05-02-2013, 01:53 PM | #121 |
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Re: कुतुबनुमा
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने स्कूली स्तर पर जो 44 व्यावसायिक पाठ्यक्रम पेश किए हैं उससे ना केवल आने वाले समय में युवाओं के लिए नए अवसर पैदा होंगे बल्कि उन्हे अपनी प्रतिभा दिखाने का भी काफी अच्छा अवसर मिलेगा। हालांकि उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने और कौशल विकास के मद्देनजर सरकार की व्यावसायिक शिक्षा योजना को आगे बढ़ाते हुए बोर्ड ने यह पेशकश की है लेकिन इसके दूरगामी नतीजे सामने आएंगे। सीबीएसई ने स्कूलों एवं संस्थाओं के प्रमुखों को पत्र लिखकर ये पाठ्यक्रम शुरू करने को कह भी दिया है। बोर्ड ने स्कूलों में उच्च माध्यमिक स्तर पर 40 व्यावसायिक पाठ्यक्रम और माध्यमिक स्तर पर चार पाठ्यक्रम पेश किए गए हैं। बोर्ड ने नए व्यावसायिक पाठ्यक्रम पेश करने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी आस्ट्रेलिया के साथ समझौता भी किया है। इससे स्कूली बच्चों को विदेशी तकनीक से भी रूबरू किया जा सकेगा। योजना के तहत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने का कार्र्य सीबीएसई और उद्योग जगत के सहयोगी करेंगे। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा पात्रता ढांचा के तहत स्कूलों, कालेजों एवं पॉलीटेक्निक संस्थाओं के साथ विश्वविद्यालय स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा लागू करना तय किया गया है। योजना के तहत नौवीं कक्षा में शैक्षणिक सत्र 2013-14 से चार व्यावसायिक पाठ्यक्रम लागू किए जा रहे हैं। इनमें खुदरा क्षेत्र, सुरक्षा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी और आटोमोबाइल प्रौद्योगिकी पर पाठ्यक्रम शामिल हैं। चारों पाठ्यक्रम अतिरिक्त अनिवार्य विषय के रूप में नौंवी एवं दसवीं कक्षा में पढ़ाए जाएंगे। कुछ स्कूलों में इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। बोर्ड वर्तमान पाठ्यक्रम को उन्नत बनाने और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुरूप नए पाठ्यक्रम पेश करने की पहल को जिस तरह से आगे बढ़ा रहा है वह देश की युवा पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
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09-02-2013, 01:04 AM | #122 |
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Re: कुतुबनुमा
पाक-चीन रिश्तों पर नजर रखनी होगी
पाकिस्तान ने जिस तरह से औपचारिक रूप से अपने निर्माणाधीन ग्वादार पोर्ट का जिम्मा चीन को सौंप देने का फैसला किया है उससे भारत की चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है। पिछले कुछ अर्से से हिंद महासागर में चीन का दखल निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा में पहले ही अपनी पैठ बना ली है और पिछले कई दिनो से वह मालदीव को भी अपने पाले में करने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा बांग्लादेश के चटगांव में भी चीन एक पोर्ट बना रहा है। ऐसे में बंगाल की खाड़ी,हिन्द महासाहर और अरब सागर में चीन की मौजूदगी भारत के लिए चिंता का सबब बन सकती है। पहले ग्वादर पोर्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी सिंगापुर की कम्पनी के पास थी हालांकि पोर्ट का शुरूआती निर्माण चीन ने ही किया था। बाद में सिंगापुर की कम्पनी पीएसए इंटरनेशनल से पोर्ट के विकास के लिए पाकिस्तान का कांट्रेक्ट हुआ। यह कम्पनी जिस धीमी गति से काम कर रही थी उससे पाकिस्तान संतुष्ट नहीं था। जमीन हस्तान्तरण,बुनियादी ढांचे की कमी और सुरक्षा कारणों से कम्पनी और पाकिस्तान की नौ सेना के बीच मनमुटाव हो गया तो कम्पनी ने कांट्रेक्ट से हाथ खींच लिया। अब पाकिस्तान ने पोर्ट के आपरेशन का जिम्मा चीन की ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग को सौंप दिया है। पाकिस्तान चाहता है कि चीन जल्द से जल्द इस पोर्ट का काम पूरा कर दे। पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि अगर चीन पोर्ट पर अपना नेवल बेस बनान चाहे तो बना सकता है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने दो वर्ष पहले भी यह घोषणा की थी कि अगर चीन चाहे तो पाकिस्तान इस पोर्ट का मालिकाना हक चीन की कंपनी को ट्रांसफर कर सकता है अर्थात कहीं ना कहीं इस पोर्ट की आड़ में चीन और पाकिस्तान अंदरूनी तौर पर कोई गुल भी खिला सकते हैं और इसी वजह से भारत ग्वादार पोर्ट का जिम्मा चीन को सौपे जाने से चिंतित है। दो चरणों मे पूरा होने वाला यह पोर्ट करांची से करीब 460 किलोमीटर दूर बन रहा है। भारत को इस पर नजर रखनी होगी।
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10-02-2013, 07:51 AM | #123 |
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Re: कुतुबनुमा
तय करनी ही होगी चिन्तन की दिशा
स्पर्धा की अंधी दौड़ में खबरों को गढ़ना, पैसा कमाने के लिए खबर को बेचना या किसी दुर्भावना से किसी के जीवन को ध्वस्त करने वाली खबरों को पकाना यही है आज का सच। भले ही इस प्रवृति पर अंकुश लगाने के काम को कोई नियन्ता संस्था अपने हाथ में ले या वरिष्ठ एवं अनुभवी मीडिया कर्मियों का कोई ग्रुप सामने आए, यह अभियान अब जरूर चलना चाहिए कि मीडिया में घुसी विकृतियों का शमन हो, और उसमें सकारात्मकता हो, सृजनात्मकता हो, सांस्कृतिक पहचान हो, कलात्मकता हो, राष्ट्रीयता का बोध हो, सामाजिक सरोकार हो, सम्मान हो, समृद्धि हो और उसके बाद हो स्पर्धा। यह सब कुछ हो मगर इसके निर्धारण के लिए आत्मसमझ का विकास होना पहली जरुरत है। पत्रकारिता एवं मीडिया के विकास को क्रमिक तौर पर देखें तो पत्रकारिता प्रगति भी कर रही है। यह पत्रकारिता और पत्रकारों के उत्थान का, उसके सम्मान का और उसके विस्तार का दौर है। बेशक पत्रकार का जीवन स्तर उच्चता की ओर बढ़ा है, उसके जीवन में आर्थिक समृद्धि आई है, उसका राजनीतिक हलकों और नौकरशाही में प्रभाव और रुतबा बढ़ा है। मगर इसके अनुपात में मीडिया संस्थान बेहिसाब समृद्ध और ताकतवर बने हैं। अब वह जमाना चला गया, जब संपादक सहित सभी पत्रकार चना-चबैना खाकर पत्रकारी धर्म निभाया करते थे। अब किसी को भी वेतन भत्तों के लाले नहीं हैं। उसकी अब राजनीतिक हलकों और प्रशासनिक तंत्र में इतनी घुसपैठ और रुआब है कि वह किसी अपराधी को भी जेल से छुड़ा सकता है, लाइसेंस, पट्टा, परमिट-कोटा और सोना उगलती खानों का आवंटन करा सकता है। मगर तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि मीडिया की विश्वसनीयता का क्षरण हुआ है। अब वह उद्योग बन, उद्योगपति का विजिटिंग कार्ड सा बन गया है। उसमें जन-मानस का दर्द नहीं है, सांस्कृतिक पहचान की झलक नहीं है, उसमें राष्ट्रबोध भी नहीं है। अब यह भी पता नहीं चलता कि ‘पेड न्यूज’ कौन सी है और ‘न्यूज’ कौन सी? पत्रकारिता अब प्रतिमान गढ़ने लगी है, खबरें बुनने लगी है। नतीजन उसकी विश्वसनीयता और मान में गिरावट आई है। बेशक पत्रकारिता एक दुरूह, जटिल, मनोवैज्ञानिक और जीवन कौशल की विधा है। बावजूद इसके यह निर्विवाद है कि पत्रकारिता में समृद्धि बढ़ी है। बाजार मूल्यों के अनुसार उसे पारिश्रमिक सुविधा हासिल है। भले ही इसकी संख्या कम हो, संस्थान भी कम हो लेकिन बदलते सामाजिक और व्यवासायिक मूल्यों के अनुरूप आज पत्रकार शान से जी सकता है। एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वे में बताया गया है कि हमारे यहां मीडिया की विश्वसनीयता में 62 फीसदी तक कमी आई है। कारण स्पष्ट है कि इस कमी के पीछे पत्रकारिता के बाजारीकरण और गला काट स्पर्धा का प्रमुख हाथ है। क्या इससे यह नहीं लगता कि सब कुछ बाजारू सा हो गया है? आज माडिया का मानवीय पक्ष गायब है। दर्शकों, पाठकों या ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए तनाव और सनसनी का सृजन प्रारंभ हो गया है, जिससे पत्रकारिता की आत्मा का हनन होता चला गया है। इस दिशा में चिन्तन की दिशा निर्धारित करनी ही होगी।
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13-02-2013, 09:57 PM | #124 | |
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Re: कुतुबनुमा
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बहुत अच्छे, अलैक जी. लोकतंत्र के चौथे खम्बे के रूप में आज आये बदलाव के फलस्वरूप पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तियों, चाहे वे संस्थानों के स्वामी हों अथवा मसीजीवी पत्रकार, के जीवन में आर्थिक सम्पन्नता एवं रुतबा-बुलंदी दोनों ही आये हैं. यह ओवरड्यू था चाहे इसमें चना चबेना खाने वालों का खून-पसीना भी परोक्ष रूप से सहयोगी था. हाँ, विश्वसनीयता का जहाँ तक सवाल है, यह जरूर बड़ी चिंता का विषय है. जैसा कि स्पष्ट है यह बीमारी सिर्फ हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर नासूर बनती जा रही है. इसका इलाज भी चौथे स्तम्भ को ही खोजना होगा वरना काटजू साहब तो पहले ही प्रेस से जुड़े समुदाय को अपने तरीके से परिभाषित कर चुके है. |
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17-02-2013, 12:56 AM | #125 |
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Re: कुतुबनुमा
भरोसा न तोड़ दे होड़ की हाबड़तोड़
इन दिनों जिस तरह से देश का इलेक्ट्रोनिक मीडिया हर घटनाक्रम में मीनमेख निकालने की होड़ में जुटा है, वह पत्रकारिता जगत के लिए स्वास्थ्यवर्धक तो किसी भी कोण से नहीं माना जा सकता, ऊपर से हर खबर में अव्वल रहने की होड़ ने ऐसी हाबड़तोड़ मचा रखी है कि न तो तथ्यों पर गौर किया जा रहा है और न ही यह सोचा जा रहा है कि दर्शकों पर इस तरह के ऊटपटांग तथ्यों का असर क्या पड़ने वाला है। हाल के दो घटनाक्रमों ने इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ‘सबसे तेज’ की होड़ ने ऐसी पोल खोली कि टेलीवजन का आम दर्शक यही सोचता रहा कि किसे सही माना जाए और किसे नहीं। पहला वाकया दिल्ली की तिहाड़ जेल में अफजल की फांसी को लेकर सामने आया। शनिवार नौ फरवरी को सुबह करीब सात बजकर पचास मिनट पर अचानक एक समाचार चैनल ने अपना निर्धारित कार्यक्रम रोक कर 'ब्रेकिंग न्यूज’ दी कि अफजल गुरू को तिहाड़ में फांसी दे दी गई है। बस, फिर क्या था, पूरा इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस खबर पर टूट पड़ा और दावे शुरू हो गए कि ‘सबसे पहले हमने’ इस खबर को अपने दर्शकों तक पहुंचाया है। उनके दावों से तो ऐसा लग रहा था मानो हर चैनल का अपना रिपोर्टर उस जगह खड़ा है, जहां अफजल को फांसी दी गई है। हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि जो खबर दी जा रही थी, उसकी गंभीरता पर तो चैनल संजीदा थे, लेकिन जिस हड़बड़ी में उसे प्रस्तुत किया जा रहा था, उससे लगा कि कहीं कोई चूक न हो जाए और वो हो गई। एक चैनल ने ‘तेजी’ के चक्कर में बता दिया कि फांसी सुबह करीब साढ़े सात बजे दी गई, जबकि केन्द्रीय गृहमंत्री ने दस बजे अपनी आधिकारिक घोषणा में फांसी का समय सुबह आठ बजे बताया। इस तरह तथ्य से भटकना या भटकाना कोई अच्छा संकेत नहीं है। दूसरी खबर इलाहाबाद में कुंभ यात्रियों की भगदड़ से जुड़ी है। रविवार रात अचानक एक चैनल ने ‘सबसे पहले’ के चक्कर में ब्रेकिंग न्यूज दी कि कुंभ मेले में भगदड़ में कुछ लोगों के मरने की खबर आ रही है। एक दूसरे चैनल ने भी वही ब्रेकिंग न्यूज दी कि इलाबाहाबाद स्टेशन पर भगदड़ में कई कुंभ यात्री मारे गए हैं यानी शुरूआती दोनों ब्रेकिंग न्यूज से शंका पैदा हो गई कि भगदड़ कुंभ मेले में मची या इलाहाबाद स्टेशन पर। करीब दस मिनट बाद जाकर पहले वाले चैनल ने सही राह पकड़ी और बताया कि भगदड़ स्टेशन पर मची है, न कि कुंभ मेले में अर्थात ‘सबसे तेज’ के चक्कर में तथ्य के साथ जिस तरह से खिलवाड़ किया गया, वह उचित नहीं कहा जा सकता। दोनों घटनाक्रम बड़े थे, लेकिन उन्हें लेकर जो जल्दबाजी दिखाई गई, वह साबित करती है कि मीडिया के कामकाज के स्तर में कहीं न कहीं गिरावट आती जा रही है। महज चंद पलों की देरी से कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा या उस चैनल की विश्वसनीयता पर कोई बड़ी आंच नहीं आएगी, लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया यह क्यों नही समझ पाता कि जल्दबाजी में तथ्यों से खिलवाड़ उसकी विश्वसनीयता को जरूर कम कर सकता है। इससे जुड़े लोगों को इस पर गौर करना चाहिए और बेवजह की दौड़ से बचना चाहिए।
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17-02-2013, 12:53 PM | #126 |
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Re: कुतुबनुमा
छत्तीसगढ़ में बाघों की घटती आबादी
छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है और राज्य सरकार को लगता है इसकी कोई फिक्र ही नहीं है। यही नहीं, बाघों के लिए रहने का इलाका भी अतिक्रमणों के चलते कम हो रहा है और राज्य प्रशासन इसकी भी लगातार अनदेखी कर रहा है। कुछ समय पहले उच्च न्यायालय ने भी बाघों की गिरती संख्या पर चिंता जताई और यहां तक टिप्पणी की कि आने वाली पीढ़ियां बाघ देख पाएंगी या नहीं? न्यायालय ने नेशनल बाघ कंजर्वेशन अथॉरिटी से भी इस बाबत जवाब-तलब किया था। ताज्जुब तो इस बात का है कि बाघों के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री और वनमंत्री की अध्यक्षता में समितियां भी बनी हुई हैं, लेकिन सरकार के पास संभवतः फुर्सत नहीं है। पांच साल में इन समितियों की एक भी बैठक नहीं हुई। यहां तक कि फील्ड डायरेक्टर भी नियमित रूप से बैठक नहीं ले रहे हैं। छत्तीसगढ़ में तीन टाइगर रिजर्व हैं, जिनमें बाघों की संख्या 22 से 28 के बीच बताई जाती है, जबकि पहले अकेले अचानकमार टाइगर रिजर्व में ही 28 बाघ थे। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले छह साल में बाघों का रहवास क्षेत्र बढ़ने के बजाय सौ वर्ग किमी तक घट गया है। पहले 3609 वर्ग किमी रहवास क्षेत्र था, जो अब घटकर 3514 वर्ग किमी हो गया है। इसके बावजूद राज्य का वन अमला बाघ संरक्षण के प्रति संवेदनशील नहीं है। जानकार तो यह भी मानते हैं कि बाघों के रहवास इलाकों में भी अतिक्रमण बढ़ते जा रहे हैं, जिसके चलते बाघों को परेशानी भी बढ़ रही है। या तो उनकी मौत हो रही है या फिर आसपास के आवासीय इलाकों में घुस रहे हैं। यही वजह है कि तीन साल के भीतर तीन बाघों की मौत हो चुकी है। टाइगर्स रिजर्व इलाकों में बाघों की सुरक्षा में भी कोताही बरती जा रही है। रिजर्व इलाकों में सुरक्षा के लिए करीब सवा चार सौ सुरक्षाकर्मी में से केवल दो सौ ही कार्यरत हैं। राज्य सरकार को इस तरह की लापरवाही पर गौर कर उचित कदम उठाने चाहिए।
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17-02-2013, 01:09 PM | #127 |
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Re: कुतुबनुमा
एटमी परीक्षण पर भारत की चिंता
उत्तर कोरिया द्वारा एटमी परीक्षण किए जाने पर भारत ने जो चिंता व्यक्त की है वह मौजूदा समय को देखते हुए जायज कही जा सकती है। भारत ने कहा कि उत्तर कोरिया को अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का उल्लंघन करने वाले ऐसे कदम से परहेज करना चाहिए था जिससे क्षेत्र में शांति और अस्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। खास बात तो यह है कि उत्तर कोरिया का खास मित्र देश चीन और वैश्विक शक्तियां भी इस कदम से हैरान है क्योंकि उसने इस सम्बंध में अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करते हुए यह कदम उठाया है। परीक्षण से तीन घंटे पहले भूगर्भ विशेषज्ञों ने चीन की सीमा के समीप एक तेज असामान्य झटके का पता भी लगा लिया था। इस भूमिगत परीक्षण की संयुक्त राष्ट्र ने भी कड़ी निंदा करते हुए इसे ‘भर्त्सनीय’ बताया और कहा कि यह सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का स्पष्ट उल्लंघन है। दरअसल उत्तर कोरिया ने जो एटमी परीक्षण किया है उससे इस आशंंका की पुष्टि होती है कि वह बैलिस्टिक मिसाइल में परमाणु आयुध लगाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है। यह उत्तर कोरिया का यह तीसरा एटमी परीक्षण है। इससे पहले वह वर्ष 2006 और वर्ष 2009 में परमाणु परीक्षण कर चुका है। इन परीक्षणों के बाद उस पर संयुक्त राष्ट्र ने कई प्रतिबंध भी लगाए थे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कई बार चेतावनी भी दी लेकिन उत्तर कोरिया उच्च स्तरीय परमाणु परीक्षण करने की धमकी देता रहा है, जिससे यह साबित हो रहा है कि वह पूरी तरह मानमानी पर उतर आया है। इसको ध्यान में रखकर कर ही भारत ने जो चिंताएं जताई हैं वह सामयिक है, क्योंकि इससे तनाव और बढ़ेगा तथा क्षेत्रीय पड़ोसियों, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के लिए भी इसको लेकर समस्या पैदा होने की संभावना बढ़ जाएगी जो आने वाले समय के लिए काफी चिंताजनक हो सकती है। भारत समेत सभी देशों को मिलकर इस सम्बंध में विचार कर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे तनाव के हालात पैदा न हों।
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17-02-2013, 10:17 PM | #128 |
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Re: कुतुबनुमा
संसद में बहस की गंभीरता जरूरी
संसद में पिछले कुछ समय से विपक्ष द्वारा संसद की कार्यवाही को बार-बार स्थगित किए जाने के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने जो चिंता जताई है वह काफी संजीदा है और विपक्षी दलों को इस चिंता पर विचार करना चाहिए। राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा के नेता रहे मुखर्जी सरकार की तरफ से ऐसे गतिरोध को दूर करने में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं और हाल ही में राष्ट्रपति भवन में आयोजित एनकेपी साल्वे स्मारक व्याख्यान में उन्होने अपने इसी अनुभवों को बांटा भी। संसद एवं राज्य विधानसभाओं की कार्यवाही में बार-बार बाधाएं डाले जाने की प्रवृत्ति इन दिनो काफी बढ़ गई है । दरअसल ये व्यवधान ऐेसे मामूली मुद्दों को लेकर होता है जिनका समाधान किया जा सकता है लेकिन सदस्य, खासकर विपक्षी सदस्य जो हंगामा करते हैं वह उचित नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रपति ने भी माना कि अधिकतर समय विवाद इस बात पर होता है कि किसी मुद्दे पर संसद के किस नियम के तहत चर्चा हो। उन्होंने कहा कि अधिकतर अवसरों पर संसद के किसी भी सदन में विपक्ष के नेता इस आधार पर आपत्ति करते हैं कि किस नियम के तहत चर्चा हो। संविधान निर्माताओं ने भी यह नहीं सोचा था कि संसद में इस तरह की बाधा आने वाले समय में ‘प्रचलन’ बन जाएंगी। सभी को मिलकर इस पर विचार करना चाहिए और इन विकृतियों को दूर किया जाना चाहिए। इन बाधाओं के कारण वित्तीय मामलों पर सदन में चर्चा करने की शक्ति का भी पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। राष्ट्रपति ने भी माना कि पहले संसद में पंचवर्षीय योजना पर विस्तार से चर्चा होती थी लेकिन मुझे याद नहीं है कि आठवीं, नौवीं और दसवीं योजनाओं पर सदन में चर्चा हुई। यह वास्तव में एक विचारणीय प्रश्न है कि अगर विपक्ष गंभीर विषयों पर भी सदन में चर्चा के लिए गंभीरता नहीं दिखाएगा तो सदन के मायने ही क्या रह जाएंगे। सभी दलों को राष्ट्रपति की चिंता को समझ कर इस समस्या के समाधान में ठोस पहल करनी चाहिए।
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18-02-2013, 11:41 PM | #129 |
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Re: कुतुबनुमा
सरकार की नीतियों से उद्योग जगत आशावान
सरकार की नीतियों को लेकर भारतीय उद्योग जगत काफी आशावान दिखाई दे रहा है और उसका यह मानना है कि आगामी बजट में आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन देने के सरकार के प्रस्तावित उपायों से आने वाले महीनों में कारोबारी धारणा सुधरेगी और कुल मिलाकर स्थितियां बेहतर होंगी। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) को भी आगामी बजट से काफी उम्मीदें हैं। फिक्की ने इस वर्ष की पहली छमाही की अवधि में ज्यादा बिक्री और मुनाफे की संभावना भी जताई है। यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत माने जा सकते हैं। भारतीय उद्योग जगत को नए बजट की प्रतीक्षा है। उसे पूरी उम्मीद है कि इसमें सरकार आर्थिक विकास को गति देने के अपने कदम को और तेजी से आगे ले जाएगी । अगर सरकार आर्थिक सुधारों को लागू करने के अपने प्रयास को तेज करेगी तो उसके अच्छे नतीजे सामने आएंगे। सरकार अपने प्रयासों में कितनी संजीदा है इसका पता इसी बात से लग जाता है कि उसने निवेश के लिए अलग से मंत्रिमंडलीय समिति के गठन भी किया है। उद्योग जगत का मानना है कि इससे पूंजी की कमी के कारण बीच में रुकी परियोजनाएं शुरू की जा सकेंगी तथा नई परियोजनाओ और निवेश का रास्ता खुलेगा। फिक्की और पीएचडी चैंबर द्वारा अलग-अलग कराए गए सर्वेक्षण में ज्यादातर भारतीय कंपनियों ने कहा कि औद्योगिक घरानों के बीच सकारात्मक सोच है और उन्हें कारोबारी स्थितियां बेहतर होने की उम्मीद है। दोनों ही सर्वेक्षण में रिजर्व बैंक के नीतिगत दरों में कमी लाने के हाल के कदम को निवेशक धारणा में सुधार के अनुकूल बताया गया और उम्मीद जताई गई कि इससे निकट भविष्य में निवेश बढ़ेगा। कहा जा सकता है कि बेहतर नीतियों वाला परिवेश उपलब्ध कराने और निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए यह सबसे अच्छा मौका है। सरकार इसमें अभी और प्रयास करेगी।
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24-02-2013, 01:20 AM | #130 |
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Re: कुतुबनुमा
सार्थकता तो सिद्ध करनी ही होगी
कहा तो यही जाता है कि मीडिया सच को सामने लाने का सबसे बड़ा माध्यम है, लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि मीडिया कुछ बड़ी घटनाओं तक या तो पहुंच नहीं पाता या किसी वजह से उसे नजरअंदाज कर देता है, जबकि कई बार ऐसा लगता है कि प्रायोजित घटनाएं खबर बन कर सामने आ जाती हैं। हाल ही में एक ऐसी जानकारी सामने आई जो दिल दहलाने वाली तो थी ही, परम्परा के नाम पर लोगों में भ्रम भी पैदा करती है, लेकिन न जाने क्यों मीडिया ने इस खबर को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। गुजरात में कुछ दिनों पहले चालीस आदिवासियों को खौलते तेल में हाथ डालकर अग्निपरीक्षा देने के लिए विवश किया गया और इस दुष्कृत्य की मीडिया ने खबर बनाने के बजाय अनदेखी कर दी, जबकि अग्निपरीक्षा जैसी धूर्त चालों के जरिए लोगों को मूर्ख बनाने वालों के षड़यन्त्र को मीडिया द्वारा प्रमुखता से विश्व के समक्ष उजागर करना चाहिए था। सवाल तो यह भी उठना चाहिए कि जब सती प्रथा जैसी अवैज्ञानिक और अमानवीय कुप्रथा को प्रतिबन्धित करके, इसका महिमामंडन प्रतिबन्धित और अपराध घोषित किया जा चुका है, तो किसी भी प्रकार से अग्निपरीक्षा जैसी अमानवीय और नृशंस क्रूरता की कपोल-कल्पित कहानियों के बूते भ्रम पैदा करने वालो को क्यों रोका नहीं जा रहा है? इनके चलते ही लोगों के अवचेतन मन में ऐसे अमानवीय और क्रूर विचार पनपते हैं। दुर्भाग्य यह है कि मीडिया भी इस पर पुरजोर तरीके से आवाज नहीं उठाता। एक और उदाहरण हाल ही में इलाहाबाद में कुम्भ के दौरान हुए हादसे में कई दर्जन निर्दोष लोगों की जान चली जाने का है। इसमें भी मीडिया एक राय नजर ही नहीं आया। कोई राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा था, तो कोई रेलवे मंत्रालय को। लेकिन इस तरह के हादसे न हों, इस पर मीडिया की तरफ से कोई सुझाव या कवरेज दिखाई ही नहीं पड़ी। अब तो सभी उसे भूल ही गए हैं। फिर कोई हादसा होगा, तो कुछेक दिन मीडिया उसे भुनाएगा और फिर भूल जाएगा। दरअसल लोकतंत्र में मीडिया वो सशक्त माध्यम होता है, जो हर विषय पर लोगों को जागरुक बनाए। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में तो मीडिया की जिम्मेदारी और भी अहम हो जाती है। इस समय तो बस यह लग रहा है कि मीडिया केवल वहीं अपनी रूचि दिखाता है, जहां से उसको व्यावसायिक हित नजर आता है। शायद यही वजह है कि अब इस क्षेत्र में काम करने वालों में विषय की गंभीरता भी नजर नहीं आती। हाल ही में हैदराबाद में दो धमाकों में कई लोगों ने अपनी जान गंवा दी। शाम सात बजे घटना हुई और इलेक्ट्रोनिक मीडिया टूट पड़ा कवरेज के लिए। तभी एक चैनल पर समाचार प्रस्तुत कर रही एंकर ने घटना की गंभीरता से इतर जाते हुए कहा - ‘अब तक सात लोगों की मौत की खबर है और मरने वालों का स्कोर बढ़ने की संभावना है...।’ गोया कि यह दर्दनाक हादसा नहीं किसी खेल की कमेंट्री चल रही हो। मीडिया से जुड़े लोगों को अब यह गौर करना ही होगा कि खबरों की प्रस्तुति खबर की गंभीरता को लेकर हो । जो खबर है, उस तक पहुंचा जाए और जो प्रायोजित है, उसे छोड़ा जाए, तभी मीडिया की मौजूदगी की सार्थकता सिद्ध होगी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु Last edited by Dark Saint Alaick; 24-02-2013 at 01:22 AM. |
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