22-07-2014, 10:47 AM | #121 |
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Re: शायरी में मुहावरे
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14-08-2014, 05:53 PM | #122 |
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Re: शायरी में मुहावरे
मुहावरा > या क़िस्मत
भावार्थ: होनी के आगे सिर झुकाना और भाग्य को स्वीकार कर लेना. उदाहरण: हुआ जुज़ दर्दो-ग़म हरगिज़ न वस्ले-दिलरुबा क़िस्मत यही था क़िस्मते-नासाज़ में मक़सूम, .....या क़िस्मत (शायर: अज्ञात)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
14-08-2014, 06:00 PM | #123 |
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Re: शायरी में मुहावरे
उपरोक्त मुहावरों के अतिरिक्त भी यदा-कदा शायरी में मुहावरों का दीदार हो जाता है. आगे हम इसी प्रकार के अश'आर या शायरी प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगे जिनमे मुहावरों का खूबसूरत व आलंकारिक प्रयोग किया गया हो जैसे:
वतन की रेत मुझे एडियां रगड़ने दे मुझे यक़ीन है पानी यही से निकलेगा -नाज़िश प्रतापगढ़ी
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14-08-2014, 06:06 PM | #124 |
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Re: शायरी में मुहावरे
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं सर-ए-मिज़गां ये नाले अब भी आँसू को तरसते हैं ये सच है जो गरजते हैं वो बादल कम बरसते हैं (शाह नसीर / Shah Nasir / 1756 - 1838) ** तीर-तुक्का अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाए फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाए मवालियों को न देखा करो हिकारत से न जाने कौन सा गुंडा......वजीर हो जाए (पापुलर मेरठी)
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26-09-2014, 01:53 PM | #125 |
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Re: शायरी में मुहावरे
मुहावरे एक कविता
रचना: अश्विनी बेकार चीज़ फेंक देना होता है सही… ऐसा सुनते आए अब तक… पर जब शब्द अर्थ खोने लगें तो क्या करें … ज़ाहिर है फेंक दो उन्हें अंधी खाई में… ऐसे कुछ शब्दों से बने मुहावरे खो चुके हैं अर्थ… पर कुछ लकीर के फकीर करते हैं उनका उपयोग गाहे-बगाहे… उदाहरणार्थ वो कहते हैं झूठ के पाँव नहीं होते… पर अक़्सर नज़र आते हैं कई झूठ, कई तरह की दौड़ों में अव्वल आते हुए.. सांच को आंच नहीं… पर सच जला-बुझा सा कोने में पड़ा मिलता है अदालतों में… भगवान के घर देर है…अंधेर नहीं.. पर भगवान ख़ुद अमीरों की इमारतों में उजाला करने में है व्यस्त सौ सुनार की, एक लोहार की… पर आज के बाज़ार ने लोहार को गायब कर दिया बाज़ार से… न नौ मन तेल होगा…न राधा नाचेगी.. पर राधा मीरा नाच रहीं चवन्नी-अठन्नी पर किसी सस्ते बार में… चैन की नींद सोना… पर मेरे बूढ़े पिता रिटायर होने के बाद जागते हैं उल्लुओं की तरह… अनिष्ट की आशंका में… ये मुहावरे मिटा डालो फाड़ो वो पन्ने जो इनका बोझ ढो के बोझिल हो चुके.. निष्कासित करो उन लकीर के फकीरों को.. जो इनके सच होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं…….. ****
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26-09-2014, 11:40 PM | #126 | |
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Re: शायरी में मुहावरे
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ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है, एंव अपनी अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है। Teach Guru |
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16-12-2014, 09:15 PM | #127 |
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Re: शायरी में मुहावरे
"मज़हर" का शे’र फ़ारसी और रेख़्ता के बीच
"सौदा" यक़ीन जान कि रोड़ा है बात का आगाह-ए-फ़ारसी तो कहें इस को रेख़्ता वाक़िफ़ जो रेख़्ता का ज़रा होव ठाट का अल क़िस्सा इस का हाल यही है तो सच कहूँ कुत्ता है धोबी का कि न घर का न घाट का (मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ’सौदा’ (1713-1781)
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27-01-2015, 05:16 AM | #128 |
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Re: शायरी में मुहावरे
दामन में दाग लगा ऐसा, जिसको धो ना सके पैसा कथनी कुछ तो करनी कुछ, दीगर फल जैसे को तैसा!
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27-01-2015, 05:47 AM | #129 |
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Re: शायरी में मुहावरे
सावन भादों के मौसम में बादल रूठ गये
अच्छी फसलें पाने के सब सपने टूट गये न जल बरसा न गरमी से मिली निजात इंद्र देव क्या रूठे भाग कृषक के फूट गये
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12-03-2015, 09:09 PM | #130 |
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Re: शायरी में मुहावरे
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