17-09-2014, 11:54 PM | #121 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ताकत के जमाना है हो, गांधी जी बनके केकरो कुछ नै मिले बाला है।’’ यह विमलेश की आवाज थी। विमलेश भी राजनीति में पकड़ रखता था और वह अपने जाति का नेता माना जाता है। उसके पिताजी की राजनीति पकड़ है। ‘‘हां हो सूटर दा केतना साल से सबके जागाबे में लग हखीन पर कोई साथ दे है?’’ इ पूरा गांव ही मुर्दा है।’’ कमल ने कहा। हमलोगों की यह बहस चल ही रही थी कि बाजार से लौट रहे सूटर दा ने टोक दिया। ‘‘की हो जवान सब चहतै तब साला कोई वोट नै देबेले देतै, सबतो खाली पिछूआ में बोलो है। ‘‘ऐसन की बात है सूटर दा, अबरी हमसब साथ देबो, देखल जइतै जे होतइ से।’’ मैंने जोश में आकर साथ देने की बात कह दी। फिर कुछ देर तक चर्चा चलती रही। वहीं पर मालूम हुआ कि कल विधायक जी आने वाले हैं गांव में वोट मांगने। दलितों के लिए आरक्षित इस क्षेत्र के चाौधरी जी विधायक थे पर उनके उपर गांव के दबंगों का ही कब्जा था। तभी तो हमलोगों को सुनाते हुए विमलेश ने कहा भी था- ‘‘हां हो विधायक चाहे कोई जात के होबै पर उ सुनो तो तोर बभने सब के है।’’ >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:46 PM | #122 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ ऐसन बात नै है हो, जात पात के लड़ाई नै है, केतना बाभन है जेकरा मारपीट कर बूथ से भगा देल जा है। जात चाहे जे है पर गरीबका के कोई नै होबो है।’’ मैंने प्रतिवाद किया।
पढ़ने लिखने आदत ने मुझे इतनी समझ दे दी थी कि मैं वर्ग संधर्ष की बात समझ सकता था और जात पात की लड़ाई पर चर्चा कर सकता था। इतनी समझ तो मुझमें विकसित हो ही गई थी कि मैं समझ सकता था कि गरीबों की कोई जात नहीं होती भले ही उपर उपर सब ढोल पीटे। याद है मुझे जब पिछले चुनाव में मेरे फूफा को यह कर बूथ से लौटा दिया गया था कि तोर बोट पड़गेलो जा घर जा। इसी बैठकी में यह तय हो गया कि विधायक जी जब वोट मांगने आयेगें तो नैजवान सब उनका विरोध करेगें। इस बैठकी से घर लौटते रात के ग्यारह बज गए। रीना के घर के पास गुजरते हुए चौंकन्ना रहना पड़ता था ताकि कोई हमला न हो जाए। तभी देखा कि रीना पुलिया पर बैठी है, शायद मेरा ही इंतजार कर रही है। आज वह बहुत उदास थी, जैसे हाथ में आया मोती का दाना कहीं चूक गया हो। शायद वह बहुत देर से इंतजार कर रही थी सो कुछ गुस्से में भी थी बोली- ‘‘कौन कन्याय तर इतना रात तक गप्प चलो हल।’’ >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:48 PM | #123 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘एक कन्याय तो मिल नै रहल हें और दोसर के सपना कहां से देखूं।’’
‘‘हां, तब जे लक्ष़्ान हौ ओकरा से तो लगो हौ कि मिलबो नै करतौ।’’ ‘‘की बात है, पारा कुछ जादे ही गरम लगो है।’’ तब फिर उसने अपनी उदासी का कारण अपनी शादी की चर्चा घर में किये जाने की बात कही। ‘‘बाबूजी बरतुहारी कर रहलखीन है और उनकर कोशिश है कि तोरा से खूब सुन्दर और नौकरी बाला डाक्टर, इंजिनीयर लड़का खोजे के ताकि हमर मन पिधल जाय।’’ ‘‘तब ऐकरा में उदास होबे के की बात, तोरा तो खुश होबे के चाही? नौकरी बाला के कन्याय बनहीं।’’मैने उसके गुस्से को भड़का दिया। वह नाराज होकर जाने लगी पर किसी तरह से मना लिया। उसके गुस्से का एक सबसे बड़ा कारण यह देखने को मिल रहा था कि जब बाबूजी कह दिये थे कि शादी करा देगें तुमसे तब फिर मुकर क्यों रहें है? इस समय से यह चलन जोरों पर है कि नौकरी बाला लड़का से बेटी की शादी करनी चाहिए और इसके लिए काफी मेहनत की जाती थी। जहां कहीं भी एक भी लड़का रहता उसपर बरतुहार टूट पड़ते जिसकी वजह से नौकरी करने वालों के दहेज की मांग सर्वाधिक या यूं कहें की मुंह मांगी रहती। रीना के बाबूजी ने उसकी शादी मुझसे करा देने का बादा किया था पर अचानक शादी की बात सामने आने से वह उदास थी पर हताश नहीं। फिर दोनों ने ऐसी सूरत में एक फैसला लिया जो अमूमन फिल्मी ही थी। घर से भाग जाने का। प्रस्ताव पर दोनों ने देर तक चर्चा की और इसमें आने वाली बाधाओं पर विचार किया। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:49 PM | #124 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ऐक्कर अलावा और कौनो चारा भी तो नै है, कब से कह रहली हैं कि हमर दोनों के शादी करा दा पर सुनबे नै करो हखीन।’’ रीना ने कहा।
‘‘तब पर भी इतना जल्दी ई फैसला नै लेबे के चाही, पहले तनी और कोशीश करे के चाही, ई त अंतिम उपाय है।’’ इसी कड़ी में उसने बताया कि उसके शादी के लिए उसके पास ही लगभग पच्चीस भर सोने के जेबर और एक लाख से अधिक रूपया जमा है जो भागने के बाद उसके काम आएगे। पर मेरे सामने सबसे बड़ी बाधा यह थी कि घर से निकल कर कुछ दिन के लिए पटना का होस्टल और उसके बाद कोचिंग के अलावा मैं कुछ देखा ही नहीं था सो कहां और कैसे भाग कर जाना है विचार करने लगा। चलो फिर भी जो हो सो हो। कुछ साल पहले से ही सुरेन्द्र मोहन पाठक का उपन्यास पढ़ने की लत लग गई थी और उनके विमल नामक चरित्र से बहुंत प्रेम हो गया था और उसका डायलॉग तो बेहद पसंद थे और उसी को सोंच रहा था।-जो तुध भावे नानका, सोई भली तू कर। इसी बीच उसके घर में कुछ हलचल सी हुई, दोनों चुंकी उसके घर के पास ही पुलिया पर ही बतिया रहे थे सो सर्तक होकर वहां से खिसक लिया। बाकि बातें बाद में विचारेगें। यह एक बड़ी समस्या थी। घर आया तो रात भर नींद भी नहीं आई। सोंचता रहा कि कहां जाना है। कुछ भी हो पर एक सबसे बड़ी मेरी कमजोरी मेरा अर्न्तमुखी होना था और मैं कम ही बोलता था सो किताबों, कहानियों और फिल्मों के अनुसार बड़े बड़े शहरों के प्रति एक भय मन में बैठा हुआ था, न जाने क्या हो? कैसे कैसे लोग मिले। बगैरह बगैरह। अन्तोगत्वा-जो तुध भावे नानका। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:51 PM | #125 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
सुबह हुई और उदास मन से बाहर निकला तो हंगामा जम चुका था। नदी पर रात की चर्चा की खबर गांव के दबंगों तक पहूच चुकी थी और सुबह सभी के गारजीयनों से शिकायत दर्ज कराई जा रही थी पर वह धमकी के लहजों। मेरे घर भी एक संदेशबाहक आ धमका।
‘‘की सुराज दा, सरबेटबा नेता बने के फेरा में हो समझा दहो, यहां नेता बनेबाला के नुकसाने होबो है।’’ फूफा कुछ कहते इससे पहले ही मैं उलझ गया। ‘‘नुकसान से के डरो हई, कोशीश करके देख लहीं, रावण के धमड़ रहबे नै कैइलै और तों सब की हीं।’’ बहस के बीच अन्ततः फूआ तक बात पहूंच गई और उसने कोहराम मचा दिया। ‘‘इ बुतरू हमरा के बर्बाद करे पर पड़ गेल हें, बोला दहो बाप के जइतई यहां से।’’ मैंने अपनी सफाई दी, पर असर नहीं हुआ और फिर घर तक बात पहूंच ही गई। समूचे गांव में यह चर्चा फैल गई की हमलोग नरेश सिंह का विरोध करते है। और आखिरकर रीना तक भी बात पहूंच गई। आलाकमान। एक दिन राह चलते मिल गई। ‘‘साला अपन देखल नै जा है और दोसरके के देख ले चललै हें।’’ वह बहुत ही गरम थी। क्या जरूरत है यह सब करने की। चौतरफा हुए इस हमले में मैने रीना को आश्वासन दे दिया, अब आगे शिकायत नहीं मिलेगी। उसने कसम ले ली। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:53 PM | #126 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘खा हीं तो हमर किरिया।’’ और फिर राजनीति की ओर जाते कदम वहीं रूक गए पर दोस्तों ने इस मुहिम को मुहिम नाम से जारी रखा और चुनाव के दिन बुथ पर जम कर बम बाजी हुई। सुना कि सूटर सिंह ने लोगों को जुटा दिया और फिर जो कभी वोट नहीं देते थे उसने बुथ पर बोट डाला। पर इसके बाद गांव में नफरत की एक बड़ी लाइन खिंच गई और कई लोग एक दूसरे बोलना बतियाना बंद कर दिये.
आज तड़के बाबा के नहीं रहने की खबर मिली और मुझे एक बड़ा झटका लगा। बाबा के सहारे ही घर का खर्च चल रहा था और अब, जब वे नहीं रहे तो घर कैसे चलेगा यह सबसे बड़ा सवाल था। मैं भागा-भागा घर आया। घर में सभी रो रहे थे। बाबा का शव दरबाजे के बाहर रखा हुआ था। सामाजिक होने में आर्थिक विपन्नता सबसे बड़ी बाधक होती है और यही बाधा मुंह बाये सामने खड़ी। परंपरा के अनुसार बाबा के शव को बाढ़ के गंगा किनारे, उमानाथ घाट ले जाना है दाह संस्कार के लिए और इसके लिए अच्छी खासी रकम खर्चनी होगी। घर में एक फूटी अधेली नहीं थी और समाज के साथ जीना भी है, सो कर्ज का जुगाड़ किया जाने लगा। कर्ज का जुगाड़ करना भी मां की जिम्मेवारी बनी क्योंकि बाबा के मरने की खबर सुन छोटे चाचा कन्नी कटाने लगे और चाची ने पहले ही कह दिया कि हम कहां से कुछ देगें। सो बाबा के दाह संस्कार के लिए कर्ज खोजने के लिए मां ने मुझे एक दो जगह भेजा। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:54 PM | #127 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
गांव में ऐसे अवसरो का इंतजार कर्जा लगाने वाले करते रहते है और जितनी अधिक मजबूरी होती है उतना अधिक ब्याज लिया जाता है। उसपर भी चिरौरी अतिरिक्त करनी पड़ती है। खैर गांव के ही कारू सिंह के यहां से पांच रूपये प्रति सैंकड़ा पर दस हजार रूपये कर्ज लिए गए और बाबा का दाह-संस्कार के लिए बाढ़ के उमानाथ घाट चल दिये। घर से शव को निकालने से पहले गांव के ही किर्तनिया टोली आ गई और निर्गुण गाते हुए बाबा के शव को गांव में घूमया गया। मैंने एक झोली में जै, कौड़ी और रिजगारी पैसा ले लिया और उसे समय समय पर लूटाता रहता। उसे लूटने के लिए गांव के बच्चे और बड़े दौड़ पड़ते, एक एक चवन्नी पर दस दस लोग गुथ्थमगुथ्थी। मान्यता थी कि बुजुर्ग के शव यात्रा में लुटाए गए पैसे का शुभ असर होता है।
निर्गुण गाने वालों की टोली- ‘‘कहमां से हंसा आ गेलई, कहंवां समां गेलई हो राम...’’ का निर्गुण गाते हुए शव के साथ घूम रहे थे। गांव के बाहर भाड़े की एक जीप आकर लग गई। गोतिया भाई सब उस पर सवार होने लगे। खास कर चांद चाचा, बालक बाबू, कामो सिंह, गोरे सिंह, बिरीज सिंह। ये लोग शव दाह करने के स्पेशलिस्ट थे और गांव में कोई मरता ये लोग जाते ही थी। हां इन लोगों का खास ख्याल रखना पड़ता, जिसके तहत गांजा की व्यवस्था करनी पड़ती और ये लोग गांव से ही इसके साथ शुरू हो जाते। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-09-2014, 11:56 PM | #128 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
खैर, जीप के साथ गांव से निकला और रास्ते में एक दो जगह लोगों ने जीप रूकबाई और नास्ता किया, कहीं चाय पीया। किसी तरह हमलोग उमानाथ घाट पहूंचे। घाट के दोनो तरफ डोमराजा का बास था। घाट पर डोमराजा के नाम से ही डोम जाती को संबोधित किया जाता है और गांव के बड़े बुजुर्ग जो गांव में डोम जाती के लोगों की छाया से भी दूर रहते आज यहां उसे सम्मान से संबोधित कर रहे थे। प्रथम अग्नि उसी को देने है नहीं स्वर्ग का रास्ता बंद। हे भगवान। मन ही मन मैं सोंच रहा था। जब अन्तिम समय इसी को पवित्र मानते है तो ता उम्र इससे नफरत क्यो।
खैर, शवदाह को लेकर गंगा के किनारे शव को आम की लकड़ी पर सजा दिया गया और फिर आग देने के लिए डोमराजा की चिरौरी प्रारंभ हो गई। डोमराजा ने एक बीधा जमीन की मांग से अपनी मांग शुरू कि और अन्ततोगत्वा पांच सौ एक्कावन पर मान गया। चाचा जी ने मुखाग्नी दी और फिर गंगा स्नान करने के बाद हम लोग गंगा घाट के उपर आ गए। वहां कामो सिंह के द्वारा पहले से ही सबके लिए खाने की व्यवस्था की गई थी। फिर सबने मिलकर पूरी सब्जी और रसगुल्ले, छक कर खाए और वहां से चलकर घर आ गए। इसके बाद प्रारंभ हुआ कर्मकांडों की परंपरा, जिसमें कई तरह की परेशानियों से जूझता हुआ दशकर्म का दिन आ गया। सबका मुंडन किया गया। फिर एकादशा के दिन पंडित जी को दान देने को लेकर काफी हो हल्ला हुआ और मान-मनौब्ल के बाद सब खत्म किया गया। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 27-09-2014 at 11:47 PM. |
27-09-2014, 11:47 PM | #129 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
घर में भोज को लेकर बहस होने लगी। कोई पूरी जलेबी तो कोई तीन थान मिठाई करने की बात कहते हुए बहस कर रहे थे। मैं इस सब का विरोध करते हुए सादा सादी भोज करने की बात कहने लगा पर कोई इस पर नहीं मान रहे थे।
इसी क्रम में होने वाले बहस में जब मैने यह कहा कि "कर्जा लेकर गोतिया भाई के खिलैला से कौन नाम होतई, नहाई ले तो सब कहो है पर साबुन कोई नै दे हई।’’ तो गांव के बड़े बुजुर्ग भड़क गए। आखिर कामो सिंह ने कह ही दिया-आयं हो गोतिया नैया के यहां भोज खाइले जाहीं की नै, यह तो परंपरा ही है खइमहीं तो खिलाबे पड़तै ही।’’ इस सब मे पूरा परिवार पन्द्रह हजार के कर्ज में डूब गया। जिंदगी यहां एक तल्ख सच्चाई के रूप में मेरे सामने आ कर खड़ा हो गई। प्रेम का जुनून पानी के बुलबुले बन गए। सब कुछ कर धर कर बीस पच्चीस दिन बाद फूआ के यहां पहूंचा। इस बीच कभी प्रेम के मामले पर ध्यान ही नहीं जा सका। क्या हुआ क्या नहीं, पता नहीं। घर पहूंचते ही मामला बदला बदला नजर आने लगा। मैं भी अब जीवन की कई पहलूओं पर सोचने समझने लगा और उधर रीना कहीं नजर भी नहीं आ रही थी। शायद पहरेदारी कड़ी हो गई होगी या फिर कुछ और मामला होगा। मेरे दिमाग में अब कई तरह के सवाल आ जा रहे थे। खास कर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मेरे द्वारा प्रेमविवाह का समाज के विरूद्ध कदम उठाना, सोंचने पर मजबूर कर रहा था। प्रेम का जुनून समुद्र की लहरों की तरह स्वतः टूट कर बिखरता नजर आने लगा। मैं खामोश हो गया। शाम में टहलता हुआ अकेले दूर निकल जाता। इस विपरीत परिस्थिति में यह कदम कहीं से उचित नहीं लग रहा था। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
27-09-2014, 11:48 PM | #130 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
यह संधर्ष के पल थे। जमाने से लड़ लेना तो आसन है पर खुद से लड़ना काफी मुश्किल। इसी मुश्किल से लड़ते हुए मन बेचैन था। लोगों के साथ बातचीत बंद कर दी, न दोस्तो से बातचीत करता और न घर में ठीक से खाना खाता। कुल मिलाकर आज शाश्वत प्रेम यर्थाथ की धरातल पर उतर कर टूटकर बिखरने के कगार पर आ चुका है। यह सब एकाएक और एकतरफा हो रहा था। मैं हारता जा रहा था और सहारे के लिए रीना का साथ भी नहीं था। हलांकि पहले भी कई पत्रों में अपनी आर्थिक स्थिति का जिक्र करते हुए रीना को समझाने का प्रयास कर चुका था पर इस बार अपने घर की स्थिति देखते हुए एक बड़ी जिम्मेवारी सी मेरे कंधे पर आ गई सी महसूस हो रही थी। द्वंद और एकांत के इस क्षण में किसी का सहारा नहीं मिल रहा था। न तो किसी से रीना के बारे में पूछता और न ही कभी उसको तलाशने की कोशिश करता।
पता नहीं क्यों, पर मन में एक हीनता का भाव घर कर गया और अपनी हालत के साथ रीना को जोड़ने का मन नहीं करता। कहीं पढ़ा था कि सच्चा प्रेम अपने साथी को सुख देकर ही सुख पाता है और मैं अपने मन में अपने आप को सच्चा प्रेमी मानते हुए, दंभ पाल रखा था। और आखिर कर साथी के सुख के विचार ने प्रेम के कलेज पर पत्थर रख दिया। रीना से शादी नहीं करने का फैसला कर लिया। आज रात पत्र लिख कर उसे यह जता देने का फैसला कर लिया कि मैं उससे प्रेम नहीं करता और शादी नहीं करूंगा। >>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
Bookmarks |
Tags |
उपन्यास, जीना मरना साथ, लम्बी कहानी, a long love story, hindi novel, jeena marna sath sath |
|
|