29-06-2013, 04:15 AM | #1481 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
जयपुर। आपको यदि सेहत बनाये रखनी है और मीठा खाने का शौक है तो कैडी, च्युइंगम और चीनी के बजाये रोजाना 20 ग्राम गुड खाये। चरक संहिता और आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने भी लोगो को खाना खाने के बाद रोजाना थोडा सा गुड खाने की सलाह दी है। अंग्रेजो के शासनकाल मे गन्ना उत्पादक काश्तकार खाण्डसारी के बजाय गुड बनाना पसंद करते थे जबकि अंग्रेजो को चीनी की जरुरत होती थी। जब गुड निर्माताओ ने चीनी मिलो को गन्ने की आपूर्ति बंद कर दी तो अंग्रेजो ने गुड बनाने पर ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैर कानूनी भी घोषित कर दिया। प्राचीन आयुर्विज्ञान में गुड को स्वास्य के लिए अमृत जबकि चीनी को सफेद जहर माना गया है। गुड खाने के बाद हमारे शरीर में पाचनक्रिया के लिए जरुरी क्षार पैदा होता है जबकि चीनी अम्ल पैदा करती है जो शरीर के लिए हानिकारक है। आयुर्वेद मेें किये गये शोध से पता चला है कि गुड के मुकाबले चीनी को पचाने मे पांच गुणा ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। यदि गुड को पचाने मे ।00 केलोरी उंर्जा लगती है तो चीनी को पचाने मे 500 केलोरी खर्च होती है। इसी तरह गुड मे कैल्शियम के साथ फास्फोरस भी होता है जो हड्डियो को मजबूत करने मे सहायक माना जाता है। वहीं चीनी हड्डियो के लिए नुकसानदायक होती है क्योकि चीनी इतने अधिक तापमान पर बनाई जाती है कि गन्ने के रस मे मौजूद फास्फोरस भस्म जाता है। फास्फोरस कफ को संतुलित करने मे भी सहायक माना जाता है। आयुर्वेद का मानना है कि गुड में मौजूद क्षार शरीर मौजूद अम्ल .एसिड. को खत्म करता है इसके विपरीत चीनी के सेवन से अम्ल बढ जाता है जिससे वात रोग पैदा होते है। वैद्य सलाह देते है कि निरोग और दीर्घायु के लिए भोजन के बाद नियमित रुप से 20 ग्राम गुड का सेवन किया जाना चाहिए। गुड के तमाम फायदो के बावजूद आयुर्वेद मे कुछ पदाथा6 के साथ इसके सेवन को निषेध माना है जिनमे दूध मे मिला कर पीने की मनाही की गयी है। हालांकि पहले गुड खाये और फिर दूध पिये .आपकी सेहत ठीक रहेगी और कई रोगो से बचाव होगा।
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29-06-2013, 04:15 AM | #1482 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अलजाइमर की नयी ‘दवा’ से याददाश्त के चले जाने पर रोक संभव
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों का दावा है कि एक नयी दवा के समान छोटे अणुओं से अलजाइमर रोग में याददाश्त के चले जाने पर रोक लग सकती है। इस संबंध में अभी अनुसंधान जारी है। नार्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय की डा मार्टिन वाटरसन प्रयोगशाला में विकसित अणुओं से याददाश्त गायब होने पर रोक लगायी जा सकती है। इसके साथ ही इससे क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है। अध्ययन के प्रमुख लेखक वाटरसन ने कहा कि नयी दवाओं के विकास में यह शुरूआती कदम है और यह संभव है कि किसी दिन यह दवाई अलजाइमर से पीड़ित लोगों को पहले चरण में दी जा सकती है। अलजाइमर में याददाश्त की समस्या प्रकट होने होने से 10..15 दिन पहले ही मस्तिष्क में परिवर्तन होने लगता है। शोधकर्ताओं के अनुसार इस श्रेणी की दवा उस समय फायदेमंद हो सकती है जब कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की शुरूआत होती है। इन अणु को एमडब्ल्यू 108 नाम दिया गया है।
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29-06-2013, 07:52 AM | #1483 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
चार में से एक भारतीय सेवानिवृत्ति योजना को प्राथमिता देते हैं
मुंबई। अपने परिवार को सर्वाधिक महत्व देने वाले भारतीय शहरी उपभोक्ताओं में से करीब 24 प्रतिशत सेवानिवृति योजना को प्राथमिकता देते हैं। अमेरिप्राइज इंडिया द्वारा जारी रपट में कहा गया ‘करीब 24 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनकी प्रमुख वित्तीय प्राथमिकता सेवानिवृत्ति योजना है। 2012 में सिर्फ 10 प्रतिशत लोग इस खंड में थे।’ अमेरिप्राइज ने भारत में इस रपट को तैयार करने का जिम्मा बाजार अनुसंधान कंपनी टीएनएस इंडिया को दिया था।
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29-06-2013, 08:18 AM | #1484 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अच्छा तथा उपयोगी सूत्र है
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
12-07-2013, 08:44 AM | #1485 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
रुमैटिक फीवर का बढना चिंतनीय
अलीगढ़। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कालेज के हृदय रोग केन्द्र के उपनिदेशक एवं प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर आसिफ हसन ने कहा है कि भारत मे रुमैटिक फीवर आमवातिक ज्वर जिस प्रकार से फैल रहा है वह एक चिंता का विषय है और इस पर काबू पाने के लिए आवश्यक है कि सरकार द्वारा हरेक शहर मे पैनसलीन के इंजेक्शन उपलब्ध कराये जायें। प्रोफेसर आसिफ हसन ने यह बात डाक्टर्स डे के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होने कहा कि इस रोग की शुरुआत गले मे खराश. बुखार और जोडो मे दर्द से होती है जो आगे चलकर भयंकर रुप धारण कर लेती है। उन्होने कहा कि यह बीमारी मुख्य रुप से बच्चो मे 5 से ।5 वर्ष के बीच होती है और इसके निरंतर बने रहने से हृदय धमनियां खराब हो जाती है जिसके कारण यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। यह फीवर हृदय के अलावा. जोडो. स्किन और मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है। प्रो. हसन ने कहा कि यह सोचना गलत है कि इस रोग से ग्रस्त मरीजो की संख्या मे कमी आ रही है बल्कि वास्तविकता यह है कि इससे प्रभावित रोगियो की संख्या मे निरंतर वृद्धि हो रही है। उन्होने कहा कि भारत मे सामाजिक व आर्थिक विकास मे कमी के कारण बडी संख्या मे लोग इसका शिकार हो रहे है यूपी. बिहार. उडीसा तथा अन्य पिछडे राज्यो के लोग विशेष रुप से इस रोग से प्रभावित हो रहे है। उन्होने कहा कि अगर किसी भी बच्चे के जोडो मे दर्द निरंतर हो रहा हो या बार बार गले मे खराश और जोडो मे सूजन की शिकायत हो तो तुरन्त डाक्टर से संपर्क स्थापित करना चाहिए। प्रो. हसन ने कहा कि सरकारी स्तर पर भी इस रोग के निदान के लिए गंभीर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है और इस बात को भी सुनिश्चित बनाने की आवश्यकता है कि देश के हरेक शहर मे पैसलीन के इंजेक्शन उपलब्ध हो।
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12-07-2013, 08:45 AM | #1486 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
चीन में बना 100 मेगापिक्सेल का कैमरा
बीजिंग। चीन के एक संस्थान ने हवाई मानचित्रण, आपदा निगरानी और बेहतर परिवहन प्रणालियों के उपयोग में आने वाला 100 मेगापिक्सेल का कैमरा बनाया है। चाइना एकेडमी आफ सांइस (सीएएस) ने एक बयान में कहा कि इंस्ट्यूट आफ आप्टिकल एंड इलेक्ट्रिानिक्स ने 100 मेगापिक्सल वाला आईओ-3-कानबान कैमरा विकसित किया है। सीएएस का दावा है कि यह दुनिया का सर्वाधिक पिक्सल वाला कैमरा है। बयान में कहा गया है कि यह कैमरा 10,240 गुणा 10,240 पिक्सल की तस्वीर उतार सकता है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ने सीएएस के बयान के आधार पर लिखा है कि यह कैमरा बहुत छोटा है और इसका आकार केवल 19.3 सेमी है। एजेंसी ने बताया कि इसे शून्य से 20 डिग्री सेल्सियस से कम और 55 डिग्री सेल्सियस के उच्चतम तापमान पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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14-07-2013, 07:51 AM | #1487 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
जंगल की आग के कारण तेजी से पिघल सकते हैं ग्लेशियर : रिपोर्ट
कोलकाता। जंगलों में लगी आग से पैदा हुआ काला कार्बन हिमालय के ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का कारण बन सकता है और जमी हुई नदियों के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है। जंगल की आग के ग्लेशियरों पर पड़ने वाले इन परिणामों के बारे में चेतावनी एक नए अध्ययन में दी गई है। बेंगलूर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में दिवेशा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों की एक रिपोर्ट कहती है, ‘‘हिमालय की निचली श्रृंखलाओं में मौजूद बहुत से हिमखंडों, जैसे पीर पंजाल और ग्रेटर हिमालय के जमाव वाले क्षेत्र इलाके में काले कार्बन के जमने के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसके साथ ही तापमान और अवक्षेपण (प्रेसीपिटेशन) में बदलाव भी हो सकता है।’’ अपनी जांच के दौरान उन्होंने वर्ष 2009 में हिमाचल प्रदेश में स्थित बास्पा बेसिन के जमाव क्षेत्र की ‘परावर्तन क्षमता’ में हुए बदलाव का विश्लेषण किया। यह क्षेत्र जंगलों की भारी आग और उत्तरी भारत में जैविक ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल का शिकार हुआ था। उनकी रिपोर्ट दर्शाती है कि जमाव क्षेत्र के दर्शनीय इलाके की ‘परावर्तन क्षमता’ में गिरावट वर्ष 2009 के अप्रैल से मई के बीच के समय में वर्ष 2000 से 2012 तक के किसी भी अन्य वर्ष की तुलना में काफी ज्यादा थी। वर्ष 2009 की गर्मियों में जंगलों में आग की घटनाएं वर्ष 2001 से 2010 के बीच के किसी भी अन्य साल की तुलना में कहीं ज्यादा थीं। वैज्ञानिक ए वी कुलकर्णी कहते हैं, ‘‘इसकी व्याख्या काले कार्बन के जमाव के जरिए ही की जा सकती है। यह अध्ययन कहता है कि मानवीय या प्राकृतिक कारणों से जमाव क्षेत्र में काले कार्बन के एकत्र होने की वजह से बर्फ की परावर्तन क्षमता में हो रहा बदलाव हिमाचल प्रदेश के बास्पा बेसिन में ग्लेशियरों को प्रभावित कर सकता है।’’ पश्चिमी और केंद्रीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई भारतीय राज्यों में मई और जून में जंगलों में भारी आग लग जाती है। इसके अलावा भारत-गंगा मैदानी इलाकों में भी पेड़ पौधों में भारी आग लग जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, इससे भारी मात्रा में काले कार्बन कण पैदा हो सकते हैं और दक्षिणी हवाओं के कारण ये हिमालय की निचली पर्वत श्रृंखलाओं के जमे हुए हिस्से में पहुंच सकते हैं। वैज्ञानिकों ने कहा, ‘‘यह मौसमी बर्फ और ग्लेशियरों के जमाव क्षेत्र की परावर्तन क्षमता को प्रभावित कर सकता है क्योंकि काला कार्बन प्राकृतिक धूल की तुलना में कहीं ज्यादा विकिरण सोख लेता है।’’
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14-07-2013, 08:12 AM | #1488 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
पैरों की छटपटाहट बन सकती है उच्च रक्तचाप का कारण
नई दिल्ली। मध्यम वय की महिलायें आम तौर पर पैरों की छटपटाहट (रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम) की समस्या से ग्रस्त रहती हैं लेकिन शोंधकर्ताओं का कहना है कि यह समस्या उच्च रक्त चाप का कारण बन सकती है इसलिये इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये। महिलाओं पर किये गए एक अध्ययन मे शोधकर्ताओं ने पाया कि रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम से पीडित करीब 26 प्रतिशत महिलाओं में उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। अमरीका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल (बोस्टन) और वुमेन्स हॉस्पीटल (बर्मिघम) में किये गये शोध से पता चलता है कि रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम की परिणति उच्च रक्त चाप में हो सकती है और अगर रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम की जल्द पहचान और इलाज हो जाये तो उच्च रक्तचाप रोकने में मदद मिलती है। नींद की बीमारियों के विशेषज्ञ तथा यहां स्थित दिल्ली साइकियेंट्री सेंटर (डीपीसी) के निदेशक डा. सुनील मित्तल ने महिलाओ मे होने वाली इस आम समस्या के बारे मे बताया कि पैरों में छटपटाहट की समस्या आम तौर पर 40-50 साल की महिलाओं में होती है। रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कारण रात में अच्छी नींद नहीं आती और इस कारण दिन में सुस्ती और उबासी का अहसास होता रहता है। इस समस्या से आबादी मे करीब 15 प्रतिशत वयस्क लोग पीडित हैं जिनमे सबसे अधिक महिलाये है। रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के कुछ मामलों में इलाज इतना सामान्य होता है कि सिर् आयरन सप्लिमेंट लेने से ही यह समस्या दूर हो जाती है। इसलिए रेस्टलेस लेग्स सिंड्रोम के लक्षण र्पंकट होते ही अपने चिकित्सक से बात करनी चाहिए।
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14-07-2013, 08:14 AM | #1489 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
रमजान में बिना डाक्टर की सलाह के मधुमेह और दिल के मरीज न रखें रोजा
कानपुर। पवित्र माह रमजान में इस बार रोजे करीब 15 घंटे लंबे होंगे। रोजे में दिल और मधुमेह रोग के शिकार मरीज खास सतर्क रहें और बिना अपने डाक्टर की सलाह के रोजा न रखें। लखनउ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने बताया कि रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह पीडित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिये। उन्होंने बताया कि तमाम शोध में देखा गया है कि हल्के दिल के दौरे के शिकार हो चुके लोगों को रमजान में रोजा रखने के दौरान भी आम दिनों की तरह ही जोखिम रहता है। बस उन्हें डाक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य बिठा लेना चाहिये और खाने पीने में सावधानी बरतनी चाहिये। प्रो. कुमार कहते है कि जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड़ चुका है और बाईपास सर्जरी हो चुकी है। उन्हें रोजे से परहेज रखना चाहिये क्योंकि ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पड़ती है। साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरूरी है। लेकिन फिर भी अगर ऐसे रोगी रोजा रखना चाहते है तो वह बिना अपने डाक्टर की सलाह के कतई रोजा न रखें। वह कहते है कि जो जन्म से मधुमेह :टाइप वन: के रोगी हैं और इंसुलिन लेते हैं उन्हें रोजा रखने से बचना चाहिये क्योंकि अगर वह इंसुलिन नहीं लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर बढ जायेगा। कुमार ने कहा कि इसी तरह जिन लोगों को मधुमेह टाइप टू है वे रोजा रखते वक्त काफी सावधानी बरते। उन्हें अपने खाने पीने का तरीका बदलना होगा। ऐसे लोगों को सुबह सहरी में पर्याप्त खाना खा लेना चाहिये और उसके साथ अपनी दवायें भी ले लेनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिये कि ऐसे रोगी जो भी खाना खायें वह ज्यादा तला भुना न हो और अगर मांसाहार लेते हैं तो वह बहुत कम मात्रा में लेना चाहिये तथा काफी कम तेल मसाले में बना हुआ होना चाहिये। वह कहते हैं कि इफ्तार के समय भी ऐसे रोगियों को एकदम से पूरा खाना नहीं खा लेना चाहिये बल्कि थोड़े फल और फलों का जूस लेना चाहिये और कुछ हल्की फुल्की खानें की चीजे लेकर तुरंत दवा ले लेनी चाहिये। लखनउ पीजीआई के मधुमेह रोग विशेषज्ञ डा. सुशील गुप्ता के अनुसार, रमजान के दौरान दिल की बीमारी और मधुमेह से पीड़ित रोगियों को अपने खानपान पर थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिये। रोजा रखने वाले मधुमेह रोगियों को चाहिये कि रोजा खोलने के एक घंटे बाद पूरा खाना खायें लेकिन वह ज्यादा तला भुना न हो, जहां तक हो सके वे सादा खाना ही खायें, जिसमें रोटी सब्जी और सलाद शामिल हो। उन्होंने कहा कि शाम को पकवान खाते ही रोगी का कोलेस्ट्रोल और रक्तचाप के साथ साथ खून में शर्करा का स्तर बढने की आशंका बनी रहती है जो उनके दिल के लिये नुकसानदायक है। वह कहते है कि अगर दिन में रोजा रखने के दौरान कमजोरी महसूस हो तो तुरंत लेटकर आराम कर लेना चाहिये। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को दिल के रोग के साथ मधुमेह भी है उन्हें इस तरह के तेल और रोगन वाले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिये।
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14-07-2013, 08:15 AM | #1490 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
धूम्रपान पर रोक और भारी कर से बच सकती हैं 90 लाख भारतीयों की जान : अध्ययन
वाशिंगटन। भारत अगर धूम्रपान पर रोक के उपायों के साथ ही तंबाकू पर अधिक कर लगाए तो दिल की बीमारी से अगले दशक में संभावित 90 लाख से अधिक मौतों को रोक सकता है। एक नए अध्ययन में ऐसा कहा गया है। शोधकर्ताओं ने कहा कि धूम्रपान मुक्ति कानूनों और तंबाकू पर कर बढाकर भविष्य में हृदय रोग से होने वाली मौतों पर रोक लगायी जा सकती है। पीएलओएस मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, ‘‘भारत में तंबाकू मुक्त कानूनों को व्यवस्थित रूप से लागू नहीं किया गया है। 2009 और 2010 में हर तीन में से एक वयस्क कार्यस्थल पर धूम्रपान की चपेट में था। चंडीगढ में इनकी संख्या सबसे कम 15.4 प्रतिशत और जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा 67.9 प्रतिशत बतायी गयी है।’’ शोध में कहा गया, ‘‘तंबाकू मुक्ति कार्यक्रमों को सरकार की तरफ से बहुत कम वित्तीय सहायता मिली और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशेवर सही तरह से मुक्ति संबंधी सलाह नहीं देते। देश में तंबाकू पर बहुत कम कर लगा हुआ है। सिगरेट की कीमतों पर करीब 38 प्रतिशत और बीड़ी की कीमतों पर करीब 9 प्रतिशत कर लगे हैं जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सिफारिश किए गए 70 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर से बहुत कम है।’’ संजय बसु और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के उनके सहयोगियों द्वारा किए गए इस अध्ययन के नतीजों से पता चलता है कि भारत और संभावित रूप से दूसरे कम एवं मध्य आय वाले देशों में अगले दशक में दिल की बीमारी से होने वाली मौतों को कम करने के लिए विशेष तंबाकू नियंत्रण रणनीतियां सबसे अधिक प्रभावशाली होंगी।
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