28-09-2013, 09:45 PM | #151 |
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Re: इधर-उधर से
ओ ! जीवन के थके पखेरू, बढ़े चलो हिम्मत मत हारो, |
28-09-2013, 09:53 PM | #152 |
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Re: इधर-उधर से
पतंग, चरखड़ी और मेरी कवितायें
आलेख: मुकेश मानस ख्वाब आंखों में गर नहीं होते इतने आसां सफर नहीं होते आज जब मैं इन कविताओं को देखता हूं तो मुझे बहुत हैरत होती है। सोचता हूं कि मैंने इतनी कविताएं कैसे लिख लीं। जिन हालातों में मैंने आज तक ये जीवन जीया है, जिन निराशाओं, तनावों और कुंठाओं से लड़ते हुए मैं आज जहां तक पहुंचा हूं उनमें कविता लिखना शायद मेरे लिए सबसे मुश्किल काम था। मुझे नहीं मालूम कि मेरे शायर दोस्त प्रदीप साहिल ने ये शेर क्या सोचकर लिखा है। पर मेरे लिये यह एकदम सच है। कविता लिखना मेरे लिये किसी सपने से कम नहीं है। सपना यानी पतंग जिसे ऊंचा और ऊंचा उड़ाने की इच्छा मेरे मन में हमेशा ही रही है। मगर चरखड़ी नहीं थी मेरे पास। धीरे-धीरे मैंने कुछ धागा जुटाया और अपनी मुसीबतों को चरखड़ी बनाकर मैने कविताएं लिखी और उन्हें को पतंग बनाकर उड़ाने की कोशिश की। और आज भी कर रहा हूं। इन कविताओं ने मेरे साथ एक लंबा सफर तय किया है। लगातार मुश्किलों के घुप्प अन्धेरों में फंसना, उन मुश्किलों से टकराते हुए खुद को परखना, आत्म-विश्वास में भरना और नए आकाश तय करने के लिए लगातार जी-तोड़ मेहनत करना। ये सब ही इस सफर के मोड़ हैं। इन्हीं मोड़ों पर ये कविताएं मेरे पास आ गई है। मुझे लाचार निराशा और परास्त मानसिकता से उबारती हुई, अकेलेपन और बेसहारापन में सहारा देकर हौसला अफ़्जाई करती हुई और सफर के नए मुकामों को छूने की कूवत भरती हुई। |
28-09-2013, 10:11 PM | #153 |
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Re: इधर-उधर से
आज मैं आपके समक्ष संस्कृत साहित्य का एक ऐसा श्लोक प्रस्तुत कर रहा हूँ जो इस मायने में अनोखा है कि इसमें मात्राओं के अतिरिक्त केवल एक ही अक्षर का प्रयोग किया गया है. जो भी इसे पढता है, दांतों तले उंगली दबाने पर विवश हो जाता है.
भारवि रचित महाकाव्य “किरातार्जुनीयम” में निम्नलिखित श्लोक आता है, जिसमेमहाकवि ने एक ही अक्षर का प्रयोग किया है: ननोनन्नुनोनुन्नोनो नाना नानाननाननु । नुन्नोऽनुन्नोननुन्नेन्नो नाने नानुन्ननुन्ननुन।। (15/14) बहुत तलाश करने के बाद भी इसका अर्थ नहीं खोज पाया. अंत में हमारे अपने परम आदरणीय “डार्क सेंट अलैक” की कृपा से इस श्लोक का भावार्थ मिल सका. भावार्थ: हे नानामुख वाले (नानानन)! वह निश्चित ही (ननु) मनुष्य नहीं है जो अपने से कमजोर से भीपराजित हो जाय। और वह भी मनुष्य नहीं है (ना-अना) जो अपने से कमजोर को मारे (नुन्नोनो)। जिसका नेता पराजित न हुआ हो वह हार जाने के बाद भी अपराजित है (नुन्नोऽनुन्नो)। जो पूर्णनतः पराजित को भी मार देता है (नुन्ननुन्ननुत्) वहपापरहित नहीं है (नानेना)। |
07-10-2013, 10:02 PM | #154 |
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Re: इधर-उधर से
ग़ज़ल Last edited by rajnish manga; 09-10-2013 at 12:53 PM. |
08-10-2013, 07:53 AM | #155 |
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Re: इधर-उधर से
बहुत बदिया
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02-11-2013, 10:21 PM | #156 |
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Re: इधर-उधर से
सुर साधक मन्ना डे समय की भीत पर लिखा हुआ अभिलेख मन्ना डे. संगीत प्रेमियों के दिल में उतरा है देख मन्ना डे. पक्के सुर में पगी गायकी उसकी हरदम कहती है, पैदा हज़ारों वर्ष में होता है केवल एक मन्ना डे. |
02-11-2013, 10:24 PM | #157 |
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Re: इधर-उधर से
‘सावन के अँधे’ या ‘अंधों का सावन’
सुना है ‘अंधों का हाथी’ लिखने से पहले शरद जोशी जी ‘अंधों का सावन’ लिखने की सोचरहे थे। नहीं लिख पाए क्यूंकि ये मेरे भाग्य में बदा था। यदि अंधे या नेत्रहीनआंखों में काजल लगा भी लें तो इसमें दोष नहीं होता। सम्राट धृतराष्ट्र तो जन्मांधथे। बगैर आँखों की मदद के वे सौ बच्चों के बाप बने। संजय के मार्फत उन्होंने न जानेकितने सावन-भादों देखे-सुने। दृष्टिहीनों की आँखें सुना है मन में होती हैं।हमारे पास मन के नयन नहीं हैं। इसलिए हम कवि सूरदास की तरह कृष्ण की बाललीला नहींदेख सकते। श्रीकृष्ण तत्कालीन 10-20 जुलाई की रात को पैदा हुए थे। राशि सेकेन्सेरियन, तब लगभग सावन-भादों ही था इसी कारण मथुरा जेल के अधिकारी रात को अंधेहो गए थे ताकि वसुदेव श्रीकृष्ण को सुरक्षित ले जा सकें। इसे प्रभु की अंधी कृपाकहते हैं। सावन में जल भराव होता है। पुराने कवि इसे जलप्लावन कहते थे। आज केयुवा कवि यदि निठल्ले हों तो किसी हिमगिरी के लगभग उत्तुंग शिखर पर किसी सुरक्षितशिला की शीतल छांह खोज कर शहरों की सड़कों पर जल भराव का प्रलय प्रवाह देखने लगतेहैं। पानीदार प्रणय की नई कविता का जन्म होता है और हरी-हरी कल्पना भरी-भरी लगनेलगती है। सावन में बाढ़ आते ही राहत अधिकारी अंधे होकर माल काटने लगते हैं। बाढ़तो स्वयं अंधी होती है। राजभवनों और विधायक निवासों को छोड़कर झोपड़ियां निगलनेलगती है। इन दिनों यदि कोई प्रेम में अंधा हो जाए तो प्रेमिका की ठोकरें भी घुंघरूलगने लगती हैं। सावन के अंधे और अंधों के सावन में फर्क है। इसी से तीसरा तत्वनिकलता है कि अगर अंधे को अंधेरे में बड़ी दूर की सूझी तो समझो वो व्यंग्यकार है। मूर्ख बना रहा है। (साभार: उर्मिल कुमार थपलियाल, हिन्दुस्तान) |
03-11-2013, 01:06 PM | #158 | |
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Re: इधर-उधर से
Quote:
सच हें हज़ारों वर्ष में पैदा होता है केवल एक मन्ना डे.....
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19-11-2013, 10:12 PM | #159 |
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Re: इधर-उधर से
साँस लेने की आजादी
अलेक्सांद्र सोल्शेनित्सिन अनुवाद: सुकेश साहनी रात में बारिश हुई थी और अब काले-काले बादल आसमान में इधर से उधर घूम रहे हैं; कभी-कभी छिटपुट बारिश की खूबसूरत छटा बिखेरते हुए। मैं बौर आए सेब के पेड़ के नीचे खड़ा हूँ और साँसें ले रहा हूँ। सिर्फ सेब का यह पेड़ ही नहीं, बल्कि इसके चारों ओर की घास भी आर्द्रता के कारण जगमगा रही है; हवा में व्याप्त इस सुगंध का वर्णन शब्द नहीं कर सकते। मैं बहुत गहरे साँस खींच रहा हूँ और सुवास मेरे भीतर तक उतर आती है। मैं आँखें खोलकर साँस लेता हूँ, मैंआँखें मूँदकर साँस लेता हूँ, मैं यह नहीं बता सकता कि इनमें से कौन-सा तरीका मुझे अधिक आनंद दे रहा है। मेरा विश्वास है कि यह एकमात्र सर्वाधिक मूल्यवान स्वतंत्रता है, जिसे कैद ने हमसे दूर कर दिया है; यह साँस लेने की आजादी है, जैसे मैं अब ले रहा हूँ। इस संसारमेरे लिए यह फूलों की सुगंध भरी मुग्ध कर देने वाली वायु है, जिसमें आर्द्रता के साथ-साथ ताजगी भी है। यह कोई विशेष बात नहीं है कि यह छोटी-सी बगीची है, जो कि चिड़ियाघर में लटके पिंजरों-सी पाँच मंजिले मकानों के किनारे पर है। मैंने मोटर साइकिलों के इंजन कीआवाज, रेडियो की चिल्ल-पों, लाउडस्पीकरों की बुदबुदाहट सुनना बंद कर दिया है। जब तक बारिश के बाद किसी सेब के नीचे साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु है, तब तक हमखुद को शायद कुछ और ज्यादा जिंदा बचा सकते हैं। ** |
19-11-2013, 10:14 PM | #160 |
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Re: इधर-उधर से
बाल कविता / हमने क्या सीखा
(रचना / डॉ. प्रभाकर माचवे) अम्मा बोली बनो श्याम से, |
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