28-02-2013, 02:57 AM | #131 |
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Re: कुतुबनुमा
भारतीय ध्रुवीय अंतरिक्ष यान पीएसएलवी ने सात उपग्रहों को सोमवार को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर लगातार 22वें त्रुटिरहित प्रक्षेपण के साथ भारत ने अंतरिक्ष में अपना दबदबा और मजबूत कर लिया। यह ना केवल हमारे वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि है बल्कि इससे दुनिया में यह संदेश भी गया है कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत किसी से कम नहीं। इसरो के अंतरिक्षयान पीएसएलवी-सी20 ने बेहद सटीक ढंग से उड़ान भरी और एकल अभियान में सभी सात उपग्रह - भारतीय-फ्रांसीसी समुद्र विज्ञान अध्ययन उपग्रह ‘सरल’ तथा छह विदेशी लघु एवं सूक्ष्म उपग्रहों को बिना किसी त्रुटि के कक्षा में स्थापित कर दिया। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बने। यह इसरो का 103वां अभियान था और इसने अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते दबदबे को रेखांकित किया है। भारत 2008 में ही एक एकल अभियान में एक साथ 10 उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है। इससे अंतरिक्ष में भारत की क्षमताएं उजागर हुईं।अंतरिक्षयान पीएसएलवी-सी20 को शाम पांच बज कर 56 मिनट पर प्रक्षेपित किया जाना था, लेकिन अंतरिक्ष के मलबे से इसके टकराने की संभावनाओं से बचने के लिए पांच मिनट बाद प्रक्षेपित किया गया। प्रक्षेपण के करीब 18 मिनट बाद पीएसएलवी-सी 20 ने सबसे पहले 409 किलोग्राम के भारतीय-फ्रांंसीसी समुद्र विज्ञान अध्ययन उपग्रह ‘सरल’ को उसकी कक्षा में स्थापित किया। इसके बाद चार मिनट में एक के बाद बाद एक अन्य छह उपग्रहों को कक्षाओं में स्थापित दिया। सफल प्रक्षेपण और उपग्रहों के कक्षा में बिना किसी व्यवधान और खामी के स्थापित होने पर वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौडना स्वाभाविक है क्योंकि यह काम करके उन्होने भारत की श्रेष्ठता एक बार फिर साबित की है। इन विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से भारत ने व्यवसायिक प्रक्षेपण की अपनी क्षमताओं को और मजबूती से स्थापित कर दिया।
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03-03-2013, 11:29 PM | #132 |
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Re: कुतुबनुमा
बंद करना होगा शब्दों से खिलवाड़
आधुनिकता के इस दौर में परिवर्तन की एक व्यापक बयार चल रही है। खान-पान, पहनावा, रहन-सहन, सोच-फिक्र, शिष्टाचार, पढ़ाई-लिखाई, रिश्ते-नाते, अच्छे-बुरे की परिभाषा सब बदल रहा है। जाहिर है पत्रकारिता जैसा जिम्मेदारी भरा पेशा भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं है। परिवर्तन के इस दौर में तमाम क्षेत्रों में जहां सकारात्मक परिवर्तन देखे जा रहे हैं वहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में आधुनिकता व सकारात्मकता के बावजूद कुछ ऐसे परिवर्तन दर्ज किए जा रहे हैं जो न केवल पत्रकारिता जैसे जिम्मेदाराना पेशे को रुसवा व बदनाम कर रहे हैं बल्कि हमारे देश के अदब, साहित्य तथा शिष्टाचार की प्राचीन रिवायत पर भी आघात पहुंचा रहे हैं। रेडियो तथा प्रारंभिक दौर के टेलीविजन की यदि हम बात करें तो हमें कुछ आवाजें ऐसी याद आएंगी जो शायद आज भी कानों में गूंजती होंगी। कमलेश्वर, देवकीनंदन पांडे, अशोक वाजपेयी, अमीन सयानी, जसदेव सिंह, जे.बी. रमन, शम्मी नारंग जैसे कार्यक्रम प्रस्तोता की आकर्षक, सुरीली, प्रभावशाली तथा दमदार आवाज। इनके बोलने में या कार्यक्रम के प्रस्तुतीकरण के अंदाज में न केवल प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री के प्रति इनकी गहरी समझ व सूझबूझ होती थी, बल्कि इनके मुंह से निकलने वाले शब्द साहित्य व शब्दोच्चारण की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरते थे। होना भी ऐसा ही चाहिए, क्योंकि रेडियो व टीवी जैसे संचार माध्यमों का प्रस्तोता समाज पर, विशेषकर युवा पीढ़ी पर साहित्य सम्बंधी प्रभाव छोड़ता है। आज के युग की ग्लैमर भरी पत्रकारिता पर अगर हम नजर डालें तो आज टीवी के प्रस्तोता कार्यक्रम प्रस्तुतीकरण के अपने अंदाज, दिखावे तथा बात का बतंगड़ बनाने जैसी शैली पर अधिक विश्वास करते हैं। ऐसे में आज की पत्रकारिता ऐसे लोगों के हाथों में जाने से साहित्य व शिष्टता से दूर होती दिखाई देने लगी है। उनके बोलने के अंदाज व उच्चारण का साहित्य से दूर दूर तक रिश्ता नजर नहीं आता। जिम्मेदार पत्रकारों, कार्यक्रम प्रस्तोताओं व एंकर को यह भलीभांति ध्यान रखना चाहिए कि उनके मुंह से निकले हुए एक-एक शब्द व उनके अंदाज दर्शकों व श्रोताओं द्वारा ग्रहण किए जा रहे हैं। जो कुछ वे बोल रहे हैं या जिस अंदाज में उसे प्रस्तुत कर रहे हैं उसी को हमारा समाज साहित्य व शिष्टता के पैमानों पर तौलता है तथा उसकी मिसालें पेश करता है। ऐसे पत्रकार व कार्यक्रम प्रस्तोता साहित्य व उच्चारण की समझ रखने वाले लोगों की नजरों से तो गिरते ही हैं,अपने गलत उच्चारण व बेतुके प्रस्तुतीकरण से नई पीढ़ी पर भी अपना दुष्प्रभाव छोड़ते हैं। ऐसे लोगों को पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश से पहले अपना साहित्यिक ज्ञान जरूर बढ़ाना चाहिए। खासतौर पर शब्दोच्चारण के क्षेत्र में तो अवश्य पूरा नियंत्रण होना चाहिए। अन्यथा जिस प्रकार इन दिनो कई चैनल पर कार्यक्रम प्रस्तोता अपने गलत शब्दोच्चारण के चलते साहित्य से दूर होते जा रहे हैं,आने वाली युवा पीढ़ी को भी उससे वंचित कर रहे हैं। समाचार चैनल मालिकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रस्तोता के रूप में ऐसे लोगों का चयन करें जो शब्दों के साथ खिलवाड़ न करें क्योंकि यह खिलवाड़ उन्ही के चैनल पर भारी भी पड़ सकता है।
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06-04-2013, 09:27 AM | #133 |
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Re: कुतुबनुमा
उत्तर कोरिया की धमकी बनी चिंता का सबब
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने अमेरिका को लेकर उत्तर कोरिया से अपना रूख बदलने की जो सलाह दी है वह मून द्वारा उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। उल्लेखनीय है कि उत्तर कोरिया ने अमरीका के खिलाफ परमाणु हमले की धमकी दी है। व्हाइट हाउस प्रवक्ता जे.कार्नी ने भी इन धमकियों को अफसोसजनक बताया है और कहा कि अमरीका इनसे निपटने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रहा है। बान की मून ने भी कहा है कि परमाणु धमकियां कोई खेल नहीं हैं। ये बहुत ही गंभीर है और किसी भी गलत निर्णय के गंभीर परिणाम होंगे। दरअसल बढ़ते तनाव को देखते हुए यह आवश्यक है कि संकट से जुड़े सभी पक्षों को स्थिति को शांत करने और बातचीत शुरू करने के प्रयास करने चाहिए क्योंकि अगर भविष्य में यह तनाव और बढ़ता है तो यह पूरी दुनिया के लिए ही चिंता का कारण बन सकता है। दरअसल उत्तर कोरिया जिस तरह के कदम उठा रहा है वह भी इस तनाव को बढ़ाने में काफी मददगार हो रहा है। फरवरी में उत्तर कोरिया ने अपना तीसरा परमाणु परीक्षण किया जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाए। उत्तर कोरिया ने औपचारिक रूप से सुरक्षा परिषद के नौ मार्च के उस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया है जिसमें उससे अपने परमाणु कार्यक्रम रोकने को कहा गया था। अमेरिका और दक्षिण कोरिया के साझा सैन्य अभ्यास ने भी उत्तर कोरिया की नाराजगी को बढ़ा दिया है। गुरुवार को पूर्वी तट पर उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु मिसाइल मुसुदन तैनात करने के बाद पश्चिमी देशों में हड़कंप मचा है। खबर है कि तीन हजार किलोमीटर मारक क्षमता वाली इस मिसाइल की जद में जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका भी आ रहा है। कुल मिलाकर बढ़ते तनाव को जितना जल्द हो कम या खत्म करना जरूरी है क्योंकि हालात अगर इसी तरह बने रहे या आने वाले समय में और भी खतरनाक रूप लेते हैं तो यह विश्व शांति के प्रयासों को बड़ा झटका होगा।
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15-04-2013, 12:47 AM | #134 |
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Re: कुतुबनुमा
साथ होने के दिखावे का औचित्य क्या है?
भाजपा और जनता दल (यू) के बीच आखिर कैसी खिचड़ी पक रही है कि दोनो साथ भी रहना चाहते हैं और एक दूजे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से भी नहीं चूकते। जनता दल (यू) प्रवक्ता केसी त्यागी ने एक नया आरोप भाजपा पर मढ़ा है। उनका कहना है कि पार्टी की कई प्रदेश इकाइयों ने शिकायत की है कि भाजपा उसके साथ गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है। कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, महाराष्टñ आदि राज्यों के अध्यक्षों ने इस बात की शिकायत की कि भाजपा गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है। भाजपा लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जद(यू) को सीटें कम दे रही है तथा अपनी सीटें बढ़ा रही है। कर्नाटक तथा झारखंड मेें तो उसने गत चुनाव में जद (यू) के साथ गठबंधन भी नहीं किया। अब सवाल उठता है कि जब भाजपा गठबंधन धर्म नहीं निभा रही है तो जद(यू) उसके साथ बना हुआ क्यों है क्योंकि एक तरफ तो जद(यू) कह रहा है कि भाजपा गठबंधन धर्म नही निभा रही वहीं दूसरी तरफ यह भी कहता है कि पार्टी भाजपा से नाता नहीं तोड़ेगी बल्कि उसके साथ उसकी दोस्ती बनी रहेगी। यह दोस्ती कब तक चलेगी यह तो समय ही बताएगा लेकिन ऐसा लगता है कि जद (यू) जिस तरह से प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा से उसके उम्मीदवार का नाम बताने को कह रहा है,उसे शक है कि भाजपा इस मामले में भी गठबंधन का धर्म निभाएगी या नहीं। यह तो जग जाहिर है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है और रविवार को भी उन्होने परोक्ष तौर पर मोदी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि जद(यू) उसी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मंजूर कर सकता है जिसकी छवि धर्मनिरपेक्ष हो। राजग के ये दल जिस तरह एक दूजे को शक की निगाहों से देख रहे हैं उससे तो इनके साथ होने के दिखावे का औचित्य ही समझ में नहीं आ रहा। कौन कब पल्ला झाड़ लेगा कुछ कहा नहीं जा सकता।
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19-04-2013, 01:14 AM | #135 |
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Re: कुतुबनुमा
विदेशी निवेशकों को भारत पर भरोसा
केन्द्र सरकार की नीतियों के चलते जिस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है उसी का नतीजा है कि भारत देश ही नहीं विदेशी निवेशकों को यह भरोसा दिला रहा है कि भारत में उनका निवेश पूरी तरह सुरक्षित है। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए इस समय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम अमेरिका के दौरे पर हैं और वहां भी वे कह चुके हैं कि भारत के पास निवेशकों को यह गारंटी देने की पूरी काबिलियत है कि उनके निवेश की सुरक्षा की जाएगी। जिस तरह से देश की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से आगे बढ़ रही है,विदेशी निवेशकों को यह पूरा भरोसा होना चाहिए कि भारत में उनकी पूंजी सुरक्षित रहेगी और सरकारों की मर्जी का उन पर कोई असर नहीं होगा। हालाकि वित्त मंत्री भी यह मानते हैं कि हमारे देश के उभरते बाजार को अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिए रास्ते अभी और आसान करने होंगे ताकि उनके मन में यह भावना घर कर जाए कि उनकी पूंजी की अच्छी तरह सुरक्षा हो रही है। वित्त मंत्री का ऐसा कहना सही भी है क्योंकि अगर कानूनों में बदलाव से या सरकारों की मर्जी से निवेशकों की पूंजी पर कोई नकारात्मक असर पड़ता है तो वह क्यों निवेश करेंगे। किसी भी देश में निवेश की सुरक्षा की सबसे अच्छी गारंटी एक स्थिर और लोकतांत्रिक राजनीतिक ढांचा, कानून व्यवस्था में विश्वास और एक पारदर्शी तथा स्वतंत्र कानून प्रणाली होती है। भारत में यह तीनों हैं। पिछले करीब दस वर्षों से जिस तरह से संप्रग के नेतृत्व वाली सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को एक दिशा दी है उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इससे विदेशी निवेशकों का भरोसा तो भारत के प्रति बना ही है साथ ही वे यह भी मानते हैं कि कठिन हालातों में भी मौजूदा सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने या उसे स्थिर रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया का यह मानना है कि आर्थिक शक्ति का केंद्र्र अब उभरते बाजारों की ओर खिसक रहा है और इसे देखते हुए नए बहुपक्षीय संगठनों की जरूरत है।
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23-04-2013, 10:15 PM | #136 |
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Re: कुतुबनुमा
चीन की घुसपैठ गंभीर मामला
चीन रह-रह कर जिस तरह से उकसावे की कार्यवाही कर रहा है वह भारत के लिए चिंताजनक बात है लेकिन सरकार भी काफी सोच विचार कर कदम उठा रही है ताकि तनाव के कोई हालात पैदा ना हों। यही वजह है कि चीनी सेना के हाल में भारत में घुसपैठ से उपजे हालात में सुधार के उद्देश्य से दोनों देशों के सैन्य कमांडर फ्लैग मीटिंग कर रहे हैं। चीनी सेना ने 15 अप्रेल को भारतीय सीमा में प्रवेश के बाद लद्दाख में एक टैंट पोस्ट तैनात कर दी थी। चीनी सेना के भारत में दस किमी अंदर लद्दाख तक घुस आने की रिपोर्ट के बाद भारतीय सेना ने भी और सैनिकों को इस क्षेत्र में भेजा है। सेना की इन्फ्रेंट्री रेजीमेंट को लद्दाख के दौलत बेग ओलदी (डीबीओ) सेक्टर भेजा गया है। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) ने भी चीनी सेना द्वारा बनाई गई टेंट पोस्ट के पास ही एक टेंट पोस्ट भी बना ली है। भारत ने पिछले सप्ताह चीन के समक्ष यह मुद्दा उठाया भी था। चीनी राजदूत को साउथ ब्लॉक में तलब किया गया था। वहीं विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव ने अपने बीजिंग में अपने समकक्ष से बात की थी। चीनी पक्ष का कहना था कि वे इस मामले को देखेंगे व जवाब देंगे। हालांकि बाद में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनियांग ने कहा था कि चीनी सेना दोनों देशों के बीच हुए समझौतों का पालन कर रही है तथा दोनों देशों के बीच तय सीमा शर्तों को मान रही है। याने इन हरकतों को देखते हुए यह तो कहा जा सकता है कि सीमा पर सब कुछ शांत नहीं है लेकिन दोनों देशों को प्रयास करना चाहिए कि तनाव किसी भी सूरत में पैदा नहीं हो क्योंकि एशिया के दो बड़े देशों के बीच तनाव का असर अर्थव्यवस्था समेत सभी क्षेत्रों पर पड़ता है। हालांकि सरकार नहीं चाहती कि यह मामला ज्यादा उछले लेकिन कहा जा रहा है कि सरकार चिंतित है क्योंकि मामला गंभीर व स्थिति तनावपूर्ण है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि चीनी सेना भारतीय सीमा के अंदर घुसी है। चीनी सेना इससे पहले भी सीमा पार कर चुकी है।
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30-04-2013, 10:23 PM | #137 |
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Re: कुतुबनुमा
कालेधन की समस्या पर नियंत्रण के आसार
भारत और अमेरिका के बीच एक ऐसा करार होने की तैयारी चल रही है जिसमें अमेरिकी नागरिकों द्वारा भारतीय बैंकों में जमा धन की जानकारी मिल सकेगी। करार के तहत भारत भी यह जान सकेगा कि अमेरिकी बैंकों में किन-किन भारतीयों का कितना धन जमा है। अगर यह करार हो जाता है तो काले धन की समस्या पर थोड़ा नियंत्रण जरूर लगेगा। अमेरिका इस मामले में अपने एक कानून के तहत भारत से एक करार करना चाहता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) फिलहाल अमेरिका के इस अंतर सरकार करार (आईजीए) के मसौदे की जांच कर रहा है। वित्त मंत्रालय ने भी भारतीय रिजर्व बैंक से प्रस्तावित आईजीए पर उसके विचार और सुझाव मांगे हैं। सेबी, रिजर्व बैंक और अन्य अंशधारकों के सुझाव हासिल करने के बाद अंतिम आईजीए वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाएगा। यह करार अगले वर्ष के प्रारंभ तक लागू हो जाएगा। करार लागू होने के बाद अमेरिकी कर विभाग और आंतरिक राजस्व सेवा को अमेरिकियों के विदेशों में खातों और अन्य संपत्तियों की जानकारी मिल सकेगी। भारत को भी अमेरिका इसी प्रकार की सहायता देगा। दरअसल जिस तरह से की काले धन को छिपा कर दूसरे देशों में जमा करने की प्रवृति जिस तरह से बढ़ती जा रही है उसको देखते हुए इस तरह के करार अब आवश्यकता बनते जा रहे हैं। दुनिया के तमाम बड़े देशों में यह समस्या बड़ा रूप लेती जा रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अक्सर आरोप लगते हैं कि बड़ी संख्या में भारतीयों ने काला धन स्विस बैंकों में जमा कर रखा है लेकिन किसी प्रकार की संधि न होने के कारण जमा धन का आंकड़ा भारत को नहीं मिल पाता है। काले धन को छिपाने का यह जरिया सभी के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। ऐसे में अगर भारत और अमेरिका के बीच यह करार हो जाता है तो अन्य देशों से भी इसी तरह के करार के रास्ते खुलेंगे और समस्या के समाधान की राह कुछ आसान होगी।
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24-05-2013, 12:32 AM | #138 |
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Re: कुतुबनुमा
अव्वल की होड़ में भरोसा खोता मीडिया
पिछले कई दिनों से एक खबर काफी सुर्खियों में छाई हुई है। फटाफट क्रिकेट यानी ट्वन्टी-ट्वन्टी के ग्लैमरस संस्करण आईपीएल में खेल रहे तीन खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में ऐसे पकड़े गए कि पूरे क्रिकेट जगत में हंगामा खड़ा हो गया। अब खबर है तो मीडिया को तो सक्रिय होना ही था। 16 मई को सुबह एक चैनल ने सबसे पहले एक समाचार ऐजेंसी के हवाले से खबर को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में जारी किया कि तीन खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग के चक्कर में पुलिस ने गिरफ्तार किए हैं। बस फिर क्या था, जिस चैनल पर देखो, यही खबर शुरू हो गई। अब इसमें देखा जाए तो नया कुछ नहीं था। एक बड़ी खबर थी और उसे सभी चैनल्स को दिखाना ही तो था। लेकिन यहीं से शुरू हो गया होड़ लेने का सिलसिला और हड़बड़ी में खबर क्या है और उसके वास्तविक तथ्य क्या हैं ये किसी भी चैनल ने शायद जानने की कोशिश ही नहीं की। एक चैनल ने खबर दी कि तीनो खिलाड़ियों को मुंबई के एक होटल से पकड़ा गया है तो एक अन्य चैनल ने अपने मुंबई संवाददाता को लाईव दिखाते हुए खबर दी कि केवल दो को ही पकड़ा गया है। संवाददाता ने अपने मोबाइल पर उसके सूत्र से मिला एसएमएस भी दिखाया और दावा किया कि हमारे सूत्र सही कह रहे हैं कि केवल दो ही खिलाड़ी पकड़े गए हैं। जब स्टूडियो में बैठे एंकर ने कहा कि ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि तीन खिलाड़ी पकड़े गए हैं तो संवाददाता ने कहा कि हमारा चैनल सही है। दो ही खिलाड़ी पकड़े गए है। बाद में पिक्चर पूरी तरह साफ हुई और यही सामने आया कि तीन खिलाड़ियों को पकड़ा गया है। अब सवाल तो यह उठता है कि मीडिया इस तरह की खबरों में हड़बड़ी क्यों दिखाता है? जब तक खबर पुख्ता और तथ्यों पर आधारित न हो, जितनी जानकारी हो उतनी ही प्रसारित की जानी चाहिए। लेकिन इन दिनों जिस तरह से समाचार चैनलों के बीच फटाफट और सबसे पहले खबरें दिखाने की जो होड़ चल रही है उसमें वे ना केवल वे दर्शकों का भरोसा तोड़ रहे हैं बल्कि पत्रकारिता के मान्य सिद्धांतों की भी पूरी तरह बलि चढ़ा रहे हैं। आरंभिक खबरों में बिना पुष्टि के यह भी कहा गया था कि तीनो को एक होटल से पकड़ा गया है जबकि गिरफ्तार करने वाली दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने शाम को संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि तीनो को अलग अलग जगहों से पकड़ा गया है। कुल मिलाकर इससे यह बात साफ हो जाती है कि इन दिनो मीडिया पर संजीदा न होने का जो दोष मढ़ा जा रहा है वह काफी हद तक सहीं साबित हो रहा है। एक समय था जब मीडिया तथ्यों की पूरी छानबीन के बाद ही समाचार दिया करता था और अगर गलती से खबर सही नहीं होती थी तो बाकायदा उसके लिए क्षमा भी मांगी जाती थी लेकिन अब तो ऐसा देखने में भी नहीं आता। मीडिया से जुड़े लोगों , खास कर वरिष्ठ मीडिया कर्मियों का यह फर्ज बन जाता है कि वे इस तरह की हो रही घोर लापरवाहियों को लेकर अब संजीदा हों क्योंकि मीडिया की विश्वसनीयता पहली जरूरत है जो अब धीरे-धीरे गायब होती जा रही है। हड़बड़ी या अव्वल रहने की हौड़ में कहीं ऐसा न हो कि मीडिया जो बची हुई विश्वसनीयता है वह भी खो दे।
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18-08-2013, 10:06 AM | #139 |
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Re: कुतुबनुमा
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04-06-2015, 09:59 PM | #140 |
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Re: कुतुबनुमा
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बारे में - 1
देश का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अज़ब चीज़ है, विशेषकर ख़बरिया चैनल। किसी ने कुछ कहा, ये फ़ौरन उस पर एक तमगा चस्पां कर देंगे - विवादित। मेरे मन में सवाल अक्सर उठता है - हुज़ूरे-आला, आपका काम सूचना पहुंचाना है या तमगे बांटना ? चार खम्भों में से एक खम्भा आपको सौंपा गया था और आपने तो स्वयं चारों खम्भे हथिया लिए हैं। एक चैनल के कार्यक्रम का ही नाम है 'थर्ड डिग्री', मानो आप टीवी स्टूडियो में नहीं हिटलर के किसी प्रताड़ना शिविर में सादर आमंत्रित किए गए हों। काफी समय पहले की बात है, इसी शो में एक बाबा का इंटरव्यू लेते तीन डिग्रीधारियों को देखा। शायद जवाब देते थक चुके बाबा ने कहा - मैं आपसे एक सवाल पूछूं। एक डिग्रीधारी फ़ौरन बोली - नहीं, यहां सवाल हम पूछते हैं। आप नहीं पूछ सकते। मैंने मन में सोचा - वाह, जनाबे-आला ! इस पर तुर्रा यह कि हम लोकतंत्र में रह रहे हैं। … और रिमोट का बटन दबा कर चैनल बदल लिया। एक और वाकया याद आता है। देश में किसी को भगवान मानने - न मानने पर विवाद चल रहा था। एक धर्माचार्य ने उनके ख़िलाफ़ ऐलान कर दिया था। ज़ाहिर है, ऐसा मौक़ा कोई ख़बरिया चैनल गंवा दे, तो उसके पेट में अफ़ारा होने लगता है। क्रोधी स्वभाव में ऋषि दुर्वासा से होड़ करती प्रतीत होती महिला कार्यक्रम प्रस्तोता थीं। उन्होंने शुरुआत में ही धर्माचार्य को ललकारा - वे कौन होते हैं, मुझे यह बताने वाले कि मैं किसकी पूजा करूं या नहीं करूं। उन्हें 'उनके' इतने सारे अनुयायियों की भावनाओं की भी परवाह नहीं है। मैंने अक्सर देखा है कि इडियट बॉक्स के ऐसे बहस-मुबाहिसों में आने वाले या तो दबाव में आ जाते हैं या उनके विचारों को कटी पतंग बना दिया जाता है। मेरे मन में प्रश्न उठा कि अगर ऐसा नहीं है, तो 'लेडी दुर्वासा' से किसी ने यह पूछने की हिमाकत क्यों नहीं की कि 'मोहतरमा, किसी परम्परा पर टिप्पणी करने से पहले उसके महत्त्व के विषय में अवश्य मालूमात और उस पर विचार कर लेना चाहिए। फिर, जो आरोप आप 'उधर' लगा रही हैं, वही कार्य यानी भावनाएं आहत करने का, क्या आप स्वयं नहीं कर रहीं ? ख़ैर, मैं तो स्टूडियो में था नहीं, तो कुछ और देख लेने के सिवा कर भी क्या सकता था ? ताज़ा उदाहरण है 'अय भौं पू' चैनल का। मुझे लगता है कि इसके कारनामे तो कभी न कभी इतिहास की अमर पुस्तक में स्वर्णाक्षरों में दर्ज़ किए जाएंगे। यह सब मैंने इसलिए लिखा कि इस चैनल पर एक समाचार देखा। शपथ लेने वाले मंत्री के एक बयान को यह चैनल बेतुका बता रहा था। मसला यह था - छत्तीसगढ़ के एक विधायक महोदय ने सूट-बूट पहन कर मंत्री पद की शपथ ग्रहण की। इस पर अपनी आदत से मज़बूर कांग्रेस ने सवाल उठाए। मीडिया ने प्रतिक्रिया पूछी, तो नए-नवेले मंत्री महोदय ने जवाब दिया - ये सामान्य कपड़े हैं। ये नहीं पहनूं, तो क्या नंगा होकर शपथ ग्रहण करूं ? अब आप खुद सोचिए - यह जवाब बेतुका है अथवा शपथ लेने वाले के कपड़ों पर उठाए गए सवाल ? क्या यह इतिहास का पहला अवसर था, जब किसी ने सूट पहन कर शपथ ग्रहण की ? नहीं, तो इस ख़बरिया चैनल ने उस पर सवाल उठाने वालों से क्यों नहीं पूछा कि आप ऐसा बेतुका मुद्दा क्यों छेड़ रहे हैं ? और नहीं पूछा, तो स्वयं न्यायाधीश बन जाने की जल्दबाज़ी क्यों की ? आप सूचना देते, फैसला जनता को करने देते कि बेतुका सवाल था या जवाब ? आप क्या सोचते हैं ?
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