12-05-2013, 07:06 AM | #161 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
21. किसी की गुप्त बात को प्रकट करना हिंसा है. 22. किसी को नीच-अछूत समझना हिंसा है. 23. शक्ति होने हुए भी सेवा न करना हिंसा है. 24. बड़ों की विनय-भक्ति न करना हिंसा है. 25. छोटों से स्नेह, सद्भाव न रखना हिंसा है.
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
12-05-2013, 07:07 AM | #162 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
26. ठीक समय पर अपना फर्ज अदा न करना हिंसा है. 27. सच्ची बात को किसी बुरे संकल्प से छिपाना हिंसा है
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27-06-2013, 05:25 AM | #163 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
बारह भावना
~~~~~ भव वन में जी भर घूम चुका, कण, कण को जी भर देखा। मृग सम मृग तृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख की रेखा। अनित्य ~~ झूठे जग के सपने सारे, झूठी मन की सब आशाएँ। तन-यौवन-जीवन-अस्थिर है, क्षण भंगुर पल में मुरझाए। अशरण ~~ सम्राट महा-बल सेनानी, उस क्षण को टाल सकेगा क्या। अशरण मृत काया में हर्षित, निज जीवन डाल सकेगा क्या। संसार ~~ संसार महा दुःख सागर के, प्रभु दु:ख मय सुख-आभासों में। मुझको न मिला सुख क्षण भर भी कंचन-कामिनी-प्रासादों में। एकत्व ~~ मैं एकाकी एकत्व लिए, एकत्व लिए सबहि आते। तन-धन को साथी समझा था, पर ये भी छोड़ चले जाते। अन्यत्व ~~ मेरे न हुए ये मैं इनसे, अति भिन्न अखंड निराला हूँ। निज में पर से अन्यत्व लिए, निज सम रस पीने वाला हूँ। अशुचि ~~ जिसके श्रंगारों में मेरा, यह महँगा जीवन घुल जाता। अत्यंत अशुचि जड़ काया से, इस चेतन का कैसा नाता। आव ~~ दिन-रात शुभाशुभ भावों से, मेरा व्यापार चला करता। मानस वाणी और काया से, आव का द्वार खुला रहता। सँवर ~~ शुभ और अशुभ की ज्वाला से, झुलसा है मेरा अंतस्तल। शीतल समकित किरणें फूटें, संवर से आगे अंतर्बल। निर्जरा ~~ फिर तप की शोधक वह्नि जगे, कर्मों की कड़ियाँ टूट पड़ें। सर्वांग निजात्म प्रदेशों से, अमृत के निर्झर फूट पड़ें। लोक ~~ हम छोड़ चलें यह लोक तभी, लोकांत विराजें क्षण में जा। निज लोग हमारा वासा हो, शोकांत बनें फिर हमको क्या। बोधि दुर्लभ ~~ जागे मम दुर्लभ बोधि प्रभो! दुर्नयतम सत्वर टल जावे। बस ज्ञाता-दृष्टा रह जाऊँ, मद-मत्सर मोह विनश जावे। धर्म ~~ चिर रक्षक धर्म हमारा हो, हो धर्म हमारा चिर साथी। जग में न हमारा कोई था, हम भी न रहें जग के साथी। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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27-06-2013, 02:26 PM | #164 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
जानिए महारानी त्रिशला के 16 शुभ स्वप्न भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्*भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते वे ही गहरी नींद में सो गई। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह आषाढ़ शुक्ल षष्ठी का दिन था। सुबह जागने पर रानी के महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की। राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते चलेंगे। तब महारा*नी त्रिशला ने अपने सारे स्वप्न उन्हें एक-एक कर विस्तार से सुनाएं।
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27-06-2013, 02:30 PM | #165 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
1. रानी ने पहला स्वप्न बताया : स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया।
- ज्योतिष शास्त्र के विद्वान राजा सिद्धार्थ ने पहले स्वप्न का फल बताया : उनके घर एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।
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27-06-2013, 02:36 PM | #166 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
2. दूसरा स्वप्न : श्वेत वृषभ।
- फल : वह पुत्र जगत का कल्याण करने वाला होगा।
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27-06-2013, 02:37 PM | #167 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
3. तीसरा स्वप्न : श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह।
- फल : वह पुत्र सिंह के समान बलशाली होगा।
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27-06-2013, 02:38 PM | #168 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
4. चौथा स्वप्न : कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी।
- फल : देवलोक से देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।
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27-06-2013, 02:38 PM | #169 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
5. पांचवां स्वप्न : दो सुगंधित पुष्पमालाएं।
- फल : वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।
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27-06-2013, 02:39 PM | #170 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
6. छठा स्वप्न : पूर्ण चंद्रमा।
- फल : उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।
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