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#111 | |
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![]() Last edited by malethia; 18-09-2011 at 01:06 PM. |
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#112 |
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ऐ खालिद चिंता न कर, इधर आ बैठ, अरे सिकंदर इस मूरख को समझाओ, जान है तो जहान है/ चचा सिकंदर की ड्यूटी लगा अपना गुस्सा खैनी पर रगड़ने लगे/
खालिद भैया काहे निराश हो रहे हो, हम सब हैं ना, अरे भूल गए/ जब पिछली बार तुम बीमार हुए थे तो मुझसे कहा था - कुछ भी करके बचा लो, अब मरने की बात काहे करने लगे? सिकंदर ने खालिद की नम आँखों को पोछते हुए पूछा/ अब का-का बताये भैया, हर तरफ से परेशान हूँ/ परधान बिना नोट लिए कुछ करता नहीं, कर्जा दे नहीं सकता/ भैंस भी मर गयी, बच्चो को रोटी देना मुश्किल है/ तीन साल से नए कपडे का चिथड़ा भी घर नहीं आया/ कहने को तो नरेगा, नीला कार्ड सब कुछ है गरीबो के लिए/ लेकिन सरकार हमको गरीब कहाँ मानती, जमीन जो है/ पता नहीं बाप दादों ने ऊसर जमीन किसी को बेंच क्यों नहीं दी, अरे दान ही दे देते .......कहते कहते खालिद का गला रुंध गया आँखे छलछला आयी/ बड़े बुजदिल हो यार, अरे सबका यही हाल है शुक्र है उस मालिक का जिसने अभी तक हमको जिन्दा रखा है, वर्ना ये !!!!!…….अच्छा ये बता भौजी ने आज लाल साड़ी पहनी है ना ………..अमित तिवारी ने चुहल की/ तुम्हारी…. ऐसी की तैसी…ससुर जब उसके पास है ही एक लाल साडी तो हरी कहाँ से पहनेगी/ निशांत भाई तुम ठीक कहते हो, ये तिवारी बड़ा खराब है, सब की साड़ियाँ ही चेक करता रहता है, किसी दिन पीटेंगे इसको …….खालिद ने अमित को डांटा …..लेकिन अमित खुश हुआ उसका तीर निशाने पर लगा और खालिद का मूड कुछ बदल गया/
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#113 |
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बहुत ही खूब निशांत जी ......................
अगली पोस्ट की प्रतीक्षा है /
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#114 |
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अभिषेक जी बीड़ी सुटियाते हुए चौपाल पर पहुंचे/
उनको देखते ही चाचा गरजे, अभिषेक यह क्या तुम फिर बीड़ी पि रहे हो, इससे कैंसर हो जाता है, जानते तो हो, फिर भी बाज नहीं आते/ अरे चचा कहाँ, दिन भर में एकाध मार लेता हूँ, दिन उसी के सहारे कट जाते है, और तुम भी तो खैनी खाते हो उसका क्या? अभिषेक जी ने सफाई के साथ सवाल भी दागा/ अच्छा छोडो, यह बताओ इस देश के हाल कब सुधरेंगे और बम फूटने कब बंद होंगे? चाचा ने बड़ी आशा के साथ पूछा/ अभिषेक जी ने गहरी सांस भरी, फिर बोले ....... भैया मुझे तो सारे फसाद कि जड़ नेता लगते हैं, यही बम रखवाते हैं/ अब देखो न जब भी इनको ज्यादा खतरा लगता है तभी एक धमाका हो जाता है/ जो आतंकी पुलिस पकड़ भी लेती है, उसका पूरा आदर-सत्कार भी कराते हैं/ देश को तो लूट ही रहे हैं,बदमाशी भी करते हैं/ एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी कोई मेरी माने तो सभी नेताओं को मंगल गृह पर भेज दो, सुना है वहां हवा पानी भी है/ तेरह साल बाद इनका वापसी टिकट कटाओ, तब आएगी इनकी अकल ठिकाने,हालात भी तभी सुधरेंगे/ गलत कहूं तो बताओ.…अभिषेक जी बात पूरी करते करते तैश में आ गए/
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