19-10-2015, 09:10 PM | #1141 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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20-10-2015, 12:10 AM | #1142 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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महफूज़ नहीं कूचा-ओ-बाज़ार खबरदार तीरों की है बौछार क़दम रोक उधर से इस मोड़ पे चलने लगी तलवार खबरदार आसेब = प्रेत आत्मा (मुज़फ्फ़र हनफ़ी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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21-10-2015, 01:11 PM | #1143 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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रखवाली है, हर सिसक और चीत्कारों पर तस्वीर तुम्हारी होती है, मत खड़े रहो, ऐ ढीठ रुकावट होती है साँसों के आने-जाने में | (माखनलाल चतुर्वेदी) |
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21-10-2015, 02:44 PM | #1144 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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उलझी निद्रा-पंखों में या निर्मिमेष पलकों में चिंता का अभिनय देखूँ ! तुझमे अम्लान हंसी है इसमें अजस्र आँसू जल तेरा वैभव देखूँ या जीवन का क्रन्दन देखूँ ! (महादेवी वर्मा)
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21-10-2015, 08:43 PM | #1145 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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खूबियाँ इतनी तो नही हम में कि तुम्हे कभी याद आएँगे, पर इतना तो ऐतबार है हमे खुद पर, आप हमे कभी भूल नही पाएँगे। (अज्ञात) |
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22-10-2015, 12:35 PM | #1146 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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गुंचा हंसा न हो कली दिल की खिली न हो ये क्या चमन में पत्ता हरा एक भी न हो उस बांसुरी से हमको सरोकार कुछ नहीं वो बांसुरी जो सांवरे घनश्याम की न हो (अनु जसरोटिया)
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23-10-2015, 10:24 PM | #1147 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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हठीले मेरे भोले पथिक! किधर जाते हो आकस्मात। अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ, सोच तो लो आगे की बात॥ (सुभद्राकुमारी चौहान) |
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24-10-2015, 01:36 PM | #1148 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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पैर पसारे शहर ने, ढूंढें मिले न छाँव हरकू माथा पीटता, सोच रहा हैरान गाँव बना है भेड़िया, शहर हुआ शैतान (सूरज पाल सिंह चौहान)
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26-10-2015, 10:38 PM | #1149 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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न मौलाना में लग्ज़ि्श है न साज़िश की है गाँधी ने चलाया एक रुख़ उनको फ़क़त मग़रिब की आंधी ने (अकबर इलाहाबादी) |
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26-10-2015, 11:01 PM | #1150 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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नज़र मिलने को मिल जाती है पहचानी नहीं जाती (ज़िया अली)
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