19-04-2011, 01:01 AM | #111 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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19-04-2011, 09:34 AM | #112 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"हम तन्हाई में बैठे रोते हैं !
लोगों ने हमें महफ़िल में हस्ते देखें हैं !!" वाह वाह, रणवीर भाई !! दिल को छुं गयी आपकी ये दो लाइन !!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
21-04-2011, 08:54 AM | #113 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
यादों की किम्मत वो क्या जाने, जो ख़ुद यादों को मिटा दिए करते हैं, यादों का मतलब तो उनसे पूछो जो, यादों के सहारे जिया करते हैं...
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
07-05-2011, 12:24 PM | #114 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
तनहा तनहा !! फिर पसरा ये एकाकीपन , आहिस्ता आहिस्ता लम्हा लम्हा, कर गया सूना सारा जीवन , धड़कन धड़कन तनहा तनहा !! खिली नहीं कुछ किरने सी भी , सोये सोये सुबह के साए, सिमटी सिमटी सहर हुई और मन में उलझन तनहा तनहा !! मैं हंसू तू मुस्कुरा दे वाहां, मैं गाऊं तू गुनगुना दे वाहां, अधूरी यहाँ मैं टूटी बिखरी, और खालीपन तनहा तनहा !! छूंकर अक्सर छवियाँ तेरी ले जाती लब से मुस्कान तेरी खुशबू से महका है, अब तक दामन तनहा तनहा !! हवाओं के झोंके हस पड़ते हैं खुली खिड़की से झांके बदरा, रो दूंगा मैं अब जो बरसा, तुझ बिन सावन तनहा तनहा ............................. !!!!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
07-05-2011, 03:38 PM | #115 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
ये दो पंक्ति ही बहुत कुछ कह जाते हैं
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-05-2011, 02:42 PM | #116 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
एक खिड़की गली की खुली रात भर, मुन्तजिर जाने किस की राही रात भर ! हम जलाते रहे अपने दिल के दिए, तेर्जी कतल होती रही रात भर ! मेरी आँखों को करके अत रतजगे, मेरी तन्हाई सोती रही रात भर ! एक खुसबू दराजों से चंटी हुई, दस्तकें जैसे देती रही रात भर ! दिल के अन्दर कोई जैसे चलता रहा, चाप क़दमों की आती रही रात भर ! एक तहरीर जो इस के हाथों कित ही, बात वोह मुझ से करती रही रात भर !! एक सूरत अली थी जो जाने ग़ज़ल मेरे शेरों में ढलती रही रात भर .......................... !!!
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" Last edited by Kalyan Das; 09-05-2011 at 08:55 PM. |
09-05-2011, 04:24 PM | #117 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
बहुत खूबसूरत लाइने लिखी हे ++रेप
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24-05-2011, 09:33 AM | #118 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
वोह इश्क जो हमसे रूठ गया
अब उसका हाल बताएं क्या ? कोई मेहर नहीं, कोई कब्र नहीं फिर सच्चा शेर सुनाएँ क्या ?? इक हिज्र जो हर दम लहक है ता दैर उसे दोहरायें क्या ??? वोह ज़हर जो दिल में उतर लिया अब उसका नाज़ उठायें क्या ???? फिर आँखें लहू से खाली हैं, यह शमाएँ बुझने वाली हैं , हम खुद भी किसी के सवाली हैं इस बात से हम शर्मायें क्या ????? इक आग ग़म - ए -तन्हाई की जो , सारे बदन में फैल गई , जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन - ए -दिल को बचाएं क्या ................... ???????
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28-05-2011, 09:45 AM | #119 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
आग हो तो जलने में देर कितनी लगती है ?
बर्फ के पिघलने में देर कितनी लगती है ? चाहे कोई रुक जाए चाहे कोई रह जाए, काफिलों को चलने में देर कितनी लगती है ?? चाहे कोई जैसे भी हमसफ़र हो सदियों से, रास्ता बदलने में देर कितनी लगती है ?? सोच के ज़मीनों पर रास्ते जुदा हो तो, दूर जा निकलने में देर कितनी लगती है ??? उम्र भर का बंधन भी पल भर में टूट जाता है, सोच के बदलने में देर कितनी लगती है ??? जब हवा मुखालिफ़ हो मौज में समुन्दर हो कश्तियाँ उलटने में देर कितनी लगती है ................ ??????
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30-05-2011, 07:52 PM | #120 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया
दिल का कुसूर था मगर आँखों ने रो दिया मुझको नसीब था कभी सोहबत का सिलसिला लेकिन मेरा नसीब कि उसको भी खो दिया उनकी निगाह की कभी बारिश जो हो गई मन में जमी जो मैल थी उसको भी धो दिया गुल की तलाश में कभी गुलशन में जब गया खुशबू ने मेरे पाँव में काँटा चुभो दिया सोचा कि नाव है तो फिर मँझधार कुछ नहीं लेकिन समय की मार ने मुझको डुबो दिया दोस्तों वफ़ा के नाम पर अरमाँ जो लुट गए मुझको सुकून है मगर लोगों ने रो दिया
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