08-12-2010, 07:49 PM | #161 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
सांसें मैं लूं फ़िर भी पल-पल मरूं.. यादें.. यादें.. यादें.. तेरी यादें.. यादें.. यादें.. बातें.. बातें.. बातें.. तेरी.. बातें.. बातें.. बातें.. हल्की सी आहट हो तो लगे तुम आगये.. क्यूं तन्हा छोडकर मुझको रुला गये.. महफ़ूज़ है तू मेरी हर एक याद मैं.. बिखरा हुआ.. हुआ हूं बरबाद मैं.. यादें.. यादें.. यादें.. तेरी यादें.. यादें.. यादें.. बातें.. बातें.. बातें.. तेरी.. बातें.. बातें.. बातें.. मेहरूम हूं मैं तेरी हर एक बात से.. ना कोई नाता.. अब दिन और रात से.. हर लम्हा तड्प, हर लम्हा तेरी प्यास है.. जब से मैं हूं जुदा तेरे साथ से.. यादें.. यादें.. यादें.. तेरी यादें.. यादें.. यादें.. बातें.. बातें.. बातें.. तेरी.. बातें.. बातें.. बातें.. उन लम्हों को कैसे ज़िन्दा करूं.. सांसें मैं लूं फ़िर भी पल-पल मरूं.. |
08-12-2010, 07:49 PM | #162 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
दिल कि हर धड़कन में बसती है तुम्हारी पिपाशा
है चंद्रमुखी ,है रूपवती ऐसी है मेरी "अभिलाषा" जिनके सुर कोयल के सुर थे चंचलता हिरनों कि , जिनके अठ्ठासो में भरी हो झुर्मुता परियो कि जिनके बोल पड़े जब श्रवनो को वन्प्रिया कि बोल फीकी पड़े है चंद्रमुखी ,है रूपवती ऐसी है मेरी "अभिलाषा" |
08-12-2010, 07:50 PM | #163 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
तुम्हारी नज़रों से दूर, ना जाने ये वक्त कैसे गुजरता है।
आँखें बेरहम हो गयी मेरी, बस दिल तुझे याद करता है। तुम्हारी नज़रों से दूर.......................................... ..... तेरी जज्बातों को अपने पलकों पे रखना चाहता हें, मगर दूर हें मैं। तेरे संग बिताये लम्हों की कसम, तेरे संग रहना चाहता हें। मगर मजबूर हें मैं। मेरी पलकों पे तेरी याद बन के आंसू ना जाने कब टपकता है। तुम्हारी नज़रों से दूर, ना जाने ये वक्त कैसे गुजरता है। |
08-12-2010, 07:51 PM | #164 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
तुम आखिर क्यूँ इतने गुरुर में होते हो ,
जब हम जागते हैं तुम चैन से सोते हो , पर ये जान लो की कुछ लोग हैं जो हमे पाने के लिए अपनी नींद तक खोते हैं , हमारी एक झलक पाने के लिए वे घुट घुट के रोते हैं , कही वक़्त ऐसा न हो कि हम कभी अब चैन से सो जाएँ और आप सारी उम्र के लिए ही बेचैन से हो जाएँ. |
08-12-2010, 08:09 PM | #165 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
बीते हुए समय को आज फिर से याद कर रहा हूँ, आज फिर पुराने ख़यालों मे खो रहा हूँ, वही रोज दफ़्तर जाना, बोस की फाइलों से डरना, रोज यूँही सत्य को पिसते
हुए देखना, बाजार से हरी सब्जी लाना. और रत को सोते वक़्त तकिये पर सर रख कर सिगरेट सुलगते समय यही सोचना की अपनी चीता मे आग लगा रहा हूँ, और फिर शुबह नींबू वाली चाय भी तो पीनी है.............. |
08-12-2010, 08:10 PM | #166 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
हमको यूं दिल से जुदा न करना॥
ये दिल मेरा टूट जाएगा॥ उड़ जायेगी खुशबू हमारी॥ गुलशन सूख जाएगा॥ जी ना पायेगे बिन तुम्हारे॥ बीता कल हमें रुलाएगा॥ बीती बातें सपने मेरे ॥ आके मुझे चिद्हायेगा ॥ |
08-12-2010, 08:11 PM | #167 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
मेरी ग़ज़लों में ढल गया होगा
जाने कितना बदल गया होगा धूप सर पर उतर गयी होगी चाँद चेहरे का ढल गया होगा बेसबब अश्क़ बह नहीं सकते कोई पत्थर पिघल गया होगा रास्तों को वो जानता कब था पाँव ही था फिसल गया होगा मंज़िलें दूर क्यूँ हुई हैं निज़ाम रस्ता रस्ता बदल गया होगा |
08-12-2010, 08:12 PM | #168 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
तू वक्त का अपना शुक्र माना इससे भी बुरा हो सकता था
दुःख और बडे हो सकते थे गम और घना हो सकता था वो दिन भी क्या दिन थे जब हम हक़ रखते थे इक दूजे पर तू मुझसे खफा हो सकता था मैं तुझसे खफा हो सकता था ये मौत ही है जिसने अब तक इन्सान को इंसा रक्खा है गर मौत भी बस में आ जाती इंसान खुदा हो सकता था तुने थोड़ी-सी जल्दी की ढल जाने दिया जो अश्कों में गर ढलती अपनी गजलों में ये दर्द दावा हो सकता था अच्छा ही हुआ कल महफ़िल में मुझ पर न पड़ी उसकी नजरें वरना उसका भी भूला-सा कोई जख्म हरा हो सकता था वो तो मैने हुशियारी से सच को न जुबाँ पर आने दिया वरना ये जुबाँ कट सकती थी सर तन से जुदा हो सकता था |
08-12-2010, 08:12 PM | #169 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
सारे ही यकीं अपने तो वहमो-गुमाँ निकले
था दोस्त जिन्हे जाना वो दुश्मने-जाँ निकले अंदाज इबादत का ऐसा हो तो कैसे हो मस्जिद में भजन गूँजें मंदिर से अजाँ निकले खोदो तो कहीं दिल की वीरान जमीनों को मुमकिन है कहीं कोई बस्ती का निशाँ निकले डाले ही रही डेरा हसरत मेरे सीने में ता उम्र मेरे दिल के अरमाँ भी कहाँ निकले उस दर्द के क्या कहने जिस दर्द को सहने में आँखों से लहू टपके सीने से धुआँ निकले कुछ कहते हुए अब तो रहता है यही खतरा छीन जाये जुबाँ किस पर किस बात पे जाँ निकले |
08-12-2010, 08:13 PM | #170 |
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Re: दर्द की बात प्यार के साथ ( शायरी,गीत,गजल)
बातें तो हजारों हैं मिलूं भी तो कहूँ क्या
ये सोच रहा हूँ कि उसे खत में लिखूँ क्या आवारगी-ए-शौक़ से सड़कों पे नहीं हूँ हालात से मजबूर हूँ मैं और करूं क्या करते थे बोहत साज़ और आवाज़ की बातें अब इल्म हुआ हमको कि है सोज़-ए-दुरूं क्या मरना है तो सुकरात की मानिंद पियूं ज़हर इन रंग बदलते हुए चेहरों पे मरूं क्या फितरत भी है बेबाक सदाकत का नशा भी हर बात पे खामोश रहूं, कुछ न कहूँ क्या जिस घर में न हो ताजा हवाओं का गुज़र भी उस घर की फसीलों में भला क़ैद रहूं क्या मुरझा ही गया दिल का कँवल धूप में आरिफ खुश्बू की तरह इस के ख्यालों में बसूँ क्या |
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