09-01-2011, 08:53 AM | #113 |
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कुरुक्षेत्र युद्ध के परिणाम
महाभारत एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यह युद्ध भारत वंशियों के साथ-साथ अन्य कई महान वंशों तथा वैदिक ज्ञान विज्ञान के पतन का कारण बना। महाभारत में वर्णित इस युद्ध के कुछ मुख्य परिणाम निम्न लिखित हैं- नकारात्मक फल १.यह युद्ध प्राचीन भारत के इतिहास का सबसे विध्वंसकारी और विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ। इस युद्ध के बाद भारतवर्ष की भूमि लम्बें समय तक वीर क्षत्रियों से विहीन रही। इस युद्ध में लाखों वीर योद्धा मारे गये। २.गांधारी के शापवश यादवों के वंश का भी विनाश हो गया। लगभग सभी यादव आपसी युद्ध में मारे गये, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने भी इस धरती से प्रयाण किया। ३.इस युद्ध के समापन एवं श्रीकृष्ण के महाप्रयाण के साथ ही वैदिक युग एवं सभ्यता के अंत का आरम्भ हुआ, भारत से वैदिक ज्ञान और विज्ञान का लोप होने लगा। जिसे पौराणिक विद्वानों ने कलियुग के आगमन से जोड़ा। ४.पूरे भारतवर्ष में सम्पूर्ण जनपदों की अर्थव्यवस्था बहुत खराब हो गयी, भारत में गरीबी के साथ साथ अज्ञानता फैल गयी। ५.भविष्य पुराण के अनुसार इस युद्ध के बाद भारत में निरन्तर शतियों तक विदेशियों(मलेच्छों) के आक्रमण होते रहे, कुरुवंश के अंतिम राजा क्षेमक भी मलेच्छों से युद्ध करते हुए मारे गये, जिसके बाद तो यह आर्यावर्त देश सब प्रकार से क्षीण हो गया, कलियुग के बढ़ते प्रभाव को देखकर तथा सरस्वती नदी के लुप्त हो जाने पर लगभग ८८००० वैदिक ऋषि-मुनि हिमालय चले गये और इस प्रकार भारतवर्ष ऋषि-मुनियों के ज्ञान एवं विज्ञान से भी हीन हो गया। ६.समस्त ऋषि-मुनियों के चले जाने पर भारत में धर्म का नेतृत्व ब्राह्मण करने लगे, जो पहले केवल यज्ञ करते थे एवं वेदों का अध्ययन करते थे। ब्राह्मणों ने वैदिक धर्म को लम्बे समय तक बचाये रखा, परन्तु पौराणिक ग्रंथों में दिये वर्णन के अनुसार कलियुग के प्रभाव से ब्राह्मण वर्ग भी नहीं बच पाया और उनमें से कुछ दूषित एवं भ्रष्ट हो गये, मंत्रों का सही तरीके से उच्चारण करने की विधि भूल जाने के कारण वैदिक मंत्रों का दिव्य प्रभाव भी सीमित रह गया। कुछ भ्रष्ट ब्राह्मणों ने बाद के समाज में कई कुरीतियाँ एवं प्रथाएँ चला दी, जिसके कारण क्षुद्र एवं पिछड़े वर्ग का शोषण होने लगा एवं सतीप्रथा, छुआछूत जैसी प्रथाओं ने जन्म लिया। परन्तु कई ब्राह्मणों ने कठोर तप एवं नियमों का पालन करते हुए कलियुग के प्रभाव के बावजूद वैदिक सभ्यता को किसी न किसी अंश में जीवित रखा, जिसके कारण आज भी ऋग्वेद एवं अन्य वैदिक ग्रंथ सहस्रों वर्षों बाद लगभग उसी रूप में उपलब्ध हैं। |
09-01-2011, 08:54 AM | #114 |
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सकारात्मक फल
१.इस युद्ध का एक सकारात्मक फल पूरी मानव जाति को श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनायी गयी ज्ञानरूपी वाणी श्रीमद्भगवद्गीता के रुप में प्राप्त हुआ। २.इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर के राज्य-अभिषेक के साथ धरती पर धर्म के राज्य की स्थापना हुई। |
09-01-2011, 08:57 AM | #115 |
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महाभारत युद्ध के बाद का भारतीय राजवंश
हिन्दू परम्पराओं एवं पुराणों में दी गयी प्राचीन राजवंशों की सूची के आधार पर तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में दी गयी ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर महाभारत काल के बाद का प्राचीन भारतीय राजवंश ऐतिहासिक घटना कालक्रम में निम्नलिखित है- |
09-01-2011, 09:05 AM | #117 |
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महाभारत के पात्र और उनकी जीबन से मृत्यु तक की कहानी
कुरु वंश के लोग शांतनु · गंगा · भीष्म · सत्यवती · चित्रांगद · विचित्रवीर्य · अंबा · अंबिका · अंबालिका · विदुर ·
धृतराष्ट्र:कौरव · गांधारी · दुर्योधन · दु:शासन · युयुत्सु · दुःशला · शकुनि · पांडु: पांडव · कुंती · माद्री · युधिष्ठिर · भीम · अर्जुन · नकुल · सहदेव · द्रौपदी · |
09-01-2011, 09:06 AM | #118 |
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शान्तनु
इस श्रेणी में हिन्दू एवं वैदिक धर्म ग्रंथों में दिये समस्त पौराणिक पात्रों को रखा गया है शांतनु महाभारत के एक प्रमुख पात्र हैं। वे हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप के पुत्र थे। उनका विवाह गंगा से हुआ था। जिससे उनका देवव्रत नाम का पुत्र हुआ। यही देवव्रत आगे चलकर महाभारत के प्रमुख पात्र भीष्म के नाम से जाने गए। शान्तनु का दूसरा विवाह निषाद कन्या सत्यवती से हुआ था। इस विवाह को कराने के लिए ही देवव्रत ने राजगद्दी पर न बैठने और आजीवन कुँवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, जिसके कारण उनका नाम भीष्म पड़ा। सत्यवती के चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। |
09-01-2011, 09:07 AM | #119 |
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गंगा
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर २,५१० किमी की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं। |
09-01-2011, 09:08 AM | #120 |
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इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।
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