25-04-2013, 08:37 AM | #1421 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बीजिंग। चीन की शीर्ष तेल रिफाइनरी कंपनी सिनोपेक ने जैव ईंधन के नए संस्करण के जरिये विमान उड़ानें में सफलता हासिल की है। यह जैव ईंधन पाम तेल तथा रीसाइकिल्ड कुकिंग तेल के जरिये बनाया गया है। चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस का एयरबस ए320 विमान कल सुबह शांगहाए के हांगक्यिो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। कंपनी की ओर से जारी बयान के अनुसार इस विमान ने 85 मिनट की उड़ान सिनोपेक के नए विमान ईंधन के जरिये पूरी की। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इस जैव ईंधन का उत्पादन सिनोपेक जेनहेई रिफाइनरी एंड केमिकल कंपनी ने किया है। विमान उड़ाने वाले पायलट ने कहा कि जैव ईंधन से उतनी की क्षमता मिली, जितनी परंपरागत ईंधन से मिलती है। यह सामान्य उड़ान से अलग नहीं थी। इस प्रकार चीन जैव विमान ईंधन तैयार करने वाला चौथा देश हो गया है। उससे पहले अमेरिका, फ्रांस और फिनलैंड इस प्रकार का ईंधन विकसित कर चुके हैं।
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27-04-2013, 08:49 PM | #1422 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत अब तक के सबसे कठोर परीक्षण पर खरा उतरा
वाशिंगटन। आइंस्टीन ने स्पेसटाइम का परीक्षण पास किया। खगोलविदों ने दावा किया कि पृथ्वी से करीब 7000 प्रकाश-वर्ष दूर एक विचित्र युग्मतारा प्रणाली के अध्ययन ने दिखाया कि अत्यंत कठोर स्थितियों में भी परीक्षण करने पर आइंस्टीन का आम सापेक्षता का सिद्धांत खरा उतरता है। एक नए खोजे गए ‘पल्सर’ और उसके ‘व्हाइट ड्वार्फ’ सहयोगी तारे ने गुरूत्वाकार्षण के सिद्धांतों को अब तक के सबसे कठोर परीक्षण से गुजारा। पल्सर और उसका सहयोगी तारा दोनों हर ढाई घंटे पर एक दूसरे की परिक्रमा पूरी करते हैं।
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30-04-2013, 10:20 PM | #1423 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
शोध ने बदला एक अवधारणा को
भारत में हाल ही में एलर्जी पर किए गए एक बड़े शोध से पता चला है कि बच्चों का एलर्जन जैसे धूल, परागण, डेंड्रफ (बालों में रूसी), पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी से सम्पर्क रहना निहायत जरूरी है क्योंकि ये बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं। शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि अगर यदि ऐसा नहीं हुआ तो बड़ा होकर बच्चा किसी ना किसी एलर्जी से परेशान ही रहेगा। एलर्जी पर शोध करने वाले डा. सैयद अरहम ने कुछ दिनो पहले दी गई अपनी जानकारी में यह बताया था कि बच्चों को अगर बड़े होने पर एलर्जी से बचाए रखना हो तो इनका एलर्जन्स से सम्पर्क रहना बहुत जरूरी है। बचपन में थायमस, टान्सिल्स, पीयर्स पेचेस आदि के सम्पर्क में आने से ये प्रतिरोधक क्षमता बनाते हैं और यदि दो से बारह साल की उम्र में इनके सम्पर्क में नहीं आए, तो इनके लिए प्रतिरोधक क्षमता नहीं बन पाती। अगर बचपन में इन एलर्जन्स के सम्पर्क में नहीं आया गया तो फिर जीवन में जब भी इनके सम्पर्क में आएंगें, सदा एलर्जी होती रहेगी है, क्योंकि प्रतिरोधक क्षमता बनाने वाले ह्यशायमनह्ण, टानसिल आदि की कार्यक्षमता कम होती जाती है। अपने इसी शोध के आधार पर डा. अरहम का यह भी दावा है कि पश्चिमी सभ्यता वाले समृद्ध देशों में व्याप्त गलत अवधारणा की वजह से पिछले पचास सालों में एलर्जी लगभग सौ गुना बढ़ गई है। भारत में तीस बच्चों पर पिछले दो दशकों में नेचुरल इम्यूनोथेरेपी पर किए गए इस शोध में डा. अरहम का कहना है कि बच्चों को सभी प्राकृतिक एलर्जन्स जैसे धूल, परागण, डेंड्रफ, पालतू जानवर, मच्छर, कीड़े, मधुमक्खी आदि के सम्पर्क में रखने पर बच्चों में जो प्रतिरोधक क्षमता बनी, वह गांव में रहने वाले बच्चों की तरह थी। जिन बच्चों पर दो दशकों तक यह शोध किया गया उनमें उनके दो बेटे भी शामिल थे। इस शोध को उन्होंने एलर्जी के कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पेश किया जिनमें एशियन पेसफिक सोसायटी आफ रेसपेरोलाजी (एपीएसआर) शंघाई, नेशनल कान्फ्रेंस आफ इंडियन कालेज आफ एलर्जी, अस्थमा ऐंड एप्लायड इम्यूनोलाजी (आईसीएएआईसीओएन), वर्ल्ड एलर्जी आर्गेनाइजेशन-इंटरनेशनल साइंटिफिक कान्फ्रेंस आदि शामिल हैं। इस साल जून में इटली के मिलान में होने वाले एक सम्मेलन में भी वे दो शोधपत्र प्रस्तुत करने वाले हैं। हालांकि उनके इस सिद्धान्त का समूचे एलर्जी समुदाय ने विरोध भी किया है क्योंकि एलर्जी के लिए किए गए अधिकतर शोध कार्य दवा बनाने वाली कंपनियों द्वारा कराए जाते रहे हैं। यहां तक कि एलर्जी के लिए विश्व के बड़े संगठनों के कार्य एवं कार्यक्रम भी इन दवा निर्माता कंपनियों द्वारा प्रायोजित किए जाते हैं। यही कारण है कि एलर्जी का एक बड़ा सच छिपा रहा, क्योंकि यदि ये सत्य एलर्जी पीड़ित विश्व समुदाय के सामने आ जाए तो बीमारी पर पूरी तरह काबू पाया जा सकता है, लेकिन इससे जो दवा निर्माता कंपनियों का नुकसान होगा और एलर्जी के लिए एलर्जी टेस्ट एवं अप्राकृतिक इम्यूनोथेरेपी कर रहे विश्व समुदाय को जो नुकसान होगा, वह जगजाहिर है। डा. अरहम का कहना है कि समस्त एलर्जी समुदाय द्वारा उनके शोध का विरोध करने के बावजूद उनकी लिखी हुई किताब ह्यरेड बुक आफ एलर्जीह्ण अमेरिका, यूरोप एवं जापान के बाद अब भारत में भी उपलब्ध है। याने कहा जा सकता है कि एक चिकित्सक का शोध समाज के लिए तो हितकर है और उस पर गौर किया जाना चाहिए लेकिन जिस तरह से बड़ी कम्पनियां अपनी बिक्री को कम ना होने देने के लिए इस शोध को नजरअंदाज कर रहीं हैं तो यह चिंताजनक बात है।
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02-05-2013, 11:06 AM | #1424 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
तूफानी हो जाएगी डेटा स्ट्रीमिंग की रफ्तार
सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का भारतीय वैज्ञानिक का प्रयास लंदन। ब्रिटिश वैज्ञानिकों के साथ मिल कर भारतीय वैज्ञानिक डेटा स्ट्रीमिंग की रफ्तार तेज से तेजतर कर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक नई क्रांति लाने के प्रयास में जुटे हैं। हेरियोट-वाट युनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड की ओर से आज जारी एक बयान के अनुसार कोलकाता के सेंट्रल ग्लास ऐंड सेरामिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीजीसीआरआई) के वैज्ञानिक हेरियोट-वाट यूनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड के स्कूल आॅफ इंजीनियरिंग ऐंड फिजिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों के साथ मिल कर एक अभिनव प्रयोग में जुटे हैं जो इंटरनेट की दुनिया में एक नई क्रांति ला सकता है। भारतीय और स्कॉटिश वैज्ञानिक एक ऐसा नायाब फाइबर कंपोनेंट विकसित कर रहे हैं, जो मानव बाल से भी बारीक ग्लास फाइबर से गुजरने वाले डेटा का परिमाण बेतहाशा बढ़ा देगा। भारतीय टीम का नेतृत्व डॉ. मुकुल चंद्रपाल कर रहे हैं। सीजीसीआरआई की यह टीम नायाब आॅप्टिक फाइबर संरचनाओं के फैब्रिकेशन की अपनी विशेषज्ञता प्रदान कर नए फाइबर विकास करेगी, जबकि डा. हेनरी बुकी के नेतृत्व में स्कॉटिश वैज्ञानिक इन फाइबरों से सक्षम किए गए उपकरणों का डिजाइन, परीक्षण एवं निर्माण करेंगे। दोनों देशों की यह संयुक्त टीम ब्रिटेन-भारत शिक्षा एवं अनुसंधान पहल (यूकेआईईआरआई) के तहत एक परियोजना पर काम रही है, जिसे 70 हजार पौंड का अनुदान मिला है। वीडियो स्ट्रीमिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग और अन्य क्षेत्रों में द्रुत विकास के साथ आॅप्टिकल संचार में बैंडविर्थ की मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि दुनियाभर में अभी फाइबर संचार प्रणाली पूरी तरह सिंगल-कोर फाइबर आधारित है, लेकिन अगर प्रौद्योगिकी में कोई नया विकास नहीं हुआ तो जल्द ही इसकी सीमित क्षमता वीडियो स्ट्रीमिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग इत्यादि क्षेत्रों के लिए अवरोध पैदा करने लगेगी। ऐसे में व्यापक स्तर पर अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि ‘मल्टी-कोर’ फाइबर इस समस्या का एक बेहतर हल हो सकता है। स्कॉटिश वैज्ञानिकों के साथ मिल कर भारतीय वैज्ञानिक इसी ‘मल्टी-कोर’ फाइबर के विकास में लगे हैं। हेरियोट-वाट युनिवर्सिटी आॅफ स्कॉटलैंड के स्कूल आॅफ इंजीनियरिंग ऐंड फिजिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे बुकी ने कहा कि वीडियो स्ट्रीमिंग के दबदबे और क्लाउड कंप्यूटिंग के उभार के साथ हम मानक सिंगल-कोर फाइबर की क्षमता के अंतिम छोर पर पहुंच रहे हैं। ढेर सारे लोग मल्टी-कोर आप्टिकल फाइबर को आॅप्टिकल संचार के अगले मंच के रूप में देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संचार के अवयवों के अलावा मल्टी-कोर फाइबर लेजर ऐर्रे डिवाइस का उपयोग एंडोस्कोपी, लेजर सर्जरी, मशीनिंग इत्यादि के लिए मल्टी-फंक्शनल फाइबर प्रोब के रूप में हो सकेगा। इसके साथ ही, इस प्रौद्योगिकी का उपयोग रक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक है।
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02-05-2013, 04:09 PM | #1425 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
गुर्दे को भी खराब करता है सिगरेट का धुंआ
नई दिल्ली। धूम्रपान को मुख्य तौर पर फेफडे और ह्रदय के लिये खतरनाक माना जाता है लेकिन नये अध्ययनों से पता चला है कि सिगरेट का धुंआ आपके गुर्दे को भी बेकार कर सकता है। हाल के एक अध्ययन के अनुसार धूम्रपान नहीं करने वाले पुरूषों की तुलना में धूम्रपान करने वाले पुरूषों के गुर्दे की कार्यक्षमता में एक तिहाई कमी आती है। इस अध्ययन के अनुसार प्रतिदिन एक पैकेट से अधिक सिगरेट का सेवन गुर्दे के गंभीर रूप से खराब होने के खतरे को 51 प्रतिशत तक बढाता है। किशोरों में धूम्रपान उनके गुर्दे को और भी अधिक नुकसान पहुंचाता है। गुर्दा रोग विशेषज्ञ (नेफरोलॉजिस्ट) डा. जितेन्द्र कुमार बताते हैं कि सिगरेट का धुंआ शरीर के अंदर रक्त प्रवाह को बाधित करता है, जिससे गुर्दे का कार्य प्रभावित होता है। धूम्रपान धमनियों को कडा कर देता है और रक्त वाहिकाओं को संकुचित कर देता है जो गुर्दे के रक्त प्रवाह में रूकावट पैदा करता है और उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करता है। एशियन इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइंसेस (एआईएमएस) के प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट डा. जितेन्द्र कुमार के अनुसार धूम्रपान करने पर रक्तचाप भी बढ जाता है। यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप है, तो धूम्रपान और गंभीर बना देता है। उच्च रक्तचाप से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों में गंभीरतम किडनी रोग (एंड स्टेज रीनल डिजीज-ईएसआरडी) का खतरा बढ जाता है जो गुर्दे की बीमारी का अंतिम चरण है। अध्ययनों से पता चला है कि मधुमेह से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों को गुर्दे की बीमारी होने का खतरा दोगुना या तीन गुना हो सकता है। यदि किसी को मधुमेह और गुर्दे की बीमारी दोनों है, तो धूम्रपान गुर्दे के कार्य क्षमता को कम कर सकता है जिसकी परिणति ईएसआरडी में हो सकता है। मधुमेह से पीडित धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों की तुलना में मधुमेह से पीडित धूम्रपान करने वाले लोगों को बहुत जल्द ही गुर्दे की समस्याएं होने का खतरा रहता है और बहुत जल्द ही उनके गुर्दे का कार्य प्रभावित हो सकता है। अध्ययनो से यह भी निष्कर्ष निकला है कि अगर किसी को गुर्दे की समस्या है और वह धूम्रपान करता है तो इसके दुष्प्रभाव का खतरा बढ जाता है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को गुर्दे की बीमारी होती है तो उसे तुरंत धूम्रपान छोड देना चाहिए। विशेषज्ञो का कहना है कि तम्बाकू प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सेवन किशोरो के लिए बडी स्वास्य समस्या है जिसका स्वास्य पर तात्कालिक एवं दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
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06-05-2013, 12:10 AM | #1426 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लोगों का स्वास्थ्य खराब कर रहे हैं विषाक्त रसायन : अध्ययन
वाशिंगटन। भारत में विषाक्त कचरों के ढेर में सीसा और क्रोमियम का स्तर सामान्य से बहुत ज्यादा होने के कारण लोगों में बीमारियां और विकलांगता बढ़ रही हैं और इससे लोगों की जान भी जा रही है। इसके कारण बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ जीवन नहीं बिता पा रहे हैं। ‘विषाक्त कचरा स्थलों के कारण वर्ष 2010 में भारत, इंडोनेशिया और फिलीपीन में बीमारियों का बढ़ता बोझ’ शीर्षक से किए गए अध्ययन में इन तीनों देशों में मौजूद 373 कचरा घरों के निकट रहने वाले लोगों पर आधारित है। इस अध्ययन के परिणाम ‘इंवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव’ में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में कहा गया है कि इससे होने वाली परेशानियां अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मलेरिया और वायु प्रदूषण जिनती ही गंभीर हैं। माउंट सिनाई के इकहान स्कूल आॅफ मेडिसिन में पेडियाट्रिक इंवायरमेंटल हेल्थ फेलो के प्रबंध निदेशक और मुख्य अध्ययनकर्ता केविन चाथम-स्टिफेन ने कहा कि सीसा और हेक्सावेलेंट क्रोमियम सबसे विषाक्त रसायनों में से एक हैं।
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06-05-2013, 12:29 AM | #1427 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सफेद बालों का संभावित इलाज खोजा वैज्ञानिकों ने
लंदन। सफेद बालों को छिपाने के लिए उन्हें काले रंग में रंगना जल्द ही अतीत का किस्सा बन सकता है क्योंकि सफेद बालों को काला करने का संभावित इलाज वैज्ञानिकों ने खोज लिया है। यूरोपीय अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि उम्र बढ़ने के साथ साथ व्यक्तियों के हेयर फॉलिकल में हाइड्रोजन पराक्साइड जमने लगता है जिसके कारण व्यक्ति गहरे तनाव में आ जाता है। हाइड्रोजन पराक्साइड बालों को ब्लीच कर देता है। अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक मात्रा में हाइड्रोजन परॉक्साइड के जमाव की समस्या को वैज्ञानिक एक नए इलाज से दूर कर सकते हैं। इस इलाज में तत्व पीसी केयूएस का उपयोग किया जाता है। अध्ययन के नतीजे ‘द एफएएसईबी’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
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06-05-2013, 06:35 PM | #1428 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
'सेक्*स सुपरबग' से मचा हड़कंप
हवाई में 'सेक्स सुपरबग' के दो मामले सामने आने पर दुनिया भर के डॉक्टरों को मौत की घंटी सुनाई दे रही है। हवाई के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने चिंता जताई है कि यह सुपरबग एड्स फैलाने वाले वायरस एचआईवी से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है। स्वास्थ्य विभाग ने सरकार से इसकी रोकथाम के लिए नया एंटीबॉयटिक ढूंढने को 54 मिलियन डॉलर की राशि की मांग की है। इस सुपरबग पर किसी दवा का असर नहीं होता है। हवाई में सेक्स सुपरबग का पहला मामला मई 2011 में एक युवती में मिला था। सेक्स सुपरबग को गोनोरिया या h041 के नाम से भी जाना जाता है और इसकी खोज जापान में 2011 में की गई थी। इसके बाद यह हवाई में फैला और कैलीफोर्निया और नॉर्वे में भी अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं।
हवाई हेल्थ डिपार्टमेंट के पीटर विचर का कहना है कि पूरे हवाई में फिजिशियन और स्वास्थ्य सेवा देने वालों को इस सुपरबग के बारे में एडवाइजरी जारी कर दी गई है। सभी से कहा गया है कि इस सुपरबग से विशेष तौर पर सावधान रहें। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इसे एचआईवी वायरस से कम न समझा जाए। गोनोरिया या प्रमेह उत्तरी अमेरिका में दूसरा सबसे तेजी से फैलने वाला इंफेक्शन है। यह एचआईवी से ज्यादा खतरनाक इस मायने में है कि इसके बैक्टीरिया ज्यादा आक्रामक होते हैं। यह तेजी से फैलते हैं और कम समय में ही अपना असर दिखाते हैं। जबकि एचआईवी से संक्रमित मरीज के शरीर को कमजोर होने में ज्यादा समय लगता है। |
06-05-2013, 06:36 PM | #1429 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
एड्स और इससे संबंधित कारणों से दुनिया भर में अब तक करीब 30 मिलियन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन गोनोरिया के बैक्टीरिया के इससे भी घातक होने की आशंका जताई जा रही है। डॉक्टरों का मानना है कि गोनोरिया से संक्रमित होने से सेप्टिक शॉक हो सकता है और कुछ ही दिनों के अंदर इंसान की मौत भी हो सकती है। डॉक्टरों ने इसके बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने की जरूरत बताई है। हालांकि अभी तक HO41 की वजह से किसी की मौत के मामले का पता नहीं चला है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका जानकारी और संक्रमित होने से बचना है। इससे बचने के लिए लोगों को हमेशा सेफ सेक्स करना चाहिए। हवाई में किसी को भी नए संबंध बनाने से पहले अपने पार्टनर का टेस्ट कराने की सलाह दी गई है। |
06-05-2013, 06:36 PM | #1430 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
गोनोरिया काफी खामोशी से फैलने वाला वायरस है। इससे संक्रमित कई लोगों को भी इसके बारे में पता नहीं होता। इन्ही खूबियों की वजह से इसकी रोकथाम की खोज करना काफी महत्वपूर्ण हो गया है। इस रोग के लक्षण हैं कि इससे पेशाब करने में दर्द या जलन होती है। यह महिला और पुरुषों दोनों को हो सकता है। इसका इलाज न करने पर दूसरी कई बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा गोनोरिया के बाद एचआईवी वायरस से संक्रमित होने का खतरा भी बढ़ जाता है क्योंकि इस वायरस के लिए संक्रमित और कमजोर शरीर में पनपना और बढ़ना काफी आसान हो जाता है। गोनोरिया 15 से 24 साल के युवाओं में होने की आशंका ज्यादा रहती है। ब्रिटेन में नेशनल रेफरेंस लैबोरेटरी फॉर गोनोरिया के हेड प्रोफेसर कैथी आइसन का कहना है कि अगर जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो 2015 तक गोनोरिया का इलाज असंभव हो जाएगा।
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