27-05-2013, 10:57 PM | #1451 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आसानी से ढूंढ लेते हैं बचने का उपाय न्यूयॉर्क। अमरीकी शोधकर्ताओं के दल को यूरोप में कॉकरोचों की ऐसी किस्म मिली है जो उनके लिए तैयार कीटनाशक को चखते ही पहचान लेते हैं। जैव विकास के परिणाम स्वरूप इन कॉकरोचों की स्वाद ग्रंथि परिवर्तित हो गई है। कीटनाशक गोलियों पर चढ़ाई गई चीनी की परत इन्हें मीठी के बजाय कड़वी लगती है। नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक दल ने कॉकरोचों को जैम और पीनट बटर में से एक को चुनने का विकल्प दिया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इनकी स्वाद ग्रंथियों का विश्लेषण किया। शोधकर्ताओं के इसी दल ने बीस साल पहले किए गए अपने अध्ययन में पाया था कि कॉकरोचों के लिए तैयार कुछ कीटनाशक उन पर असर नहीं कर रहे हैं क्योंकि कॉकरोच कीटनाशक मिलाकर रखी गई गोलियों को खाते ही नहीं थे। डॉक्टर कॉबी शाल ने साइंस जर्नल में इस शोध के बारे में समझाते हुए कहा है कि इस नए अध्ययन से कॉकरोचों के इस व्यवहार के पीछे की स्रायविक प्रक्रिया सामने आ चुकी है। चालाक हो गए कॉकरोच इस प्रयोग के पहले चरण में वैज्ञानिकों ने भूखे कॉकरोचों को पीनट बटर और ग्लूकोज वाला जैम खाने को दिया। जैम में ग्लूकोज की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जबकि पीनट बटर में काफी कम ग्लूकोज होता है। डॉक्टर कॉबी कहते हैं,आप देख सकते हैं कि ये कॉकरोच जेली खाते ही झटका खा कर पीछे हट जाते हैं लेकिन पीनट बटर पर वे टूट पड़ते हैं। वैज्ञानिकों ने कॉकरोचों को स्थिर कर दिया और उनकी स्वाद कोशिकाओं का अध्ययन करने के लिए उन्हें पतल-पतले तारों से जोड़ दिया। ये स्वाद कोशिकाएं कॉकरोचों के मुंह पर स्थित नन्हें बालों में जमे स्वाद का अनुभव करती हैं। डॉक्टर शाल बताते हैं कि ग्लूकोज चखने पर कॉकरोचों की उन कोशिकाओं में भी प्रतिक्रिया होती है जो मीठा खाने पर सक्रिय होती है लेकिन कड़वे स्वाद की ग्रंथियां इन्हें बीच में ही रोक देते हैं जिसकी वजह से आखिर में इसका स्वाद कड़वा प्रतीत होता है। इन कॉकरोचों के व्यवहार को स्प्ष्ट करते हुए डॉक्टर शाल कहते हैं कि ये कॉकरोच ग्लूकोज खाने पर वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा कि छोटे बच्चे पालक की सब्जी खाने पर करते हैं। ग्लूकोज चखने पर ये कॉकरोच अपना सिर झटकते हैं तथा उसे और चखने से मना कर देते हैं। फायदा उठाते हैं हमारा डॉक्टर शाल कहते हैं कि मनुष्य और कॉकरोचों के बीच चल रही ऐतिहासिक होड़ में यह एक नया अध्याय है। हम कॉकरोचों को मिटाने के लिए कीटनाशक बनाते जा रहे हैं और कॉकरोच इन कीटनाशकों से बचने के उपाय करते जा रहे हैं। डॉक्टर शाल कहते हैं कि कॉकरोचों का मैं बहुत सम्मान करता हूं। वो हम पर निर्भर हैं लेकिन वो हमारा फायदा उठाना भी जानते हैं।
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30-05-2013, 03:24 PM | #1452 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
स्पैस्टिसिटी को काबू में कर सकता है व्यायाम
मांसपेशियों में विकृति पैदा कर अक्षम बना देती है यह बीमारी नई दिल्ली। मांसपेशियों में विकृति की समस्या स्पैस्टिसिटी कई बार इतनी बढ़ जाती है कि व्यक्ति अपने रोजमर्रा के काम करने में भी अक्षम हो जाता है, लेकिन दूसरों पर निर्भर बना देने वाली यह समस्या नियमित व्यायाम से नियंत्रित की जा सकती है। नोयडा स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख एवं सीनियर कन्सल्टेंट डॉ. संजय के सक्सेना ने बताया कि मस्तिष्क आघात की वजह से होने वाली समस्या स्पैस्टिसिटी वास्तव में मांसपेशियों में विकृति की समस्या है, जिसमें मांसपेशियां कड़ी हो जाती हैं और उन पर नियंत्रण की क्षमता भी क्षीण या खत्म हो जाती है। कई बार यह समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि व्यक्ति एक तरह से अक्षम हो जाता है। सर गंगाराम अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. पी. के. सेठी ने बताया कि यह समस्या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र यानी मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड से मांसपेशियों को भेजे जाने वाले संकेतों के असंतुलन की वजह से होती है। जो लोग सेरिब्रल पाल्सी, मस्तिष्क में चोट, आघात, मल्टीपल स्क्लेरोसिस या स्पाइनल कॉर्ड में चोट से पीड़ित होते हैं, अक्सर उन लोगों में ही केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मांसपेशियों को भेजे जाने वाले संकेतों में असंतुलन पाया जाता है। डॉ. सक्सेना के अनुसार, मांसपेशियों के कड़े होने की वजह से दर्द भी होता है, लेकिन यह दर्द कितना तेज है यह स्पैस्टिसिटी के स्तर पर निर्भर करता है। खासकर पैरों की मांसपेशियों में स्पैस्टिीसिटी होने पर बहुत तेज दर्द होता है। इस बीमारी का इलाज भी इसके स्तर पर ही निर्भर करता है। डॉ. सक्सेना के मुताबिक, मस्तिष्क की कोशिकाओं को आॅक्सीजन तथा रक्त से अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति बहुत जरूरी है। यह काम रक्त वाहिनियां करती हैं। आघात की वजह से यह आपूर्ति बाधित हो जाती है। अगर नियमित व्यायाम किया जाए, तो रक्त वाहिनियों की सक्रियता बरकरार रहती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं को उनके लिए आवश्यक तत्वों एवं आक्सीजन की कमी नहीं हो पाती। डॉ. सेठी ने कहा कि मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं अगर आघात के चलते आक्सीजन और पोषक तत्वों के अभाव में मर जाती हैं तो उस भाग का सम्बंधित मांसपेशियों और उनकी गतिविधियों पर से नियंत्रण खो जाता है। ये गतिविधियां चलने फिरने से ले कर बोलने तक कुछ भी हो सकती हैं। नियमित व्यायाम भले ही लोगों को महत्वपूर्ण न महसूस हो, लेकिन इसकी वजह से रक्त की आपूर्ति को निर्बाध बनाए रखने में बहुत मदद मिलती है। डा. सेठी ने बताया कि कई बार जोड़ों के दर्द या उनमें कड़ापन महसूस होता है जिसका कारण अकसर थकान को माना जाता है। पर इसका कारण स्पैस्टिसिटी भी हो सकता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो जोड़ों तक पहुंच जाता है। इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अनूप कोहली का कहना है कि स्पैस्टिसिटी के कारण मरीज के लिए चलना-फिरना, हाव-भाव जाहिर करना और संतुलन आदि में समस्या होने लगती है, क्योंकि मस्तिष्क वांछित मांसपेशियों तक संकेत भेजने की अपनी क्षमता खो देता है। इससे शरीर के एक अंग या अधिक अंग या शरीर के एक तरफ के हिस्से की क्षमता पर असर पड़ता है। आघात के ज्यादातर मरीज स्पैस्टिसिटी की समस्या की गिरफ्त में नहीं आते, लेकिन जो आते हैं, उनके लिए अक्सर जीवन जीना दूभर हो जाता है। व्यायाम ऐसे मरीजों के लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है।
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04-06-2013, 11:12 PM | #1453 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
तम्बाकू है सिर, गर्दन में कैंसर बढ़ने की वजह
अहमदाबाद। गुजरात में हर साल सामने आने वाले कैंसर के 45 हजार नए मामलों में 35 प्रतिशत मामले सिर और गर्दन के कैंसर के होते हैं। इसका मुख्य कारण तम्बाकू का बढ़ता सेवन है। यह आंकड़ा गुजरात कैंसर अनुसंधान संस्थान (जीसीआरआई) का है। जीसीआरआई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. परिमल जीवराजनी ने कहा कि राज्य में हर साल सामने आने वाले कैंसर के मामलों में अनुमानित तौर पर 30-35 प्रतिशत मामले सिर और गर्दन के कैंसर के होते हैं। उन्होंने राज्य में पुरुषों में बढ़ते कैंसर मामलों पर चिंता जताई और कहा कि राज्य में 50 प्रतिशत से अधिक पुरुषों में इस कैंसर के लक्षण तम्बाकू के बढ़ते सेवन की वजह से हैं। जीसीआरआई ने अहमदाबाद कैंसर रजिस्ट्री का उल्लेख किया। इसके अनुसार अहमदाबाद जिले में शहरी महिलाओं के मुकाबले ग्रामीण महिलाएं सिर और गर्दन के कैंसर की अधिक शिकार हो रही हैं। डॉ. जीवराजनी ने कहा कि अहमदाबाद में नगरीय क्षेत्रों में 18 प्रतिशत महिलाओं को कैंसर की आशंका है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत तक है। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद जिले में नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में 55 प्रतिश पुरुष सिर और गर्दन के कैंसर के मामलों से ग्रस्त हैं। हेल्थ केयर ग्लोबल कैंसर सेंटर के वरिष्ठ परामर्शदाता एवं निदेशक डॉ. राजेंद्र तोपरानी ने कहा कि आजकल युवा पीढ़ी बहुत छोटी उम्र में तम्बाकू की आदी हो रही है, युवा आबादी में भी गर्दन और कैंसर के लक्षणों में वृद्धि हो रही है। गांधी नगर स्थित अपोलो अस्पताल के कैंसर सर्जन डॉ. विशाल चोस्की ने कहा कि कुल मिलाकार सिर और गर्दन के कैंसर के मामलों में 90 प्रतिशत तम्बाकू से सम्बंधित हैं, जो धुंआरहित तम्बाकू चबाने, नसवार लेने और अन्य कारणों की वजह से होता है। गुजरात में करीब 60 प्रतिशत पुरुष तम्बाकू के आदी हैं, जबकि तम्बाकू की आदी महिलाओं का प्रतिशत 8.40 है। इस तरह के कैंसर के लक्षणों में मुंह में छाले, गले में सूजन, आवाज में बदलाव और खाने में कठिनाई तथा अन्य समस्याएं शामिल हैं। डॉ. तोपरानी ने कहा कि भारत में आम तौर पर 70 प्रतिशत रोगी डॉक्टरों के पास तब पहुंचते हैं, जब कैंसर काफी बढ़ चुका होता है, जबकि पश्चिमी देशों में मरीज काफी शुरुआती चरण में ही डॉक्टरों के पास पहुंच जाते हैं। डॉ. तोपरानी ने कहा कि आॅपरेशन, रेडियोथेरापी और कीमोथेरापी से इस तरह के कैंसर का इलाज हो सकता है, और यदि यहां मरीज डॉक्टरों के पास शुरुआती अवस्था में ही पहुंच जाए, तो उपचार की सफलता का प्रतिशत काफी हो सकता है।
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05-06-2013, 01:03 AM | #1454 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सुअरों में रोग के लिए जिम्मेदार विषाणु का पहली बार भारत में पता चला
एजल। मिजोरम और शायद देश में भी पहली बार छोटे सुअरों के श्वसन से जुड़े जानलेवा रोग के लिए जिम्मेदार विषाणुओं का पता चला है। इस रोग से जुड़े नमूने जांच के लिए प्रयोगशालाओं में भेजे गए थे। पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ एलबी साइलो ने बताया कि रोगग्रस्त सुअरों के नमूने की मिजोरम स्थित सेलीश स्थित वेटनरी कॉलेज और मेघालय के बोरापानी स्थित आईसीएआर रिसर्च काम्पलेक्स में जांच की गई, जहां ‘आर्टेवाइरस’ का पता चला। यह विषाणु पोरसीन रिप्रोडक्टिव एंड रेसपिरेटरी सिंड्रोम (पीआरएसएस) रोग का वाहक है। गौरतलब है कि पीआरआरएस का इससे पहले राज्य में और देश में कभी पता नहीं चला था, लेकिन यह कुछ एशियाई देशों, पड़ोसी देश म्यामां में मौजूद है। म्यामां के साथ राज्य की 404 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा लगी हुई है।
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05-06-2013, 01:04 AM | #1455 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पूर्वोत्तर के छात्रों ने डिजाइन किया नए तरीके का सोलर हीटर
ईटानगर। नॉर्थ ईस्ट रिजनल इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (पूर्वोत्तर क्षेत्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान) के तीन छात्रों ने मिलकर एक नए तरीके का सोलर हीटर बनाया है जिसे घरेलू और औद्योगिक दोनों ही उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है। इंजीनियरिंग (मेकेनिकल) के छात्र सुमन पाओ, विकास गौतम और जुवेल त्रिपुरा ने अपने सोलर हीटर के बारे में बताया कि इसमें एक पैराबोलिक रिफ्लेक्टर है जो पानी से भरे ड्रम के साथ संयोजन करते हुए काम करता है। सोलर हीटर की कार्यप्रणाली का विवरण देते हुए सुमन पाओ ने बताया कि सोलर हीटर का एलुमिनियम डिश सूर्य की ऊर्जा को ढक्कन लगे ड्रम में परावर्तित करता है, जिसके ऊपर भोजन बनाया जा सकता है। बारिश के दिनों में ड्रम का उपयोग बारिश का पानी जमा करने में भी किया जा सकता है।
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06-06-2013, 06:37 PM | #1456 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
भारतीय कंपनियों में कर्मचारियों के छोड़ने की दर ऊंची
नई दिल्ली। एक रपट के अनुसार अनेक भारतीय कंपनियों को प्रतिभाओं को आकर्षित करने तथा अपने यहां बनाये रखने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है और इनमें नौकरी छोड़ने की दर 14 प्रतिशत है जो वैश्विक औसत से उंची है। वैश्विक पेशेवर सेवा फर्म टावर्स वाटसन ने एक रपट में यह निष्कर्ष निकाला है। रपट के अनुसार, भारत में नौकरी छोडने यानी एट्रीशन की दर 14 प्रतिशत है जो कि वैश्विक तथा एशिया प्रशांत क्षेत्र की दर से कुछ अधिक है। रपट के अनुसार वैश्विक स्तर पर यह दर 11.20 प्रतिशत तथा एशिया प्रशांत देशों में 13.81 प्रतिशत है। रपट में कहा गया है कि देश की 92 प्रतिशत फर्मों का कहना है कि उन्हें विशेष कौशल वाली प्रतिभाओं को आकर्षित करने में परेशानी हो रही हैं वहीं 75 प्रतिशत संगठनों का कहना है कि उन्हें अच्छा काम करने वाले कर्मचारियों को अपने यहां बनाये रखने में दिक्कत हो रही है। इसके अनुसार भारतीय कर्मचारियों के लिए रोजगार सुरक्षा तथा करियर में आगे बढने के अवसर दो प्रमुख प्राथमिकताएं हैं।
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06-06-2013, 06:38 PM | #1457 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
गर्भाशय कैंसर की स्क्रीनिंग का किफायती तरीका ईजाद
मुंबई। देश के प्रमुख कैंसर उपचार संस्थान टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) ने घोषणा की कि संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं ने सर्विकल (गर्भाशय) कैंसर की स्क्रीनिंग का किफायती तरीका खोजा है। भारतीय महिलाओं में सर्विकल कैंसर के काफी मामले देखने को मिलते हैं। संस्थान के अनुसार इस प्रक्रिया में सिरके का इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय महिलाओं में गर्भाशय कैंसर के हर साल करीब 1,42,000 नये मामले सामने आते हैं और संस्थान के प्रवक्ता के अनुसार इस बीमारी से हर साल 77 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। प्रवक्ता ने कहा, ‘दुनिया में सर्विकल कैंसर के एक तिहाई मामले भारत में हैं। यह बीमारी ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के संक्रमण से होती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह बीमारी धीरे धीरे विकसित होती है और अधिकतर महिलाओं को इसके बाद के चरणों में पहुंचने तक इसके लक्षण का पता नहीं चलता। इस स्तर पर अकसर उपचार विफल होता है। अगर बीमारी का शुरूआती स्तर पर पता लगा लिया जाए और समय पर इलाज कर लिया जाए तो इसकी रोकथाम की जा सकती है।’ प्रवक्ता के अनुसार स्क्रीनिंग के लिए प्रचलित पैप स्मीयर टेस्ट को साजो-सामान संबंधी दिक्कतों के कारण सभी के लिए लागू कर पाना कठिन है। उन्होंने कहा कि 4 प्रतिशत एसीटिक एसिड के इस्तेमाल के बाद गर्भाशय का देखकर निरीक्षण करने का (वीआईए स्क्रीनिंग) तरीका किफायती है। अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययन में शामिल महिलाओं को दो समूहों में बांटा। 75 हजार महिलाओं को ‘स्क्रीनिंग समूह’ को आवंटित किया गया वहीं अन्य 75 हजार महिलाओं को ‘नियंत्रण समूह’ को आवंटित किया गया। स्क्रीनिंग समूह की महिलाओं को एक कैंसर शिक्षण कार्यक्रम के लिए बुलाकर उनका वीआईए परीक्षण कराया गया। हर दो साल में इस समूह को चार दौर में स्क्रीनिंग से गुजारा गया और कैंसर के बारे में जानकारी दी गयी। दूसरे समूह की महिलाओं की वीआईए जांच नहीं की गयी लेकिन उन्हें कैंसर के बारे में जानकारी दी गयी। उन्हें सर्विकल कैंसर का किसी तरह के लक्षण का संदेह होने पर टीएमसी में रिपोर्ट करने को कहा गया। टीएमसी के मुताबिक नतीजों से पता चला कि वीआईए स्क्रीनिंग सुरक्षित, व्यावहारिक और भारतीय महिलाओं के लिहाज से स्वीकार्य तरीका है।
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13-06-2013, 12:40 AM | #1458 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पुरूषों को 43 साल की उम्र में जाकर आती है अक्ल : अध्ययन
लंदन। महिलाएं अक्सर पुरूषों पर ‘बचकानेपन’ का आरोप लगाती रहती हैं लेकिन अब वैज्ञानिक अध्ययनों में यह बात सही साबित हो गयी है । ब्रिटेन में किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पुरूषों को 43 साल की उम्र में जाकर अक्ल आती है जबकि महिलाएं 11 साल पहले ही समझदार हो चुकी होती हैं । निकलोडियन यूके द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि महिलाएं 32 साल की उम्र में ही परिपक्व हो जाती हैं। अध्ययन में प्रत्येक दस में से आठ महिलाओं का मानना था कि पुरूष कभी भी बचकानी हरकतें करना बंद नहीं करते और महिलाओं को तड़के उठकर फास्ट फूड खाना और वीडियो गेम खेलने की उनकी हरकतें सर्वाधिक बचकानी लगती हैं । द डेली एक्सप्रेस में यह खबर छपी है । लड़ाई के बाद मौन धारण करना, ट्रैफिक लाइट पर गाड़ी दौड़ाना, खिचड़ी तक ठीक से नहीं पका पाना, भद्दे शब्दों पर खीं खीं करके हंसना ये पुरूषों की कुछ ऐसी आदतें हैं जो महिलाओं की दृष्टि में पुरूषों के बचकानेपन को दर्शाती हैं । ऐसे पुरूष जिनकी मांए अभी तक भी उनके कपड़े धोती हैं और खाना पकाती हैं वे परिपवक्ता के चार्ट में सबसे नीचे हैं। अध्ययन में करीब 46 फीसदी महिलाएं ऐसे संबंध में रह चुकी थीं जहां उन्हें अपने साथी का ध्यान एक मां की तरह रखना पड़ता था।
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14-06-2013, 10:01 AM | #1459 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पैदल काम पर जाएं, तो बेहतर हो सकती है दिल की सेहत
एक नए अध्ययन ने भारतीयों को दी सलाह लंदन। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जो भारतीय पैदल चलकर या साइकिल चलाकर काम पर जाते हैं, उनमें दिल की बीमारियों का खतरा काफी कम होता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि पैदल चलने या साइकिल चलाने से उनमें मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप की आशंका काफी कम हो जाती हैं। लंदन के इंपीरियल कॉलेज और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आॅफ इंडिया के शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन के नतीजों में पाया गया कि शारीरिक रूप से सक्रिय रखने वाले परिवहन माध्यम अपनाने से कई दीर्घकालिक बीमारियों के खतरे कम किए जा सकते हैं। भारत और अन्य कम व मध्य आय वाले देशों में अगले दो दशकों में मधुमेह और दिल की बीमारियों के नाटकीय ढंग से बढ़ने की आशंका है। पीएलओएस मेडिसिन नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शारीरिक सक्रियता और स्वास्थ्य सूचनाओं का विश्लेषण किया गया। ये सूचनाएं वर्ष 2005 से 2007 के बीच भारतीय प्रवासी अध्ययन (आईएमएस) में शामिल चार हजार प्रतिभागियों से जुटाई गई थीं। आईएमएस का यह अध्ययन भारत के चार शहरों के कारखानों में किया गया था। इनमें लखनऊ की हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, नागपुर की इंडोरामा सिंथैटिक्स लिमिटेड, हैदराबाद की भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और बेंगलूरू की हिंदुस्तान मशीन टूल्स लिमिटेड को शामिल किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण इलाकों के 68.3 प्रतिशत लोग काम पर जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करते हैं और 11.9 प्रतिशत पैदल काम पर जाते हैं। शहरों और कस्बों में साइकिल से काम पर जाने वालों की संख्या 15.9 प्रतिशत है और पैदल जाने वालों की संख्या 12.5 प्रतिशत है। किसी निजी वाहन से काम पर जाने वाले लोगों में आधे लोग और सार्वजनिक वाहन लेने वालों में से 38 प्रतिशत लोगों का वजन अधिक पाया गया, जबकि पैदल या साइकिल से काम पर जाने वालों में अधिक वजन वाले लोग मात्र एक चौथाई ही थे। अध्ययन में उच्च रक्तचाप और मधुमेह के लिए भी ऐसे ही प्रारूप दिखाई दिए। अध्ययन का नेतृत्व करने वाले क्रिस्टोफर मिलेट ने कहा कि यह अध्ययन दर्शाता है कि चलना और साइकिल चलाना सिर्फ पर्यावरण के लिए ही अच्छा नहीं है बल्कि यह व्यक्ति की सेहत के लिए भी अच्छा है। इस तरह काम पर जाते हुए लोगों का व्यायाम हो जाता है, इसलिए उन्हें जिम में जाने के लिए अलग से वक्त नहीं निकालना पड़ता। उन्होंने कहा कि भारतीय शहरों में पैदल चलने व साइकिल चलाने के लिए सुविधा और सुरक्षा को सुधारने की भी जरूरत है।
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14-06-2013, 10:02 AM | #1460 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
जरूरी है जिंदगी के लिए
चाय, इंटरनेट, एक अच्छा दोस्त और प्यार की झप्पी लंदन। रोजाना गर्मागर्म चाय की प्याली, हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन, एक भरोसेमंद दोस्त और प्यार की झप्पी ब्रिटिश लोगों की नजर में आधुनिक जिंदगी की ये कुछ ‘न्यूनतम आवश्यकताएं’ हैं, जिनके बिना आज के दौर में जिंदगी जीना मुहाल है। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 20 ऐसी शीर्ष चीजों को शामिल किया गया, जो ब्रिटेनवासियों की आज की आधुनिक जीवनशैली के लिए जरूरी हैं और इसमें 18 से 65 साल के दो हजार वयस्कों ने भाग लिया। इस सूची में प्रतिभागियों ने जिन 20 चीजों को शीर्ष वरीयता दी, उनमें इंटरनेट कनेक्शन, टेलीविजन और प्यार भरी जादू की झप्पी को चुना गया है। महिलाओं ने शीर्ष वरीयता जादू की झप्पी को दी है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह जिंदगी जीने की सबसे पहली जरूरत है, लेकिन दूसरी ओर पुरुषों ने टेलीविजन को सबसे बड़ी जरूरत बताया है। मेट्रो डाट सीओ डाट यूके में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस सूची में एक भरोसेमंद दोस्त, रोजाना शॉवर और सेंट्रल हीटिंग को भी शामिल किया गया है। कुछ लोगों ने कहा है कि उनका चाय के बिना गुजारा नहीं हो सकता। इसके अलावा कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें हर समय यह सुनने की आदत है ‘आई लव यू।’ इसके अलावा ब्रिटेनवासी जिन चीजों के बिना जिंदगी को अधूरा पाते हैं, उनमें एक मजबूत वैवाहिक सम्बंध, कार, चश्मा, काफी, चॉकलेट तथा वाइन को भी प्रमुख स्थान दिया गया है। सर्वे में पाया गया है कि ब्रिटिश लोगों को भरपूर अंग्रेजी नाश्ता, साल में एक विदेशी टूर तथा बीयर और आईफोन जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत लगते हैं। डिज्नी ने यह सर्वेक्षण ‘द जंगल बुक’ के ब्लू रे संस्करण को रिलीज किए जाने से पूर्व करवाया।
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