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Old 25-11-2012, 09:04 AM   #121
Sameerchand
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अहंकार ऐसे पथ तलाशता है

मुल्ला नसरुद्दीन की बीवी उनसे झगड़ रही थीं। वह गुस्से में बोलीं - "सुनिए जी, आखिर यह क्या मामला है। आज तुम साफ-साफ बता ही दो कि तुम मेरे सभी रिश्तेदारों को नफरत और घृणा से क्यों देखते हो?"

मुल्ला ने उत्तर दिया - "नहीं बेगम! यह सही नहीं है और मैं तुम्हें इसका प्रमाण भी दे सकता हूं। और इसका प्रमाण यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूं और तुम्हारी सास को अपनी सास से अधिक प्यार करता हूं।"

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Old 25-11-2012, 09:04 AM   #122
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हर कोई नायक है

एक दिन एक गणितज्ञ ने जीरो से लेकर नौ अंक तक की सभा आयोजित की। सभा में जीरो कहीं दिखायी नहीं पड़ रहा था। सभी ने उसकी तलाश की और अंततः उसे एक झाड़ी के पीछे छुपा हुआ पाया। अंक एक और सात उसे सभा में लेकर आये।

गणितज्ञ ने जीरो से पूछा - "तुम छुप क्यों रहे थे?"

जीरो से उत्तर दिया - "श्रीमान, मैं जीरो हूं। मेरा कोई मूल्य नहीं है। मैं इतना दुःखी हूं कि झाड़ी के पीछे छुप गया।"

गणितज्ञ ने एक पल विचार किया और तब अंक एक से कहा कि समूह के सामने खड़े हो जाओ। अंक एक की ओर इशारा करते हुए उसने पूछा - "इसका मूल्य क्या है?" सभी ने कहा - "एक"। इसके बाद उसने जीरो को एक के दाहिनी ओर खड़े होने को कहा। फिर उसने सबसे पूछा कि अब इनका क्या मल्य है? सभी ने कहा - "दस"। इसके बाद उसने एक के दाहिनी ओर कई जीरो बना दिए। जिससे उसका मूल्य इकाई अंक से बढ़कर दहाई, सैंकड़ा, हजार और लाख हो गया।

गणितज्ञ जीरो से बोला - "अब देखिये। अंक एक का अपने आप में अधिक मूल्य नहीं था परंतु जब तुम इसके साथ खड़े हो गए, इसका मूल्य बढ़कर कई गुना हो गया। तुमने अपना योगदान दिया और बहुमूल्य हो गए।"

उस दिन के बाद से जीरो ने अपनेआप को हीन नहीं समझा। वह यह सोचने लगा - "यदि मैं अपनी भूमिका का सर्वश्रेष्ठ तरीके से निर्वहन करूं तो कुछ सार्थक होगा। जब हम एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो हम सभी का मूल्य बढ़ता है।"

"जब हम एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं, तो बेहतर कार्य करते हैं।"
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Old 25-11-2012, 09:04 AM   #123
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प्रार्थना

एक दिन एक मोची रब्बी के पास पहुँचा और अपनी व्यथा बताई.

मैं मोची का काम करता हूँ. मेरे ग्राहक गरीब मजदूर हैं. वे शाम को जब आते हैं तब उनके जूते चप्पल खराब रहते हैं. मैं उन्हें रात में ठीक करता हूँ. कई बार सुबह भी यह काम करना पड़ता है क्योंकि मजदूर सुबह सुबह काम पर जाते हैं. इस वजह से मैं सुबह व शाम को भगवान का ध्यान और पूजा नहीं कर पाता इससे मैं अपने आप को अपराधी मानता हूँ.

रब्बी ने कहा – यदि मैं भगवान होता तो मैं तुम्हारे कार्य को पूजा और प्रार्थना से ज्यादा अच्छा समझता.
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Old 25-11-2012, 09:05 AM   #124
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अमीर

एक बार एक अमीर व्यापारी एक संन्यासी के आश्रम में पहुंचा। संन्यासी को प्रणाम करने के उपरांत उसने पूछा - "किस तरह से आध्यात्म मुझ जैसे सांसारिक व्यक्ति को सहायता प्रदान कर सकता है?"

संन्यासी ने कहा - "इससे तुम और अधिक अमीर हो जाओगे।"

ललचायी आँखों के साथ व्यापारी ने पूछा - "कैसे?"

संन्यासी ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया - "तुम्हें इच्छाओं से मुक्त होने की शिक्षा देकर।"
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Old 25-11-2012, 09:05 AM   #125
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कथाएं और दृष्टांत

एक गुरूजी अपने शिष्यों को कथाओं और दृष्टांतों के माध्यम से शिक्षा देते थे, जिसे उनके शिष्य खूब पसंद करते परंतु उन्हें कभी-कभी यह शिकायत भी होती कि गुरूजी गंभीर विषय पर व्याख्यान नहीं देते हैं।

गुरूजी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शिष्यों की शिकायत पर वे कहते -"प्रिय शिष्यों! तुम लोगों का अब भी यह समझना बाकी है कि मनुष्यमात्र और सत्य के मध्य केवल कथा ही है।"

कुछ देर चुप रहने के बाद वे पुनः बोले - "कथाओं से घृणा मत करो। एक खोये हुए सिक्के को सिर्फ सस्ती मोमबत्ती के माध्यम से खोजा जा सकता है। सरल कथाओं के माध्यम से ही गंभीर सत्य प्राप्त किया जा सकता है।"
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Old 25-11-2012, 09:05 AM   #126
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किसका, कैसा ऋण

बादशाह सिकंदर लोधी के जमाने में जैन-उद्-दीन नामक प्रसिद्ध संत हुए थे. उनका मठ धनी था और संत दयालु थे. मठ का अधिकांश धन उन्होंने दीन दुखियों की सेवा सुश्रूषा में लगा दिया था.

समय बीतता गया और उनका मठ धन विहीन हो गया. एक दिन संत ने मठ में रखे कुछ कागजातों को छाना और उन्हें जलाने का हुक्म दिया. उनके एक शिष्य ने इन कागजातों को देखा तो पाया कि ये तो मठ द्वारा शहर के कई सेठों को दिए गए ऋण के कागजात हैं. यदि ये ऋण वसूल हो जाएं तो मठ फिर से धन्-धान्य से भरपूर हो सकता है. शिष्य ने यह बात संत को बताई.

संत ने कहा – “जब मठ धनी था तब जिन लोगों ने मठ से रुपए उधार लिए थे, तब भी मुझे यह प्रत्याशा नहीं थी कि यह धन मठ को वापस मिलेगा. उन लोगों ने तो महज विश्वास बनाए रखने के नाम पर और शासकीय जरूरतों के मुताबिक ये कागजात सौंप दिए थे. अब मठ गरीब हो गया है. ऐसी स्थिति में हमारे मन में लालच आ सकता है और बिलकुल वही बात आ सकती है जैसा कि तुमने कहा है. इसीलिए मैं इन कागजातों को जला रहा हूँ ताकि मैं इस तरह की संभावना को पूरी तरह समाप्त कर सकूं.
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Old 25-11-2012, 09:05 AM   #127
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एक रुपए में महल को कैसे भरोगे

एक बुद्धिमान राजा के तीन पुत्र थे. राजा वृद्ध हो चला तो उसने अपने तीनों पुत्रों में से किसी एक को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का सोचा. वह पारंपरिक रूप से ज्येष्ठ पुत्र को राजा बनाने के विरुद्ध था. वह चाहता था कि बुद्धिमान पुत्र राजा बने ताकि राज्य का कल्याण हो.

तो राजा ने इसके लिए अपने पुत्रों की परीक्षा लेने के लिए एक दिन अपने पास बुलाया और प्रत्येक को एक एक रूपए देकर कहा कि यह रुपया ले जाओ और उससे कुछ खरीद कर महल को पूरा भर दो.

ज्येष्ठ पुत्र ने सोचा कि पिता शायद पागल हो गया है. एक रूपए में आजकल क्या आता है जिससे महल को भरा जा सकता है! उसने वह रुपया एक भिखारी को दे दिया.मंझले ने सोचा कि एक रूपए में तो महल को पूरा भरने लायक कबाड़ ही मिलेगा. वह कबाड़ी बाजार पहुँचा और सबसे सस्ता कबाड़ खरीद कर ले आया. फिर भी उससे महल का सबसे छोटा कमरा ही भर पाया.

कनिष्ठ पुत्र ने थोड़ा विचार किया और बाजार चला गया. जब वह वापस आया तो उसके हाथ में अगरबत्ती का पैकेट था. उसने उन अगरबत्तियों को जलाया, और महल के हर कमरे में एक एक अगरबत्ती लगा दी. पूरा महल सुगंध और दैवीय माहौल से भर गया.
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Old 25-11-2012, 09:06 AM   #128
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कभी मत बदलो, इस्तीफा दो और मुक्ति पाओ

मुल्ला नसरुद्दीन एक ऑफिस में काम करने लगे। हर कोई उससे नाराज़ रहता। वह कोई काम नहीं करता था और सारा समय सोता ही रहता था। ऑफिस के लोग उससे इतने तंग आ चुके थे कि धीरे-धीरे उन्होंने उसके ऊपर चिल्लाना शुरू कर दिया। जल्द ही ऑफिस के बॉस ने भी नसरुद्दीन को डाँट पिला दी। लेकिन उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया।एक दिन नसरुद्दीन रोज-रोज के तानों, आलोचना और डाँट से तंग आ गया और उसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देना उसके लिए अपनेआप को बदलने से ज्यादा आसान था।(इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो बदलना नहीं चाहते इसलिए वे इस्तीफा देकर भाग खड़े होते हैं।)

नसरुद्दीन ने इस्तीफा दे दिया। सभी लोग बहुत खुश हो गए। बॉस तो अत्यधिक खुश होकर बोला - "चूंकि नसरुद्दीन ने अपने आप ही इस्तीफा दिया है इसलिए हम सभी को उदारता दिखाते हुए उसे विदाई पार्टी देनी चाहिए। हम सभी उससे इतने नाखुश थे कि इसके अलावा और कोई चारा नहीं था।"

इसलिए नसरुद्दीन के सम्मान में एक बेहतरीन रात्रिभोज का आयोजन किया गया जिसमें तरह-तरह के व्यंजन, मिष्ठान और संगीत आदि की व्यवस्था थी। इस समारोह में ऑफिस के सभी लोग उपस्थित थे। यह सोचते हुए कि नसरुद्दीन तो जा ही रहा है, कई लोगों ने नसरुद्दीन के सम्मान में अच्छी-अच्छी बातें बोली। नसरुद्दीन आश्चर्यचकित थे।

तभी नसरुद्दीन उठ खड़े हुए। अपनी आँखों में आँसू भरकर बोले - "मुझे नहीं पता था कि सभी लोगों के मन में मेरे प्रति इतना प्रेम और सम्मान है। मुझे इतना अधिक प्रेम और कहाँ मिलेगा? मैंने निर्णय लिया है कि आप सभी को छोड़कर कभी नहीं जाऊंगा। मैं अपना इस्तीफा वापस ले रहा हूं!
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Old 25-11-2012, 09:06 AM   #129
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गुरू के प्रति राजकुमारों की भक्ति

ख़लीफ़ा मामू के मन में विद्वानों के प्रति आदर सम्मान था। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को शिक्षित करने के लिए एक गुरूजी को नियुक्त किया। एक दिन जब कक्षा समाप्त हो गयी और गुरूजी अपने घर जाने को खड़े हुए, दोनों राजकुमार दौड़कर उनके जुते उठा लाये। दोनों एक साथ उनके पास पहुंचे थे अतः उनके मध्य यह विवाद हो गया कि गुरूजी को जूता पहनाने का नेक काम कोन करेगा। अंत में यह निर्णय हुआ कि दोनों राजकुमार एक - एक जूता पहनायेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया।

जब ख़लीफ़ाने इसके बारे में सुना तो उन्होंने गुरूजी से पूछा -"इस संसार में सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति कौन है?"

गुरूजी ने उत्तर दिया - "मुस्लिमों के नेता ख़लीफ़ा से ज्यादा इस संसार में और कौन प्रतिष्ठित और सम्मानित हो सकता है?"

ख़लीफ़ा मामू ने कहा - "नहीं सबसे अधिक प्रतिष्ठित और सम्मानित वह है जिसे जूता पहनाने के लिए ख़लीफ़ा के दोनों पुत्र आपस में झगड़ पड़े हों।"

गुरूजी ने कहा - "पहले मैं उन्हें ऐसा करने से रोकने वाला था, फिर मेरे मन में यह विचार आया कि मैं उनकी श्रृद्धा के आड़े क्यों आऊँ।"

ख़लीफ़ा मामू ने कहा - "यदि आपने ऐसा किया होता तो मैं बहुत नाराज़ होता। उनका यह कार्य उन्हें अपमानित नहीं करता बल्कि यह दर्शाता है कि दोनों राजकुमार कितने भले और सभ्य हैं। राजा, पिता और गुरू के प्रति सेवा का भाव रखने से प्रतिष्ठा गिरने के बजाए बढ़ती है।
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Old 25-11-2012, 09:06 AM   #130
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राजा का मालिक कौन?

एक बार राजा की मुलाकात दूसरे देश के दरवेश से हुई. जैसी की परंपरा थी, दूसरे देश के अतिथि को राजा सौहार्द स्वरूप कुछ भेंट करता था. राजा ने दरवेश से पूछा - “मांगो, तुम क्या चाहते हो”

दरवेश ने जवाब दिया - “यह उचित नहीं होगा कि मैं अपने गुलाम से कुछ मांगूं!”

राजा को क्रोध आ गया कि यह अदना सा दरवेश उसे अपना गुलाम कहे. उसने दरवेश से कहा – “तुम राजा से इस तरह कैसे बोल सकते हो? स्पष्ट करो नहीं तो तुम्हारा सिर कलम करवा दिया जाएगा.”

“मेरे पास एक गुलाम है जो कि आपका स्वामी है. इस लिहाज से आप भी तो मेरे गुलाम हुए!” दरवेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

“कौन है मेरा स्वामी?” राजा ने पूछा.

“सिंहासन खोने का भय” – दरवेश ने जवाब दिया.
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