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#131 |
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![]() चूहे का दिल
अति-प्रसिद्ध, अति-प्राचीन भारतीय लोककथा है यह. चूहा सदैव बिल्लियों से आतंकित रहता था. वह एक साधु के पास पहुँचा और उसे अपनी व्यथा बताई. साधु ने चूहे को बिल्ली बना दिया. बिल्ली कुत्तों से आतंकित रहने लगी. बिल्ली बनी चूहा साधु के पास पहुँचा और अपनी व्यथा बताई. साधु ने उसे कुत्ता बना दिया. कुत्ता शेरों से डरने लगा. जाहिर है, साधु ने उसे शेर बना दिया. परंतु शेर शिकारियों से डरने लगा और साधु की शरण में फिर से जा पहुँचा. यह देख साधु ने उसे फिर से चूहा बना दिया और कहा – “कोई कुछ भी कर ले, परंतु तुम्हारी समस्या दूर नहीं होगी क्योंकि तुम्हारा दिल तो चूहे का है!” |
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#132 |
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![]() कभी बेवकूफों को सलाह मत दो
एक समय की बात है, नर्मदा नदी के तट पर एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था जिसकी मोटी शाखाऐं दूर-दूर तक फैली हुयी थीं। उस पेड़ पर चिड़ियों का एक परिवार रहता था। बरगद का पेड़ भारी बारिश के दिनों में भी चिड़ियों की रक्षा करता था। मानसून के समय एक दिन आकाश में काले बादल छाए हुए थे। जल्द ही भयंकर बारिश शुरू हो गयी। भयंकर तूफानी बारिश से बचने के लिए बंदरों का एक समूह उस पेड़ के नीचे शरण लिए हुए था। वे ठंड के मारे कांप रहे थे। चिड़ियों ने बंदरों की दुर्दशा देखी। उनमें से एक चिड़िया ने बंदरों से कहा - "अरे बंदरों! हर बारिश के मौसम में तुम लोग इसी तरह क्यों परेशान होते रहते हो? हमें देखो, हम लोग अपनी सुरक्षा के लिए इस चोंच की सहायता से घास का तिनका-तिनका जोड़ कर घोंसला बनाते हैं। परंतु ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ और दो पैर दिए हैं जिनका उपयोग तुम लोग खेलने-कूदने में ही करते हो। तुम लोग अपनी सुरक्षा के लिए घर क्यों नहीं बनाते?" इन शब्दों को सुनकर बंदरों को गुस्सा आ गया। उन्होंने सोचा कि चिड़ियों की हमसे इस तरह से बोलने की हिम्मत कैसे हुयी। बंदरों के सरदार ने कहा - "सुरक्षित तरीके से अपने घोसले में बैठकर हमे उपदेश दे रही हैं। रुकने दो बारिश को, तब हम उन्हें मजा चखायेंगे।" जैसे ही बारिश रुकी, बंदर पेड़ पर चढ़ गये और उन्होंने चिड़ियों को घोंसलों को तबाह करना शुरू कर दिया। उन्होंने घोंसलों और उसमें रखे अंडों को उठाकर जमीन पर पटक दिया। बेचारी चिड़ियाँ अपनी जान बचाकर इधर-उधर भागने लगीं। किसी ने सही ही कहा है, सच्ची सलाह केवल गंभीर लोगों को ही देनी चाहिए और वह भी केवल मांगे जाने पर। बेवकूफ व्यक्ति को सलाह देने का अर्थ है - "अपने विरुद्ध उसके गुस्से को भड़काना।" |
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#133 |
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![]() स्वयं पर नियंत्रण
चीन में एक बौद्ध भिक्षु ध्यान योग में तल्लीन रहता था. उसकी देखभाल एक बूढ़ी स्त्री करती थी. कई वर्षों की सेवा-सुश्रूषा के बाद एक दिन बूढ़ी महिला ने उस बौद्ध भिक्षु की परीक्षा लेनी चाही. उसने एक युवती को बुला कर कहा कि वो ध्यानस्थ बौद्ध भिक्षु के कमरे में जाए और उसे आलिंगन में ले ले और उससे प्यार जताए. युवती ने ऐसा ही किया. मगर बौद्ध भिक्षु यह अप्रत्याशित हरकत देख कर ताव में आ गया और आनन फानन में उस युवती को झाड़ू से मारते हुए बाहर कर दिया. यह देख उस बूढ़ी स्त्री ने उस बौद्ध भिक्षु से दूरी बना ली क्योंकि उसके अनुसार इतने दिनों की तपस्या और ध्यान योग के बाद भिक्षु को युवती की आवश्यकताओं की समझ होनी चाहिए थी और इस हेतु उसे शांति पूर्वक समझाना था. साथ ही उसे स्वयं पर भी नियंत्रण बनाए रखना था. |
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#134 |
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![]() भिक्षाम देहि भिक्षाम देहि!......दोपहर के अंतिम प्रहर में जब एक गृहिणी को यह स्वर सुनायी दिया तो वह दरवाज़े पर आए भिक्षुक के लिए एक कटोरा चावल लेकर आ गयी। चावल देते - देते उसने कहा - "महाराज! मेरे मन में आपके लिए एक प्रश्न है। आखिर लोग एक - दूसरे से झगड़ते क्यों हैं?" भिक्षुक ने उत्तर दिया - "मैं यहाँ भिखा मांगने के लिए आया हूं, आपके मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिए नहीं।" यह सुनकर वह गृहिणी दंग रह गयी। सोचने लगी - यह भिक्षुक कितना असभ्य है! वह भिक्षा लेने वाला और मैं दान कर्ता हूं! उसकी हिम्मत कैसे हुयी मुझसे ऐसे बात करने की! फिर वह बोली - "तुम कितने घमंडी और कृतघ्न हो। तुम्हारे अंदर सभ्यता और लिहाज नाम की कोई चीज नहीं है।" .....और वह देर तक उसके ऊपर चिल्लाती रही। जब वह थोड़ा शांत हुयी, तब भिक्षुक बोला - "जैसे ही मैंने कुछ बोला, तुम गुस्से से भर गयीं। वास्तव में केवल गुस्सा ही सभी झगड़ों के मूल में है। यदि लोग अपने गुस्से पर काबू रखना सीख जायें तो दुनिया में कम झगड़े होंगे।"
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#135 |
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![]() मीठा बदला
एक बार एक देश के सिपाहियों ने शत्रुदेश का एक जासूस पकड़ लिया. जासूस के पास यूँ तो कोई आपत्तिजनक वस्तु नहीं मिली, मगर उसके पास स्वादिष्ट प्रतीत हो रहे मिठाइयों का एक डब्बा जरूर मिला. सिपाहियों को मिठाइयों को देख लालच आया. परंतु उन्हें लगा कि कहीं यह जासूस उसमें जहर मिलाकर तो नहीं लाया है. तो इसकी परीक्षा करने के लिए उन्होंने पहले जासूस को मिठाई खिलाई. और जब जासूस ने प्रेम पूर्वक थोड़ी सी मिठाई खा ली तो सिपाहियों ने मिल कर मिठाई का पूरा डिब्बा हजम कर लिया और उस जासूस को जेल में डालने हेतु पकड़ कर ले जाने लगे. इतने में उस जासूस को चक्कर आने लगे और वो उबकाइयाँ लेने लगा. उसकी इस स्थिति को देख कर सिपाहियों के होश उड़ गए. वह जासूस बोला – लगता है मिठाइयों में धीमा जहर मिला हुआ था. खाने के कुछ देर बाद इसका असर होना चालू होता है लगता है. और ऐसा कहते कहते वह जासूस जमीन में ढेर हो गया. वह बेहोश हो गया था.सिपाहियों की तो हवा निकल गई. वे जासूस को वहीं छोड़ कर चिकित्सक की तलाश में भाग निकले. इधर जब सभी सिपाही भाग निकले तो जासूस उठ खड़ा हुआ और इस तरह अपने भाग निकलने के मीठे तरीके पर विजयी मुस्कान मारता हुआ वहां से छूमंतर हो हो गया. |
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#136 |
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![]() गांधी जी के जूते
एक बार गांधी जी जब ट्रेन पर चढ़ रहे थे तो ट्रेन ने थोड़ी सी रफ़्तार पकड़ ली थी. चढ़ते समय हड़बड़ी में गांधी जी के एक पैर का जूता नीचे पटरी पर गिर गया. अब चूंकि ट्रेन रुक नहीं सकती थी तो गांधी जी ने तुरंत दूसरे पैर का जूता निकाला और उसे भी नीचे फेंक दिया और अपने सहायक से कहा - जिस किसी को भी एक जूता मिलता तो उसका प्रयोग नहीं हो पाता. अब दोनों जूते कम से कम किसी के काम तो आ सकेंगे. |
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#137 |
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![]() समर्पण - स्टालिन और चर्चिल
राष्ट्रपति ट्रूमैन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आयोजित हुये याल्टा सम्मेलन में भाग लिया था। उन्हें विंस्टन चर्चिल बहुत जटिल, अडिग और आसानी से कोई बात न मानने वाले व्यक्ति लगे जबकि रूस के जोसेफ स्टालिन बहुत मिलनसार, मित्रतापूर्ण और आसानी से बात मानने वाले व्यक्ति लगे। किसी भी समझौते या संशोधन पर हस्ताक्षर करने के पूर्व चर्चिल बाकायदा झगड़ा करते थे। इसके विपरीत स्टालिन किसी भी समझौते पर आसानी से हस्ताक्षर करने और सहयोग प्रदान करने को तत्पर रहते। याल्टा सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में तय हुये समझौतों के क्रियान्वयन का प्रबंध शुरू हुआ। ट्रूमैन ने पाया कि विंस्टन चर्चिल ने सभी समझौतों का पूरी गंभीरता से पालन और क्रियान्वयन किया जबकि जोसेफ स्टालिन ने समझौतों की कोई परवाह नहीं की और अपना गुप्त एजेंडा ही क्रियान्वित करते रहे। इन दोनों के कार्य का परिणाम अब इतिहास के पन्नों में है। ट्रूमैन को समझ में आया कि चर्चिल इसलिए अड़ियल थे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के प्रति गंभीर रहने का था जबकि स्टालिन इसलिए मिलनसार और समझौते करने में तत्पर बने रहे क्योंकि उनका इरादा समझौतों के पालन का नहीं था। |
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#138 |
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![]() मुझे अपना अहंकार दे दो एक संन्यासी एक राजा के पास पहुचे। राजा ने उनका आदर सत्कार किया। कुछ दिन उनके राज्य में रुकने के पश्चात संन्यासी ने जाते समय राजा से अपने लिए उपहार मांगा। राजा ने एक पल सोचा और कहा - "जो कुछ भी खजाने में है, आप ले सकते हैं।" संन्यासी ने उत्तर दिया - "लेकिन खजाना तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तो राज्य का है और तुम सिर्फ ट्रस्टी हो।" "तो यह महल ले लो।" "यह भी प्रजा का है।" - संन्यासी ने हंसते हुए कहा। "तो मेरा यह शरीर ले लो। आपकी जो भी मर्जी हो, आप पूरी कर सकते हैं।" - राजा बोला। "लेकिन यह तो तुम्हारी संतान का है। मैं इसे कैसे ले सकता हूं?" -संन्यासी ने उत्तर दिया। "तो महाराज आप ही बतायें कि ऐसा क्या है जो मेरा हो और आपके लायक हो?" - राजा ने पूछा। संन्यासी ने उत्तर दिया - "हे राजा, यदि आप सच में मुझे कुछ उपहार देना चाहते हैं, तो अपना अहंकार, अपना अहम दे दो।" "अहंकार पराजय का द्वार है। अहंकार यश का नाश करता है।यह खोखलेपन का परिचायक है।"
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#139 |
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![]() दो गलत मिलकर सही नहीं होते
हमनेऐसा सुना है कि अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या करके मगध की राजगद्दी हथिया ली थी। जब कुछ समय गुजर गया तो अजातशत्रु को बहुत पश्चाताप हुआ। उसने अपने पापों का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। इसने अपने राजगुरू को बुलाकर पूछा कि वह किस तरह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है? राजगुरू ने उसे पशुबलि यज्ञ करने का परामर्श दिया। सारे राज्य में पशुबलि यज्ञ की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर के साथ की गयीं।भगवान बुद्ध उसी दौरान उसके राज्य में पधारे। उनके आगमन का समाचार सुनकर अजातशत्रु उनसे मिलने आया। भगवान बुद्ध ने उससे पास की एक झाड़ी से फूल तोड़कर लाने को कहा। अजातशत्रु ने ऐसा ही किया। उन्होंने अजातशत्रु से फिर कहा - "अब दूसरा फूल तोड़कर लाओ ताकि पहला फूल खिल सके।" अजातशत्रु ने निवेदन किया - "लेकिन महात्मा यह असंभव है। एक टूटा हुआ फूल दूसरे फूल को तोड़ने से कैसे खिल सकता है?" बुद्ध ने उत्तर दिया - "उसी तरह जैसे तुम एक हत्या के पश्चाताप के लिए दूसरी हत्या करने जा रहे हो। एक गलत कार्य को तुम दूसरे गलत कार्य से कभी सही नहीं कर सकते। इसके बजाए तुम अपना सारा जीवन मनुष्यों, जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की सेवा में समर्पित कर दो।" यह सुनकर अजातशत्रु उनके चरणों में गिर पड़ा और आजीवन उनका समर्पित अनुयायी बना रहा। |
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#140 |
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![]() कुछ नहीं
खोजा अपने मित्र अली की फलों की दुकान पर केले खरीदने गया. अली को शरारत सूझी. खोजा ने एक दर्जन केले के भाव पूछे. अली ने जवाब में कहा – दाम कुछ नहीं खोजा ने कहा – अच्छा! तब तो एक दर्जन दे दो. केले लेकर खोजा जाने लगा. पीछे से अली ने पुकारा – अरे, दाम तो देते जाओ. खोजा ने आश्चर्य से पूछा – अभी तो तुमने दाम कुछ नहीं कहा था, फिर काहे का दाम? अली ने शरारत से कहा – हाँ, तो मैं भी तो वही मांग रहा हूं. दाम जो बताया ‘कुछ नहीं’ वह तो देते जाओ. अच्छा – खोजा ने आगे कहा – तो ये बात है. फिर खोजा ने एक खाली थैला अली की ओर बढ़ाया और पूछा – इस थैले में क्या है? बेध्यानी में अली ने कहा – कुछ नहीं. तो फिर अपना दाम ले लो – खोजा ने वार पलटा. |
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