30-03-2013, 03:40 AM | #1391 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
भारत में तेजी से बढ रहे हैं गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के मरीज भारत में गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के मरीज तेजी से बढ रहे हैं । लेकिन इस बीमारी के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये सरकारी स्तर पर एड्स, पोलियो और अन्य असंक्रामक रोगों के लिए चलने वाले अभियान जैसे प्रयास नहीं हो रहे। फिलहाल गुर्दा को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय का अलग से कोई कार्यक्रम नहीं है, विज्ञापन के स्तर पर जागरूकता में कमी है। सरकारी अस्पतालों में गुर्दे की बीमारी के विशेषज्ञों की भी कमी है। हालात यह हैं कि सफदरजंग जैसे बड़े अस्पताल में गुर्दा प्रत्यारोपण नहीं हो रहा तो भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे संस्थान में गुर्दा रोग विभाग के विस्तार का प्रस्ताव काफी सालों से लंबित है। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक भारत में सालाना करीब 5000 गुर्दा प्रत्यारोपण होते हैं, इनमें 85 फीसदी प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में जबकि 15 फीसदी ही सरकारी अस्पतालों में होता है। एम्स में गुर्दा प्रत्यारोपण के समय तकरीबन 40 हजार से एक लाख रूपये तक का खर्च आता है जबकि निजी अस्पतालों में चार से छह लाख तक हो सकता है। विश्व में आज लाखों लोग गुर्दा देने के बाद भी सही तरीके से जीवन जी रहे हैं। एम्स में नेफ्रोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. संजय के अग्रवाल के अनुसार, ‘सरकारी अस्पतालों में गुर्दा प्रत्यारोपण ज्यादा नहीं हो पाने के कारण कम आय वाले लोग अक्सर इलाज से महरूम रह जाते हैं। प्रत्यारोपण नहीं होने की स्थिति में डायलिसिस ही एकमात्र उपाय बचता है, जो भारत में करीब पांच फीसदी मरीजों को ही उपलब्ध हो पाता है और गुर्दा प्रत्यारोपण का प्रतिशत उससे भी कम है। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद भी मरीज को आजीवन दवाएं लेनी पड़ती हैं। हृदय, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और आघात जैसी बीमारियों की तुलना में इसके इलाज में खर्च ज्यादा आता है।’ प्रो. अग्रवाल के मुताबिक, ‘लोगों में अंगदान को लेकर जागरूकता में कमी प्रत्यारोपण के मार्ग में बाधक है। मौजूदा कानून के मुताबिक अस्पताल में यदि कोई मरीज ब्रेन डेड (दिमागी तौर पर मृत) घोषित कर दिया जाता है तब परिवार की रजामंदी के बाद उसके शरीर के अंगों को जरूरतमंद मरीजों में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। लेकिन यदि कोई सड़क दुर्घटना में घायल हो जाए और समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाए जाने के कारण उसकी मृत्यु हो जाए तो उसके अंगों को उपयोग में नहीं लाया जा सकता। इसलिए आज भी 95 फीसदी अंग प्रत्यारोपण जीवित व्यक्तियों से और पांच फीसदी ही ब्रेन डेड व्यक्तियों से होते हैं।’ प्रो. संजय बताते हैं, ‘एम्स में गुर्दा रोग विभाग को विस्तार दिए जाने का प्रस्ताव लंबित है। हालांकि हरियाणा के झज्जर में अलग केंद्र बनाने का सुझाव मिला है लेकिन इससे मरीजों की परेशानी बढ जाएगी। हमलोगों की कोशिश है कि एम्स में ही इसे बनाया जाए और मरीजों के लिए केंद्रीयकृत व्यवस्था हो। इसके लिए हाल में सफदरजंग अस्पताल में राष्ट्रीय अंग एवं उत्तक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) की स्थापना की गई, यहां सभी ब्रेन डेड व्यक्तियोंं और अंग प्रत्यारोपण के जरूरतमंदों की जानकारी रखी जाएगी।’ प्रो. संजय का सुझाव है कि सरकार पिछले साल से ही हृदय से संबंधित बीमारी, कैंसर, मधुमेह की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) को 50 से अधिक जिलों में चला रही है, जिसमें गुर्दा रोग को भी जोड़ा जाना चाहिए। इससे गुर्दा मरीजों की भी वास्तविक संख्या का पता चल सकेगा। 64 साल पुराने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) में भी गुर्दा रोग को लेकर कोई आंकड़े नहीं रखे जा रहे हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अनंत कुमार के अनुसार, ‘गुर्दा देने के बाद एक सामान्य बड़े आपरेशन में जिस तरह की सावधानी बरती जानी चाहिए उसी तरह की सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इसके बाद व्यक्ति दो हफ्ते के आराम के बाद सामान्य रूप से काम कर सकता है।’ गुर्दा प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अनंत कुमार के अनुसार, ‘गुर्दा देने के बाद एक सामान्य बड़े आपरेशन के बाद बरती जाने वाली सावधानी के जैसे ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। इसके बाद व्यक्ति दो हफ्ते के आराम के बाद हर तरह का काम कर सकता है। मरीज को गुर्दा लगने के बाद उसकी आयु दस से 15 साल बढ जाती है। कानून के अनुसार 18 साल से उपर का कोई भी व्यक्ति बिना किसी लोभ के अपने निकटतम संबंधियों को गुर्दा दान कर सकता है। लेकिन जागरूकता के अभाव में परिवार के लोग ऐसा करने से बचते हैं जिससे मानव अंगों की तस्करी जैसी समस्याएं सामने आती हैं।’ एम्स में आर्गन रिट्रिवल बैंकिंग आर्गेनाइजेशन (ओआरबीओ) की प्रमुख डॉ. आरती विज ने कहा, ‘अंगदान का इच्छुक कोई भी व्यक्ति यहां पंजीकरण करा सकता है। अब तक 17 हजार से ज्यादा लोगों ने पंजीकरण कराया है। मरीज के ब्रेन डेड होने पर यह संस्था सरकारी या निजी अस्पतालों से संपर्क करती है। हालांकि यह संख्या कम है।’ एम्स में असिस्टेंट डायटिशियन डॉ. गुरदीप कौर गुर्दे के मरीजों के लिए विशेष आहार की आवश्यकता पर जोर देते हुए बताती हैं, गुर्दे के मरीजों को प्रोटीनयुक्त आहार की विशेष आवश्यकता होती है। डायलिसिस पर रह रहे मरीजों को हम प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे कि दूध, दही, अंडे की सफेदी, मांस, मछली की सलाह देते हैं। मांस, मछली में पोटैशियम और फॉस्फोरस भी मौजूद होते है इसलिए हम इन्हें खास विधि से बनाने का सुझाव देते हैं। दो डायलिसिस के बीच वजन ज्यादा नहीं बढना चाहिए। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद भी मरीज को शुरुआती चार से छह हफ्ते में ज्यादा प्रोटीन और कैलोरी वाले भोजन लेने चाहिए जबकि इसके बाद के चार से छह हफ्ते में थोड़े कम प्रोटीन और कैलोरी वाले भोजन लेने चाहिए।
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30-03-2013, 04:27 AM | #1392 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
मच्छरों से बचाव करेगा हरी चाय का पौधा
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफसर ने हर्बल और बेहद सस्ता उपाय खोज निकाला वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के द्रव्य गुण विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के.एन. द्विवेदी ने मच्छरों से बचाव के लिए हरी चाय के पौधे के रूप में हर्बल और बेहद सस्ता उपाय खोज निकाला है। हरि चाय का पौधा जानलेवा मच्छरों का दुश्मन है। इस पौधे की खुशबू से मच्छर दूर भाग जाएंगे। प्रो. द्विवेदी ने बताया कि इस पौधे का अस्तित्व सदियों से है और ये गांवों में बड़ी ही आसानी से पाए जाते हैं, लेकिन लोगों को इसके गुण और प्रयोग करने का तरीका पता ही नहीं है। यह एक ऐसा कारगर पौधा है, जो आपके घर से मच्छरों को भगा देगा। इस पौधे को आयुर्वेद की भाषा में ‘कृत्रण’ कहते हैं और इसका वैज्ञानिक नाम ‘सिम्बोपोगां स्कुलेथाश’ है। उन्होंने बताया कि हरी चाय के पौधे की खुशबू बिल्कुल नींबू की तरह होती है। ये पौधे मच्छर और मक्खियों का दुश्मन है। हरी चाय हर्बल होने के साथ ही मच्छरों को मारने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली तमाम दवाइयों से बहुत ही सस्ती है। मच्छरों को मारने के लिए बाजार में बिक रही कई अच्छी कम्पनियों की दवाओं में कुछ मात्रा में इस पौधे का रस मिलाया जाता है। इसकी पत्तियों को पीस कर शरीर में लगा लेने पर इसकी खुशबू से मच्छर आपके आस-पास भी नहीं फटकेंगे। बुखार और खांसी होने पर इसे उबाल कर पीने से भी लाभ होगा। यही नहीं कब्ज की शिकायत या फिर पुराना दर्द हो तो किसी आयुर्वेद के डॉक्टर की सलाह पर हरी चाय का सेवन किया जा सकता है। हरी चाय के पत्तों के रसों का भी इस्तेमाल चर्म रोग के लिए भी कारगर है।
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31-03-2013, 04:04 PM | #1393 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आम के प्रेमी कृत्रिम ढंग से पकाए फलों से रहे सावधान
पुणे। फलों का राजा माने जाने वाले आम का मौसम निकट आने के मद्देनजर सलाह दी गई है कि इस फल के प्रेमी प्राकृतिक रूप से पकाए गई आम की अल्फांसो किस्म की पहचान करने के लिए उसकी विशिष्ट सुगंध और सिकुडन रहित छिलके पर ध्यान दें। शहर में स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के ‘फूड केमिस्ट्री जरनल’ में प्रकाशित शोध लेख के अनुसार सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ तालुक में पाए जाने वाले अल्फांसो आम को उसकी प्राकृतिक सुगंध से पहचाना जा सकता है। कृत्रिम रूप से पकाए गए आम में यह सुगंध नहीं होती। देवगढ तालुक आम उत्पादक सहकारी सोसाइटी के निदेशक एवं अध्यक्ष अजित गोगाटे ने कहा, ‘रासायनिक तत्व का इस्तेमाल करके पकाए गए आमों में इस प्रकार की सुगंध नहीं होती। इसे सूंघने के लिए आपको आम को अपनी नाक से जोर से दबाना होगा।’ महाराष्ट्र में खाद्य एवं औषधि प्रशासन:एफडीए: ने पिछले कुछ समय में ऐसे व्यापारियों के यहां छापे मारे हैं जिन्होंने प्रतिबंधित रासायनिक तत्व कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करके कृत्रिम रूप से आम को पकाया था। यह रासायनिक तत्व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। प्राकृतिक रूप से पके आम का छिलका पतला और कोमल होता है जबकि कृत्रिम ढंग से पके आम का छिलका पीला और कठोर होता है। रासायनिक रूप से पके आम का रंग एक सा होता है। इसके विपरीत प्राकृतिक रूप से पके आम में पीले और हरे रंगों का मिश्रण होता है। गोगाटे ने कहा, ‘आम का छिलका सिकुड़ा हुआ नहीं लगना चाहिए। कई लोगों का मानना है कि यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ हो तो वह अच्छा होता है। लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा तभी होता है जब आम जरूरत से ज्यादा पका हो। यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ है और फिर भी उसका रंग हरा है तो उसे न खरीदें। इसका मतलब है कि उसे बिना पके ही तोड़ा गया है।’ उन्होंने बताया कि 700 किसानों की 25 वर्ष पुरानी सहकारी सोसाइटी अल्फांसो को अपने सदस्यों के बागों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए ई-कॉमर्स का सहारा लेने जा रही है और इसके लिए वेबसाइट पर आर्डर दिए जाएंगे।
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31-03-2013, 11:39 PM | #1394 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
यौन अपराधों से लड़ने में महिलाओं की ‘मदद’ करेगा अंतर्वस्त्र
अहमदाबाद। चेन्नई की तीन आटोमोबाइल इंजीनियरों ने जीपीएस मॉड्यूल लगा एक ऐसा अंतर्वस्त्र तैयार किया है जिनके बारे में उनका दावा है कि यह भारत में यौन अपराधों को काबू कर सकता है । अंतर्वस्त्र लड़की के माता पिता और पुलिस को अलर्ट कर पाने में सक्षम है । सोसाइटी हारनेसिंग इक्विपमेंट (शी) नामक इस उत्पाद को तैयार करने वालों में से एक मनीषा मोहन ने बताया कि अंतर्वस्त्र में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन और दबाव संवेदक लगे हैं और यह 3,800 केवी के झटके और लड़की के माता पिता और पुलिस को अलर्ट भेजने में सक्षम है । उन्होंने बताया कि झटके 82 बार दिए जा सकते हैं । यह उपकरण महिलाओं को बसों, सार्वजनिक स्थलों पर सामना किए जाने वाली स्थितियों से निजात दिलाएगा । अंतर्वस्त्र के काम करने की प्रक्रिया को समझाते हुए मनीषा ने बताया कि दबाव संवेदक के लड़की का उत्पीड़न करने की कोशिश करने वाले व्यक्ति को जबरदस्त झटका लगेगा जबकि जीपीएस और जीएसएम से आपात नंबर 100 और लड़की के माता पिता को एसएमएस जाएगा । श्रीरामास्वामी मेमोरियल यूनिवर्सिटी की इंजीनियरिंग की छात्रा मनीषा ने अपने दो सहकर्मियों रिंपी त्रिपाठी और नीलाद्री बसु पाल के साथ मिलकर यह अंतर्वस्त्र तैयार किया है ।
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04-04-2013, 12:32 PM | #1395 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
कार में वाई-फाई
इंदौर में देश की पहली इंटरनेट कार दौड़ेगी सड़कों पर इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘बीएसएनएल’ ने देश मे पहली बार कार में इंटरनेट लगाया है। इस कार को पूरी तरह से वाई-फाई किया गया है। इस कार में और कार के बाहर भी आप इंटरनेट का उपयोग कर सकेंगे। इस पूरी प्रणाली को 5 से 6 हजार के खर्च पर कार में स्थापित किया जा सकता है। पहली इंटरनेट कार ‘बीएसएनएल’ के महाप्रबन्धक जी.सी. पांडे की ही है, जिसे प्रेक्टिकल के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। बीएसएनएल के इंदौर के महाप्रबन्धक जी.सी.पांडे ने बुधवार को अपने कार्यालय में इस कार्य का डेमो देते हुए बताया कि ये देश में अपने तरह की पहली सेवा है। कार में लगे एक छोटे से ऐंटिना से सिग्नल प्राप्त होते हैं और उससे फोन और इंटरनेट दोनों ही चलने लगते है। सीडीएमए प्रणाली पर आधारित इस सिस्टम पर 3.6 एमबीपीएस की स्पीड मिलती है। कार को वाई-फाई बनाने से कार के अलावा 15 फीट तक वाई-फाई का उपयोग किया जा सकता है। यह इंटरनेट कार फिलहाल पूरी तरह से लोकल इंदौर कार्यालय द्वारा संचालित की जा रही है, लेकिन जल्दी ही इस प्रोजेक्ट को राष्टñीय स्तर पर अपनाया जा सकता है।
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04-04-2013, 12:33 PM | #1396 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
चीन में दुनिया का सबसे हल्का पदार्थ बनाया
केवल 0.16 मिलीग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है घनत्व बीजिंग। चीन के वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे हल्का पदार्थ ‘कार्बन एरोजेल’ का विकास किया है, जिसका घनत्व हवा के घनत्व का केवल छठा हिस्सा होगा। झीजियांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसका उत्पादन किया है। इस ठोस पदार्थ का घनत्व केवल 0.16 मिलीग्राम प्रति घनसेंटीमीटर है। इससे पहले विश्व का सबसे हल्का पदार्थ ‘ग्रेफाइट एरोजेल’ था। ग्रेफाइट एरोजेल का विकास पिछले वर्ष जर्मनी के वैज्ञानिकों ने किया था, जिसका घनत्व 0.18 मिलीग्राम प्रति घनसेंटीमीटर है। प्रोफेसर गाओ चाओ के नेतृत्व वाले शोध दल ने कार्बन नैनोट्यूब्स और ग्रेफाइन के सूखे घोल को जमाया और उसकी नमी को हटाकर अखंडता बरकरार रखी।
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04-04-2013, 12:33 PM | #1397 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
एचआईवी की रोकथाम में मददगार साबित हो सकती है ‘आत्म परीक्षण किट’
तीस साल बाद भी ‘बचाव ही उपचार’ टोरंटो। भारतीय मूल की वैज्ञानिक की अगुवाई में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, एड्स की रोकथाम में एचआईवी के ‘आत्म परीक्षण किट’ काफी मददगार साबित हो सकती है। भारत सहित कई देशों के आंकड़ों पर किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि एचआईवी के ‘आत्म परीक्षण किट’ के जरिए इस घातक रोग के साथ जुड़ी आशंकाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मेकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के शोध संस्थान (आरआई-एमयूएचसी) की डॉक्टर नितिका पंत पई द्वारा किया गया यह अध्ययन इस क्षेत्र में अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इससे दुनिया भर में इस रोग के जल्द पता लगने और उपचार का रास्ता साफ हो सकता है, जिससे इसके फैलने में कमी आने की उम्मीद है। पंत पई का कहना है कि एचआईवी के पता चलने के तीस वर्ष बाद भी आज हमारे पास इसका कोई टीका नहीं है। इससे बचाव को ही उपचार के कारगर उपाए के तौर पर देखा जाता है, लेकिन एचआईवी से जुड़े कलंक और भेदभाव जैसी सामाजिक दिक्कतों की वजह से इसकी जांच कराने वालों की संख्या बेहद कम है। संयुक्त राष्ट्र के एचआईवी-एड्स कार्यक्रम (यूएनएड्स) के मुताबिक दुनिया भर में हर साल लगभग 25 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं और इनमें से 50 फीसद लोगों को अपने एचआईवी पीड़ित होने का पता ही नहीं है। पंत पई मानती हैं कि एचआईवी के आत्म परीक्षण किट तक लोगों की पहुंच आसान होने से इससे जुड़े नजरिए में सकारात्मक बदलाव आएगा। 20 मिनट में स्वयं करें जांच : इस ‘आत्म परीक्षण किट’ से लोग घर बैठे ही अपने मसूढ़ों से लिए गए तरल की जांच कर एचआईवी का पता लगा सकते हैं। इस बेहद आसान और गोपनीय जांच से 20 मिनट के भीतर ही परिणाम का पता चल जाता है।
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05-04-2013, 04:14 PM | #1398 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
एक लीटर में एक हजार किलोमीटर चलेगी वाली कार
अबुधाबी। सुनने मे भले ही यह अविश्वसनीय लगे, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में इंजीनियरिंग के छात्रों के एक दल ने ऐसी कार का निर्माण किया है जो एक लीटर इंधन में एक हजार किलोमीटर की दूरी तय करेगी। छात्रों ने इस कार को ‘इको दुबई’ नाम दिया है। यह कार निर्माण के अंतिम चरण में है और अगले दो सप्ताह के भीतर इसका परीक्षण शुरू कर दिया जाएगा। दुबई तकनीकी कॉलेज के छात्र दो वर्ष से इको कार पर काम कर रहे हैं। यह अत्यंत हल्की कार है और इसका वजन लगभग 25 किलो है। कार आधा मीटर चौड़ी, दो मीटर लम्बी और आधा मीटर ऊंची है। यह कार इसी प्रकार की तकनीक से बनी कारों के साथ जुलाई में विश्वस्तरीय रेस में शामिल होगी। कार के निर्माण से जुड़े एक छात्र ने बताया कि धरती पर पेट्रोल का सीमित भंडार है। यह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता, इसलिए हमने परिस्थितिकी आधारित वाहन के निर्माण की दिशा में कदम उठाया। छात्रों को इस कार के निर्माण के लिए बिजली, सौर एवं इसी तरह की दूसरी तकनीक का इस्तेमाल किया है।
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05-04-2013, 11:26 PM | #1399 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
2050 में बढ़ना बंद हो जाएगी विश्व की जनसंख्या
लंदन। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस सदी के मध्य के आसपास तक पृथ्वी पर रहने वाले लोगों की संख्या स्थिर हो जाएगी। स्पेन स्थित साइंटिफिक इन्फार्मेशन एंड न्यूज सर्विस (एसआईएनसी) ने बताया कि यह निष्कर्ष भौतिक विज्ञानियों द्वारा इस्तेमाल एक मॉडल से प्राप्त हुआ है। यह संयुक्त राष्ट्र के गिरावट के पूर्वानुमान से मेल खाता है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्वानुमान के अनुसार 2100 में विश्व की जनसंख्या सर्वोच्च अनुमान के मुताबिक 15.8 अरब और निम्नतम अनुमान (न्यूनतम प्रजनन क्षमता) के अनुसार 6.2 अरब होगी जो कि वर्तमान के सात अरब के आंकड़े से भी नीचे है। आॅटोनॉमस यूनिवर्सिटी आफ मैड्रिड और सान पैबलो यूनिवर्सिटी (दोनों स्पेन की) निम्न अनुमान की पुष्टि करती प्रतीत होती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1950 और 2100 के बीच मुहैया कराई गई जनसंख्या संभावना का इस्तेमाल पत्रिका ‘सिमुलेशन’ में प्रकाशित अध्ययन करने के लिए किया गया। यूएएफ अनुसंधानकर्ता फेलिक्स एफ मुनोज ने कहा कि यह एक ऐसा मॉडल है जो दो स्तरीय प्रणाली का विकास का वर्णन करता है, जिसमें एक स्तर से दूसरे में गुजरने की संभावना है।
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06-04-2013, 12:01 AM | #1400 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
चीनी वैज्ञानिकों ने किया ‘डार्क मैटर’ के अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान का दावा
बीजिंग। चीन के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में मौजूद ‘डार्क मैटर’ सम्बंधी अनुसंधान में अपनी ओर से महत्वपूर्ण योगदान देने का दावा किया है। अंतरिक्ष विज्ञान के तहत माना जाता है कि ‘डार्क मैटर’ ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का एक बड़ा हिस्सा है। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद अल्फा मैगनेटिक स्पेक्ट्रोमीटर (एएमएस) ऐसा उपकरण है जो विभिन्न तरह के असामान्य द्रव्यों की जानकारी इकट्ठा करता है। एएमएस टीम के सदस्य चेन हेशेंग ने बताया कि इस उपकरण का एक मुख्य भाग चीन में निर्मित बहुत बड़े आकार का स्थायी चुंबक है। उन्होंने बताया कि डार्क मैटर के दो कणों के टकराव से पॉजिट्रोन पैदा होते हैं, जिन्हें एएमएस की मदद से पहचाना जा सकता है। उन्होंने बताया कि बुधवार को मिले परिणामों के अनुसार एएमएस ने 4 लाख पॉजिट्रोनों का पता लगाया है।
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