20-08-2013, 12:51 AM | #131 |
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Re: मौलिक शायरी
तुम ना होते तो क्या होता तुम ना होते ना मैं हँसता तुम ना होते तो ना आज मैं रोता . . . . . . . . . सच बात ये है जालिम गर तुम ना होते तो यार चैन की नींद , मैं आज सो रहा होता |
20-08-2013, 10:25 AM | #132 | |
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Re: मौलिक शायरी
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रोने, सोने और उसके होने की समीकरण आपने खोज ही ली, सोमबीर जी. हास्य-व्यंग्य की इस छोटी लेकिन रोचक रचना के लिए धन्यवाद. |
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20-08-2013, 06:14 PM | #133 |
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Re: मौलिक शायरी
बहुत सुन्दर सोमबीर जी, लेकिन हास्य व्यंग्य के बीच मुकेशजी का एक गाना याद आ गया
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28-09-2013, 10:18 PM | #134 |
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Re: मौलिक शायरी
सँजो कर बैठा हु उनकी यादों को आज भी
बीते हुये लम्हो की माला पिरोना चाहता हूँ |
28-09-2013, 10:19 PM | #135 |
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Re: मौलिक शायरी
सुख चुका है आंखो का तेरे इंतेजार में
मिलने की खुशी आंखे भिगोना चाहता हु |
28-09-2013, 10:48 PM | #136 | ||
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Re: मौलिक शायरी
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प्रिय! आपके दीदार को आँखें तरस गयीं. सावन की रुत है बादलों जैसी बरस गयीं. बिरहा ने अपना राग सुना कर रुला दिया मिलने के बाद हां, मेरी आँखें सरस गयीं. |
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22-12-2013, 09:29 PM | #137 |
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Re: मौलिक शायरी
याद उसकी फिर से मुझे तड़पाने आयी
दिल के दर्द को फिर से थोडा बढ़ने आयी डाल कर नमक आंसुओ का मेरे जख्मो पे दुश्मनी और एक नयी वो निभाने आयी खुद करके बेवफाई मुझसे जिंदगी भर सबक वफ़ा का वो मुझ को सिखाने आयी |
22-12-2013, 10:43 PM | #138 |
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Re: मौलिक शायरी
बहुत सुन्दर, सोमबीर जी. बहुत दिन बाद आपका आगमन सुखदायी है.
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04-01-2014, 11:34 PM | #139 |
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Re: मौलिक शायरी
ताजमहल इक और बना देता तू जो गर मेरी हो जाती
दुनिया को कद्द्मो में तेरे झुका देता तू जो मेरी हो जाती |
20-03-2014, 10:56 PM | #140 |
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Re: मौलिक शायरी
तेरी जिंदगी में एक वो भी दिन खुदा हो
जिस दिन तू भी अपने महबूब से जुदा हो खुशिया से हो तू भी दूर दो पल के लिए तेरा अपना भी कोई कभी गुमशुदा हो #SOMBIRNAAMDEV |
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