18-05-2014, 04:40 PM | #121 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
बदल कर रुख़ हवा उस छोर से आए तो अच्छा है
मेरी कश्ती भी साहिल तक पहुँच जाए तो अच्छा है मसाइल और भी मौजूद हैं इसके सिवा लेकिन महब्बत का भी थोड़ा ज़िक्र हो जाए तो अच्छा है अदालत भी उसी की है, वक़ालत भी उसी की है वो पेचीदा दलीलों में न उलझाए तो अच्छा है जहाँ फूलों की बारिश हो, जहाँ ख़ुशबू के दरिया हों कोई ऐसे जहाँ की राह बतलाए तो अच्छा है कभी ऐसा नहीं होगा मुझे मालूम है फिर भी मेरे हाथों में तेरा हाथ आ जाए तो अच्छा है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
18-05-2014, 04:43 PM | #122 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता है बात करता है कि बस जी ही जला देता है बात होती है इशारों में जो रूठे है कभी उसका हम पर यूँ बिगड़ना भी मजा देता है बात करेने का सलीक़ा भी तो कुछ होता है वो हरिक बात पे नशतर-सा चुभा देता है हमने दी है जो कभी उसको खुशी की अर्ज़ी पुर्जा-पुर्जा वो हवाओं में उड़ा देता है है अँधेरों में चराग़ों सा वजूद उसका "ख़याल" राह भटका हो कोई राह दिखा देता है
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18-05-2014, 04:45 PM | #123 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
बात छोटी-सी है पर हम आज तक समझे नहीं दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं सुर्ख़ रुख़सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल दौड़कर छत पे चले जाना तेरा भूले नहीं हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े में थे वो मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं अब के है बारूद की बू चार-सू फैली हुई खौफ़ है फैला हुआ आसार कुछ अच्छे नहीं. उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल' तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं
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18-05-2014, 05:03 PM | #124 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
रुक जाना नही तू कही हार के
रुक जाना नहीं तू कही हार के कांटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के ओ राही, ओ राही नैन आंसू जो लिये हैं, ये राहों के दिये हैं लोगों को उनका सब कुछ देके तू तो चला था सपने ही लेके कोई नहीं तो तेरे अपने हैं सपने ये प्यार के सूरज देख रुक गया हैं, तेरे आगे झूक गया हैं जब कभी ऐसे कोई मसताना निकले हैं अपनी धून में दीवाना शाम सुहानी बन जाते हैं, दिन इंतजार के साथी ना कारवाँ हैं, ये तेरा इम्तिहान हैं यूही चला चल दिल के सहारे करती हैं मंजिल तुझ को इशारे देख कही कोई रोक नहीं ले, तूझ को पुकार के
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18-05-2014, 09:52 PM | #125 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
अतिसुन्दर रचनायें.........
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19-05-2014, 10:23 PM | #126 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
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19-05-2014, 10:33 PM | #127 |
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20-05-2014, 04:41 PM | #128 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
हमारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए [ग़ज़ल] - प्रकाश "अर्श"
मारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए। / के रिश्ता जो भी जाए घर वो ना-मंजूर हो जाए॥ / / हिकारत से यूँ रस्ते में मुझे जालिम ना देखा कर / मुहब्बत इस कदर ना कर कोई मगरूर हो जाए॥ / / जली होंगी कई लाशें दफ़न होंगे कई किस्से / संभलना शहर फ़िर कोई ना भागलपूर हो जाए॥ / / कोई शिकवा हो तो कह दे इसे ना दिल में रक्खा कर / ज़रा सा जख्म है बढ़कर न ये नासूर हो जाए॥ / / जिसे भी देखिये वो बेदिली से देखता है अब / मुहब्बत करने वालों का न ये दस्तूर हो जाए॥ / / वो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में / कमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए॥ / / है पीना कुफ्र ये जो "अर्श" से कहता रहा कल तक / वही प्याला लबों को दे तो फ़िर मंजूर हो जाए॥ /
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20-05-2014, 04:55 PM | #129 |
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
दुआऎं [कविता] - किरण सिन्धु
दुआओं का अपना ही वजूद होता है: दुआएँ होठों से नहीं आँखों से बोलती हैं. कभी किसी भूखे बच्चे को, पेट भर खाना खिला कर तो देखो, कभी किसी बूढे - बेसहारे को, कुछ कदम साथ चल कर, रास्ता पार करा कर तो देखो, कभी किसी अबला की लुटती अस्मत को, अपनी शराफत और भरोसे की चादर, ओढ़ा कर तो देखो. इनकी आँखों में इक नमी सी तैर जाती है, एक ऐसा नूर जो दिल की गहराइयों में समा कर, अन्दर तक उजाला भर दे. एक ऐसे रिश्ते की बुनियाद, जो सभी रिश्तों से ऊपर है. दुआओं से इंसान को रूहानी ताकत मिलती है, ये वो नेमत है जो किसी बाजार में नहीं बिकती है
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20-05-2014, 05:25 PM | #130 | ||
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Re: मेरी पसंद : गीत गजल कविता
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दोनों ही गजले अंतरमन को सोचने पर मजबूर करती हें , बेहतरीन.........
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