07-11-2011, 01:46 AM | #151 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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अब समझ आया बन्धु ! ऊपर वाले की तारीफ़ नीचे वाले ने हड़प ली !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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27-11-2011, 10:37 AM | #152 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
ख़ामोशी............. [LEFT]लम्बी ख़ामोशी................ चलो अब इसका मज़ा भी चख लें.............. तुझसे होते हुए कई शब्दों को सुना मैंने , कुछ शहद की तरह मीठे थे और कुछ नीम की तरह कडवे............ कुछ में तेरे प्यार की खुशबू महकती थी तो कुछ यूँ लगता था जैसे कोई अजनबी ने राह चलते हुए पुकारा हो .......... कुछ को समझ पाया और कुछ उड़ते गए यूँ ही हवा में......... शायद यही गलती हुई मुझसे........... शायद उनको भी समझना जरुरी था........... पर............... अब जो हालात बन चुके हैं दरम्यान अपने शायद उन्ही शब्दों का नतीजा हैं.............. अब केवल ख़ामोशी सुनती है दोनों तरफ......... अब शब्द गुफ्तगू करते नहीं आपस में.............
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Last edited by Sikandar_Khan; 27-11-2011 at 05:07 PM. |
03-12-2011, 04:23 PM | #153 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"शबनमी रात हो और हर तरफ अँधेरा हो !
एक चादर में लिपटें दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो !! तेरी मखमली बदन में , खुशबुओं के चमन में , सदियों तक वो रात चले , सदियों दूर सवेरा हो !! तेरे होठों को जब सिल दूं मैं, अपने होठों के धागे से, एक सन्नाटे में ख़ामोशी से, तेरी बाहों ने मुझको घेरा हो !!! दोनों लिपटें एक दूजे में , इक गाँठ सी लग जाए बदनो में ! मेरे जिस्म में घर मिलजाए तुझे , तेरे जिस्म में मेरा बसेरा हो !!! दिल कहता है कुछ ऐसा हो, तू बन जाये मैं , और मैं बन जाऊं तू बिस्तर पर तेरे मेरे सिवा, सिर्फ जूनून और ख़ामोशी का डेरा हो !!! एक चादर में लिपटें दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो ................ !!!!!!"
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
18-12-2011, 12:21 PM | #154 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"भीगा बदन था तेरा ,
नीयत मेरी गीली थी ! तन पे तेरे पानी की बुँदे, नज़रें मेरी फिसली थी ! लगी जो आग लगन की देखो गीला बदन जल गया ! छूने लगा था मैं जो तुझको, पत्थर जैसे पिघल गया !! प्रेम की बरखा बरस गयी सब्र का बाँध चटक गया ! तू बस सिम्मट के रह गयी अंग से अंग लिपट गया !! कहने को थे दो बदन जान जैसे एक हुई ! मैं ही मैं था तुझमे उस शुन, तू भी मुझमे समां गयी !! होठों का चुम्बन, हाथों की हरारत आँखों में तेरी, भरपूर शरारत ! तन से तन मिला था तेरे, मन से मन थे मिले ! गरम साँसे पाकर तेरी मरुस्थल में थे फूल खिले !! शर्म की ओढ़नी तेजकर देखो प्यार तेरा पहन लिया ! कुवांरे सपनो को तुने दुल्हन जैसा सजा दिया ! हर पल हुआ जैसे सिंदूरी, अब रही न तू अधूरी, पूरा तुझे जो बना दिया .................. !!!"
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22-01-2012, 05:41 PM | #155 | |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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29-04-2012, 05:46 PM | #156 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"न जाने क्या मासूमियत थी उस के चेहरे पर, उस को मनाने से ज़्यादा उस का रूठ जाना अच्छा लगा !!"
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29-04-2012, 08:05 PM | #157 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
बहुत खूब बंधू
तुझे मनाने से तेरा रूठ जाना अच्छा लगा
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
29-04-2012, 08:13 PM | #158 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
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29-04-2012, 08:15 PM | #159 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
तन से तन मिला था तेरे,
मन से मन थे मिले ! गरम साँसे पाकर तेरी मरुस्थल में थे फूल खिले !! शर्म की ओढ़नी तेजकर देखो प्यार तेरा पहन लिया ! कुवांरे सपनो को तुने दुल्हन जैसा सजा दिया ! हर पल हुआ जैसे सिंदूरी, अब रही न तू अधूरी, पूरा तुझे जो बना दिया .................. !!!" bahoot khoob janab |
11-05-2012, 09:11 PM | #160 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
प्यार........ क्या होता है प्यार ? क्यों होता है प्यार ?? कब होता है प्यार ??? किस्से होता है प्यार ???? तलाश है हम सबको उस प्यार की, जो हमें, हम रहने दे ... जो न बदले किसी भी हाल में .. ऐसा सच्चा प्यार ढूंढते है हम .. क्या प्यार रिश्तों की बंदिश है ? क्या प्यार में भी होती है बंदिशें ?? क्या प्यार है ख्वाहिशों का दुसरा नाम ??? क्यों, हुआ है हम सबको प्यार ? कभी न कभी .. किसी न किसी मोड़ पे ... दिल को कोई छूता है .... और बजती है तरंगें .... यह प्यार होता ही है, इसलिए ...... कब ... हाँ आखिर कब नहीं होता हमें प्यार ? शिशु के जनम से उसके अंतिम काल तक ... एक प्यार ही तोह है, जो किसी न किसी रूप में बंधे हैं संसार को .. बचपन का प्यार, जवानी का अल्हड़पन .. शादी की कशिश और फिर बुढ़ापे का प्यार .. कौन नहीं करता प्यार और कब नहीं करते हम प्यार ???? किस्से होता है यह प्यार ? मन जिसको चाहे, उसी से होता है प्यार ... माँ बाप का ता उम्र प्यार .. पति पत्नी का हर दिन बदलता प्यार ... और माँ बेटे का प्यार .. क्या प्यार रिश्तों का है दुसरा नाम ... लेकिन इश्वर का प्यार किसी रिश्ते का नहीं, बल्कि प्यार का दूसरा नाम है प्यार !!! समझना चाहती हूँ मैं आखिर क्या होता है प्यार ? क्यों होता है प्यार ?? कब होता है प्यार ??? किस्से होता है प्यार ???? चित्र सौजन्य: मित्र विक्रम
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