08-12-2010, 03:09 PM | #111 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
हो सके में एक योग्य,और उत्साही युवा था,और इसलिए मुझे काम पाने में बड़ी मुस्किले आयी,जो काम मिला वह भी भीख सा था,मुझे पेंटिंग का शौक था,साहित्य में रूचि थी,चाहता था क्लासिक उच्चकोटि के चित्र खरीदूं,चाहता था गोर्की,नेहरू,लेनिन मेरी आलमारी में हो,चाहता था ऐसा हो,जिसमे मैं और एक कमरा मेरी चाहत के सिवा कुछ न हो ,मैं भौतिकता का नही,कला संस्कृति-वौचारिकता का भूखा था. पर मेरी इनकम ने मुझे ऐसा दुबला बना दिया था कि मुझे यह सब सपना लगता था. तभी एक दिन मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि मैं एक भैस पाल लूं.उसने पूरा हिसाब करके बताया कि भैंस कैसे और कितनी लाभकारी होती सकती है,और यदि मैं खुद घास,खली खरीदता रहू तो और लाभकारी होगा. बात मुझे जम गयी,भैस मुझे अतरिक्त कामों से मुक्ति दे सकती थी,और लाभ और कामो के आमदनी से अधिक था. मैंने कर्ज ले लिया और भैस खरीद ली,मेरे मकान के पीछे आँगन भी था.पत्नी ने विरोध किया था,सो भैस के आते ही उसे दुर्गन्ध आने लगी-उसके गोबर की,मूत्र की,शकायत करने लगी-मच्छर नही थे अब पैदा हो गए,इस पर मैंने उससे कहा-”भैस के दूध को देखो,उससे होने वाले लाभ को देखों,उससे पैदा होने वाली प्रदूषण को मत देखो. वास्तव में दुर्गन्ध मुझे भी आती थी,लेकिन मैंने जाहिर नही किया,आँगन पश्चिम की और था और उन दिनो हवाएं पश्चिम की और से ही चल रही थी,जिससे दुर्गन्ध सारे घर में भर जाती थी.
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:10 PM | #112 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
मेरा रुतबा बढ़ने लगा,कैसे न बढ़ता.अब मेरे मकान का नाक-नक्श बदल गया था,घर में अब सोफासेट,फ्रिज,टीबी था,दरवाजे पर स्कूटर था.
एकदिन एक परिचित ने,जो सड़क पर मिल गया था,बात-बात में कहा,”आपके कपडों में गोबर की कैसी गंध आ रही है?” यह सुना नही कि मैं चिढ कर बोला, “मेरे कपड़े आपसे कही ज्यादा उजले हैऔर कीमती भी,पत्नी उस परिचित के आगे बढ़ जाने पर बोली,तुम व्यर्थ चिढ़ते हो,हमारे कपडों में गोबर की गंध आती है,मेरी सहेलियां भी शिकायत करती है,कपडें हमारे औरो से ज्यादा कीमती है और उजले भी,पर गोबर के कारण कपडों के साथ-साथ गंध हमारे आचरण और विचार में भी आ गई है.”
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:10 PM | #113 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
“आचरण और विचारमें गोबर की गंध.तुम्हारा सिर तो नही फिर गया है? ” मैंने कहा.
पत्नी बोली यह,”गोबर की गंध नही थी की तुमने हमारे मोहल्ले की जमीन खेल मैदान के लिए स्कूल वालो को नही मिलने दिया,किशनलाल से कहा कि शराब के ठेकेदार को बेचो,वह ज्यादा पैसे दे रहा है,गरीब रिश्तेदार के यहा तुम शादी में नही गए,करीब न होते हुए अमीर रिश्तेदारों के यहा गए, पहले तुम्हे छोटे लोगो से हमदर्दी थी.पड़ोस के पी एच डी को तुम नालायक कहते हो क्योकि वह बेरोजगार है.पहले तुम उसका आदर करते थे. यह सुन मैं कुछ न बोला.घर की ओर का शेष रास्ता हम मौन ही चले . अब मैं तीसरी भैस खरीदने के बारे में सोच रहा था.पत्नी से कहा तो विरोध करते हुए बोली, “क्या दो भैसों से दिल नही भरा,जिन्दगी में भैस ही सब कुछ है क्या?” “क्यों नही अभी अपना मकान बनना है.” “भैस बंधोगे कहां?आँगन में दूसरी भैस ही मुश्किल से बंधती है.” इस पर मैंने कहा आँगन को बढ़ा लूगा,पीछे वाला नही मानेगा तो डंडे से काम लूगा.” यह सुनकर पत्नी बोली,”हाँ, यही तो हो ही रहा है दुनिया में.तीसरी के बाद तुम चौथी लोगे.भैसों का कोई अंत है,इस भैस संस्कृति के पीछे तुम्हारा वह स्वप्न क्या हुआ जिससे प्रेमचंद,गार्की वगैरह रहते थे,तुम्हारा चित्रकार कूंची उठता था.” इधर में किताबों से,पेंटिंग से बिल्कुल टूट गया था,पर मैंने जैसे यह सब सुना ही नही और दूसरे दिन में तीसरी भैंस ले आया.
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:11 PM | #114 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
संतासिंह गोल्फ
संतासिंह गोल्फ खेलने का बड़ा शौकीन था। हर रविवार बड़े सबेरे वह गोल्फ क्लब के लिये निकल जाता और फिर रात को ही वापस आता। उसका यह नियम बरसों से चला आ रहा था। इस रविवार को जब सुबह वह उठा तो पाया कि बाहर जोरों की बारिश हो रही है। तेज हवा भी चल रही थी। वह काफी देर इस उम्मीद से घर के बाहर बरामदे में खड़ा रहा कि शायद क्लब जाने की कोई सूरत बन जाए पर बारिश थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। हार कर वह घर के अन्दर वापस आ गया। पत्नी अभी तक बिस्तर में उनींदी पड़ी हुई थी। वह भी आहिस्ता से बिस्तर में ही घुस गया और उसके कान में फुसफुसाया – आज का मौसम बहुत खराब है। लगता है तूफान आ रहा है। पत्नी ने नींद में ही कुनमुनाते हुए जवाब दिया – ऐसे मौसम में भी मेरा बेवकूफ पति गोल्फ खेलने क्लब गया हुआ है।
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:11 PM | #115 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
मनोहर भैया
हमारे मनोहर भैया अपने पड़ोसी से बहुत परेसान थे,उन्हें समझ में नही आ रहा था की क्या करे!मनोहर भैया का पड़ोसी अमीर आदमी था और हमारे मनोहर भैया ग़रीब थे!पड़ोसी मनोहर भैया की गरीबी का मजाक उडाता और मनोहर भैया को तंग करता रहता था! एक दिन मनोहर भैया को भगवान मिल गए,मनोहर भैया की परेशानी देखकर भगवान बोले मनोहर मांग जो तुझे मागना है. मनोहर भैया भगवान को देखकर फूले नही समाये और मनोहर बोले हे भगवान अगर मैं आपसे कोई भी एक सामान मांगू तो वह पड़ोसी के पास दो हो जाए! मनोहर भइया घर आए और पहुचते ही कहा हे भगवान मेरे पास एक टू व्हीलर हो जाए, उनके पास एक टू व्हीलर हो गयी.अब तो मनोहर भैया की खुशी का ठिकाना ना रहा! मनोहर भैया अपनी टू व्हीलर पर बैठ कर पड़ोसी को दिखाने जाते है,लेकिन पड़ोसी के यहाँ दो टू व्हीलर देखकर वापस लौट आते है! मनोहर भैया फिर कहते है हे भगवान मेरे पास एक फोर व्हीलर हो जाए.मनोहर के पास एक फ़ोर व्हीलर हो जाती है! मनोहर भैया फिर पड़ोसी के यहाँ अपनी फ़ोर व्हीलर ले कर जाते है,पड़ोसी के यहाँ देखते है दो फ़ोर व्हीलर खडी है.मनोहर भैया को भगवान के ऊपर बहुत गुस्सा आती है और भगवान से कहते है हे भगवान मैं एक आँख से अँधा हो जाऊ.मनोहर भैया एक आँख से अंधे हो जाते है! मनोहर भैया फिर पड़ोसी के यहाँ जाते है और पड़ोसी को देखकर बहुत खुश होते है!
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:12 PM | #116 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
आपका कोना
मैं झारखण्ड की रहने वाली हूँ,हम घर में पांच जन है.मैं मेरी मम्मी मेरे पापा और मेरा छोटा भाई और एक छोटी बहन,मेरे पापा गाँव के प्रधान है,गाँव में पापा की बहुत इज्जत है.सभी उनकी बात मानते है.हमारे पडोस में एक परिवार है,जिनके घर से हम सब की खूब बैठती है.मेरे मुह बोले चाचा की लड़की कौशल दिल्ली में रहकर स्टडी कर रही है.साल भर पहले की बात है मैंने पापा से जिद करके दिल्ली पढ़ाई करने के लिए आ गई! मेरे पापा मुझे बहुत प्यार करते है,में भी पापा से बहुत प्यार करती हूँ.पापा ने कौशल के साथ रहने की मंजूरी देदी.हमारे घर से खूब बैठती थी इसलिए पापा ने भी मना नही किया.कौशल और मुझसे खूब पटती थी,हम लोग साथ-साथ रहने लगे.कौशल अक्सर फोन पे पता नही किससे बात किया करती थी,मैंने उससे एक दो बार पूछा,तो वह कहती ले तू भी बात कर ले,वह फोन पर अक्सर बताती थी की मेरी एक सहेली है जो बहुत शर्मीली है.फोन पर पता नही क्या जबाब आता वह फोन मुझे देने लगती,रोज की यही आदत थी उसकी वह मुझे बात करने के लिए कहती! एक दिन मैंने कौशल से कहा यार ये है कौन जिससे तुम बात करने के लिए कहती हो.कौशल ने कहा यार मेरा ब्वाय फ्रेंड है मैंने तुम्हारे बारे में उसे बताया तो वह कह रहा था एक दिन अपनी सहेली से बात कराओ. उसी रात कौशल ने फिर कहा लो बात करलो वह तुमसे बात करना चाहता है,और तुम होकी भाव खा रही हो.
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:12 PM | #117 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
इन मूंछों कि खातिर
इस प्रशंसा के बाद मेरे गले से चाय उतरना मुश्किल हो गई थी.मैंने कहा जीजाजी उठा जाए .उन्होंने भी शायद यह विलेन वाला कमेंट सुन लिया था.यकीन जानिए घर आकर ये “विलन”वाला जमुला जीजा जी ने मुझ पर ऐसा फिट किया कि आज तक ,वे मुझे विलेन कह कर पुकारते है.वैसे एक बात कहूं इन मूंछों के कुछ प्लस प्वाईंट भी होते है,जिनकी वजह से फायदे अनायास ही मिल जाते है.मैंने अपनी मूंछों के दम पर रेलवे कि खिड़की से उस वक्त रिजर्व्रेसन करवाई है,जब बुकिंग क्लर्क दूसरों को ‘न कह’ रहा था.इन्ही की बदौलत,रेलवे ठसाठस भरे डिब्बे में जहाँ खडे होने की गुंजाइस न हो बैठने का इंतजाम हो जाता है.इन मूंछों की वजह से भीड़ में अनेकों बार प्राथमिकता मिली है,चाहे वह सिनेमा टिकट की बात हो,क्रिकेट मैच की,या स्वीमिंग कम्पटीशन की.पुलिस थाने में लोग मूंछ वाले को अपना आदमी समझते है.कोर्ट कचहरी में लोग इन मूछों की वजह से बिना सुविधा शुल्क लिए ही काम कर देते है.पर दूसरी तरफ इन मूंछों के आभाव में मैंने जो महसूस किया,उसका तजुर्बा कुछ अलग ही सितमगर रहा है. हुआ कुछ इस तरह की मैं अपनी माता जी के साथ इलाहबाद से बड़े पिताजी के अन्त्यकर्म के बाद लौट रहा था.माताजी की अस्वस्थता को ध्यान में रखकर,मैंने सरकारी जीप स्टेशन पर बुलवा ली थी.मैं जीप को पहचान कर उसके पास ही आधे घंटे से खडा था पर ड्राइवर का अता-पता नही दिखा.इस बिच ट्रेन से आने जाने वालों की भीड़ छंट चुकी थी.मैंने करीब ही खडे उस युवक से पूछा जो मेरी ही तरह किसी का रास्ता देख रहा था,कि क्या उसने इस जीप के ड्राइवर को कही देखा है.वह बोला,”में ही इस जीप को लाया हूँ.”
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:13 PM | #118 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
नाक के निचे, ओर होंठो के ऊपर जब पहली फसल के अंकुर फूटे थे,तब से लेकर,साल दर साल,आज तक
इन मूंछों की पूरी लगन से देखभाल करता आ रहा हूँ. आपने तो मुझे देखा नही है,इसलिए संभव है,मेरा अक्श आपकी नजरों के सामने पूरी तरह नही उतर पायेगे.सहूलियत के लिए,आप कल्पना कर लीजिये एक तंदुरुस्त,गेहुएं रंग के छै फूटे शख्स की,जिसके सिर के सामने की खेती कट चुकी हो,ओर जिसकी घनी मूछें किसे फौजी कर्नल के चेहरे की तरह उसका पूरा रोब-दाब हो ….यकीं जानिए वही मैं हूँ. मूंछें मेरी पहचान है, वाकिब लोगो के लिए मुंछ्वाले साहब,गैरवाकिब लोगो क नजर मैं मुच्छ्ड,ओर मूंछ के कद्रदानों के लिए,मुंछ्वाला गबरुजवान जैसे संबोधन,मुझ नाचीज के लिए ही होते है.कभी-कभी कुछ नादान लोग भी मेरी मूंछ देखकर आश्चर्य व्यक्त कर जाते है…….”क्या मूंछें लगा रक्खी है यार.” अब उन्हें कैसे बताऊ कि प्यारे भाई, ये मूंछे नकली नही है.जो इन्हे लगाना पड़े ये लगाई नही उगाई गई है. विश्वास नही है तो खीचकर देख लीजिये. मैंने इन प्यारी मुंछो के नाम पर न जाने कितनी विषम स्थितियां देखि है,कितने सितम सहे है.यकीन जानिए,कभी-कभी तो अपने ही लोंगो के व्यवहार से ऐसी निराशा हुई कि लगा इक बारगी इन्हे नोंचकर उखड फेंकू पर दूसरी तरफ मन मसोस कर इस कोफ्त को चुपचाप बर्दास्त कर लिया.लीजिये,कुछ ऐसे ही वाकयों मैं आज आप मेरे साथ हो लीजिये. एक दिन मैं संयोग से अपने बहनोई के साथ बाज़ार मैं साडियाँ,इत्यादी खरीदने के लिए निकला था. इस खरीद में समय अधिक हो गया था,सो इरादा हुआ कि होटल में चाय नास्ता कर लिया जाय. होटल में हमारे पीछे कि सीट पर बैठे दो-चार युवकों में से, एक ने अखबार में छपे हमारे चित्र पर कुछ यूं मंतव्य प्रकट किया. “लड़ी तो यार,हीरोइन जैसी लगती है, पर इसके लिए ये मुच्छ्ड विलेन कहां से पकड़ लाये.”
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:13 PM | #119 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
मेरे गुलाब मेरे पड़ोसी
दिल जलकर राख हो गया. इतनी मेहनत से गुलाब उगाये है की उन्हें आगन में झूमता-इतराता देखूं. सुगंध से आँगन महकता रहे,और ये है कि गुलकंद और शरबत बनाने की बात कर रही है. बाजार ढेरों गुलकंद और शरबत उपलब्ध है. उसके लिए मेहनत की जरूरत क्या है. उनके मुताबिक हर वस्तु को उपयोग या धन में बदलना जरूरी है. डाली पर खिले फूल का सौंदर्य उन्हें बेकार लगता है. आँगन में खिले गुलाब अब एक पैमाना बन गए है. हर व्यक्ति की दृष्टि में उनका एक अलग और सही उपयोग है. अम्मा उनसे पुष्पहार बनाकर ठाकुर की पूजा में चढाने को उनका सही उपयोग मानती है. नन्ही बिटिया अपनी मैडम को देने में. गुप्ता जी जब किसी उत्सव,शादी-व्याह जा रहे होते है तो एक निगाह हमारी बगिया पर डालना न भूलते. पर वे कभी अपनी इच्छा व्यक्त न कर सके और हमारे गुलाब बचे रहे. खैर गुलाब की झाडियाँ काट-छाँट दी गयी. उनमे फिर से पत्ते व शाखें उग आई. अब फिर से फूलों का मौसम आ गया. आप भी अपने आँगन में गुलाब उगाईये. अपनी रातों की नींद उडाईये, साथ ही व्यक्ति परीक्षण की कसौटी भी बना लीजिये |
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
08-12-2010, 03:14 PM | #120 |
VIP Member
Join Date: Oct 2010
Posts: 9,746
Rep Power: 49 |
Re: लघु कथाएँ..........
मेरे आँगन में पहले इक्का-दुक्का फिर सहसा ढेरों गुलाब खिल उठे. नया-नया घर था. बगीचें में गुलाब न हों तो बात जमती नही. अभी यह नजारा दो-चार दिन ही चला था कि फूल गायब होने लगे. हप्ते भर की चौकीदारी के बाद मैंने एक दिन भोर की बेला में पडोंस की कच्ची बस्ती में रहने वाली एक भद्र सी दिखाई देने वाली महिला को पकड़ ही लिया. पूछने पर वह बड़ी बेशर्मी से बोली, “पूजा के लिए तोड़े है.”
“क्यों भाई, क्या तुम चोरी के फूलों से पूजा करोगी?” वह भुनभुनाती हुई चली गई. “बड़ी बंगले वाली बनती है. दो-चार फूल क्या तोड़ लिए गजब हों गया. अगला अटैक पडोसन की बेटी का था, “हाय आंटी, मैं जरा उससे मिलने जा रही हूँ. एक फूल ले लूं ?” लिहाज के मारे मैं कुछ बोलूँ,उससे पहले उसने सबसे बड़ा और सुन्दर फूल तोड़ा,फिर तो आये दिन यही होता रहा और में मनन मसोसकर रह जाती थी. बाद में तो बस सूचना भर आती, “आंटी मैंने आपका एक गुलाब ले लिया था.” मेरा तो मन मसोसकर रह जाता था. जी मे आता था कि गला दबा दू मगर क्या करू पड़ोस का ख्याल करना पड़ता था. वैसे भी अगर चुपचाप तोड़ ले जाती तो में उसका क्या कर सकती थी? एक दिन एक रिश्तेदारिन पधारीं, “हाय!हाय!क्या गुलाब खिले है? क्या करती हों इनका? अरे भाई पंखुडियां सुखाकर गुलकंद या शरबत क्यों नही बनातीं?” साथ ही बनाने का तरीका भी बताती गई.
__________________
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है कृपया हिंदी में लेखन व् वार्तालाप करे ! हिंदी लिखने के लिए मुझे क्लिक करें! |
Bookmarks |
Tags |
hindi, hindi stories, nice stories, small stories, stories |
|
|