22-05-2011, 07:29 PM | #111 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"भाई जान!उन्होंने सारी बातें सुन ली. चुप रसूलन. आपा चलो." दोनों दुबककर निकलने लगीं. एक चुहिया भाई जान के स्टिक को नफरत से घूरती पुराने पलंग के बानों में घुस गयी. "क्या आप...अच्छा, तो यह कहिये..साजिशें हो रही है... मगर मैंने सुन लिया है. वह दीन मुहम्मद की कमीज..मेहँदी के नीचे. " भाई जान तेल की तलाश में पीपे टटोलने लगे. "तो..तो आप देर से खड़े थे...?" सलमा ने चाहा, उसके चेहरे की सफेदी आँचल में जज्ब हो सके, तो क्या कहने! "और क्या, बरामदे में था मैं...अब तुम पकड़ी गयीं...बताओ क्या साजिश थी?" "भाई जान.." "कुछ नहीं सच-सच बता दो, नहीं तो अभी अम्मी से जाकर कहता हूँ..बोलो क्या बात है?" "अच्छे भाई जान!...देखिये गरीब रसूलन..हाय अल्लाह!" निजहत का जी चाहा जोर से चने की गोली से माथा फोड डाले. "यह रसूलन... सुअरनी है. मेरे सारे जूते पलंग के नीचे भर देती है. इस चुड़ैल की तो खाल खिंचवा दूंगा. ठहर जा... क्या गाड़ कर आई है...शर्तिया..." "नहीं, भाई जान!..अच्छा आप कसम खाइए कि कहेंगे नहीं किसी से." सलमा ने बढ़कर प्यार से भाई जान के गले में बाहें डाल दी. "हटो, नहीं खाते हम कसम!.. मत बताओ हमें. हम खुद जानते है. आज से नहीं कई दिन से..."
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
22-05-2011, 07:32 PM | #112 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"हाय मेरे मौला!" रसूलन औंधी पड़कर फूट-फूटकर रोने लगी.
"अच्छे भाई जान, आप हमारा ही मरा मुँह देखे, जो किसी से कहे...सुनिए, हम सब बता देंगे." दूसरी तरफ से निजहत ने गला दाबा. "बात यह है." और कान में सलमा ने खुसुर-पुसुर करके कुछ बताना शुरू किया. "अरे?...कब?" भी जान की नाक फड़की और भवें टेढ़ी-मेढ़ी लहरें लेने लगीं. "कल शाम को..." निजहत ने हौले से बताया. "अब्बा जान क्लब गए थे और अम्मी सो रही थीं." सलमा के गले में सूखा आटा फंसने लगा. "हूँ, फिर...अब क्या उन्हें पता नहीं चल जायेगा?" भाई जान दोनों को झिटककर बोले. "मगर आप...आप न कहियेगा. आप को रजिया आपा की कसम." सलमा ने कहा. "रजिया...रजिया...हैं! हुश्त...हटो...हम किसी की कसमें नहीं खाया करते." और वह हाथ झटकाते चले " हम जरूर कहेंगे...वाह, हटो, हम जा रहे है." "आपा, तुम भी क्या हो!...इतनी जोर-जोर से बोलती हो कि सब उन्होंने सुन लिया." भाई जान के जाने के बाद सलमा की आँखे आंसुओं में डूब गयीं. " ये भाई किसी के नहीं होते. स्वेटर बुनवाये, बटन टंकवाएं, वक्त-बेवक्त अंडे तलवाये, रुपया उधर ले जाए और कभी भूलकर भी वापस न करें. क्या मिस्कीं सूरत बना लेते है, जैसे बड़ी मुसीबत पड़ी है, निजहत गुडिया, जरा एक रुपया उधार दे दो. सच कहता हूँ, कल एक के बदले दो दे दूंगा...हुंह! और दुगुने तो दुगुने, असल ही दे दें तो बहुत जानो." निजहत बिलकुल बगावत पर तुल गयी.. क्रमशः...
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
24-05-2011, 05:42 PM | #113 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
रसूलन की माँ रोटियों के लिए पलेथन लेने आई. बेचारी के सारे मुँह पर झुर्रियाँ पड़ी हुयी थीं और चेहरे से नफरत और गुस्सा बरस रहा था.
"अरे रसूलन की माँ, इसका बुखार नहीं उतरता. तुम कुछ करती भी नहीं." निजहत ने डांटा. "अरे बेटा, क्या करूँ. हरामखोर ने मुझे तो कहीं का न रक्खा. जहाँ नौकरी की, इसी के गुणों से निकली गयी...घडी भर को चैन नहीं." "मगर रसूलन की माँ, तुम चाहो कि ये मर ही जाये, तो तुम भी नहीं छुटोगी, हाँ और क्या." "मर जाये, तो पाप ही न कट जाये. कलमुंही ने मुझे मुँह दिखने का न रक्खा. ....थानेदारिनी तो अब भी मुझे रखने को कहती है, पर इस कमीनी के मारे कहीं नहीं जाती...जब देखो, मुझे तो इन नसीबों का रोना है. जवान बेटा चल दिया और यह मारी गयी रह गयी, मेरे कलेजे पर मूंग दलने को." "तो जहर दे दे न मुझे...हो...हो-हो!" रसूलन ने बेबसी से रोकर कहा. "अरे मैं क्या दूँगी जहर, इन करतूतों से देख लेना, जेल जायेगी और वहीँ सड-सड के मरेगी. लो, अंधेर खुदा का! मुझसे कहा तक न इसने! हटो बीबी, मुझे आटा लेने दो."
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
24-05-2011, 05:47 PM | #114 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"यह क्या हो रहा है यहाँ, सलमा...निजहत...हूँ, कितनी दफा कहा है कि शरीफ बेटियां रजिलों-कमीनों के पास नहीं उठती-बैठतीं, मगर नहीं सुनती. ...चलो, यहाँ से निकालो...ऊई, इसे क्या हुआ, जो लाश बनी पड़ी है, बन्नो?"
"जी...जी, बुखार है, बीबीजी, कमबख्त को!" रसूलन की माँ जल्दी-जल्दी आटा छानने लगी. "बुखार तो नहीं मालूम हो़ता. खासा तबक-सा चेहरा बना रखा है. यह क्यों नहीं कहतीं कि बन्नो... "बीबीजी...यह देखिये..." दीन मुहम्मद बीच में चिल्लाया. "आप!...वह...वह ले आया!" सलमा ने जैसे कब्र से निकली लाश को देखकर घिघियाना शुरू कर दिया और निजहत से लिपट गयी. "अरे क्या है?" "यह...देखिये पिछवाड़े, मेहँदी के तले." "है-है!...कमबख्त...ऊई!" अम्मा जान के हाथ से लोटा छूट पड़ा. वे मरी हुयी चुहिया तो देख न सकती थीं. "यह...यह, इस रसूलन ने, बीबीजी...मेहँदी के नीचे गाडा...यह देखिये!" रसूलन का जी चाहा वह भी नन्ही-सी चुहिया होती और सट से मटकों के पीछे जा छुपती.
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! Last edited by MissK; 24-05-2011 at 05:56 PM. |
24-05-2011, 05:50 PM | #115 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"चल झूठे!...कैसा बन रहा है...जैसे खुद बड़ा मासूम है." निजहत चिल्लाई.
"तो क्या मैंने मारा? वाह साहब, वाह!...वाह निजहत बी! और फिर अपनी ही कमीज में लपेट देता कि झट पकड़ा जाऊं!"...बीबीजी, यह रसूलन ने गाडा." "चल, नामुराद! तुझे कैसे मालूम, मेरी बच्ची ने गाडा है? तेरी अम्मा-बहना ने गाडा होगा. और मेरी लौंडिया के सर थोप रहा है. उसका जी परसों से अच्छा नहीं है. अलग पड़ी है कोठरी में." रसूलन की माँ दहाड़ी और जोर-जोर से छलनी से आटा उड़ाने लगी, ताकि सब के दम घुटने लगे और भाग खड़े हों. वह अपनी पीठ से रसूलन को छुपाये रही. कहते हैं, दाई ने उसके गले में बांस घंघोल दिया था, तभी तो ऐसा चीखती थी. मोहल्ले की ज्यादातर लड़ाईयां वह केवल अपने गले के जोर से जीत जाया करती थी. " सरकार में शर्त बदता हूँ. इसी का काम है यह... यह देखिये, मेरी कमीज भी चुराकर फाड डाली. जाने दूसरी आस्तीन कहाँ गयी?" दीन मुहम्मद बोला. "हरामखोर, उसी का नाम लिए जाता है. कह दिया, परसों से तो वह पड़ी मर रही है. मुर्गियाँ भी मैंने बंद कीं और अपने हाथ से गोदाम की झड निकाली. ...मुआ काम है कि दम को लगा है." रसूलन की माँ झूट-सच उड़ने लगी. "इसलिए तो मक्कर साधे पड़ी है डर के मरे, नहीं तो हमें क्या मालूम नहीं इसका मरज...चुपके से गाड़ आई कि सरकार को मालूम हो गया, तो जान की खैर नहीं. " बीबीजी जूतियों में से पानी टपकाने लगी "इस चुड़ैल से तो मैं तंग आ गयी हूँ. रसूलन की माँ, यह कीडों भरा कबाब मैं घडी भर नहीं रखने की. लो भला गजब खुदा का है कि नहीं!" "सूअर कहीं का!...यह दीन मुहम्मद...सलमा बडबडाई. सलमा और न जाने क्या बडबडाती कि अम्मा जान ने डांट बताई " बस बी, बस, तुम न बोलो, कह दिया कि कुंवारियां हर बात में टांग नहीं अड़ाया करतीं.. चलो यहाँ से, तुम्हारा कुछ बीच नहीं...रसूलन की माँ, बस आज ही इसे इसकी खाला के यहाँ पहुंचा दे, कितना कहा, हरामखोर का ब्याह कर दे कि पाप कटे." बीबीजी बुरी तरह ताने देने लगीं. "कहाँ कर दूं, बीबी जी, आप ही तो कहती हैं कि छोटी है. सरकार कहते हैं अभी न कर, जेल हो जायेगी. और मैं तो मुई की कर दूं, कोई कबूले भी, मुझे तो इसने कहीं मुँह दिखाने का न रखा." रसूलन की माँ रो-रोकर छलनी झाड़ने लगी.
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
24-05-2011, 05:54 PM | #116 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"अरी, और यह मरा कैसे? रसूलन, जरा सी जान को तूने मसलकर रख दिया और तेरा कलेजा न दुखा."
"ऊंह-ऊं-ऊं! बेचारी रसूलन कुछ भी न बता सकी. "बन रही है, बीबी...बड़ी नन्ही सी है न." दीन मुहम्मद फिर टपका. "ऊं-ऊं!..अल्लाह कसम बीबी जी...यह....यह दीन मुहम्मद." "लगा दे मेरे सर...अल्लाह कसम, बीबीजी, यह इसी कि हरकत है...झूठी!" "खुदा की मार तुझ पर, झाडूपीटे एकदम मेरी लौंडिया का नाम लिए जाता है. बड़ा साहूकार का जना आया वहाँ से! हर वक्त मेरी लौंडिया के पीछे पड़ा रहता है." रसूलन की माँ चिंघाड़ती हुयी फट पड़ी. "बस-बस! जब तक बोलती नहीं, बढती ही जाती हैं...तुम्हारी लौंडिया है भी बड़ी सैयदानी!.." "देखो, दीन मुहम्मद की माँ, तुम्हारा कोई बीच का नहीं.... ज़माने भर का लुच्चा-मुआ..." "बीच कैसे नहीं, और तुम्हारी लौंडिया...अभी जो घर के सारे पोल खोल दूं, तो बगलें झांकती फिरो, कहो कि नौकर हो कर नौकर को उगाडती है...और..." रसूलन की माँ चिंघाड़ सकती थी, तो दीन मुहम्मद की माँ की कमजोर मगर एक लय की आवाज कानों में लगातार पानी की तरह गिरकर पत्थर तक को घिस डालती थी. चें-चें-चें जब शुरू होती थी, तो लगता था, दुनिया एक पुराना चरखा बन गयी है, जिसमें कभी तेल नहीं दिया जाता.
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! Last edited by MissK; 24-05-2011 at 05:56 PM. |
24-05-2011, 05:58 PM | #117 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"आया निगोड़ामारा कहीं से!" रसूलन की माँ दब नहीं रही थी. जरा योंही कुछ सोच रही थी.
"और क्या, नन्ही बनकर मेरे लौंडे का नाम ले रही है, जैसे हमसे कुछ छिपा है. पिछले जाडो में भी इसी ने ऐसे झटपट कर दिया और कानों-कान खबर न हुयी, और तुम खुद छिपा गयीं. मेरा लड़का मुई पर थूकता भी नहीं." "देखिये बीबी जी, अब यह बढती ही चली जा रही है. मुई कसाईन कहीं की! माना चलो, चटपट भी किया, क्या कोई तुम्हारे खसम का था..." "मेरे तो नहीं, हाँ, तुम्हारे खसम का था, जो पोटली में बाँध अंधे कुएँ में झोंक आई और लौंडिया को झट से खाला के यहाँ भेज दिया. जरा-सी फितनी, और गुण तो देखो!" दीन मुहम्मद की माँ की आवाज लहराई. "बस जी, बस! यह कंजडखाना नहीं...तुम्हारे खसम का, न इनके खसम का. चलो, अपना-अपना काम करो. ....भला बतलाओ, सरकार को पता चला. तो...अल्लाह जनता है...कियामत रखी समझो...टांग बराबर छोकरी, क्या मजे से मार-मूर ठिकाने लगा दिया और तोप भी आई...अंधेर है कि नहीं...ऐ, चल हट उधर!.." बीबी जल्दी से लपकी.
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! Last edited by MissK; 24-05-2011 at 06:21 PM. |
24-05-2011, 06:02 PM | #118 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"कुछ नहीं, अब्बा मिया, यह रसूलन...." भाई जान हाकी स्टिक पर अब तक तेल मल रहे थे.
"ऐ चुप भी रह लड़के! कचहरी से चले आते हैं. आते ही झल्ला जायेंगे." "यह देखिये, सरकार... यह मारकर पिछवाड़े गाड़ आई. ...मैंने आज देखा." "अरे!...इधर लाना, ओफ्फोह यह किसने मारा?" "सरकार, रसूलन ने...वह अंदर बैठी है." "ओ मुर्दे, क्यूँ झूठे दोस मढ़ता है. बिजली गिरे तेरी जान पर!" रसूलन की माँ दांत पीसती झपटी. "मुर्दी होगी तेरी चहेती,जिसकी ये करतूत है!"...लाडो के गुण तो देखो!..." "चुप रहो, क्या भटियारनो की तरह चीख रही हो!" सरकार रौब से गुर्राए और सारे मजमे में सन्नाटा छ गया. "अभी पता चल जाता है. बुलाओ रसूलन को." "सरकार...हजूर!" रसूलन की माँ कांपने लगी. "बुलाओ!...बाहर निकालो, सब मालूम हो जायेगा." "सरकार, जी अच्छा नहीं निगोड़ी का." बीबीजी उठी हिमायत करने. "जी-वी सब अच्छा है!...बुलाओ उसे..."
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
24-05-2011, 06:07 PM | #119 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"रसूलन, ओ रसूलन!...चल बाहर , सरकार बुलाते है." दीन मुहम्मद दरोगा की तरह चिल्लाया. रसूलन घुटी-घुटी आहें भरने लगी, चीखें रोकने में उसके होंठ पत्र-पत्र बोलने लगे. मगर हुक्मे-हाकिम मर्ग मफाजत. कराहती, सिसकती, लड़खड़ाती जैसे अब गिरकर जान दे देगी. निजहत ने लपककर सहारा दिया. बुखार से पिंडा तप रहा था और मुँह पर नाम को खून नहीं. "बन रही है , सरकार!" दीन मुहम्मद अब भी न पसीजा. "अरे, इधर आ!...इधर, हाँ, बता...साफ़-साफ़ बता दे, नहीं तो बस!" "पुलिस में दे देंगे, सरकार." दीन मुहम्मद टपका और रसूलन की माँ ने एक दोहत्थड़ उसकी झुकी हुयी कमर पर लगाया कि औंधे मुँह गिरा सरकार के पास. "जवानामर्ग, तुझे हैजा समेटे!..." रसूलन की टाँगे काँप रही थीं और मुँह से बात नहीं निकलती थी. "हाँ, साफ़ बता दे, नहीं तो सच कहते हैं, हम पुलिस में दे देंगे." सरकार बोले. रसूलन की हिचकी बंध गयी और हिचकियों के कारण वह बोल भी न सकी. " बेगम, इसे पानी दो... हाँ, अब बता...कैसे मारा?" पानी पी कर जरा जी थमा. बड़ी देर तक पानी चढाती रही कि जवाब से बची रहे. "हाँ बता, जल्दी बता! सबने कहा. "सरकार!"... "हाँ, बता..." "सरकार!...ईं-ईं...हो...हो-हो!...मैं...मेरे सरकार...मैं दरबा...फिर...दरबा बंद कर रही थी...तो काली मुर्गी भागी. मैंने जल्दी से दरवाजा भेडा...तो...यह पिच गया...ओ-हो...हो!..." "सरकार, बिलकुल झूठ. यह ऐसी बुरी तरह मुर्गियों को हांकती है कि क्या बताएं." दीन मुहम्मद कहाँ मानता था" मना करता हूँ कि हौले-हौले..." "च-च-च! क्या खूबसूरत बच्चा था! मनारका मुर्गी का था. अभी आपने कानपुर से मंगवाया था...आज इस रसूलन को खाना मत देना, यही सजा है इस चुड़ैल की... और दीन मुहम्मद, आज से मुर्गियाँ तू बंद किया कर, सुना?" "वाह-वाह! निगोड़े ने मेरी लौंडिया को हलकान कर दिया. सड़के किया था निगोड़ा, बोती का टिक्का! जरा-सा मुर्गी का बच्चा और इतना शोर! चल री, चल! आज ही मुरदार को खाला के घर पटकूं, ऐसी जगह झोंकू (धप!धाँय!एँ-हें, रसूलन की आवाज) कि याद ही करे. अजीरन कर दी मेरी जिंदगी..मुँह काला करवा दिया... रसूलन की सिसकियाँ और माँ के कोसने बड़ी देर तक हवा में नाचते रहे. --------------------xxxxxxxxxxxxx-------------------------
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! Last edited by MissK; 24-05-2011 at 06:20 PM. |
08-06-2011, 11:42 PM | #120 |
Special Member
Join Date: Mar 2011
Location: Patna
Posts: 1,687
Rep Power: 36 |
Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
घरवाली
जिस दिन मिर्जा की नयी नौकरानी लाजो घर में आई तो सारे मोहल्ले में खलबली मच गयी. मेहतर, जो मुश्किल से दो झाड़ू मारकर भागता था, अब जमीन छीले फेंकता था. ग्वाला, जो दूध में पानी का छींटा देकर सर मूंड जाया करता था; अब घर से कढ़ा हुआ दूध लाने लगा-- ऐसा गाढ़ा कि रबर का गुमान होता था. पता नहीं कि किस अरमान भरी ने लाजो नाम रखा होगा? लाज और शर्म का तो लाजो की दुनिया में कोई मतलब न था. न जाने कहाँ और किसके पेट से निकली, सड़को पर रुल कर पली. तेरे-मेरे टुकड़े खाकर इस काबिल हो गयी कि छीन-झपटकर पेट भर सके. जब सयानी हो गयी तो उसका जिस्म उसकी वाहिद दौलत साबित हुआ. जल्द ही वह हमउम्र आवारा लौंडो की सोहबत में जिंदगी के अछूते राज जान गयी और शुतुर-बे-मुहार (बिना नकेल की ऊंटनी) बन गयी. मोल-टोल की उसे कतई आदत न थी. कुछ हाथ लग गया तो क्या कहने! नकद न सही उधार ही सही. जो उधार न हो तो खैरात सही. " क्यूँ री, तुझे शर्म नहीं आती?" लोग उससे पूछते. "आती है!" वह बेहयाई से शर्मा जाती. "एक दिन खट्टा खायेगी!" लाजो को कब परवाह थी? वह तो खट्टा-मीठा एक सांस में डकार जाने की आदी थी. सूरत बला की मासूम पायी थी. आँख बिना काजल के कलौंच भरीं, छोटे-छोटे दांत, मीठा रंग! क्या फकत किस्म की वरगलाने-वाली चाल पायी थी कि देखनेवालों की जबाने रुक जातीं और आँखे बकवास करने लगतीं.
__________________
काम्या
What does not kill me makes me stronger! |
Bookmarks |
|
|