18-09-2011, 04:27 PM | #131 |
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Re: लघु कथाएँ..........
प्रेम नहीं करोगे तो जानोगे कैसे?
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18-09-2011, 04:27 PM | #132 |
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Re: लघु कथाएँ..........
आपको कोई नहीं हरा सकता..
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18-09-2011, 04:28 PM | #133 |
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Re: लघु कथाएँ..........
ये है हमारे दुख का असली कारण...
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18-09-2011, 04:28 PM | #134 |
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Re: लघु कथाएँ..........
वाह! धनवान हो तो एंड्रयू कारनेगी जैसा
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18-09-2011, 04:28 PM | #135 |
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Re: लघु कथाएँ..........
पेशवा की उदारता
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18-09-2011, 04:29 PM | #136 |
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Re: लघु कथाएँ..........
स्वाभिमान की रक्षा
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13-12-2011, 03:58 PM | #137 |
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Re: लघु कथाएँ..........
दर्द ...मोनिका गुप्ता
पचास वर्षीय राजेश बाबू ने सुबह सुबह करवट् ली और हमेशा की तरह अपनी पत्नी मीता को चाय बनाने को कहा और फिर रजाई ढक कर करवट ले ली. कुछ पल उन्होने इंतजार की पर कोई हलचल ना होने पर उन्होने दुबारा आवाज दी. ऐसा कभी भी नही हुआ था इसलिए राजेश बाबू ने लाईट जलाई और मीता को हिलाया पर कोई हलचल ना होने पर ना जाने वो घबरा से गए. रजाई हटाई तो मीता निढाल सी एक ओर पडी थी. ना जाने रात ही रात मे क्या हो गया. अचानक मीता का इस तरह से उनकी जिंदगी से हमेशा हमेशा ले लिए चले जाना .... असहनीय था.धीरे धीरे जैसे पता चलता रहा लोग इकठठे होते रहे और उसका अंतिम संस्कार कर दिया. एक हफ्ता किस तरह बीता उन्हे कुछ याद ही नही. उन का एक ही बेटा था जोकि अमेरिका रहता था. पढाई के बाद वही नौकरी कर ली थी. बेटा आकर जाने की भी तैयारी कर रहा था. उसने अपने पापा को भी साथ चलने को कहा और वो तैयार भी हो गए. पर मीता की याद को अपने दिल से लगा लिया था. अब उन्हे हर बात मे उसकी अच्छाई ही नजर आने लगी.उन्हे याद आता कि कितना ख्याल रखती थी मीता उनका पर वो कोई भी मौका नही चूकते थे उसे गलत साबित करने का. ना कभी उसकी तारीफ करते और ना कभी उसका मनोबल बढाते बल्कि कर काम मे उसकी गलती निकालने मे उन्हे असीम शांति मिलती थी. उधर मीता दिनभर काम मे जुटी रहती थी. एक बार् जब काम वाली बाई 2 महीने की छुट्टी पर गई थी तब भी मीता इतने मजे से सारा काम बिना किसी शिकन के आराम से गुनगुनाते हुए किया जबकि कोई दूसरी महिला होती तो अशांत हो जाती . दिन रात राजेश बाबू उनकी यादो के सहारे जीने लगे.काश वह तब उसकी कीमत जान पाते. काश वो तब उसकी प्रशंसा कर पाते. काश .... !!! पर अब बहुत देर हो चुकी थी. आज राजेश अमेरिका जाने के लिए सामान पैक कर रहे थे. पैक करते करते मीता की फोटो को देख कर अचानक फफक कर रो पडे और बोले मीता मुझे माफ कर दो. प्लीज वापिस आ जाओ . मै तुम्हारे बिना कुछ नही हू. आज जाना है कि मै तुमसे कितना कितना प्यार करता हू... तभी उन्हे किसी मे पीठ से झकोरा. इससे पहले वो खुद को सम्भाल पाते अचानक उनकी आखं खुल गई. मीता उन्हे घबराई हुई आवाज मे उठा रही थी. वो सब सपना था. एक बार तो उन्हे विश्वास ही नही हुआ पर दूसरे पल उन्होने मीता का हाथ अपने हाथो मे ले लिया पर आखो से आसू लगातार बहे जा रहे थे. बस एक ही बात कह पाए ... आई लव यू मीता !!!! आई लव यू !!!और मीता नम हुई आखो से अपलक राजेश को ही देखे जा रही थी.
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30-04-2012, 01:24 PM | #138 |
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Re: लघु कथाएँ..........
बहुत बढ़िया malethia ji.
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24-09-2012, 05:08 PM | #139 |
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Re: लघु कथाएँ..........
बुद्धिमान कौन
वजीर के अवकाश लेने के बाद बादशाह ने वजीर के रिक्त पद पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवार बुलवाए। कठिन परीक्षा से गुज़र कर 3 उम्मीदवार योग्य पाए गए। तीनों उम्मीदवारों से बादशाह ने एक-एक कर एक ही सवाल किया, “मान लो मेरी और तुम्हारी दाढ़ी में एकसाथ आग लग जाए तो तुम क्या करोगे?” “जहाँपनाह, पहले मैं आप की दाढ़ी की आग बुझाऊँगा,” पहले ने उत्तर दिया। दूसरा बोला, “जहाँपनाह पहले मैं अपनी दाढ़ी की आग बुझाऊँगा।” तीसरे उम्मीदवार ने सहज भाव से कहा, “जहाँपनाह, मैं एक हाथ से आपकी दाढ़ी की आग बुझाऊँगा और दूसरे हाथ से अपनी दाढ़ी की।” इस पर बादशाह ने फ़रमाया, “अपनी ज़रूरत नज़रंदाज़ करने वाला नादान है। सिर्फ़ अपनी भलाई चाहने वाला स्वार्थी है। जो व्यक्तिगत जिम्मेदारी निभाते हुए दूसरे की भलाई करता है। यही बुद्धिमान है।” इस तरह बादशाह ने वजीर के पद पर तीसरे उम्मीदवार की नियुक्ति कर दी। |
24-09-2012, 05:11 PM | #140 |
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Re: लघु कथाएँ..........
उसी से गर्म उसी से ठंडा : विरोधाभास
सर्दियों के दिन थे । कड़ाके की ठंड पड़ रही थी । गुरु और शिष्य यात्रा पर थे । सुबह-सुबह उठे तो ठंड से ठिठुरे जा रहे थे । गुरु ने सहसा अपनी दोनों हथेलियों को रगड़ना शुरु किया और उनमें मुंह से फूंक मारना शुरु किया । यह देख कर शिष्य ने गुरु से जानना चाहा- “गुरु जी ! आप हाथों को क्यों रगड़ रहें हैं और उसमें फूंक क्यों रहें हैं ?” गुरु ने कहा कि हाथों को रगड़ने और उसमें गर्म फूंक मारने से शरीर को ठंड नहीं लगती, इससे शरीर में गर्माहट आती है । कुछ देर बाद उन्होंने आग जलाई और उसमें खाने के लिए आलू भूने । गुरु ने आलू आग से निकाले । आलू अभी गर्म थे । आलू छीलना शुरु किया और मुंह से फूंक-फूंक कर उन्हें ठंडा करने लगे । शिष्य ने पूछा गुरु जी आप आलू में फूंक क्यों मार रहें हैं ? गुरु ने कहा फूंक कर आलू को ठंडा कर रहा हूँ । शिष्य ने पूछा, कुछ देर पहले आप फूंक कर अपनी हथेलियों को गर्म कर रहे थे और अब फूंक कर आलुओं को ठंडा कर रहे हो । यह कैसे संभव है कि उसी से गर्म और उसी से ठंडा ? गुरु ने कहा- “ऐसा ही है, जीवन में बहुत सी चीजों का स्वभाव गर्म या ठंडा हो सकता है, लेकिन उनका उपयोग हम कैसे करते हैं, उस से वे हमारे लिए उपयोगी और सार्थक बन जाती हैं ।” फूंक की तरह जो कभी हथेलियों को गर्म करने के काम आती है तो कभी आलुओं को ठंडा करने के लिए । वह स्वयं में गर्म है, लेकिन अलग-अलग परिस्थितियों में इसका प्रयोग बड़ा विरोधाभासी है । बुद्ध पुरुषों के वचन भी ऐसे ही होते हैं । जो बहुत बार हमें विरोधाभासी लगते हैं लेकिन हर परिस्थिति में सार्थक होते हैं। |
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