08-10-2011, 11:52 AM | #161 |
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08-10-2011, 11:53 AM | #162 |
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08-10-2011, 11:55 AM | #163 |
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08-10-2011, 11:58 AM | #164 |
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08-10-2011, 11:59 AM | #165 |
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08-10-2011, 12:01 PM | #166 |
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08-10-2011, 12:07 PM | #167 |
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08-10-2011, 12:43 PM | #168 |
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Re: ९९.९ रेडियो हिंदी
यह गाना मैंने करीब १० साल पहले बस में सुना था.. बहुत सालो से मैं इसी दूंद रहा था..
आखिरकार youtube पर मिल गया जय गूगल देव. यह फिल्म शंकर हुसैन (१९७७) का गीत है. कवलजीत इसके हीरो थे. यह उनकी पहली फिल्म थी और बुरी तरह पिटी थी बॉक्स ऑफिस पर. गीत को गाया है लता जी ने और संगीत दिया है खय्याम साहब ने.
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08-10-2011, 12:49 PM | #169 |
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Re: ९९.९ रेडियो हिंदी
मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में इसी फिल्म का एक और गाना बहुत ही अच्छा है..
गाने के बोल है कही एक नाजुक से लड़की. ७० के दशक का एक बेहतरीन रोमांटिक गीत। कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की बहुत खुबसूरत मगर सावलीं सी.. मुझे अपने खवाबो की बाँहों में पाकर कभी नींद में मुस्कराती तो होगी उसी नींद में कस-मसा कस-मसा कर सिरहाने से तकिये गिरती तो होगी कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की..... वोही खवाब दिन की मुंडेरो पे आके उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे कई साज सिने के खामोशियों में मेरी याद से झन- झ्नाते तो होंगे वो बैसाख था ,धीमे-धीमे सुरों में मेरी धुन में कुछ गुन-गुनाती तो होगी कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की..... चलो ख़त लिखे ,जी में आता तो होगा मगर उँगलियाँ कप-कपाती तो होगी कलम हाथ से छुट जाता तो होगा उमंगें कलम फिर उठाती तो होगी मेरा नाम अपनी किताबो पे लिखकर वो दांतों में ऊँगली दबाती तो होगी कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की..... जबा से कभी उफ़ निकलती तो होगी बदन धीरे-धीरे सुलगता तो होगा कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे जमीं पर दुपट्टा लटकता तो होगा कभी सुबह को शाम कहती तो होगी कभी रात को दिन बताती तो होगी कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की बहुत खुबसूरत मगर सावलीं सी..
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08-10-2011, 01:07 PM | #170 |
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