24-06-2013, 08:00 PM | #131 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत प्रयास किया, कभी कमरे में खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के ढेर में ….पर तामाम कोशिशों के बाद भी घड़ी नहीं मिली. उसने निश्चय किया की वो इस काम में बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ” सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई भी मेरी खोई घडी खोज देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.” फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…पर घंटो बीत जाने पर भी घडी नहीं मिली. अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी, तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ” काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये काम अकेले ही करना चाहूँगा.” किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए थी, उसने तुरंत हाँ कर दी. लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा…और जब वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके हाथ में थी. किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ निकाला ?” लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे में गया और चुप-चाप बैठ गया, और घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे गयी , जिससे मैंने उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और आलमारी के पीछे गिरी ये घड़ी खोज निकाली.” |
25-06-2013, 12:59 PM | #132 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
This is really entertaining for me.
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25-06-2013, 01:19 PM | #133 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
Sahi hai.....accha laga.
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01-07-2013, 09:09 PM | #134 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
बड़ा सोचो
अत्यंत गरीब परिवार का एक बेरोजगार युवक नौकरी की तलाश में किसी दूसरे शहर जाने के लिए रेलगाड़ी से सफ़र कर रहा था | घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटीयां ही रखी थी | आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटीयां निकाल कर खाने लगा | उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था , वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटीयां थीं!! उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे | वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता | सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था | आखिरकार एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया की भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो | तब उस युवक ने जवाब दिया, “भैया , इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हू की इसमें बहुत सारा आचार है, मै आचार के साथ रोटी खा रहा हू |” फिर व्यक्ति ने पूछा , “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है ?” “हाँ, बिलकुल आ रहा है , मै रोटी के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है |”, युवक ने जवाब दिया| उसके इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला , “जब सोचना ही था तो तुम आचार की जगह पर मटर-पनीर सोचते, शाही गोभी सोचते….तुम्हे इनका स्वाद मिल जाता | तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो आचार का स्वाद आया तो और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता | सोचना ही था तो भला छोटा क्यों सोचे तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था |” मित्रो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जैसा सोचोगे वैसा पाओगे | छोटी सोच होगी तो छोटा मिलेगा, बड़ी सोच होगी तो बड़ा मिलेगा | इसलिए जीवन में हमेशा बड़ा सोचो | बड़े सपने देखो , तो हमेश बड़ा ही पाओगे | छोटी सोच में भी उतनी ही उर्जा और समय खपत होगी जितनी बड़ी सोच में, इसलिए जब सोचना ही है तो हमेशा बड़ा ही सोचो| |
02-07-2013, 08:46 PM | #135 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
बहुत समय पहले की बात है एक बड़ा सा तालाब था उसमें सैकड़ों मेंढक रहते थे। तालाब में कोई राजा नहीं था, सच मानो तो सभी राजा थे। दिन पर दिन अनुशासन हीनता बढ़ती जाती थी और स्थिति को नियंत्रण में करने वाला कोई नहीं था। उसे ठीक करने का कोई यंत्र तंत्र मंत्र दिखाई नहीं देता था। नई पीढ़ी उत्तरदायित्व हीन थी। जो थोड़े बहुत होशियार मेंढक निकलते थे वे पढ़-लिखकर अपना तालाब सुधारने की बजाय दूसरे तालाबों में चैन से जा बसते थे।
हार कर कुछ बूढ़े मेंढकों ने घनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उनसे आग्रह किया कि तालाब के लिये कोई राजा भेज दें। जिससे उनके तालाब में सुख चैन स्थापित हो सके। शिव जी ने प्रसन्न होकर नंदी को उनकी देखभाल के लिये भेज दिया। नंदी तालाब के किनारे इधर उधर घूमता, पहरेदारी करता लेकिन न वह उनकी भाषा समझता था न उनकी आवश्यकताएँ। अलबत्ता उसके खुर से कुचलकर अक्सर कोई न कोई मेंढक मर जाता। समस्या दूर होने की बजाय और बढ़ गई थी। पहले तो केवल झगड़े झंझट होते थे लेकिन अब तो मौतें भी होने लगीं। फिर से कुछ बूढ़े मेंढकों ने तपस्या से शिव जी को प्रसन्न किया और राजा को बदल देने की प्रार्थना की। शिव जी ने उनकी बात का सम्मान करते हुए नंदी को वापस बुला लिया और अपने गले के सर्प को राजा बनाकर भेज दिया। फिर क्या था वह पहरेदारी करते समय एक दो मेंढक चट कर जाता। मेंढक उसके भोजन जो थे। मेंढक बुरी तरह से परेशानी में घिर गए थे। फिर से मेंढकों ने घबराकर अपनी तपस्या से भोलेशंकर को प्रसन्न किया और कहा कि आप कोई पशु पक्षी राज करने के लिये न भेजें कोई यंत्र या मंत्र दे दें जिससे तालाब में सुख शांति स्थापित हो सके। शिव ने सर्प को वापस बुला लिया और अपनी शिला उन्हें पकड़ा दी। मेंढकों ने जैसे ही शिला को तालाब के किनारे रखा वह उनके हाथ से छूट गई और बहुत से मेंढक दबकर मर गए। मेंढकों की समस्याओं हल होना तो दूर उनके ऊपर मुसीबतों को पहाड़ टूट पड़ा फिर क्या था। तालाब के मेंढकों में हंगामा मच गया। चीख पुकार रोना धोना वे मिलकर शिव की उपासना में लग गए, 'हे भगवान, आपने ही यह मुसीबत हमें दी है, आप ही इसे दूर करें।' शिव भी थे तो भोलेबाबा ही, सो जल्दी से प्रकट हो गए। मेंढकों ने कहा, 'आपका भेजा हुआ कोई भी राजा हमारे तालाब में व्यवस्था नहीं बना पाया। समझ में नहीं आता कि हमारे कष्ट कैसे दूर होंगे। कोई यंत्र या मंत्र काम नहीं करता। आप ही बताएँ हम क्या करें?' इस बार शिव जी जरा गंभीर हो गए। थोड़ा रुक कर बोले, यंत्र मंत्र छोड़ो और स्वतंत्र स्थापित करो। मैं तुम्हें यही शिक्षा देना चाहता था। तुम्हें क्या चाहिये और तुम्हारे लिये क्या उपयोगी वह केवल तुम्हीं अच्छी तरह समझ सकते हो। किसी भी तंत्र में बाहर से भेजा गया कोई भी विदेशी शासन या नियम चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न हो तुम्हारे लिये अच्छा नहीं हो सकता। इसलिये अपना स्वाभिमान जागृत करो, संगठित बनो, अपना तंत्र बनाओ और उसे लागू करो। अपनी आवश्यकताएँ समझो, गलतियों से सीखो। माँगने से सबकुछ प्राप्त नहीं होता, अपने परिश्रम का मूल्य समझो और समझदारी से अपना तंत्र विकसित करो। मालूम नहीं फिर से उस तालाब में शांति स्थापित हो सकी या नहीं। लेकिन इस कथा से भारतवासी भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
02-07-2013, 10:13 PM | #136 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
वास्तव में इस प्रसंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. स्वाभिमानपूर्वक, संगठित हो कर अपनी गलतियों से सबक लेते हए अपने तंत्र को सामूहिक हित के लिये लागू करने से ही तालाब या कहिये समाज या देश में शान्ति एवम् उन्नति का कल्याणकारी मार्ग प्रशस्त हो सकता है. Last edited by rajnish manga; 02-07-2013 at 10:18 PM. |
05-07-2013, 11:07 PM | #137 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक दर्जी का बेटा, दुकान पर चला गया ।
उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । |
08-07-2013, 09:19 PM | #138 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
एक प्रेमी-युगल शादी से पहले काफी हँसी मजाक और नोक झोंक किया करते थे।
शादी के बाद उनमें छोटी छोटी बातो पे झगड़े होने लगे। कल उनकी सालगिरह थी, पर बीवी ने कुछ नहीं बोला वो पति की प्रतिक्रिया देखना चाहती थी। सुबह पति जल्द उठा और घर से बाहर निकल गया। बीवी रुआँसी हो गई। दो घण्टे बाद कॉल बेल बजी, वो दौड़ती हुई जाकर दरवाजा खोली। दरवाजे पर गिफ्ट और बकेट के साथ उसका पति था। पति ने गले लग के सालगिरह विश किया। फिर पति अपने कमरे मेँ चला गया। तभी पत्नि के पास पुलिस वाले का फोन आता है की आपके पति की हत्या हो चूकी है, उनके जेब पे पड़े पर्स से आपका फोन नम्बर ढ़ुंढ़ के कॉल किया। पत्नि सोचने लगी की पति तो अभी घर के अन्दर आये है। फिर उसे कही पे सुनी एक बात याद आ गई की मरे हुये इन्सान की आत्मा अपना विश पूरा करने एक बार जरूर आती है। वो दहाड़ मार के रोने लगी। उसे अपना वो सारा चूमना,लड़ना,झगड़ना , नोक-झोंक याद आने लगा। उसे पश्चतचापहोने लगा की अन्त समय में भी वो प्यार ना दे सकी। वो बिलखती हुई रोने लगी। जब रूम में गई तो देखा उसका पति वहाँ नहीं था। वो चिल्ला चिल्ला के रोती हुई प्लीज कम बैक कम बैक कहने लगी,लगी कहने की अब कभी नहीं झगड़ूंगी। तभी बाथरूम से निकल के उसके कंधे पर किसी ने हाथ रख के पूछा क्या हुआ? वो पलट के देखी तो उसके पति थे। वो रोती हुई उसके सीने से लग गइ फिर सारी बात बताई। तब पति ने बताया की आज सुबह उसका पर्स चोरी हो गया था। फिर दोस्त की दुकान से उधार लिया गिफ्ट ।।। (Wo chor mar gaya tha jisne uska purse churaya tha) जिन्दगी में किसी की अहमियत तब पता चलती है जब वो नहीँ होता, हम लोग अपने दोस्तो, रिश्तेदारो से नोक झोंक करते है, पर जिन्दगी की करवटे कभी कभी भूल सुधार का मौका नहीं देती। हँसी खुशी में प्यार से जिन्दगी बिताइये, नाराजगी को ज्यादा दिन मत रखिये। Conclusion : यह सहज मानव स्वभाव है कि बीता हुआ कल हमें हमेशा सुखद लगता है, जब यही बीता हुआ कल एक समय वर्तमान था तो हमें उससे पहले का काल अच्छा लगता था, कोलेज के दिनों में स्कूल याद आता है और नौकरी के दिनी में कोलेज, अविवाहित जीवन भी विवाहित होने के पश्चात बहुत याद आता है ! किन्तु ना जाने क्यों हम लोग श्राद्ध कर्म को धर्म मानते है भले ही जीते जी हमारे सामने कोई भूखा मरता रहे ! वैवाहिक संबंधों में अहम् के टकराव के चलते बहुधा सर्वोत्तम समय को लोग व्यर्थ गवां देते है ..वो कहते हैं ना अक्ल बुढापे में आती है और विडम्बना ये है कि ये बुढापा जवानी के बाद आता है ! |
26-07-2013, 10:36 PM | #139 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
शहर की मेन मार्केट में एक गराज था जिसे अब्दुल नाम का मैकेनिक चलाता था . वैसे तो अब्दुल एक अच्छा आदमी था लेकिन उसके अन्दर एक कमी थी , वो अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था .
एक बार एक हार्ट सर्जन अपनी लक्ज़री कार लेकर उसके यहाँ सर्विसिंग कराने पहुंचे . बातों -बातों में जब अब्दुल को पता चला की कस्टमर एक हार्ट सर्जन है तो उसने तुरन्त पूछा , “ डॉक्टर साहब मैं ये सोच रहा था की हम दोनों के काम एक जैसे हैं… !” “एक जैसे ! वो कैसे ?” , सर्जन ने थोडा अचरज से पूछा . “देखिये जनाब ,” अब्दुल कार के कौम्प्लिकेटेड इंजन पर काम करते हुए बोल , “ ये इंजन कार का दिल है , मैं चेक करता हूँ की ये कैसा चल रहा है , मैं इसे खोलता हूँ , इसके वाल्वस फिट करता हूँ , अच्छी तरह से सर्विसिंग कर के इसकी प्रोब्लम्स ख़तम करता हूँ और फिर वापस जोड़ देता हूँ …आप भी कुछ ऐसा ही करते हैं ; क्यों ?” “हम्म ”, सर्जन ने हामी भरी . “तो ये बताइए की आपको मुझसे 10 गुना अधिक पैसे क्यों मिलते हैं, काम तो आप भी मेरे जैसा ही करते हैं ?”, अब्दुल ने खीजते हुए पूछा . सर्जन ने एक क्षण सोचा और मुस्कुराते हुए बोला , “ जो तुम कर रहे हो उसे चालू इंजन पे कर के देखो , समझ जाओगे .” अब्दुल को इससे पहले किसी ने ऐसा जवाब नही दिया था, अब वह अपनी गलती समझ चुका था. |
27-07-2013, 09:32 AM | #140 |
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Re: प्रेरक प्रसंग
उस बस ड्राइवर की याद आ रही है जो हवाई जहाज उडाने वाले पायलटों के बारे में यही कह्ता था।
दोनों बस चलाते हैं, फ़र्क इतना ही है कि एक रास्ते पर चलता है और दूसरा हवा में। |
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