04-10-2015, 07:56 PM | #1131 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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04-10-2015, 11:19 PM | #1132 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मगर ये बात पुराने......ज़माने वाली है (डॉ. असद बदायूँनी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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06-10-2015, 06:16 PM | #1133 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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07-10-2015, 09:04 AM | #1134 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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फ़ज़ा-ए-मुर्दा-ए-दिल में........बहार आई है (निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-निगार = उसके बालों की खुशबू / फ़ज़ा-ए-मुर्दा-ए-दिल = मरे हुए दिल का हाल) (कौसर नियाज़ी)
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08-10-2015, 12:33 AM | #1135 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हे करुणाकर, करुणा सागर! क्यो इतनी दुर्बलताओं का दीप शून्य गृह मानव अंतर! दैन्य पराभव आशंका की छाया से विदीर्ण चिर जर्जर! चीर हृदय के तम का गह्वर स्वर्ण स्वप्न जो आते बाहर गाते वे किस भाँति प्रीति आशा के गीत प्रतीति से मुखर? तुम अपनी आभा में छिपकर दुर्बल मनुज बने क्यों कातर! यदि अनंत कुछ इस जग में वह मानव का दारिद्रय भयंकर! अखिल ज्ञान संकल्प मनोबल पलक मारते होते ओझल, केवल रह जाता अथाह नैराश्य, क्षोभ संघर्ष निरंतर! देव पूर्ण निज रुपों में स्थित पशु प्रसन्न जीवन में सीमित, मानव की सीमा अशांत छूने असीम के छोर अनश्वर! एक ज्योति का रूप यह तमस कूप वारि सागर का अंभस् यह उस जग का अंधकार जिसमें शत तारा चंद्र दिवाकर! अविच्छिन्न(सुमित्रानंदन पंत) |
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08-10-2015, 09:21 PM | #1136 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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आज कल दिन में क्या नहीं होता जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता (बशीर बद्र)
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09-10-2015, 05:22 PM | #1137 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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09-10-2015, 09:29 PM | #1138 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रोशनी करने का मतलब ये नहीं होता कि तुम जिसको परदा चाहिये उसको भी बेपरदा करो (कुंवर बैचेन)
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11-10-2015, 10:42 PM | #1139 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रामू जेठ बहू से बोले, मत हो बेटी बोर कुत्ते तभी भौंकते हैं जब दिखें गली में चोर वफ़ादार होते हैं कुत्ते, नर हैं नमक हराम मिली जिसे कुत्ते की उपमा, चमका उसका नाम (अल्हड़ बीकानेरी) |
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12-10-2015, 09:32 AM | #1140 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मैं भी हाथ बढ़ा कर छूता लेकिन चाँद बहुत ऊंचा था होंठ रहे फिर बरसों सूखे ख्वाब में इक दरिया देखा था (तारिक़ क़मर तारिक़)
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