20-09-2012, 09:37 AM | #14781 |
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ग्वालियर। शादी का झांसा देकर विकलांग युवती का एक वर्ष तक शारीरिक शोषण करने के आरोप में दोषी पाए जाने पर विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) में तैनात असिस्टेंट कमांडेंट संजय कुमावत को आज यहां अदालत ने आजीवन कारावास और दस हजार रूपए के जुर्माने की सजा सुनायी। द्वितीय अपर जिला सत्र न्यायाधीश रूचिर शर्मा ने कुमावत को सजा सुनाते हुए उसे जेल भेजने के निर्देश दिए। अभियोजन के अनुसार स्थानीय निवासी एक विकलांग युवती प्रशासनिक परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी। तभी वह स्थानीय विनय नगर निवासी असिस्टेंट कमांडेंट संजय कुमावत के संपर्क में आयी और उनके बीच घनिष्ठता हो गयी। संजय ने विवाह की बात कहकर उसके साथ पहली बार ।4 अप्रैल 2005 को शारीरिक संबंध बनाए। उसका यह क्रम बरकरार रहा। युवती ने उससे जल्दी विवाह के लिए कहा तो उसने अपने पद का रौब दिखाकर चुप रहने के लिए कहा और ।। मार्च 2006 को फिर से शारीरिक संबंध बनाए। शारीरिक शोषण से तंग आकर युवती ने इसके बाद यहां के पडाव थाने में संजय के खिलाफ बलात्कार और धमकी देने की रिपोर्ट दर्ज करायी। जांच पडताल के दौरान युवती के वस्त्रों पर स्पर्म के निशान मिले ् जो संजय के स्पर्म से मेल खाते थे। इसी तरह उसने अपनी ड्यूटी भोपाल में विशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा में होने का हवाला देते अदालत के समक्ष कहा कि घटनाओं की तिथि के समय वह शहर में नहीं था, लेकिन मोबाइल फोन की कॉल डिटेल्स के आधार पर साबित हुआ कि उन तिथियों में वह ग्वालियर में ही था।
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20-09-2012, 09:37 AM | #14782 |
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अपीलीय अदालत ने गूगल की किताब स्कैनिंग से जुड़े मामले को टाला
न्यूयार्क। अपीलीय अदाल ने गूगल की किताबों की स्कैनिंग से जुड़ी परियोजना से संबद्ध लंबे समय से चल रहे मामले पर सुनवाई टाल दी है जिससे इस मामले में कापीराइट पर पूरी सुनवाई में देरी हो सकती है। आथर्स गिल्ड और एसोसिएशन आफ अमेरिकन पब्लिशर्स ने 2005 में एक मामला दर्ज किया जिसमें गूगल पर लाखों किताबों को आॅनलाइन उपलब्ध कराने की कोशिश के मामले में कापीराइट उल्लंघन का आरोप लगाया गया। हालांकि गूगल की दलील है कि गूगल बुक्स परियोजना को कापीराइट कानून के तहत उचित उपयोग के तौर पर लिया जाना चाहिए क्योंकि आनलाइन स्वरूप किताबों का विकल्प नहीं है।
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20-09-2012, 09:39 AM | #14783 |
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देश के चार महानगरों में 68 प्रतिशत डिजिटलीकरण संपन्न
नई दिल्ली। देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकता और चेन्नई में केबल टीवी का 68 प्रतिशत डिजिटलीकरण हो चुका है । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा हाल में की गई एक समीक्षा के दौरान यह बात सामने आयी। मंत्रालय के मुताबिक केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमन कानून में किये गये संशोधन के मुताबिक इन चारो शहरों में केबल टीवी नेटवर्क को 31 अक्तूबर तक पूरी तरह डिजीटलीकृत कराया जाना है और इस तरह अब इस काम के लिए केवल छह हफ्ते का समय बच गया है जबकि देश के बाकी हिस्से में यह काम दिसम्बर 2014 तक पूरा होना है । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यहां एक विज्ञप्ति में बताया कि केबल टीवी नेटवर्क को डिजीटल प्रणाली में बदलने के काम की मंत्रालय लगातार समीक्षा कर रहा है । इसके लिए केबल टीवी वाले घरों में सेट टाप बाक्स लगाना एक पूर्व शर्त है । विज्ञप्ति के मुताबिक चार महानगरों में टेलीविजन की पहुंच तकरीबन 80 फीसदी घरों में है और 25 लाख 59 हजार डीटीएच उपभोक्ता हैं जबकि 46 लाख 71 हजार सेट टाप बाक्स पहले ही लगाये जा चुके हैं । इन चारो महानगरों में कुल 68 लाख 40 हजार केबल उपभोक्ता हैं जिन्हें सेट टाप बाक्स लगाना है । देश के चार महानगरों में डिजिटलीकरण का प्रतिशत 68 है । शहरों के हिसाब से अगर आकड़े देखे जायें तो मुंबई में यह सबसे ज्यादा 95 प्रतिशत है, जबकि कोलकता में यह 67 प्रतिशत, दिल्ली में 53 प्रतिशत और चेन्नई में 49 प्रतिशत है ।
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20-09-2012, 09:39 AM | #14784 |
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जब सरकारें सो रहीं हैं, तब आगे बढ़ रहा है देश
नई दिल्ली। प्रमुख लेखक गुरुचरण दास का कहना है कि जहां एक ओर सरकार की नाकामी को लेकर लोगों में आक्रोश है वहीं दूसरी ओर देश में प्रगति भी हो रही है। पेंग्विन बुक्स द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘इंडिया ग्रोज एट नाइट’ में उन्होंने बताया है कि उदारवादी नीतियोें को अपनाने के 20 साल बाद भी भारत को क्यों मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अपनी इस किताब में यह भी बताया कि किस तरह एक आम भारतीय इन चीजों को बेहतर बनाने के लिये काम कर सकता है। प्र्रोक्टर एंड गैम्बल इंडिया के सी ई ओ रह चुके दास का कहना है, ‘भारत हमेशा से एक मजबूत समाज, पर एक कमजोर देश रहा है। उन्होंने कहा ‘इंडिया ग्रोज एट नाइट’ का मतलब है कि भारत रात को प्रगति कर रहा है यानी जब सरकारें सो रहीं होती हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत दुनिया भर की सबसे तेजी से उभरने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आया है। उनका कहना है कि अब समय आ गया है जब देश को दिन में भी प्रगति करनी चाहिये। दास ने कहा, ‘1980 के दशक में विशेषज्ञों का अनुमान था कि फरीदाबाद शहर भारत की सफलता और प्रगति का पर्याय बनेगा और इसलिये वहां निवेश किया गया। पर अब इसके उलट तीन दशक बाद गुड़गांव देश की प्रगति का चेहरा बना और फरीदाबाद एक अविकसित शहर बन कर रहा गया।’ भारत चीन के मसले पर उन्होंने कहा कि जहां एक ओर चीन को अपनी राजनीति सुधारनी हैे वहीं दूसरी ओर भारत को अपना शासन ठीक करना है। दास का मानना है कि आज आगे बढ़ने के लिये एक और औद्योगिक कां्रति की जरूरत है।
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20-09-2012, 09:40 AM | #14785 |
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गैस रिसाव से पीडित अजन्में शिशुओं की पीडा को कौन सुनेगा - लेखिका
भोपाल। नई पीढी की लेखिका डा. स्वाति तिवारी ने बड़ी संजीदगी से विश्व की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना ‘भोपाल गैस रिसन त्रासदी’ को लेकर उन महिलाओं के मानवाधिकार का मसला उठाया है, जिनके बच्चों ने गर्भ में ही इस हादसे की वजह से दम तोड़ दिया था । भोपाल गैस रिसन त्रासदी के संदर्भ में स्त्री पीड़ा का दर्द उकेरती डा. स्वाति की नई किताब ‘सवाल आज भी जिन्दा है’ में उन्होंने उन 436 माताओं के मानवाधिकार का सवाल उठाया है, जिनका इस हादसे की वजह से गर्भपात हो गया था जबकि 52 गर्भवती महिलाओं के बच्चे मरे हुए पैदा हुए थे। वह कहती हैं कि गैस त्रासदी के अधिकांश पहलुओं पर विश्व का ध्यान गया, लेकिन इन भावी माताओं के मानव अधिकारों का क्या होगा, जिन्होंने इस सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी में अपने गर्भस्थ अपने बच्चों को गंवा दिया । दुर्घटना के वक्त भोपाल में 2689 गर्भवती महिलाओं का जिक्र करते हुए किताब में लिखा गया है कि इस भयावहता की ओर अधिक लोगों का ध्यान नहीं गया कि कितनी महिलाओं ने इसकी वजह से भविष्य में मातृत्व सुख तक गंवा दिया था। इस घटना के बाद हुए प्रसवों में 52 बच्चे मरे हुए पैदा हुए और पैदा हुए 2210 बच्चों में से अधिकांश जन्मजात विकृति के साथ जीने को मजबूर हुये थे । कुल 2698 गर्भावस्थाओं में से 436 गर्भपात के मामले सामने आये थे जिनका औसत 14.7 प्रतिशत था । मानव अधिकारों की पैरोकार एवं नई पीढी की सशक्त हस्ताक्षर डा. स्वाति की गैस पीड़ित महिलाओं की गहन भावनाओं का मानवीय पक्ष उजागर करती इस किताब में उनका दर्द यह भी है कि विधवा हुई स्त्रियों के लिए भोपाल में विश्व की पहली ‘विधवा कालोनी’ तो बसाई गई, लेकिन जिन लोगों ने अपनी पत्नियों को खोया था, उनके लिए ‘विधुर कालोनी’ क्यों नहीं बनाई गई । त्रासदी के संदर्भ में महिलाओं की पीड़ा को क्यों अनदेखा किया गया। शीघ्र ही किताबघरों में बिक्री के लिए उपलब्ध होने वाली यह पुस्तक एक ऐसा मनोवैज्ञानिक दस्तावेज भी है, जो त्रासदी के 27 साल गुजरने के बावजूद न्याय की तारीख का इंतजार करती स्त्री संवेदनाओं का निचोड़ है, जो पाठकों के मर्म को छूकर कहीं मन में टीस पैदा करती है। डा. स्वाति ने इसमें स्त्री जीवन की गहन भावनाओं का मानवीय पक्ष उजागर किया है । वह यह सवाल भी बड़ी पीड़ा से उठाती हैं कि आजाद भारत में भी एक अलग ‘विधवा कालोनी’ भोपाल में बनी, बसी और मानवीय उपेक्षा से नवाजी गई, लेकिन इस दुर्घटना में जिन नागरिकों ने अपनी पत्नियों को खोया, उनके लिए ‘विधुर कालोनी’ क्यों नहीं बनाई गई। उनका सवाल व्यवस्था से भी है कि दुनिया भर की जेलों में ऐसे हजारों अपराधी भरे हुए हैं, जिन्होंने मात्र एक हत्या की है, लेकिन दुनिया की किसी जेल में इस दुर्घटना में हुए हजारों हत्याओं के लिए जवाबदार एक भी अपराधी पिछले 27 सालों में एक दिन के लिए भी बन्द क्यों नहीं हुआ। देश की पहली ‘विधवा कालोनी’ को लेकर लेखिका डा. स्वाति उस भयानक सामाजिक सच्चाई को उजागर करने का सशक्त प्रयास करती हैं, जिसमें पुरुष प्रधान समाज में ‘वैधव्य’ एक अभिशाप की तरह है। लेखिका का कहना है कि जिस प्रकार असत्य एवं अवैज्ञानिक होकर भी जात-पात, भारतीय समाज व्यवस्था की एक जटिल एवं दारुण सच्चाई बनी, उसी प्रकार विधवा की अवधारण भी असत्य-अवैज्ञानिक एवं स्त्री जीवन की एक भयानक सामाजिक सच्चाई है, जो समाज की आधी आबादी को सदियों से पीड़ित एवं आतंकित करती रही है। आज से करीब 28 साल पूर्व दो एवं तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात हुए गैस हादसे के बारे में यह दस्तावेज उन बेबस औरतों के चेहरे को उजागर करते हैं, जिन्होंने अपना सबकुछ गंवा दिया और बची-खुची जिन्दगी एक अंतहीन संघर्ष के हवाले कर दी । गैस रिसाव से अपने जीवन साथी को खो देने वाली महिलायें आज तक उपेक्षा एवं प्रताड़ना का शिकार हैं। किताब बताती है कि इन्होंने पहले परिवार खोया, फिर हमेशा के लिए इनके हिस्से में बीमारी आई, मुआवजे के लिए भिखारियों जैसे हाथ फैलाने पड़े । जीवन ज्योति के नाम वाली विधवा कालोनी में जब शाम ढलती है, तो वे सब मवालियों एवं मनचलों के लिये ‘साफ्ट टारगेट’ होती है। डा. स्वाति मानती हैं कि समाज की इसी कठोर सच्चाई को रेखांकित करने के लिए ही भोपाल त्रासदी की विधवाओं के लिए अलग से कालोनी स्थापित की गई, जबकि पत्नी खो चुके पुरुषों के लिए यह तो मान ही लिया जाता है कि वे कहीं न कहीं अपना रैन बसेरा बना ही लेंगे ।
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20-09-2012, 09:41 AM | #14786 |
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प्रशांत सागर में 15 हफ्ते तक फंसे व्यक्ति को शार्क ने बचाया
लंदन। प्रशांत सागर के पानी में 15 हफ्ते तक अपनी नौका में बहते रहे एक पुलिस अधिकारी को असाधारण घटना में एक शार्क ने बचा लिया। शार्क उसे निर्देशित करते हुए एक राहत नौका तक ले गई । पुलिस अधिकारी तोकई तीतोई अपने रिश्तेदार के साथ समुद्र में नौका सहित बह गया और उसे तट तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं मिल पा रहा था। उसके रिश्तेदार की शरीर में पानी कम हो जाने के कारण मौत हो गई। अधिकारी को लगा कि वह खुद भी कुछ देर का ही मेहमान है। लेकिन एक शार्क से आमना सामना हो जाने पर उसे अभूतपूर्व ढंग से बचा लिया गया। डेली मेल के अनुसार मछली पकड़ने वाली एक नौका द्वारा मार्शल द्वीप लाए जाने के बाद तीतोई ने बताया कि मेरे पास से एक नौका गुजर जाने के बाद मैंने अपने बचने की सभी उम्मीदें छोड़ दी थीं कि तभी कुछ अद्भुत घटित हुआ। अधिकारी ने कहा कि उसे अचानक कुछ उछाल सा महसूस हुआ। इस पर उसकी आंख खुली तो उसने देखा कि छह फुट लंबी एक शार्क उसकी नौका के इर्द गिर्द घूम रही थी। उसने कहा कि शार्क की उछलकूद ने उसका ध्यान आकर्षित किया और वह जाग गया। तभी उसे एक नौका दिखी। वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर सका। इस पर सवार लोग उसे दूरबीन से देख रहे थे। तीतोई ने कहा कि मैं तुरंत तैरकर उस नौका तक पहुंच गया और उन्होंने मुझे ऊपर उठा लिया। यदि शार्क की वजह से मेरी आंख नहीं खुली होती तो इस नौका में सवार लोग सोचते कि मैं परेशानी में नहीं हूं और वे गुजर जाते। तीतोई अपने रिश्तेदार के साथ मायाना द्वीप स्थित अपने घर से तारावा की राजधानी किरीबाती रवाना हुआ था। लौटते समय उनकी नौका बह गई और जब उनकी आंख खुली तो वे मायाना क्षेत्र से काफी दूर हो चुके थे।
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20-09-2012, 09:41 AM | #14787 |
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संस्कृति मंत्रालय सैंड आर्ट को दे बढ़ावा : सुदर्शन
नई दिल्ली। समसामयिक विषयों को आधार बना कर रेत पर खूबसूरत कलाकृतियां बनाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करने वाले कलाकार सुदर्शन पटनायक मानते हैं कि जिस तरह खेल मंत्रालय हर तरह के खेलों को बढ़ावा देता है, उसी तरह संस्कृति मंत्रालय को भी चाहिए कि वह हर तरह की कला को बढ़ावा दे। जलवायु परिवर्तन, भोपाल गैस त्रासदी, पोलियो, साक्षरता से लेकर कई ज्वलंत मुद्दों को अपने सैंड आर्ट के माध्यम से उठाने वाले सुदर्शन ने कहा कि कला न केवल देश की सामयिक संस्कृति की परिचायक होती है बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसी विरासत है जहां वह बीते दौर का आइना बन कर अपनी समृद्धि से नई पीढ़ी को अवगत करा सकती है। इसीलिए कला को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह खेल मंत्रालय हर तरह के खेलों को बढ़ावा देता है, उसी तरह संस्कृति मंत्रालय को भी कदम उठाना चाहिए। मंत्रालय की ओर से की जाने वाली पहल कई कलाओं को लुप्त होने से बचा सकती है और उन्हें समृद्ध कर सकती है। मंत्रालय सैंड आर्ट को बढ़ावा दे तो यह कला और निखर सकती है। सुदर्शन का कहना है, दर्शक मेरी कृतियां देखकर अगर उनके संदेश को आत्मसात कर लें तो मैं समझूंगा कि मेरी मेहनत सफल रही। प्रख्यात कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण जिस तरह सामयिक विषयों को अपने कार्टूनों के जरिए उठाते रहे, उससे मैं बहुत प्रेरित हुआ। मैंने भी रेत के जरिए यही करने की कोशिश की। सुदर्शन पटनायक ने कहा कि मैं हमेशा सामयिक मुद्दों को उठाने की कोशिश करता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि कोशिश कहीं से भी सही, होनी चाहिए। इस तरह से मुद्दे गहरी अपील करते हैं। बचपन में घोर अर्थाभाव से गुजरे सुदर्शन ने दस साल की उम्र से काम करना शुरू किया लेकिन रेत पर कलाकृतियां बनाने का शौक कभी नहीं छोड़ा। वह कहते हैं कि केवल सैंड आर्ट और स्नो आर्ट ऐसी कला हैं, जो खुले मैदान में अपना असर दिखाती हैं। आज सैंड आर्ट इतना लोकप्रिय हो रही है कि गुवाहाटी और अन्य ऐसी जगहों पर लोग इसे अपना रहे हैं जो समुद्र तट से कोसों दूर हैं। इन दिनों पुरी में ‘सुदर्शन सैंड आर्ट इंस्टीट्यूट’ चला रहे सुदर्शन को लगता है कि सैंड आर्ट को बढ़ावा देने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। इस कला को बढ़ावा मिले तो इसमें कोई शक नहीं है कि जल स्रोतों के तटों की सफाई हो जाएगी। गत 31 मई से नौ सितंबर तक डेनमार्क में आयोजित कोपेनहेगन अंतर्राष्ट्रीय रेत कलाकृति प्रतियोगिता में सुदर्शन की कलाकृति को पहला स्थान मिला। प्रतियोगिता के दौरान महोत्सव में आने वाले 80,000 लोगों ने विभिन्न कलाकृतियों के लिए मतदान किया जिसमें से सुदर्शन की कलाकृति को 23,000 मत हासिल हुए। सुदर्शन ने ‘महासागर बचाने के लिए’ संदेश के साथ बीस फुट ऊंची रेत की कलाकृति बनाई थी और उन्हें प्रथम पुरस्कार दिया गया। भारत कनाडा, रूस, बल्गारिया, आयरलैंड, इंग्लैंड, जर्मनी, यूक्रेन और घाना के कलाकारों ने इस स्पर्द्धा में भाग लिया था। सुदर्शन कई स्पर्द्धाओं में भारत का नाम रोशन कर चुके हैं।
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20-09-2012, 09:42 AM | #14788 |
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अच्युतानंदन को कुडनकुलम जाने से रोका
तिरूवनंतपुरम। माकपा के आधिकारिक रुख को दरकिनार कर कुडनकुलम जाने के लिए तैयार पार्टी के वरिष्ठ नेता वी. एस. अच्युतानंदन को तमिलनाडु पुलिस ने मंगलवार को सीमावर्ती शहर केलीक्काविला के समीप रोक दिया। अच्युतानंदन पमराणु विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कुडनकुलम जाने वाले थे। माकपा नेता की कार जैसे ही सीमावर्ती शहर में पहुंची, उसे तमिलनाडु पुलिस के एक अधिकारी ने रोक कर 88 वर्षीय नेता से सुरक्षा सम्बंधी कारणों का हवाला देते हुए आगे नहीं जाने का अनुरोध किया। अच्युतानंदन ने यह अनुरोध मान लिया। उन्होंने कहा कि वह परमाणु विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए तमिलनाडु के तटवर्ती गांव नहीं जा पाने के कारण निराश हैं, लेकिन वह समीपवर्ती राज्य के लिए कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी नहीं करना चाहते। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि मैं नहीं चाहता कि आपके राज्य में कानून व्यवस्था की समस्या हो। मैं केवल तमिलनाडु में शांति चाहता हूं। इसलिए मैं आपका अनुरोध स्वीकार कर लौट रहा हूं। अच्युतानंदन ने हालांकि कहा कि उनका दृढ़ मत है कि परमाणु संयंत्र खतरनाक हैं। उनकी पार्टी ने भारत अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के विरोध में संप्रग सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। पार्टी नेतृत्व पर कटाक्ष करते हुए अच्युतानंदन ने कहा कि मैंने तब से अब तक अपना रुख नहीं बदला है। मेरा इरादा उदयकुमार की अगुवाई में चल रहे परमाणु संयंत्र विरोधी आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाना था। मैं वहां नहीं पहुंच सका और अपना संदेश उन्हें नहीं दे सका, इसकी वजह से निराश हूं। सीमा के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग खड़े थे और अच्युतानंदन के पक्ष में नारे लगा रहे थे। माकपा के केंद्रीय और राज्य नेतृत्व ने अच्युतानंदन के फैसले से दूरी बना रखी है। पार्टी ने स्पष्ट कर दिया था कि वह परमाणु ऊर्जा के खिलाफ नहीं हैं। माकपा के महासचिव प्रकाश करात ने पार्टी के मुखपत्र ‘देशाभिमानी’ में कहा है कि 15,000 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद तैयार हुए संयंत्र को बंद करने की मांग न तो व्यवहारिक है और न ही देश के हित में है।
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खराब मौसम के कारण सोनिया गांधी का उत्तराखंड दौरा रद्द
देहरादून। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अध्यक्ष सोनिया गांधी का मंगलवार को उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने का कार्यक्रम खराब मौसम के कारण रद्द हो गया। राज्य कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने बताया कि सोनिया गांधी पिछले कुछ समय के दौरान कई प्राकृतिक आपदाएं झेल चुके राज्य का मंगलवार को दौरा करने वाली थीं, लेकिन खराब मौसम के कारण उनका प्रस्तावित कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। प्रस्तावित कार्यक्रम के तहत सोनिया को पहले उत्तरकाशी जिले का भ्रमण करना था, जहां पिछले महीने भारी बारिश के बाद बादल फटने और बाढ़ आने से 28 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी और छह अन्य लापता हो गए थे। उत्तरकाशी के बाद संप्रग अध्यक्ष को आपदाग्रस्त रूद्रप्रयाग जिले के उखीमठ और जखोली इलाके का दौरा करना था, जहां पिछले सप्ताहांत दो दिनों के भीतर बादल फटने से 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गई, जबकि 20 से अधिक लापता हो गए। इन सभी घटनाओं में दर्जनों मकानों को भी नुकसान पहुंचा है और सैकड़ों परिवार बेघर हो गए हैं। धस्माना ने बताया कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सोनिया को इन घटनाओं में हुई व्यापक तबाही की जानकारी दी थी और उनसे आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा करने का अनुरोध किया था। उन्होंने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष का निकट भविष्य में दोबारा आपदा ग्रस्त इलाकों के दौरे का कार्यक्रम तय किया जाएगा।
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भारी बारिश और भूस्खलन के कारण श्रीनगर-लेह राजमार्ग बंद
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर में भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन की वजह से श्रीनगर लेह राष्टñीय राजमार्ग मंगलवार सुबह बंद कर दिया गया। आधिकारियों ने यहां बताया कि जोजिला दर्रे के पास बजरीनाला में सोमवार रात तेज बारिश होती रही। यातायात बंद किए जाने के कारण राजमार्ग के दोनों तरफ वाहन रुके हुए हैं। राजमार्ग के रख-रखाव के लिए जिम्मेदार सीमा सड़क संगठन के कर्मचारी राजमार्ग साफ करने में जुटे हुए हैं।
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