24-03-2011, 09:21 AM | #111 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
आँखें मेरी भीगी हुईं चेहरा तेरा उतरा हुआ अब इन दिनों मेरी ग़ज़ल ख़ुश्बू की इक तस्वीर है हर लफ़्ज़ गुंचे की तरह खिल कर तेरा चेहरा हुआ मंदिर गये मस्जिद गये पीरों फ़कीरों से मिले इक उस को पाने के लिये क्या क्या किया क्या क्या हुआ शायद इसे भी ले गये अच्छे दिनों के क़ाफ़िले इस बाग़ में इक फूल था तेरी तरह हँसता हुआ अनमोल मोती प्यार के, दुनिया चुरा के ले गई दिल की हवेली का कोई दरवाज़ा था टूटा हुआ
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26-03-2011, 03:47 PM | #112 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
‘अनमोल’ अपने आप से कब तक लड़ा करें
जो हो सके तो अपने भी हक़ में दुआ करें हम से ख़ता हुई है कि इंसान हैं हम भी नाराज़ अपने आप से कब तक रहा करें अपने हज़ार चेहरे हैं, सारे हैं दिलनशीं किसके वफ़ा निभाएं हम किससे जफ़ा करें नंबर मिलाया फ़ोन पर दीदार कर लिया मिलना सहल हुआ है तो अक्सर मिला करें तेरे सिवा तो अपना कोई हमज़ुबां नहीं तेरे सिवा करें भी तो किस से ग़िला करें दी है कसम उदास न रहने की तो बता जब तू न हो तो कैसे हम ये मोजिज़ा करें
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26-03-2011, 04:21 PM | #113 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच
जूँ-ग़ुँचा सौ ज़बान है उसके दहन के बीच पानी हो बह गये मिरे आज़ा नयन की राह बाक़ी है जूँ-हुबाब नफ़स पैरहन के बीच जिनने न देखी हो शफ़क़े-सुब्ह की बहार आकर तेरे शहीद को देखे कफ़न के बीच वो ख़ारे-सुर्ख़-रू नहीं अहले-जुनूँ के पास पाबोस को मिरी जो न पहुँचा हो बन के बीच आतिशकदे में देख कि शोला है बेक़रार आराम दिलजलों को नहीं है वतन के बीच बाद-अज़-शबाब हों तिरी अँखियाँ ज़ियादा मस्त होता है ज़ोरे-कैफ़ शराबे-कुहन के बीच 'सौदा' मैं अपने यार से चाहा कि कुछ कहूँ वैसी की इक निगह कि रही मन की मन के बीच शब्दार्थ: सुख़न = बातचीत ;जूँ-ग़ुँचा = कली की तरह ;दहन = मुँह ;आज़ा = अंग ;जूँ-हुबाब = बुलबुले की तरह ;नफ़स = साँस ;पैरहन = वस्त्र ;शफ़क़े-सुब्ह = उषा ;ख़ारे-सुर्ख़-रू = लाल हो चुका काँटा; पाबोस = पाँव चूमने के लिए ;बाद-अज़-शबाब = जवानी आने के बाद ;ज़ोरे-कैफ़ = मस्ती का ज़ोर ;शराबे-कुहन = पुरानी शराब
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26-03-2011, 05:15 PM | #114 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
'मोमिन' सू-ए-शर्क़ उस बुते-क़ाफ़िर का तो घर है
हम सिजदा किधर करते हैं और का'बा किधर है हसरत अगर मैं देखूँ तो फ़लक़ क्योंकर न हो राम उस नरगिसे-जादू को निगह पेशे-नज़र है ख़त की मुझे क़ासिद को है ईनाम की ख़ाहिश मैं दस्तनिगर1 ख़ुद हूँ, वह क्या दस्तनिगर है अरमान निकलने दे बस ऐ बीमे-नज़ाकत2 हाँ हाथ तसव्वुर में मेरा ज़ेरे-कमर है रिन्दों पे यह बेदाद ख़ुदा से नहीं डरता ऐ मुहतसिब ऐसा तुझे क्या शाह का डर है ऐसे दमे-आराम असर-ख़ुफ़्ता3 कब उठा हमको अबस उम्मीद दुआहाए-सहर है हम हाल कहे जायेंगे सुनिये कि न सुनिये इतना ही तो याँ सुहबते-नासेह का असर है वह ज़िबह करें और यहाँ जान फ़िदा हो ऐसे से निभे यूँ यह हमारा ही जिगर है अब नहीं जाती तेरे आ जाने की उम्मीद गो फिर गयीं आँखें पर निगाह जानिबे-दर है शब्दार्थ: 1. निर्धन, 2. नरमी का डर, 3. सुप्त प्रभाव
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26-03-2011, 05:22 PM | #115 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
हाथ में लेकर खड़ा है बर्फ़ की वो सिल्लियाँ
धूप की बस्ती में उसकी हैं यही उपलब्धियाँ आसमा की झोपड़ी में एक बूढ़ा माहताब पढ़ रहा होगा अँधेरे की पुरानी चिट्ठियाँ फूल ने तितली से इकदिन बात की थी प्यारकी मालियों ने नोंच दीं उस फूल की सब पत्तियाँ मैं अंगूठी भेंट में जिस शख़्स को देने गया उसके हाथों की सभी टूटी हुई थी उँगलियाँ
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27-03-2011, 01:08 PM | #116 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
अभी तो मै जवान हू !
हवा भी खुशगवार है गुलो पे भी निखार है तरन्नुम हजार है बहार पुरबहार है कहा चला है साक़िया इधर तो लौट इधर तो आ अरे ये देखता है क्या उठा सुबू, सुबू उठा सुबू उठा, प्याला भर, प्याला भर के दे इधर चमन की सिम्त कर नज़र समा तो देख बेखबर वो काली-काली बदलिया उफक पे हो गई अया वो एक हुजुमे-मैकशा है सु-ए-मैकदा रवा ये क्या गुमा है बदगुमा समझ न मुझको नातुवा खयाले-जुहद अभी कहा अभी तो मै जवान हू न ग़म कशुदो-बस्त का, बुलंद का न पस्त का न बुद का न हस्त का न वादा-ए-असस्त का उमीद और यास गुम हवास गुम कयास गुम नज़र से आस-पास गुम हमा, बजुज़ गिलास गुम न मय में कुछ कमी रहे कदह से हमदमी रहे नशिस्त ये ज़मी रहे यही हुमाहुमी रहे वो राग छेड़ मुतरिबा तरबफज़ा, अलमरुबा असर सदा-ए-साज का जिगर में आग दे लगा हर एक लब पे हो सदा, न हाथ रोक साक़िया पिलाए जा पिलाए जा अभी तो मै जवान हू हफ़ीज़ जालंधरी
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01-04-2011, 05:39 PM | #117 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
भूल गया घर-आँगन यादों से बाहर बाज़ार हुआ
आज बहुत दिन बाद बेख़ुदी में ख़ुद का दीदार हुआ टूट गये नाते-रिश्ते सब, चैन लूटते हाथों से औरों की आँसुओं-भरी आँखों से कितना प्यार हुआ लगा कि हर रस्ता अपना है हर ज़मीन है अपनी ही अपनेपन से हरा-भरा हर दिन जैसे त्यौहार हुआ बैठा रहा चैन से, जाते लोग रहे क्या-क्या पाने पर जब दी आवाज़ शजर ने जाने को लाचार हुआ ‘कल सोचूँगा-क्या करना है’, कहता रहा मेरा रहबर बीता कितना वक़्त और यह वादा कितनी बार हुआ ख़ुद के लिए रहे बनते तुम तरह-तरह की दीवारें खुली हवा से बह न सके, जीवन सारा बेकार हुआ कब तक फैलाते जाओगे सौदे वहशी ख़्वाबों के तुम भी अब दूकान समेटो, शाम हुई अंधियार हुआ आओ थोड़ा वक़्त बचा है साथ-साथ हँस लें, गालें लेन-देन का हिसाब जो हुआ सो मेरे यार हुआ
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01-04-2011, 05:41 PM | #118 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
कुछ अपनी कही आपकी कुछ उसकी कही है पर इसके लिए यातना क्या-क्या न सही है भटका कहाँ-कहाँ अमन-चैन के लिए थक-थक के मगर घर की वही राह गही है दस्तक दी किसी दर पे बयांबां में रात को आवाज़-सी आदमी कि यहाँ कोई नहीं है कुछ ख़्वाब रचे रात में की दिन से गुफ़्तगूं बस मेरे सफ़र की यही सौग़ात रही है तोड़ा है अब भी देवता पत्थर का किसी ने लोगों ने कहा— भागने पाय न, यही है खोजो न इसमें दोस्तों बाज़ार की हँसी गाता है इसमें दर्द, ये शायर की बही है तुम लाख छिपाओ रहबरी आवाज़ में मगर झुलसी हुई बस्ती ने कहा— ये तो वही है आँगन में सियासत की हँसी बनती रही मीत अश्कों से अदब के वो बार-बार ढही है
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01-04-2011, 05:42 PM | #119 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
इस हाल में जाने न कैसे रह रहीं ये बस्तियाँ, सुनता नहीं ऊपर कोई, कुछ कह रहीं ये बस्तियाँ रोटी नहीं, पानी नहीं, अपने नहीं, सपने नहीं वादे सियासत के कभी से सह रहीं ये बस्तियाँ गर एक चिंगारी उठी तो ये धधक कर जल उठीं, यदि टूट कर पानी गिरा तो बह रहीं ये बस्तियाँ कोई सहारा है नहीं, मासूम लावारिस हैं ये हैं लड़खड़ा कर उठ रहीं फिर ढर रहीं ये बस्तियाँ ख़ामोश-सी लगतीं मगर विस्फोट होगा एक दिन ज्वालामुखी-सी खुद के अंदर दहक रहीं ये बस्तियाँ
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01-04-2011, 05:44 PM | #120 |
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Re: !! कुछ मशहूर गजलें !!
आज धरती पर झुका आकाश तो अच्छा लगा
सिर किये ऊँचा खड़ी है घास तो अच्छा लगा आज फिर लौटा सलामत राम कोई अवध में हो गया पूरा कड़ा बनवास तो अच्छा लगा था पढ़ाया मांज कर बरतन घरों में रात-दिन हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा लोग यों तो रोज़ ही आते रहे, आते रहे आज लेकिन आप आये पास तो अच्छा लगा क़त्ल, चोरी, रहज़नी व्यभिचार से दिन थे मुखर चुप रहा कुछ आज का दिन ख़ास तो अच्छा लगा ख़ून से लथपथ हवाएँ ख़ौफ-सी उड़ती रहीं आँसुओं से नम मिली वातास तो अच्छा लगा है नहीं कुछ और बस इंसान तो इंसान है है जगा यह आपमें अहसास तो अच्छा लगा हँसी हँसते हाट की इन मरमरी महलों के बीच हँस रहा घर-सा कोई आवास तो अच्छा लगा रात कितनी भी धनी हो सुबह आयेगी ज़रूर लौट आया आपका विश्वास तो अच्छा लगा आ गया हूँ बाद मुद्दत के शहर से गाँव में आज देखा चँदनी का हास तो अच्छा लगा दोस्तों की दाद तो मिलती ही रहती है सदा आज दुश्मन ने कहा–शाबाश तो अच्छा लगा
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