03-12-2012, 12:46 PM | #1291 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लंदन। विमान निर्माता कंपनी ने दावा किया है कि इमारतों का निशाना बनाने के लिए विद्युत चुंबकीय तरंगों का इस्तेमाल करने वाला एक नया प्रक्षेपास्त्र लोगों को नुकसान पहुंचाए बिना देश के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्थायी रूप में बंद कर सकता है। अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने दावा किया है कि उसने हथियार का सफल परीक्षण किया है। इस परीक्षण के दौरान प्रक्षेपास्त्र ने उटाह रेगिस्तान स्थित एक सैन्य परिसर में लगे सभी कम्प्यूटरों को बंद कर दिया। डेली मेल की खबर के अनुसार ऐसा सोचा गया था कि प्रक्षेपास्त्र ऐसे बंकरों और गुफाओं में प्रवेश कर सकता है, जिसमें माना जाता है कि ईरान के परमाणु सन्यंत्र चोरी छुपे चल रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रौद्योगिकी गलत हाथों में पड़ गई, तो इसका इस्तेमाल पश्चिमी देशों को घुटने टेकने के लिए किया जा सकता है। बोइंग के इस परीक्षण के दौरान प्रक्षेपास्त्र उटाह के परीक्षण एवं प्रशिक्षण रेंज के ऊपर कम ऊंचाई पर उड़ान भरी और सात लक्ष्यों पर विद्युत चुंबकीय तरंगें छोड़ी, जिससे इलेक्ट्रानिक उपकरणों को स्थाई रूप से बंद कर दिया।
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03-12-2012, 03:28 PM | #1292 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
[QUOTE=Dark Saint Alaick;186954]बड़ी बीमारियों से बचना हो तो सेब खाना न भूलें
सेब के बारे में हमने सुन रखा था “An apple a day keeps the doctor away”. इस स्वास्थ्य सूत्र में सेंट अलैक जी, आपने विद्वान डॉक्टरों के हवाले से सेब के जुड़े सभी पहलुओं पर विस्तार से जो जानकारी दी है उससे अंग्रेजी की उपरोक्त सूक्ति सत्य साबित होती है. इसमें कोई शक नहीं कि सेब हमारे पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और केंसर तथा अन्य रोगों के प्रति हमारे शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढाता है. Last edited by rajnish manga; 03-12-2012 at 03:32 PM. |
04-12-2012, 01:26 AM | #1293 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
ग्रह निर्माण की धारणाओं के सामने नई चुनौती
सेंटियागो। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को एक ऐसी नई जानकारी मिली है, जो पृथ्वी जैसे चट्टानी ग्रहों के निर्माण से जुड़े पारंपरिक सिद्धांतों के सामने चुनौती पेश करती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी के अलावा बुध, शुक्र और मंगल तीन अन्य चट्टानी ग्रह हैं। इनकी सतह ठोस है और यहां भारी धातुओं की मौजूदगी है। ये ग्रह बृहस्पति और शनि जैसे गैस के बड़े और घूमते पिंडों से काफी अलग हैं। यह अध्ययन एस्ट्रोफिजीकल जर्नल आॅफ लैटर्स में कल प्रकाशित किया गया। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने उत्तरी चिली के सुदूरवर्ती रेगिस्तान में पर्वत की चोटी पर पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर एल्मा नामक एक दूरबीन का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अंतरिक्ष में आईएसओ-ओपीएच 102 नामक ब्राउन डवार्फ की खोज की। ब्राउन डवार्फ एक ऐसा चीज है, जो है तो तारे जैसा, लेकिन वह बहुत छोटा है कि ज्यादा तेजी से चमक नहीं पाता। पारंपरिक सिद्धातों के अनुसार चट्टानी ग्रहों का निर्माण एक तारे के चारों ओर पदार्थ के घेरे में सूक्ष्म कणों के अनियमित टकराव के कारण होता है। काजल सरीखे ये कण एक दूसरे से चिपक कर विकसित होते हैं। वैज्ञानिकों ने सोचा था कि ब्राउन डवार्फ की बाहरी सीमाएं कुछ भिन्न थीं। उनका मानना था कि चूंकि चारों ओर की डिस्क बहुत पतली हैं, इसलिए कण आपस में जुड़े हुए रह ही नहीं सकते। साथ ही, टक्कर होने के बाद कण बहुत तेजी से एक दूसरे से चिपकने के लिए भागते हैं, लेकिन आईएसओ-ओपीएच 102 के चारों ओर की डिस्क में वैज्ञानिकों ने ऐसी चीजें खोज निकालीं, जो उनके लिए बड़े मिलीमीटर के कण थे। अमेरिका, यूरोप और चिली आधारित अंतरिक्ष विज्ञानियों के समूह का नेतृत्व करने वाले कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के लुका रिक्की ने कहा कि इस आकार के ठोस कण ब्राउन डवार्फ के चारों ओर की डिस्क के ठंडे क्षेत्र में निर्माण के लायक नहीं होने चाहिए, लेकिन अब लगता कि वे इसके लायक हैं। हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि एक पूरा चट्टानी ग्रह ही वहां बन सकता हो या फिर बन चुका हो। हम इसके शुरुआती चरण देख रहे हैं। इसलिए हम ठोस के विकसित होने के लिए जरूरी स्थितियों के बारे में अपनी धारणाओं को बदलने जा रहे हैं।
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04-12-2012, 02:41 AM | #1294 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अब रक्त से स्टेम कोशिकाएं विकसित की वैज्ञानिकों ने
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक व्यक्ति के रक्त से स्टेम कोशिकाएं विकसित की हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह कोशिकाएं अनेक बीमारियों के उपचार में काम आ सकती हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक दल ने कहा कि यह स्टेम कोशिकाओं का सबसे सुरक्षित और आसान स्रोत हो सकता है। बीबीसी न्यूज के अनुसार कोशिकाओं का इस्तेमाल रक्त वाहिका बनाने में किया जा रहा था पर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि ऐसी स्टेम कोशिकाओं की सुरक्षा के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। आमतौर पर स्टेम कोशिकाओं का एक स्रोत भ्रूण को माना जाता है पर यह नैतिक रूप से विवादास्पद है। शोधकर्ताओं ने त्वचा के नमूनों से भी स्टेम कोशिकाएं विकसित करने में सफलता पायी थी। कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने रक्त नमूनों की जांच की और परीक्षण के बाद उनको स्टेम कोशिकाओं में परिवर्तित कर दिया। शोध दल के डॉक्टर आमिर राणा का कहना है कि यह तरीका त्वचा से नमूने लेने से ज्यादा सहज है।
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04-12-2012, 03:00 AM | #1295 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
इंग्लैंड में रह रहे खानाबदोश लोगों की जड़ें पंजाब में
नई दिल्ली। इंग्लैंड में रह रहे खानाबदोश लोगों को पश्चिमोत्तर भारत, खास कर पंजाब की अनुसूचित जतियों तथा जनजातियों में अपनी जड़ें दिखाई दी हैं। अब तक समझा जाता रहा है कि ये लोग मिस्र से आए हैं। सीएसआईआर के ‘सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायोलॉजी’ (सीसीएमबी) के वैज्ञानिकों ने यूरोपीय रोम की आबादी के पूर्वज स्रोतों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए 10,000 से अधिक वैश्विक नमूनों का अनुवांशिक अध्ययन किया। यूरोपीय रोम वासियों की आबादी को ही आम तौर पर जिप्सी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि रोम के शुरुआती लोग करीब 1,405 साल पहले भारत से यूरोप गए। अध्ययन में पाया गया है कि पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन अनुसूचित जातियां जनजातियां डोम और दलित कहलाती हैं और उनके आधुनिक यूरोपीय रोमवासियों के पूर्वज होने की संभावना प्रबल है। सीसीएमबी के कुमारसामी थंगराज की अगुवाई में वैश्विक वैज्ञानिकों के दल ने पीएलओएस वन जर्नल में प्रकाशित एक लेख में कहा है ‘पुरातत्व दस्तावेजों के अभाव में और रोम के ऐतिहासिक दस्तावेजीकरण के आधार पर तुलनात्मक भाषायी अध्ययन किया गया। यह अध्ययन ऐसा पहला अध्ययन है जो जिप्सियों के भारतीय मूल के होने के बारे में बताता है।’ वैज्ञानिकों द्वारा किया गया ‘फाइलोजियोग्राफिकल’ अध्ययन संकेत देता है कि रोम के लोग उत्तर के एक मार्ग से यूरोप गए थे। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, जिप्सियों ने उत्तरी हिन्दूकुश में गिलगित के आसपास से अपनी चढाई शुरू की। फिर यह लोग बास्पोरस से आगे काले सागर के दक्षिणी तट में कॉकेशस के दक्षिण भाग में स्थिति कैस्पियन लिटोरल गए। 13 वीं सदी के आसपास से यह लोग पूरी तरह यूरोप में बसने लगे। इन रोमवासियों में भारतीयों में विशेष रूप से पाए जाने वाले वाई क्रोमोसोम की उपस्थिति उनके दक्षिण एशियाई मूल को बल देती है और बाद में यह लोग पूर्वी तथा यूरोपीय आबादी से घुलमिल गए। मनुष्यों में वाई क्रोमोसोम पिता से पुत्र को मिलता है। एक परिवार के सभी पुरूषों में या एक ही संस्थापक पुरूष की अगली पीढियों में एक जैसा ही वाई क्रोमोसोम मिलेगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि रोम वासियों के हेपलोग्रुप्स और भारतीय जनजातियों के नमूनों का मिलान करने पर जो समानताएं पाई गईं उनके आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि डोम और दलित पूर्वज आबादी हैं।
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04-12-2012, 03:04 AM | #1296 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सबसे खुशनुमा नहीं होता हनीमून पीरियड या शादी का पहला साल : अध्ययन
मेलबर्न। हनीमून पीरियड को खुशहाल वैवाहिक जीवन की शुरूआत का प्रतीक मानने वाले लोगों के लिए एक बुरी खबर है कि नव विवाहित दंपति अपने विवाह के पहले साल सबसे ज्यादा नाखुश रहते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात कही गयी है। आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं के अनुसार सबसे खुशहाल दंपति वह होते हैं जिनकी शादी को 40 साल से ज्यादा समय पूरा हो गया हो। आस्ट्रेलिया के देकिन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन में 2000 लोगों से विवाह को लेकर उनकी खुशी के बारे में पूछा गया। उनके जवाबों के आधार पर उन्हें 0-100 के बीच अंक दिए गए। ज्यादातर लोगों को इसमें औसतन 75 अंक मिले और जिनकी नयी-नयी शादी हुई थी या जिनका शादी का यह पहला साल था उन्हे औसतन 73.9 अंक मिले जबकि वैसे दंपति जिनकी शादी को चार दशक से ज्यादा समय हो गया था, उन्हें औसतन 79.8 अंक मिले। मुख्य अध्ययनकर्ता मेलिसा विनबर्ग ने कहा, ‘यह थोड़ा अप्रत्याशित है क्योंकि आम धारणा यह है कि नवविवाहित जोड़े सबसे अधिक खुश रहते हैं जबकि असल में ऐसा नहीं है।’ विनबर्ग ने कहा कि लोग कल्पना करते हैं कि उनकी शादी का दिन उनकी जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिल होगा। वह दिन आता है, लोग बहुत खुश रहते है, लेकिन धीरे-धीरे यह खुशी कम होने लगती है। एक अन्य अध्ययन में भी इस तथ्य का समर्थन किया गया है और कहा गया कि शादी के दूसरे या तीसरे साल दंपति की खुशी बढने लगती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि विवाहित लोग अवविवाहित, तलाकशुदा आदि लोगों से अधिक खुश रहते हैं। वहीं विवाहित महिलाएं विवाहित पुरूषों की तुलना में अधिक खुश रहती हैं।
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04-12-2012, 03:23 AM | #1297 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
इस वर्ष याहू सर्च में छाया अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का जादू
लॉस एंजिलिस। इंटरनेट पर सर्च करने वाले लोगों में जहां अकसर पॉप संस्कृति का खुमार छाया रहता है, वहीं इस साल आन लाइन सर्च में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव सबसे ज्यादा खोजा जाने वाला आइटम बना। रियल्टी स्टार किम कर्दाशियन आनलाइन सबसे ज्यादा खोजे जानी वाली शख्सियत बनी। सर्च इंजन कम्पनी याहू ने वर्ष 2012 में सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले दस विषयों की सूची जारी की है। कम्पनी की ओर से आज जारी बयान में कहा गया कि आनलाइन सर्च में लोगों ने इस साल जिस एक शब्द को खोज के लिए सर्वाधिक बार टाइप किया वह था चुनाव। याहू के वेब ट्रेंड वेरा चान एनालिस्ट ने कहा, वर्ष 2012 में आन लाइन सर्च में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव छाया रहा, लेकिन यह बेहद चौंकाने वाला परिणाम है कि चुनाव एक ऐसा विषय था, जिससे खबरों का पूरा संसार ही पटा हुआ था । हर कहीं इसी की सबसे ज्यादा चर्चा थी, लेकिन इस सब के बावजूद यह ही वह शब्द था जिसे साल भर ज्यादा से ज्यादा लोगों ने सर्च के लिए टाइप किया। इसके बाद आनलाइन खोजे जाने वाले विषय में सबसे दूसरे नंबर पर रहा एप्पल कम्पनी का आई फोन 5 हालांकि कम्पनी द्वारा वर्ष 2007 से यह फोन लांच किये जाने के बाद से लगातार इसका प्रचार किया जा रहा है लेकिन यह पहली बार है कि इसका कोई विशेष माडल आनलाइन सर्च में ऊपर की पायदान पर रहा है। इसके अलावा दुनिया की दस जानी मानी महिलाओं में वेबसाइट पर रिएल्टी स्टार किम करदाशियन को सबसे ज्यादा खोजा गया और याहू कम्पनी की सर्च विषयों की सूची में किम ने तीसरा स्थान हासिल किया। याहू की इस सूची में खेल माडल केट अपटान, ब्रिटेन के राजकुमार हैरी की पत्नी केट मिडलटन, दिवंगत गायक व्हिटनी ह्यूस्टन, लिंडसे लोहान और अमेरिकन आइडल की पूर्व जज जेनिफर लोपेज का नाम भी शामिल रहा।
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04-12-2012, 03:23 AM | #1298 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
मूंछ पर ताव दे रहे हैं नकली मूंछों के कारोबारी
कोलकाता। पूरी दुनिया में मूंछों की बढती लोकप्रियता के बीच भारत नकली मूंछों और उससे संबंधित वस्तुओं का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बनकर उभरा है । ‘अलीबाबा डॉट कॉम इंडिया’ के कंट्री जनरल मैनेजर खालीद इस्सर का कहना है, ‘भारत में मूंछ हमेशा फैशन में रहे हैं । भारतीय संस्कृति में इसका स्थान भी बहुत विशेष है क्योंकि यह प्रतिष्ठा का सूचक है ।’ इस्सर, ‘लेकिन वेबसाइट के विश्लेषण अनुसार, अक्तूबर 2012 के आंकड़ों के अनुसार इसके व्यापार में प्रतिवर्ष 58 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है । इससे ऐसा लगता है कि भारतीय भी अब इस ट्रेंड का हिस्सा बन रहे हैं ।’ वेबसाइट के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जो भारतीय पुरूष वास्तविक मूछें नहीं रखना चाहते वे नकली मूंछें लगा रहे हैं ।
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05-12-2012, 01:12 AM | #1299 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
यादें आपको दे सकती हैं गर्माहट : अध्ययन
लंदन। बीते समय की यादें आपके हाथों के साथ-साथ दिल को भी गर्माहट दे जाती हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि दिल को गर्माहट देने वाली यादें हमें ठंड सहने की क्षमता देती हैं और हम शारीरिक रूप से गर्म महसूस करते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस सिद्धांत को इस तरह से समझा जा सकता है कि दिमाग का एक क्षेत्र यादों में डूब जाता है और यही दिमाग शरीर को महसूस होने वाली ठंड के बारे में भी बताने का काम करता है। साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए इस अध्ययन में यादों के अनुभव की सर्दी के लिए प्रतिक्रिया और गर्माहट से इन यादों के संबंध की जांच की गई। चीन और नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के इच्छुक लोगों ने इन पांच अध्ययनों में भाग लिया। साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. टिम वाइल्डशट ने कहा, ‘हर किसी को रह-रहकर पुरानी यादें आती हैं। हम जानते हैं कि इससे मनौवैज्ञानिक रूप से आराम मिलता है। उदाहरण के लिए-ये यादें अकेलापन दूर कर देती हैं। हम इससे एक कदम आगे बढते हुए यह देखना चाहते थे कि क्या ये यादें शारीरिक रूप से भी आराम देती हैं?’ उन्होंने एक बयान में कहा, ‘हमारे अध्ययन ने दर्शाया कि यादें दिमाग को पिछले अच्छे समय में तो ले जाती ही हैं साथ ही ये हमें शारीरिक रूप से भी आराम देती हैं। इस दौरान हम गर्माहट महसूस करते हैं और ये यादें सर्दी सहने की हमारी क्षमता को बढा देती हैं।’ पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों से तीस दिन तक अपनी यादों का लेखा जोखा रखने के लिए कहा। नतीजों में पाया गया कि ठंडे दिनों में उन्हें बीते समय की यादें ज्यादा आती थींं। दूसरे अध्ययन में इन प्रतिभागियों को तीन कमरों में रखा। एक कमरा ठंडा (20 डिग्री सेल्सियस), आरामदायक (24 डिग्री) और गर्म (28 डिग्री) था। इसके बाद यह मापा गया कि वे खुद को कितना पिछली यादों में खोया हुआ पाते हैं। नतीजों में पाया गया कि प्रतिभागियों को ठंडे कमरों में आरामदायक और गर्म कमरों के मुकाबले ज्यादा पुरानी यादें आईं। आरामदायक और गर्म कमरों के लोगों में कोई खास अंतर नहीं था। तीसरे अध्ययन को आॅनलाइन किया गया। इसमें संगीत की मदद से यादें जगाकर गर्माहट से इसका सम्बंध जांचने की कोशिश की गई। जिन प्रतिभागियों ने कहा था कि संगीत उन्हें यादों में डुबो देता है, उन्होंने यह भी कहा कि संगीत उन्हें गर्माहट भी देता है। चौथे अध्ययन में यादों और शारीरिक गर्माहट के बीच सम्बंध जांचने के लिए प्रतिभागियों को एक ठंडे कमरे में रखकर उन्हें अपने अतीत की एक सुनहरी यादों भरी घटना या एक साधारण घटना याद करने के लिए कहा गया। इसके बाद इन्हें कमरे के तापमान का अंदाजा लगाने के लिए कहा गया। यह अध्ययन इमोशन पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
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05-12-2012, 01:13 AM | #1300 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लिपस्टिक लगाने से कम हो सकता है दिमाग: विशेषज्ञ
लंदन। लिपस्टिक लगाने वाली महिलाएं सावधान हो जाएं क्योंकि एक नए अध्ययन के अनुसार लिपीस्टिक के प्रयोग से दिमाग पर असर पड़ सकता है। अध्ययन के अनुसार अधिकतर लिपस्टिक उत्पादों में सीसा मौजूद होता है जिसकी हल्की मात्रा के संपर्क में आने से भी दिमाग, व्यवहार और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। गुड मार्निंग अमेरिका पत्रिका द्वारा कराए गए इस अध्ययन में 22 लिपस्टिक ब्रांडों को शामिल किया था। इनमें 55 प्रतिशत लिपस्टिकों में जहरीले तत्व की निहित मात्रा पायी गयी। अंडरराइटर्स प्रयोगशाला में की गयी जांच में 12 लिपस्टिक उत्पादों में सीसा पाया गया। इनमें सीसा का उच्चतम स्तर पाया गया। बोस्टन सीसा विषाक्तता रोकथाम कार्यक्रम के चिकित्सा निर्देशक डॉक्टर शॉन पालफे्र ने चेतावनी देते हुए कहा कि सीसे की कम मात्रा के संपर्क में आने से भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं और इससे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। पॉलफ्रे ने कहा, ‘हमें पता चला है कि सीसे की कम मात्रा भी आपके दिमाग, आपके व्यवहार और सीखने की क्षमता पर प्रभाव डाल सकती है।’
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