसदी चीनियों का कहना है कि उनके दक्षिणी पड़ोसी देश की अर्थव्यवस्था का विस्तार चीन के लिए सकारात्मक है। हालांकि यह संख्या 2010 की तुलना में कम है। इसी अवधि में भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को अपने लिए बुरा मानने वालों की संख्या करीब करीब दोगुनी हो गई है। चीन के प्रति भारतीयों का नजरिया भी लगभग ऐसा ही है और शायद अधिक नकारात्मक है। सर्वे में कहा गया है कि केवल 23 फीसदी भारतीय अपने देश के नेतृत्व को चीन के साथ सहयोगात्मक मानते हैं और 24 फीसदी को लगता है कि चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था भारत के लिए अच्छी बात है। बहरहाल, सर्वे में बताया गया है कि चीनियों का रुख भारत की तुलना में पाकिस्तान के प्रति अच्छा है। पेव ने कहा कि चीन के पाकिस्तान के साथ सम्बंध अधिक उज्ज्वल हैं और करीब 49 फीसदी चीनी इन रिश्तों को सहयोग के तौर पर देखते हैं। केवल दस फीसदी ने इन रिश्तों को शत्रुतापूर्ण बताया। रूस के प्रति चीन का रवैया संतुलित है। 48 फीसदी चीनियों ने रूस के बारे में सकारात्मक और 38 फीसदी ने नकारात्मक राय जाहिर की। जहां तक अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की बात है तो केवल 43 फीसदी चीनियों ने दोनों के पक्ष में अपने विचार जाहिर किए। केवल 33 फीसदी चीनियों ने यूरोपीय संघ के लिए और 31 फीसदी ने पाकिस्तान के लिए सकारात्मक राय जताई। खबर में कहा गया है कि ईरान के पक्ष में राय जाहिर करने वाले चीनियों की संख्या केवल 21 फीसदी थी। वर्ष 2011 की तुलना में यह संख्या आठ फीसदी कम हुई है। पेव के अनुसार, वर्ष 2010 में जहां 68 फीसदी चीनी मानते थे कि उनके देश के अमेरिका के साथ सम्बंध सहयोगात्मक हैं, वहीं इस बार यह संख्या घट कर मात्र 39 फीसदी रह गई। इसी तरह भारत के साथ रिश्तों को सहयोगात्मक मानने वाले चीनियों की संख्या 2010 में 53 फीसदी थी, लेकिन अब केवल 39 फीसदी चीनी इन रिश्तों को सकारात्मक नजरिये से देखते हैं। चीन की पुरानी क्षेत्रीय प्रतिद्वन्द्विता के मद्देनजर उसके 41 फीसदी नागरिकों ने अपने देश के जापान के साथ रिश्तों को शत्रुतापूर्ण कहा। इन रिश्तों को सहयोगी मानने वाले चीनियों की संख्या प्रति दस में केवल तीन थी।
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Old 20-10-2012, 03:17 AM   #1112
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

किशोरावस्था में मोटापे से लड़कों में नपुंसकता का खतरा

न्यूयॉर्क। मोटापे के शिकार किशोर लड़कों में अपने पतले लड़कों के मुकाबले 50 फीसदी कम टेस्टोस्टेरोन होता है जिससे बाद में जिंदगी में जाकर उन्हें नपुंसकता का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय मूल के एक शोधकर्ता की अगुवाई में किए गए शोध में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह शोध परिणाम मोटे किशोरों के लिए ‘गंभीर संदेश’ है। अमेरिका में यूनिवर्सिटी आफ बफेलो में शोध टीम की अगुवा डॉ. परेश दानदोना ने बताया कि हम मोटे किशोरों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की 50 फीसदी की कमी देखकर हैरान हैं क्योंकि ये लोग युवा हैं और इन्हें मधुमेह जैसी कोई समस्या भी नहीं है। हमारे शोध के परिणाम भयंकर हो सकते हैं क्योंकि इन मोटे किशोरों को बाद में जाकर नपुंसकता के खतरे का सामना करना पड़ सकता है।
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Old 20-10-2012, 03:18 AM   #1113
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

अब आ गया वजन घटाने में मददगार ‘जीरो’ नूडल्स

लंदन। जापान ने एक नया ब्रांड ‘जीरो नूडल्स’ पेश किया है जिसके बारे में दावा किया गया है कि यह वजन घटाने में मददगार होगा। इसके निर्माताओं का दावा है कि ‘जीरो’ नूडल्स में कैलोरी की मात्रा 200 ग्राम के पैकेट में केवल दस है। इसे खाने के बाद पूरी तरह तृप्ति का अहसास होगा और वजन भी नहीं बढेगा। डेली मेल की खबर के अनुसार, ‘जीरो’ नूडल्स एशियन ग्राउंड रूट कोन्जैक और 96 फीसदी पानी से तैयार किया गया है। इसके निर्माताओं का दावा है कि यह न केवल कैलोरी की बड़ी मात्रा कम करेगा बल्कि आपके मस्तिष्क को यह सोचने के लिए प्रेरित करेगा कि आपने पेट भर भोजन कर लिया है। इस ब्रांड के ब्रिटिश वितरक ग्लो न्यूट्रीशन की आहार विशेषज्ञ लॉरा लैमोन्ट ने कहा कि पास्ता की जगह लेता जा रहा ‘जीरो’ नूडल्स कम कैलोरी वाला है, कोन्जैक रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर करता है तथा भूख और अधिक खाने की आदत को भी नियंत्रित करता है।
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Old 20-10-2012, 03:19 AM   #1114
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Default Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें

रजोनिवृत्ति की वजह से नहीं बढ़ता वजन

नई दिल्ली। महिलाओं में आम धारणा है कि रजोनिवृत्ति के बाद उनका वजन तेजी से बढेगा लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। वजन बढने का कारण पेट के निचले भाग में वसा का जमाव होता है, रजोनिवृत्ति नहीं। ‘बोर्ड आफ इंटरनेशनल मीनोपॉज सोसायटी’ की सदस्य और ‘इंडियन मीनोपॉज सोसायटी’ की पूर्व अध्यक्ष डॉ. दूरू शाह ने कहा, ‘हमेशा से यह धारणा रही है कि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं का वजन बढता है। यह सही नहीं है। वैज्ञानिक आंकड़े बताते हैं कि पेट में वसीय उतकों का जमाव कॉर्डियोवैस्कुलर बीमारी के कारण होता है, रजोनिवृत्ति के कारण नहीं। यही वजह है कि महिलाओं में कॉर्डियोवैस्कुलर की समस्या अक्सर रजोनिवृत्ति के बाद देखी जाती है पहले नहीं।’ ‘इंडियन मीनोपॉज सोसायटी’ की अध्यक्ष डॉ. मीता सिंह ने कहा, ‘भारत में मोटापे के मुख्य कारण आधुनिक जीवन शैली, असंयमित खानपान और शारीरिक सक्रियता की कमी है। रजोनिवृत्ति का संबंध किसी भी तरह मोटापे से नहीं है। हां, रजोनिवृत्ति के बाद महिलओं में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी हो जाती है इसलिए शरीर के आकार में थोड़ा बहुत परिवर्तन होता है। अगर वजन अधिक हो जाए तो यह खतरे का संकेत है क्योंकि वजन अधिक होने से हृदय संबंधी बीमारी का खतरा बढ जाता है। वैसे भी रजोनिवृत्ति के बाद हृदय संबंधी बीमारी महिलाओं की मौत का बड़ा कारण होती है।’ उन्होंने कहा कि रजोनिवृत्ति के बाद पेट के निचले भाग में वसा का फिर से जमाव होने लगता है जिसकी वजह से मधुमेह और कार्डियोवैस्कुलर बीमारी का खतरा बढ जाता है। आधुनिक जीवन शैली, असंयमित खानपान और शारीरिक सक्रियता की कमी आदि में सुधार किया जा सकता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अर्चना धवन बजाज ने कहा कि रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी हो जाती है और इसीलिए वसा का जमाव कमर के उपरी भाग में होने लगता है जो कि पहले कूल्हों में होता था। उन्होंने कहा कि मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियां चयापचय की बीमारियां होती हैं जिनका खतरा पेट के निचले भाग और कमर के उपरी भाग में वसा के जमाव से बढ जाता है। इन सभी खतरों का सीधा संबंध एस्ट्रोजन हार्मोन में रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली कमी से है। एस्ट्रोजन थैरेपी से रजोनिवृत्ति के बाद पेट के निचले भाग में वसा का जमाव रोका जा सकता है। यह थैरेपी ‘हार्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी’ होती है। हर साल 18 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय रजोनिवृत्ति दिवस मनाया जाता है। डॉ. अर्चना ने कहा कि महिलाओं को समय रहते कदम उठाना चाहिए ताकि रजोनिवृत्ति के बाद उन्हें वजन बढने जैसी समस्या का सामना न करना पड़े। ‘हालांकि हर महिला की शारीरिक संरचना अलग होती है इसलिए वजन में वृद्धि को असामान्य नहीं समझना चाहिए। इसी तरह रजोनिवृत्ति भी एक सामान्य क्रिया है जिसका सामना हर महिला को करना पड़ता है।’ डॉ. सिंह ने कहा कि हार्मोन में किसी भी तरह का परिवर्तन शरीर पर गहरा प्रभाव डालता है। यही बात एस्ट्रोजन हार्मोन के साथ है। यह हार्मोन हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है। इसकी कमी की वजह से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और जल्द ही उनके टूटने का खतरा होता है। इसीलिए यह भी कहा जाता है कि रजोनिवृत्ति की वजह से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। अगर कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा ली जाए तो यह खतरा दूर हो सकता है।
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Old 20-10-2012, 03:20 AM   #1115
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स्तनपान कराने से कम होता है स्तन कैंसर का खतरा

वाशिंगटन। स्तनपान कराने से महिलाओं के स्तन कैंसर की चपेट में आने का खतरा कम हो जाता है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने पाया कि स्तनपान से एस्ट्रोजन रिसेप्टर (ईआर) और प्रोजेस्ट्रोन रिसेप्टर निगेटिव (पीआर) कैंसर का खतरा कम हो जाता है। शोधकर्ताओं ने अपने इस शोध के दौरान कई पहलुओं का अध्ययन किया, जिनमें महिला द्वारा पैदा किए गए बच्चों की संख्या और स्तनपान आदि शामिल थे। शोध के नतीजों में पाया गया कि बिना स्तनपान कराए तीन या अधिक बच्चे होना ईआर-पीआर निगेटिव स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। ईआर-पीआर निगेटिव स्तन कैंसर आमतौर पर युवा महिलाओं को होता है और इसका पता बहुत देर में चलता है। शोध रिपोर्ट की लेखिका मेगान वर्क कहती हैं कि यदि महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान कराती हैं तो उनमें ईआर-पीआर निगेटिव कैंसर पनपने की आशंका नहीं रहती।
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Old 20-10-2012, 03:22 AM   #1116
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मंगल की सतह पर मिले चमकीले पिंड

लॉस एंजिलिस। मंगल के रहस्य सुलझाने के लिए वहां गए नासा के रोवर को लाल ग्रह की सतह पर चमकीले रंग के कुछ पिंड मिले हैं। विशेषज्ञों को पहले इनके मानव निर्मित होने का संदेह हुआ, लेकिन बाद में ज्यादातर वैज्ञानिकों ने कहा कि ये मंगल का ही हिस्सा हैं। मंगल पर रोवर क्यूरियोसिटी ढाई माह पूरे कर चुका है। नासा ने कहा कि कार के आकार के इस रोवर का चेमिन उपकरण (कैमिस्ट्री और मिनरोलॉजी) मिट्टी का अभी और अध्ययन करेगा। कुछ विशेषज्ञों को आश्चर्य है कि तस्वीर में मंगल की सतह पर रोवर के चलने से बने गड्ढों में नजर आ रहे चमकीले रंग के पिंड क्या मानव निर्मित हैं। इस माह के शुरू में भी रोवर से मिली एक तस्वीर में एक ऐसा ही पिंड नजर आया था जिसके बारे में सोचा गया कि यह रोवर का ही प्लास्टिक है। क्यूरियोसिटी के परियोजना वैज्ञानिक ने कहा कि हमें कुछ चमकीले पिंड दिखे हैं। वैज्ञानिक दल उन्हें ‘श्मुत्ज’ कह रहा है। पहले कहा गया कि ये पिंड मानव निर्मित हो सकते हैं। फिर ज्यादातर वैज्ञानिकों ने कहा कि यह मंगल पर ही बने हैं क्योंकि ये उन जगहों पर नजर आ रहे हैं जहां रोवर के चलने की वजह से गड्ढे हुए। इसका मतलब है कि ये पिंड मंगल की सतह के नीचे थे।
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Old 20-10-2012, 03:23 AM   #1117
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चीन में है दुनिया का सबसे छोटा अंडा

बीजिंग। चीन के अधिकारियों का कहना है कि चोंगछिन नगलपालिका में मिला नया अंडा शायद दुनिया का सबसे छोटा अंडा होने का रिकार्ड बना सकता है । मलेशियन बंटम प्रजाति की मुर्गी ने सोमवार को एक अंडा दिया है जो करीब दो सेंटीमीटर का है और उसका वजन मात्र 2.58 ग्राम है । यह मुर्गी चोंगछिन के शापिनंगबा जिले के 55 वर्षीय हजाम हे दाइयू की है । इस अंडे का आकार बटेर के अंडे के मुकाबले आधा है । अभी तक दुनिया के सबसे छोटे अंडे के मालिक थे अमेरिका के पश्चिमी वर्जीनिया के डोनि रसेल । इसका आकार 2.1 सेंटीमीटर है और वजन 3.46 ग्राम था । दाइयू ने कहा कि मुर्गी ने पिछले वर्ष नवंबर से अंडे देने शुरू किए हैं और अभी तक 150 सामान्य अंडे दे चुकी है । शिन्हुआ की खबर के अनुसार उनका कहना है, ‘छोटे अंडे ने मुझे वाकई आश्चर्यचकित कर दिया । मैंने इसे गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल कराने के तरीके देखे और अब मैं इसके लिए कोशिश करना चाहता हूं ।’ वह अपनी इस मुर्गी के सेये हुए चूजों को 80 से 150 युआन की कीमत पर बेचते हैं ।
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पुरुषों के मुकाबले पुलित्जर पुरस्कार विजेता महिलाओं की योग्यता होती है अधिक

वाशिंगटन। महिलाओं को पुलित्जर पुरस्कार जीतने के लिए पुरुष समकक्षों की तुलना में अधिक योग्यता की जरुरत होती है। यह बात एक नये अध्ययन में सामने आयी है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार होता है। यूनीवर्सिटी आफ मिसौरी के एक अनुसंधानकर्ता ने पाया है कि गत कुछ दशकों के दौरान प्र्रगति के बावजूद पत्रकारिता के क्षेत्र में लिंग असमानता इस पेशे के समय से ही जारी है। मिसौरी यूनवर्सिटी स्कूल आफ जर्नलिज्म के सहायक प्रोफेसर योंग वोल्ज के नेतृत्व में अनुसंधानकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन के जिए वर्ष 1917 से वर्ष 2010 के सभी 814 पुरस्कार प्राप्त करने वालों की जीवनी का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि 113 महिला पुरस्कार विजेताओं में से अधिकतर महिलाओं की योग्यता पुरुष पुरस्कार विजेताओं से अधिक थी।
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स्तन कैंसर से बचा सकता है ग्रीन टी का सत्त : अध्ययन

न्यूयॉर्क। औषधीय गुणों से भरपूर ग्रीन टी के बारे में अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि उसके सत्त में ऐसी शक्ति है, जो स्तन कैंसर में ट्यूमर कोशिकाओं के विकास को रोक सकता है । न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेन्टर के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि ग्रीन टी का सत्त ‘पॉलीफेनोन ई’ वैस्कुलर एंडोथेलिअल ग्रोथ फैक्टर (कोशिकाओं द्वारा उत्पादित एक प्रोटीन) और हेप्टोसाइट ग्रोथ फैक्टर को रोकता है । यह दोनों ट्यूमर कोशिकाओं के विकास, फैलाव और हस्तक्षेप के लिए जिम्मेदार हैं । अनुसंधानकर्ता कैथरीन डी. क्रू ने कहा कि हार्मोन रेसेप्टर-नेगेटिव स्तन कैंसर वाली 40 महिलाओं के समूह पर पॉलिफेनोन ई का प्लासेबो नियंत्रित अध्ययन किया गया । इस प्रकार के कैंसर पर मरीज को दवा के रूप में हार्मोन नहीं दिया जा सकता । सामान्य कैंसर के इलाज के दौरान ट्यूमर कोशिकाओं को फैलने से रोकने के लिए मरीज को हार्मोन दिया जाता है । इस अनुसंधान के परिणामों को कैलिफोर्निया में ‘फ्रंटियर्स इन कैंसर प्रेवेंशन रिसर्च’ पर आयोजित 11वें वार्षिक एएसीआर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था ।
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25 करोड़ वर्ष पहले विलुप्तता के बाद जीवन के लिए बहुत गर्म थी पृथ्वी

लंदन। वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में पता लगाया है कि पृथ्वी पर करीब 25 करोड़ वर्ष पहले बड़ी संख्या में प्रणियों के विलुप्त होने के बाद धरती का तापमान जीवन धारण करने के लिहाज से बहुत गर्म रहा । पृथ्वी की यह अवस्था करीब 50 लाख वर्षों तक बनी रही । विशेषज्ञ अभी तक 25 करोड़ वर्ष पहले परमिअन-ट्रीआसिक काल में हुए इस बड़े पैमाने में प्राणियों की विलुप्तता के बाद जीवन के विकास में लगे लंबे समय की गुत्थी को नहीं सुलझा पाए थे । ‘डेली मेल’ की खबर के मुताबिक, इस काल में करीब 96 प्रतिशत समुद्री प्रजातियां और धरती पर रहने वाली 70 प्रतिशत प्रजातियां लुप्त हो गई थीं । माना जाता है कि इस घटना के पीछे जलवायु परिवर्तन और ज्वालामुखी क्रियाओं का हाथ था । सामान्य तौर पर इतने बड़े पैमाने पर हुई विलुप्तता के बाद जीवन को पनपने में करीब पांच हजार वर्ष का समय लगता है । लेकिन परमिअन-ट्रीआसिक काल में हुई इस विलुप्तता के बाद जीवन को पनपने में असामान्य रूप से 10 लाख वर्ष का समय लग गया । बड़े पैमाने पर हुए विलुप्तता के बाद से जीवन पनपने के बीच के समय को वैज्ञानिक ‘डेड जोन’ कहते हैं । वैज्ञानिकों का कहना है कि इस 50 लाख वर्ष के दौरान धरती का तापमान 60 डिग्री सेल्सियस और समुद्र का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस रहा जिसने जीवन को फिर से पनपने से रोका । इस अध्ययन के परिणाम ‘साइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुए हैं ।
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