18-10-2013, 04:48 AM | #1531 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था में सुस्ती तथा तथा नौकरी को लेकर अनिश्चितता की वजह भारत में लोग बैंकों से कर्ज लेने से कतरा रहे हैं। उद्योग मंडल एसोचैम के एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है। सर्वेक्षण में कहा गया है, ‘‘आर्थिक सुस्ती की वजह से जहां औद्योगिक वृद्धि एवं सेवाएं प्रभावित हुई हैं, वहीं खर्च करने वाले युवाओं में नौकरी को लेकर अनिश्चितता बढी है।’’ जब बैंकों से रिण लेने की बात आती है, तो भारतीय का रख काफी संकीर्ण हो जाता है। वे मियादी जमा, शेयर या बांडों के बदले रिण नहीं लेना चाहते। बैंकिंग आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष मेंं सावधि जमा :एफडी: के बदले कर्ज लेने वाले लोगों की संख्या में 1.6 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके अलावा के्रडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोग भी रिण नहीं लेना चाहते क्योंकि बकाये के भुगतान पर काफी उंचा ब्याज लिया जाता है। पहले से रिण ले चुके लोग भी सतर्कता का रख अपना रहे हैं और वे जुर्माने से बचने के लिए समय पर अपने बकाये का भुगतान कर रहे हैं। सर्वेक्षण कहता है कि लोगों को लगता है कि के्रडिट कार्ड के बकाया से वे रिण के जाल में फंस जाएंगे। कुछ इसी तरह का रख निजी लोगों या इकाइयों द्वारा शेयर या बांड गिरवी रखकर बैंक रिण लेने में दिखाई दे रहा है। एसोचैम के मुताबिक, शेयर या बांड गिरवी रखकर रिण लेने की राशि में चालू वित्त वर्ष में 6.6 फीसद की गिरावट आई है। वहीं पिछले वित्त वर्ष में इस मद में 8.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बैंकों द्वारा लिए जाने वाले उंचे ब्याज की वजह से भी लोग कर्ज नहीं लेना चाहते हैं। वहीं दूसरी ओर नकदी की कड़ी स्थिति के मद्देनजर हाल के समय में जमा पर ब्याज दर बढाई गई है। इसके अलावा बैंक की नकदी संकट झेल रही बड़ी कंपनियों को कर्ज नहीं देना चाहते।
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18-10-2013, 04:49 AM | #1532 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर उद्योग घरानों की चिंताओं को अधिक तूल : अध्ययन
नई दिल्ली। नए भूमि अधिग्रहण कानून को दो निजी वित्तीय संस्थानों ने अपना समर्थन दिया है। साथ ही इन संस्थानों का कहना है कि इस बारे में उद्योग जगत की चिंता को कुछ अधिक तूल दिया जा रहा है। आईसीआईसीआई बैंक तथा कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज का यह अध्ययन ऐसे समय आया है जबकि दो प्रमुख उद्योग संगठनों सीआईआई व फिक्की इस कानून की समीक्षा कर रहे हैं। आईसीआईसीआई बैंक के अध्ययन में कहा गया है कि उद्योग की कानून को पिछली तारीख से लागू करने को लेकर कुछ बढचढकर है। इसमें कहा गया है कि यह कानून पिछली तारीख से कुछ चुनिंदा मामलों में ही लागू होगा और यह सिर्फ मुआवजे से संबंधित है। इसमें पुनर्वास या पुनर्स्थापना शामिल नहीं है। अध्ययन कहता है कि कानून के के दायरे में ज्यादातर खुदरा और वाणिज्यिक रीयल एस्टेट परियोजनाएं नहीं आएंगी। इसमें बाजार मूल्य से उंचे मुआवजे को लेकर उद्योग की चिंता को बेवजह बताया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि विधेयक के अनुसार बाजार मूल्य से मतलब आधिकारिक रिकार्ड से है, जो आमतौर पर कम कर दिखाया जाता है। कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून की सबसे बेहतर बात यह है कि इससे भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। अब अधिग्रहण समयबद्ध तरीके से होगा और इसमें स्थानीय लोगों की भारी भागीदारी होगी।
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18-10-2013, 04:50 AM | #1533 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
‘नवप्रवर्तन, टिकाऊ विकास में पिछड़ी हैं ज्यादातर भारतीय कंपनियां’
नई दिल्ली। भारत में ज्यादातर कंपनियां ‘टिकाउ एवं समावेशी विकास और नवप्रवर्तन’ में नहीं लगी हैं क्योंकि टिकाउ विकास पर वह विशेष ध्यान नहीं देती हैं। उद्योग मंडल सीआईआई द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक, भारतीय कंपनियां मौजूदा उत्पादों पर अधिक ध्यान देती हैं और नवप्रवर्तन पर उनका खास जोर नहीं होता है। इसके अलावा, उनके प्रशासन की संस्कृति भी नवप्रवर्तन को बढावा नहीं देती। अध्ययन में कहा गया है, ‘‘ मौजूदा उत्पादों पर जरूरत से अधिक ध्यान देना नवप्रवर्तन के रास्ते एक बड़ी आंतरिक बाधा है। इसके अलावा, वरिष्ठ कार्यकारी अक्सर नए विचारों को प्रोत्साहित नहीं करते।’’ ‘‘ जब कंपनियों को बाजार में प्रतिस्पर्धा से खतरा दिखता है तो वे नवप्रवर्तन की ओर रख करती हैं।’’ अध्ययन में टिकाउ विकास का अर्थ मानव विकास की ऐसी व्यवस्था से है जिसमें प्राकृतिक व्यवस्था एवं पर्यावरण बनाए रखते हुए मानव की जरूरतें पूरी करने में संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए, इनसे न केवल मौजूदा, बल्कि भावी पीढियों की जरूरतें भी पूरी की जा सकती हैं।
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18-10-2013, 04:50 AM | #1534 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
ठाट-बाट से रहना पसंद करते हैं कारोबार के सिलसिले में बाहर जाने वाले अधिकतर भारतीय : अध्ययन
नई दिल्ली। कारोबार के सिलसिले में यात्रा पर जाने वाले ज्यादातर भारतीय अन्य देशों के यात्रियों के मुकाबले अधिक ठाट-बाट से रहना पसंद करते हैं। वे होटल में बेहतर कमरा, महंगा खाना तथा रूम सर्विस लेते हैं। एक्सपेडिया-इजेन्सिया द्वारा ‘फ्यूचर आन ट्रैवल’ पर किये गये संयुक्त अध्ययन के अनुसार भारतीय कारोबारी यात्रा के दौरान होटल में बेहतर कमरे लेने के मामले में अव्वल है वहीं महंगे खान-पान के संदर्भ में दूसरे स्थान पर हैं। अध्ययन में करीब 48 प्रतिशत भारतीयों (वैश्विक रूप से सर्वाधिक) ने विदेश यात्रा के दौरान होटल का कमरा बेहतर होने को तरजीह दी, जबकि 55 प्रतिशत ने महंगे खान-पान को पसंद किया। करीब 44 प्रतिशत भारतीयों ने साल में पांच कारोबारी यात्रा की। उसके बाद थाई लोगों का स्थान रहा। करीब 39 प्रतिशत थाई लोगों ने साल में पांच कारोबारी यात्रा की। लेकिन जब फुरसत में यात्रा का मामला आता है तो 34 प्रतिशत भारतीयों ने साल में पांच बार से अधिक यात्रा की और इसमें मामले में देश दूसरे स्थान पर रहा। पहले स्थान पर थाईलैंड है जहां के 39 प्रतिशत नागरिकों ने छुट्टी के दौरान पांच बार से अधिक यात्रा की। अध्ययन 20 अगस्त से 12 सितंबर के बीच आनलाइन किया गया। इसमें कर्मचारियों के व्यवहार तथा उनकी पसंद के बारे में जानकारी लेकर उसका विश्लेषण किया गया। अध्ययन एशिया प्रशांत क्षेत्र, यूरोप, उत्तरी तथा दक्षिण अमेरिका के नागरिकों के बीच किया गया।
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18-10-2013, 10:08 AM | #1535 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
ब्रेन कैंसर से लड़ने के लिए नया प्रोटीन खोजा
भारतीय मूल के वैज्ञानिक को मिली सफलता मेलबर्न। ब्रेन कैंसर के उपचार में एक बड़ी सफलता मिलने का दावा करते हुए एक भारतीय मूल के आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने एक ऐसे प्रोटीन को खोज निकालने का दावा किया है जो ट्यूमर की स्टेम सेल को नष्ट कर देता है और उन्हें फिर से विकसित होने से रोकता है। पर्थ की कर्टिन यूनिवर्सिटी में स्कूल आॅफ बायोमेडिकल साइंसेज के अरुण धर्मराजन ने कहा कि नया प्रोटीन ट्यूमर कोशिकाओं को फिर से विकसित होने से रोक सकता है। यूनिवर्सिटी आफ मद्रास से शिक्षित धर्मराजन ने कहा कि कैंसर की स्टैम कोशिकाएं ‘बीज’ हैं जिनसे ट्यूमर विकसित होता है और अक्सर यह कीमोथैरेपी सहित अन्य उपचार के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखता है। उन्होंने बताया कि शोध परीक्षणों में नया प्रोटीन (सिक्रेटिड फ्रिजल्ड रिलेटिड प्रोटीन 4 : एसएफआरपी 4) कैंसर की स्टैम कोशिकाओं को कीमोथैरेपी के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता नजर आया और इससे उन्हें नष्ट करने में मदद मिल सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब प्रोटीन को उपलब्ध दवाओं के साथ इस्तेमाल किया गया तो ट्यूमर के आकार को घटाने में इसके परिणाम दोगुने प्रभावी थे। इसी प्रकार के परिणाम सिर, गर्दन , स्तन , गर्भाशय , प्रोस्टेट तथा अन्य प्रकार के कैंसर के उपचार में हासिल किए जा सकते हैं।
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18-10-2013, 10:12 AM | #1536 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
दुनिया में अब भी है तीन करोड़ गुलाम, इनमें आधे भारतीय
लंदन। दुनिया भर में अब भी तकरीबन तीन करोड़ लोग गुलामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर है और इनमें से लगभग आधे भारतीय है। विश्व दासता सूचकांक 2013 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर के जिन 162 देशों में सर्वेक्षण किया गया वहां तकरीबन दो करोड़ 98 लाख लोग दासता की जिंदगी जीने के लिए मजबूर है। इनमें से एक करोड़ 39 लाख लोग भारत में है। सर्वेक्षण के लिए दासता की जिस परिभाषा का इस्तेमाल किया गया है, उसके मुताबिक किसी की आजादी छीन लेना और हिंसा, दबाव या छल के जरिये उसका आर्थिक या यौन शोषण करना उसे दास बनाना है। एक ओर जहां पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण एशिया में आज भी कुछ लोग पैदा होते ही गुलाम बन जाते है, वहीं भारत समेत अन्य गरीब देशों में बंधुआ मजदूरी, बाल मजदूरी, देह व्यापार और जबरन विवाह के जरिये गुलामी कराई जाती है।
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23-10-2013, 11:44 PM | #1537 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
प्रमुख कारोबारी गंतव्यों में बेंगलूर शीर्ष पर: अध्ययन
नई दिल्ली। देश में सामाजिक-आर्थिक तथा बुनियादी ढांचा तत्वों के आधार पर 21 बेहतरीन कारोबारी गंतव्यों में बेंगलूर शीर्ष पर है। ग्लोबल इनीशिएटिव फार रिस्ट्रक्चरिंग इनवायरनमेंट एंंड मैनेजमेंट एंड प्रोपर्टी कंसल्टेंट डीटीजेड की सूची में चेन्नई दूसरे तथा उसके बाद क्रमश: मुंबई और पुणे का स्थान है। सूची में अहमदाबाद आठवें स्थान पर है। वहीं इंदौर पाचवें, भुवनेश्वर छठे तथा कोयंबतूर सातवें स्थान पर है। नागपुर और कोच्चि क्रमश: नौवें और दसवें स्थान पर है। हैदराबाद सूची में 12वें स्थान पर है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में नोएडा 17वें तथा गुड़गांव 19वें स्थान पर है। सूची में कोलकाता 18वें तथा विशाखापत्तनम 21वें स्थान पर है। शहरों की सूची मानव पूंजी, उर्जा, पानी, परिवहन, आवास, स्वास्थ्य, जलवायु, दफ्तर के लिये जगी की उपलब्धता जैसे तत्वों के आधार पर तैयार की गयी है।
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23-10-2013, 11:47 PM | #1538 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
‘अगले 3-4 साल में सीआरटी टीवी की जगह ले लेगा फ्लैट पैनल टीवी’
नई दिल्ली। कंज्यूमर इलेक्ट्रानिक्स एंड एप्लायंसेज मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सिएमा) को अगले तीन चार साल में कलर टीवी की जगह फ्लैट पैनल टीवी के ले लेने की उम्मीद है। सिएमा के अध्यक्ष व वीडियोकान इंडस्ट्रीज के निदेशक अनिरद्ध धूत ने कहा, ‘एलसीडी-एलईडी टीवी बाजार पिछले पांच साल से बहुत तेजी से बढ रहा है और अगले तीन चार साल में यह कलर टीवी की जगह ले लेगा, ऐसी हमें उम्मीद है।’ उन्होंने कहा कि भारत में फ्लैट पैनल टीवी की मांग बढाने के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार, बड़े आकार के डिसप्ले की कीमतों में कमी करने और ग्राहकों के रख के मद्देनजर प्रौद्योगिकी में बदलाव लाने की जरूरत है। वीडियोकान इंडस्ट्रीज की रणनीति के बारे में उन्होंने बताया कि वीडियोकान की डीडीबी (डिजिटल डायरेक्ट ब्राडकास्ट) प्रौद्योगिकी से उसे अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनियों के मुकाबले आगे रहने में मदद मिलेगी।
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24-10-2013, 09:31 AM | #1539 | ||
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
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पहली खबर से इस बात की पुष्टि होती है कि आर्थिक मंदी के दुष्परिणाम दूरगामी हैं और युवा वर्ग भी इनसे अछूता नहीं रह सकता. यह एक chain effect है. दूसरी खबर पर हमें गर्व की अनुभूति होती है. भारतीय वैज्ञानिक उपलब्धियों की सूचि में एक और सुनहरा इज़ाफा. तीसरी खबर हमें आईना दिखाने का ईमानदार प्रयास करती है. हम अपने संविधान के preamble को पढ़ कर भले खुश हो लें लेकिन वास्तविकता से मुंह मोड़ कर बैठना चाहते हैं. बड़े शर्म की बात है कि हम दासता बनाये रखने वाले देशों की सूचि में अव्वल नंबर पर हैं. |
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28-10-2013, 11:25 AM | #1540 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
माउथ वॉश, कफ सिरप भी पायलटों के लिए हैं खतरनाक
मुंबई। कॉकपिट तथा चालक दल के सदस्य सावधान। माउथवॉश, टूथजेल तथा कफ सिरप का इस्तेमाल करने पर आपको विमान से उतारा जा सकता है, क्योंकि इन उत्पादों में भी ‘अल्कोहल’ होता है। विमानन क्षेत्र के नियामक नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) पायलटों तथा चालक दल के अन्य सदस्यों के बीच शराब के सेवन पर अंकुश के लिए जो नए नियमों का मसौदा जारी किया है, उसमें उन्हें आगाह किया गया है कि वे ऐसी किसी दवा या माउथवॉश या टूथ जेल का इस्तेमाल न करें, जिसमें अल्कोहल की मात्रा है। इसके अलावा डीजीसीए ने फिलहाल इलाज करवा रहे चालक दल के सदस्यों को सुझाव दिया है कि वे किसी भी उड़ान पर जाने से पहले कंपनी के चिकित्सा विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करें। शराब रोधक नियमों को कड़ा करने के अपने प्रस्ताव के तहत नियामक ने भारत के बाहर से उड़ान भरने वाले विमानों के सभी पायलटों तथा चालक दल के सदस्यों के लिए उड़ान से पहले उनके लिए शराब सेवन की मेडिकल जांच को अनिवार्य कर दिया है। नियमाक ने अर्द्ध चिकित्सीय कर्मियों द्वारा सांस के विश्लेषण के परीक्षण को अनुमति देने का भी प्रस्ताव किया है। अभी तक इस तरह की जांच सिर्फ चिकित्सक कर सकते हैं। इसके अलावा शराब सेवन के दायरे मेंं विमानों का रखरखाव करने वाले इंजीनियरों को भी शामिल किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार उड़ान की ड्यूटी से 12 घंटे पहले तक पायलट द्वारा शराब का सेवन नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन कई बार सांस की जांच में सफल होने के बावजूद इन पायलटों में ‘हैंगओवर’ पाया गया। हालांकि, डीजीसीए ने ड्रिंक के दोषी पाए गए कॉकपिट तथा चालक दल के सदस्यों के प्रति कुछ उदारता दिखाई है। डीजीसीए के नए प्रस्ताव के अनुसार दूसरी बार उड़ान से पहले शराब सेवन का दोषी पाए गए पायलट तथा चालक दल के अन्य सदस्यों को दो साल तक उड़ान पर जाने की अनुमति नहीं होगी। अभी यह पांच साल है। मौजूदा नियमों के अनुसार सांस के परीक्षण मेंं पहली बार विफल होने पर पायलट या केबिन क्रू सदस्यों को तीन माह तक उड़ान पर जाने की अनुमति नहीं होगी। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर उन्हें 5 साल तक उड़ान पर जाने से रोक दिया जाता है। विमानन क्षेत्र के नियामक ने प्रस्ताव किया है कि चालक दल के सदस्य के दूसरी बार शराब सेवन का दोषी पाए जाने पर दो साल के लिए निलंबित किया जाएगा। वहीं तीसरी बार दोषी पाए जाने पर उन्हें पांच साल के लिए निलंबित किया जाएगा।
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