26-01-2015, 06:21 PM | #111 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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29-01-2015, 12:32 PM | #112 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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30-01-2015, 03:08 PM | #113 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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04-02-2015, 01:46 AM | #114 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
एक दिन मैंने जलते हुए "दीये" को देखा तो मन में विचार आया कि ये दीया कितना उदार है खुद जल कर दूसरों को रौशनी दे रहा है । फिर अचानक मेरा ध्यान गया और पाया कि कितनी गलत हूँ मैं , मैं जिस दीये की प्रशँसा कर रही हूँ वास्तव में वो सही हकदार नहीं है इस प्रशँसा का , क्योंकि असल में दीया तो जलता ही नहीं है । जलती तो "बाती" है । और इस छोटे से अवलोकन से मुझे अहसास हुआ कि कितनी निस्स्वार्थ है ये बाती जो खुद जल रही है किसी और के लिये । आज हम सभी नाम , शोहरत पाना चाहते हैं....प्रेम की बडी बडी बातें करते हैं पर क्या हम प्रेम में ये कर सकते हैं जो बाती करती है अपने दीये के लिये.... ये बाती , ये खुद जल रही है और नाम किसका हो रहा है - नाम हो रहा है "दीये" का......कोई नहीं कहता कि बाती जल रही है , कोई बाती के त्याग को नहीं तवज्जो देता , सब कहते हैं कि दीया जल रहा है , पर फिर भी बाती बिना किसी नाम की इच्छा के , बिना किसी पहचान की इच्छा के अपनी जिन्दगी तक त्याग देती है ।
यही है प्रेम .....वास्तविक प्रेम .....जहाँ हम बिना कुछ प्राप्ति की इच्छा के, अपने प्रिय के लिये अपना सब कुछ त्यागने की हिम्मत रखते हैं। बाती अपने दीये के लिये अपना जीवन त्यागती है , अपना अहं(नाम) त्यागती है , अपनी पहचान त्यागती है , खुद अपना अस्तित्व खो कर उस दीये का मान बढाती है । बिना बाती के दीये का कोइ मोल नहीं होता , उसका कोइ महत्व ही नहीं है बाती के बिना । और इसके बदले बाती कुछ भी नहीं चहती , अपने इस छोटे से जीवन काल में बाती सिर्फ दीये के लिये जीती है और उसी के आगोश में मरती है ।
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It's Nice to be Important but It's more Important to be Nice Last edited by Pavitra; 04-02-2015 at 01:49 AM. |
04-02-2015, 10:23 AM | #115 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
मिटटी, बर्तन या बोतल में रखे हुए तेल अथवा रुई की बटी हुयी बाती का इतिहास व संस्कृति कुछ और होती है एवम् एक दूसरे को आत्मसात करने के बाद उनकी संस्कृति कुछ और मुखर हो जाती है. दिये का ज़िक्र करते ही हमारे मन में जो तस्वीर उभर कर आती है वह तेल तथा बाती से युक्त होती है. दिवाली पर हम बाजार से दिये ले कर आते हैं उनका तब तक कोई मूल्य नहीं होता जब तक नेह और बाती उसमे न डाले जायें और उसे प्रज्ज्वलित न किया जाये. प्रकाशित होना व प्रकाश देना ही दिये की संस्कृति है, उद्देश्य है. दिये और तेल के बिना मिटटी का दिया ठूंठ के समान है जिसकी कोई कीमत नहीं. अतः यह कहना उपयुक्त नहीं है की नाम दिये का होता है और जलना बाती को पड़ता है जिसका कोई नाम भी नहीं लेता. दिया है तो बाती है, बाती है तो दिया है.
यही मनुष्य के शरीर के साथ होता है. पंचतत्व के साथ आत्मा का मिलन होने पर शरीर काम करता है जिसे हम अलग अलग नाम दे देते हैं. शरीर स्वयं में कुछ नहीं हैं. स्थूल शरीर तो एक माध्यम भर है मिटटी के एक दिए की तरह.
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04-02-2015, 12:24 PM | #116 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
अब आप कह रही हैं तो सच ही होगा.
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04-02-2015, 03:18 PM | #117 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
खुद को कर बुलन्द जिन्दगी में परेशानियाँ बता कर नहीं आती। कब जाने क्या होने वाला हो हमारे साथ , कोई नहीं जानता । ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उन परेशानियों को अपने ऊपर हावी होने दें या खुद परेशानियों पर काबू पा लें । दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं एक वो जो परेशानी आने पर शिकायत करते हैं, कमजोर हो जाते हैं और दूसरे वो जो परेशानी आने पर भी अपने हौसले से उन पर विजय पा लेते हैं । ऐसी ही एक कहानी बिल्कुल एक आम इन्सान की , जिसकी सोच और हौसला उसे खास बना देता है -
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04-02-2015, 05:53 PM | #118 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
दिए और बाती को लेकर आपने बहुत अच्छी चर्चा यहाँ रखी है धन्यवाद .... सही है की बाती बिन दिया नही जल सकता पर बाती भी बिना दिए के नही जल सकती याने दोनों एकदूजे के पूरक है एक नही तो दूजा अधुरा है जैसे मानव जीवन है हर जगह हम देख सकते हैं प्रेम और पैसा , , दिया और बाटी अँधेरा, उजाला याने की इन सब चीजो की अ पनी अपनी जगह अलग ही महत्ता है...
प्रेम है पैसा नही तो भी जिन्दा रहेगा keise इंसान /. दिन रात उजाला रहा सूर्य चमकते रहा तो लोग आराम कुब करेंगे और लगातार रात रही तो मानव सूर्य की रौशनी के बिना keise जियेगा बस यही है दिए और बाती का राजकी दोनों एकदूजे के लिए बने है |
04-02-2015, 10:13 PM | #119 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
बहुत बहुत शुक्रिया सोनी पुष्पा जी यहाँ विचार रखने के लिये.......
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20-02-2015, 03:48 PM | #120 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
हम अक्सर दुनिया को दो भागों में बाँट देते हैं - अच्छी और बुरी ।
पर क्या वास्तव में ये उचित है? शायद नहीं । आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो किसी से भी मिलते ही उसके प्रति धारणा बना लेते हैं - यह व्यक्ति अच्छा है या यह व्यक्ति बुरा है । लोगों की इस आदत को उचित नहीं कहा जा सकता , क्योंकि अच्छे से अच्छे व्यक्ति में भी कुछ ना कुछ बुराई तो अवश्य ही होती है । और बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छाई जरूर मिल जायेगी । जो व्यक्ति आपके साथ अच्छा है जरूरी नहीं कि वो सभी के साथ अच्छा हो , और जिसने आपके साथ बुरा व्यवहार किया वो व्यक्ति सभी के लिये बुरा है ऐसा भी नहीं होता । पर हमारी आदत बन चुकी है कि हम, लोगों को दो shades में बाँट देते हैं - Black and white .....पर असल में पूरी दुनिया Grey color के लोगों से भरी हुई है.....जैसे Grey color के विभिन्न shades होते हैं , उसी तरह यहाँ लोगों के भी विभिन्न shades होते हैं | जिसके व्यक्तित्व में white color यानि अच्छाई ज्यादा और Black color यानि बुराई कम होती है वो Light grey color ......और जिसमें black color ज्यादा और white color कम होता है वो Dark Grey color का व्यक्ति होता है । इसलिये लोगों को black या white की श्रेणी में ना रखते हुए , समझें कि कोई भी व्यक्ति सिर्फ अच्छा या सिर्फ बुरा नहीं हो सकता । हर व्यक्ति में दोनों तरह के गुण होते हैं , हाँ मात्रा में अन्तर जरूर होता है -किसी में ज्यादा अच्छाई और कम बुराई होगी तो किसी में कम अच्छाई और ज्यादा बुराई । पर हर व्यक्ति में दोनों तरह के रंग होते हैं । दूसरों में सदा गुण देखें क्योंकि दूसरों के जिस गुण पर आप ध्यान देते हैं , वो धीरे-धीरे आप में आने लगता है।
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