20-02-2015, 05:40 PM | #121 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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हाल ही में आईएस द्वारा कई लोगों के सामुहीक कत्लेआम हुआ, तीसरे ही दीन ४० लोगों को जिंदा जलाया गया। यह सब मुझे हेरान-परेशान किए हुए है। ईन्सान क्या चाहता है आखिर? क्या कोई भी एक धर्म पुरी दुनिया पर छा जाने से शांति हो जाएगी?
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20-02-2015, 11:36 PM | #122 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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देखिये हमारी सोच एक दिन में नहीं बनती ....हमें अपनी सोच को सही दिशा देने के लिये प्रयास करते रहना पड्ता है.....आपने जो उदाहरण दिया कि गन पोइन्ट पर खडा इन्सान क्या ये सब सोच सकेगा , तो मैं मानती हूँ कि शायद नहीं ....मृत्यु को सामने देख कोई भी सामान्य इन्सान ऐसे विचार ला ही नहीं सकता.....पर जीवन की छोटी-छोटी परेशानियों के समय जरूर इन्सान मेरी कही बात सोच सकता है.......आप खुद को ही देखिये , या मैं अपना ही उदाहरण ले लूँ , क्या हम बहुत अच्छे लोग हैं? क्या हमारे अन्दर सिर्फ और सिर्फ अच्छाइयाँ हैं??? क्या हम कभी कभी बुरा व्यव्हार नहीं कर देते? कभी कभी हम भी किसी का दिल दुखा देते हैं .....हमारी भी कुछ आदतें बहुत खराब होंगी जिन्हें हम बदलना चाहते होंगे......तो जैसे हम हमारे लिये सोचते हैं कि मैं अच्छा/अच्छी व्यक्ति हूँ , हाँलांकि मुझमें ये बुराई है पर कोई बात नहीं , कुछ अच्छाई भी तो है ।ऐसे ही हम दूसरों के लिये भी समझें और धारणा बनाते समय थोडा लचीला रुख अपनायें । और अब आपके आखिरी सवाल का जवाब - शायद हास्यास्पद लगे , या किताबी बात ....पर एक धर्म है जो अगर पूरी दुनिया पर छा जाये तो निश्चित ही शान्ति हो जायेगी ........"मानवता का धर्म" ।
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It's Nice to be Important but It's more Important to be Nice Last edited by Pavitra; 20-02-2015 at 11:40 PM. |
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22-02-2015, 06:36 PM | #123 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
"मानवता का धर्म " ये बहुत अच्छी बात कही आपने पवित्रा जी ,, आज दुनिया भर में मानवता के नाम पर सिर्फ औपचारिकता रह गई है/ जब लोग मिलते हैं तब बहुत ही अपनापन बताते हैं अच्छी अच्छी बातें करते हैं, किन्तु जैसे ही खुद के स्वार्थ की बात आई नहीं की मानवता नाम के शब्द को मानो भूल ही जाते हैं लोग . मानवता की मक्क्मता इंसान के जहन में तब तक नहीं आएगी जब तक खुद को वो स्वार्थ से परे रखना नहीं सीखेगा .
दूसरो के प्रति थोड़ी सी मानवता भी यदि मन में है तो हम कम से कम किसी का भी बुरा नहीं चाहेंगे और यदि हमारी वजह से किसी का भी दिल दुखता है तो हमे इस बात का खेद जरुर होगा की ये हमसे गलत हो गया . पर आज जहाँ सारे विश्व या मानव समाज में मानवता की बात हो रही है वहां यदि इस महँ शब्द का प्रादुर्भाव हो जाय ,सबके मन मानवता से भर जाय तब तो दुनिया में कोई दुखी न रहेगा,क्यूंकि एक का दुःख सबका दुःख होगा किसी एक की समस्या के सभी सहभागी होकर समस्या का अंत कर देंगे .. इतनी महानता है " मानवता का धर्म " शब्द की . पवित्रा जी आपकी बात से मै पूरी तरह् से सहमत हूँ . |
14-03-2015, 11:31 PM | #124 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
Take time to do what makes your "soul" Happy हम पूरा दिन काम करते हैं , काम करते हैं जिससे आजीविका कमा सकें , और अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें। असल में अपने शरीर को सुविधायें देने के लिये ही हम काम करते हैं जिससे कि हम अपने शरीर को आराम दे सकें । अच्छा कमाएँ जिससे अपने लिये सारी सुख-सुविधाएँ एकत्रित कर सकें । गाडी , घर , अच्छा खाना , कपडे , आदि । पर अपने शरीर के आराम के लिये हम भूल जाते हैं कि सिर्फ शरीर के लिये काम करते रहने से कुछ नहीं होगा , क्योंकि शरीर चाहे कितने ही आराम में क्यों ना हो , जब तक हमारी आत्मा सुकून में नहीं होगी तब तक हमें सुख मिल ही नहीं सकता। मैं नहीं कहती कि आप अपने शरीर के लिये कार्य करना बन्द कर दें , जरूर करें पर अपनी आत्मा की अनदेखी ना करें । क्योंकि आपकी आत्मा आपके व्यक्तित्व का सबसे मूल्यवान हिस्सा है , और इसलिये इसका सुकून में रहना बहुत जरूरी है। हर रोज कुछ समय जरूर निकालें ऐसे कार्यों के लिये जिन्हें करने में आपकी आत्मा को खुशी और सन्तुष्टि मिलती हो। हो सकता है आपका पेशा कुछ और हो और आप खुद को किसी और काम को करते वक्त खुश पाते हों । तो तलाश करें कि ऐसे कौन से कार्य हैं जो आपको खुशी देते हैं और उन कार्यों के लिये वक्त जरूर निकालें ।
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15-03-2015, 03:04 AM | #125 | ||
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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बहुत अछि बात कही पवित्रा जी ,,, सच बात है की जीवन यापन के लिए हमे न चाहते हुए भी वो काम करने पड़ते है जो सही मायनों में हमे पसंद नहीं होते पर करने पड़ते हैं क्यूंकि जीने के लिए जरुरी हैं उन्हें करना पर जिस विषय, वस्तु या कार्य में आपको रूचि हो,आपको आत्मिक शांति मिलती है उसके लिए अपने सारे समय में से कुछ पल जरुर रखने चाहिए ... और मेरा मानना है की सात्विक प्रवत्ति हम इंसानों में ज्यादातर होती है तामसी प्रवत्ति इंसानों को क्षणिक सुख देती है जबकि सात्विक प्रव्रत्ति इंसान को आंतरिक सुख का अनुभव कराती है यहाँ मै अपनी बात को जरा सविस्तार बताना चाहूंगी की तामसी प्रवव्र्त्ति जिसमे जुआ खेला शराब पीना ये सब आता है अब जुआ खेलने वाले को जो ख़ुशी मिलेगी वो तबतक ही जब तक वो खेल रहे होते हैं किन्तु यदि इंसान की प्रव्रत्ति सात्विक है तो उसमे वो किसी दुखी की सहायता करेगा , भगवन की आराधना करेगा जिससे उसका सुख क्षणिक नहीं होगा उसके आत्मा को आनंद की प्राप्ति होगी और वो ख़ुशी उसके चहरे पर दिखाई देगी (और कई कार्य होते है जिसकी चर्चा यदि यहाँ करेंगे तो बात बहुत लामी हो जाएगी इसलिए मैंने सिर्फ कुछ उदहारण दिए है ) अब रही समय निकलने की बात पवित्रा जी , .. तो इतना कहना जरुर चाहूंगी यहाँ की यदि इन्सान चाहे तो क्या नहीं कर सकता ? और यहाँ तो खुद की ख़ुशी की बात है और ख़ुशी देने वाले काम में थकावट नहीं होती क्यूंकि उसे हम मन से करते है. हाँ सिर्फ आलस न करें खुद के लिए लोग बस, .तब देखे की जीवन उसे कितना आनंद देता है और ये ही नहीं मन की ख़ुशी का प्रभाव आपके व्यवहार में पड़ता है ,आपके परिवार में पड़ता है और आपके आसपास के लोगो को भी आपका व्यवहार प्रभावित करता है सो बहुत जरुरी है की स्वयं को खुश रखे अपने पसंदीदा अछे कार्यो . के द्वारा ,.. |
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15-03-2015, 07:24 PM | #126 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
Sorry for my chutzpah. मेरी दिव्यदृष्टि में तो "soul" की जगह कुत्ता दिखाई दे रहा है! कहीं आप एक कुत्ता पालने की बात तो नहीं कर रहीं?
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15-03-2015, 08:50 PM | #127 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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काम, नौकरी से अगर कुछ दो-चार पल बचा भी लें, उस से मन नहीं भरता। उल्टा गुस्सा आता है की यह क्या बात हुई! फिर गुलज़ार जी का गीत गुनगुना कर वापस काम में लग जाता हुं....दिल ढुंढता है फिर वही, फुर्सत के रात-दीन!
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15-03-2015, 09:56 PM | #128 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि".....अब समझदार को इशारा काफी ....आशा है आप समझदार होंगे......
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15-03-2015, 10:01 PM | #129 | |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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मुझे लगता है कि हम सभी पेशे से लेखक नहीं हैं फिर भी हम यहाँ आकर अपनी भावनाएँ लिखते हैं , शायद ये इसलिये ही है क्योंकि हमें लेखन सुकून देता है । तो हम वो वक्त निकाल ही रहे हैं ना अपनी आत्मसन्तुष्टि के लिये .......
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15-03-2015, 10:30 PM | #130 |
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Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है
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