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Old 04-06-2011, 08:09 PM   #151
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

वहाँ जाकर उसने सीकर के देवीसिंह की बहुत सहायता की। प्रताप सिंह सीकर में कुछ दिनों ठहर कर अलवर लौटा और देवीसिंह ने कांसली पर अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार प्रताप सिंह ने सीकर के देवीसिंह की सहायता की जिससे दोनों के बीच मित्रता बढ़ी।
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Old 04-06-2011, 08:09 PM   #152
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

इसी समय मुहम्मद बेग हमदानी ने प्रताप सिंह पर आक्रमण किया, जिसमें प्रताप सिंह को विजय प्राप्त न होने के साथ क्षति भी नहीं हुई। इस प्रकार प्रताप सिंह ने सभी समस्याओं का साहस के साथ समाधान किया मुगल सेनापति मिर्जा नजफ खाँ ने जब भी भरतपुर पर आक्रमण किया तब-तब प्रताप सिंह ने मित्रता के सम्बन्ध स्थापित किए। इसका परिणाम यह हुआ कि उसे एस स्थायी मित्र मिल गया जो आगे चलकर कभी-भी जयपुर व भरतपुर के शासकों से उसकी रक्षा कर सकता था।
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Old 04-06-2011, 08:11 PM   #153
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

बन्ने सिंह और अलवर राज्य की प्रगति (१८१५-१८५७ ई.)

बन्ने सिंह बख्तावर सिंह के भाई थाना के ठाकुर सलेह सिंह का पुत्र था। उसका जन्म १६ सितम्बर १८०८ को हुआ था। बख्तावर सिंह के कोई पुत्र नहीं था। बख्तावर सिंह ने अपने भाई थाना के ठाकुर सलेह सिंह के लड़के विनय सिंह को सात वर्ष की उम्र से ही अपने पास रख रखा था, लेकिन गोद लेने के रस्मों रिवाज से पहले ही मृत्यु हो गई थी। इसके परिणामस्वरुप उसकी मृत्यु के बाद बन्ने सिंह के बीच उत्तराधिकार संघर्ष प्रारम्भ हो गया।
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Old 04-06-2011, 08:12 PM   #154
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उत्तराधिकार का संघर्ष और बन्नेसिंह का राज्याभिषेक

हरनारायण हल्दिया व दीवान नोनिद्धराम सहित अनेक सरदारों ने बन्नेसिंह को ही शासक बनाने के लिए जोरदार समर्थन किया। बलबन्त सिंह की आयु उस समय लगभग ६ वर्ष की थी। कुछ मुसलमान सरदार बलवन्त सिंह को गद्दी पर बैठाने के पक्ष में थे। १२ फरवरी, १८१५ को बन्नेसिंह को गद्दी पर बैठा दिया। दोनों के बीच वैमनस्य दूर करने के लिए बन्नेसिंह को गद्दी पर बांयी तरफ बलवन्त सिंह को भी बैठाया गया और यह निश्चय किया गया कि दोनों ही बराबरी से राजगद्दी के हिस्सेदार माने जाए, लेकिन इस समझौते पर रेजीडेन्ड ने उन्हें समझाया कि एक राज्य में दो शासक कैसे राज्य कर सकते हैं, यह नियमों के प्रतिकूल है। अत: यह समझौता हुआ कि महाराव राजा का करार दिया जा कर बन्नेसिंह के नाम से होगा
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Old 04-06-2011, 08:15 PM   #155
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

लेकिन सारा कामकाज बलवन्त सिंह करेगा तथा एक-दूसरे की राय लेकर शासन करेंगे, आपस में कभी वाद-विवाद नहीं होगा। ३० जनवरी १८१७ को नवाब अहमद बख्श खाँ ने परगना तिजारा तथा टपूकड़ा का ठेका लिया। सन् १८२४ तक पदाधिकारी विकट परिस्थितियों में राज्य का काम चलाते रहे।
दोनों के सम्बन्ध बिगड़ने की शुरुआत होने का मुख्य कारण यह था कि अंग्रेंज रेजीडेन्ट जनरल अक्टरलोनी ने एक जोड़ी पिस्तौल और एक पेशकब्ज ईनाम के रुप में बन्नेसिंह के पास भेजा था। जिसमें से पेशकब्ज व पिस्तौल तो बन्नेसिंह ने अपने पास रख ली और बलवन्त सिंह को सिर्फ पिस्तौल ही दिया, पेशकब्ज नहीं दिया। जब बलवन्त सिंह को इसका पता लगा तो दोंने के सम्बन्ध कटु हो गए
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Old 04-06-2011, 08:16 PM   #156
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

अन्त में अलवर राज्य में दो दल बन गए, एक दल बलवन्त सिंह का समर्थन करता तो दूसरा बन्नेसिंह का।
अहमद वख्श खाँ के विरुद्ध षड्यन्त्र

सन् १८२४ में बन्नेसिंह के समर्थकों ने बलवन्त सिंह के प्रबल समर्थक नवाब अहमद वख्श खाँ को मारने के लिए षड्यन्त्र रचा। इस प्रकार उक्त मेव दिल्ली पहुँचा और दिल्ली में अवसर पाकर रात के समय जब अहमद खाँ खेम्मे के अन्दर सो लहा था तब उसने उस पर तलवार से वार किया, जिससे वह जख्मी हो गया। उस समय वह दिल्ली में रेजीडेन्ट का मेहमान था कुछ समय बाद नवाब स्वस्थ्य हो गया। बलवन्त सिंह ने मेव को गिरफ्तार कर लिया। मल्ला व नंदराम दीवान जि कि बन्नेसिंह के समर्थक थे उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया व तुरन्त ही तीनों का वद्य करवा दिया।
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Old 04-06-2011, 09:04 PM   #157
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

इसी समय अहमद बख्श खाँ ने दिल्ली जाकर अंग्रेंजी रेजिडेन्ट अक्टरलोनी से अपनी मांगें मनवाई व अपने पक्ष में समर्थन करवाया। अत: बलवन्त सिंह के समर्थकों को अलवर राज्य से बाहर निकाल दिया जाए।कुछ समय पश्चात् अंग्रेंज रेजिडेन्ट ने बन्नेसिंह के द्वारा बलवन्त सिंह के हिमायतियों को १५ हजार रुपयों की वार्षिक आय की व बन्नेसिंह को अंग्रेज रेजिडेन्ट ने लिखा कि बलवन्त सिंह को कैद से मुक्त कर दिया जाए, परन्तु बन्नेसिंह ने इससे इन्कार कर दिया।
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Old 04-06-2011, 09:05 PM   #158
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Default Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय

अंग्रेजों की सैनिक कार्यवाही के कारण बन्नेसिंह को मजबूर होकर अंग्रेजों की सलाह को मानना पड़ा और बलवन्त सिंह को कैद से रिहा कर दिया। बन्नेसिंह ने अंग्रेजों को यह स्पष्ट किया कि हमारे यहाँ कि रियासतों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि पासवान के लड़के को दत्तक पुत्र के बराबर राज्य का आधा भाग दिया जाए। #ुसे अधिक से अधिक अपने जीवन निर्वाह के लिए कुछ रुपया प्रतिमाह दिया जा सकता है। परन्तु अंग्रेजों के दबाव के कारण बन्नेसिंह को कुछ परगने देने पड़े।
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Old 04-06-2011, 09:06 PM   #159
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बन्नेसिंह के द्वारा बलवन्त सिंह को जागीर प्रदान करना (२१ फरवरी १८२६)

अन्त में बन्नेसिंह ने २१ फरवरी, १८२६ को बलवन्त सिंह के नाम एक इकरार नामा लिखा। बलवन्त सिंह इलाका और रुपये का मालिक रहेगा, लेकिन यदि बलवन्त सिंह की नि:सन्तार मृत्यु हो जाएगी तो यह दिया हुआ सारा क्षेत्र फिर से अलवर राज्य में स्थापित कर दिया जाएगा। बन्नेसिंह ने २१ फरवरी १८२६ को इकरारनामा ल्खिा और अंग्रेज जनरल ने १४ अप्रैल को इस समझौते की गारन्टी के साथ पुष्टि की।

इकरारनाम लिख देने पर बन्ने सिंह को बलवन्त सिंह के झगड़ों से मुक्ति मिली। उसे शासन करने के पूरे अधिकार मिल गए, लेकिन अंग्रेजों से बन्ने सिंह के सम्बन्ध खराब ही रहे थे।
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बन्ने सिंह ने अंग्रेजों के साथ बिगड़ते हुए सम्बन्धों के कारण जयपुर महाराजा की अधिनता स्वीकार करना ही ठीक समझा। सन् १८३१ में उसने जयपुर महाराजा को काफी धन दिया और उससे खिलअल लेने का प्रयास किया। सन् १८३१ में जब अंग्रेज रेजीडेन्ट को यह पता चला तो वह बन्ने सिंह पर बहुत नाराज हुआ और उसने कहला भेजा कि उसके द्वारा जयपुर महाराजा से जो सम्बन्ध बनाए गए हैं वो अंग्रेजों से की गई संधियों के खिलाफ है।
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